मुंबई बम धमाका: उच्चतम न्यायालय ने दोषी की मौत की सज़ा के अमल पर लगाई रोक

मुंबई में 12 मार्च, 1993 को 12 स्थानों पर बम विस्फोट हुए थे जिनमे 257 व्यक्ति मारे गए थे और 718 अन्य जख़्मी हो गए थे.

(फोटो: रॉयटर्स)

मुंबई में 12 मार्च, 1993 को 12 स्थानों पर बम विस्फोट हुए थे जिनमे 257 व्यक्ति मारे गए थे और 718 अन्य जख़्मी हो गए थे.

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(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मुंबई में 1993 में एक के बाद एक हुए विस्फोटों की घटना में मौत की सज़ा पाने वाले ताहिर मर्चेंट की सज़ा के अमल पर सोमवार को रोक लगा दी.

शीर्ष अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो से छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगने के साथ ही मुंबई में विशेष टाडा अदालत से इस मामले का सारा रिकॉर्ड भी मंगाया है. टाडा अदालत ने मर्चेंट, फीरोज़ अब्दुल राशिद ख़ान को मौत की सज़ा और गैंगस्टर अबू सलेम को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी. मर्चेंट को इस मामले की सुनवाई के दूसरे चरण मे अन्य दोषियों के साथ दोषी ठहराया गया था क्योंकि वह फ़रार था.

मुंबई में 12 मार्च, 1993 को 12 स्थानों पर बम विस्फोट हुए थे जिनमे 257 व्यक्ति मारे गए थे और 718 अन्य जख़्मी हो गए थे. इनमें से कुछ अपंगता से ग्रस्त हो गए हैं.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमएम शांतानागौदर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को नोटिस जारी किया और रजिस्ट्री को निचली अदालत का रिकॉर्ड मंगाने का निर्देश दिया.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि पूरी तरह से साक्ष्यों को सूचीबद्ध करके उन्हें सुविधाजनक खंडों में पेश किया जाए और इसकी एक प्रति अपीलकर्ता मर्चेंट के वकील को भी दी जाए.

न्यायालय ने मौत की सज़ा के अमल पर रोक लगाते हुए इसे सुनवाई के लिए अगले साल 14 मार्च को सूचीबद्ध कर दिया.

मर्चेंट ने टाडा अदालत के सात सितंबर के फैसले को चुनौती दी है जिसने अन्य षडयंत्रकारियों के साथ ही उसे भी षडयंत्रकारी पाया है.

इससे पहले अदालत ने अपने फैसले में इस तथ्य का ज़िक्र किया कि मर्चेंट ने फ़रार षडयंत्रकारी टाइगर मेमन के साथ मिलकर काम किया और दुबई में इस साज़िश के लिए अनेक बैठकों में शामिल हुआ.

ताहिर ने अनेक सह आरोपियों की यात्रा का बंदोबस्त किया और उनकी यात्रा तथा ठहरने के लिए पैसा देने के साथ ही पाकिस्तान में उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था की.

अदालत ने कहा था कि इस साज़िश में ताहिर की भूमिका प्रमुख है. वह साज़िश की शुरुआत करने वाले लोगों में से एक है.

इस मामले में अबू सलेम प्रत्यर्पण कानून के प्रावधान की वजह से मौत की सज़ा से बच गया और उसे अदालत ने उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई. सलेम के अलावा इस मामले में करीमुल्ला ख़ान को उम्र क़ैद और रियाज़ सिद्दीक़ी को दस साल की सज़ा सुनाई है.