जगदलपुर (बस्तर): सलवा जुडुम के एक प्रमुख नेता हुआ करते थे चिन्ना गोटा. महेंद्र कर्मा के सेनापति चिन्ना गोटा पर आरोप लगते रहे थे कि उन्होंने आदिवासियों पर तमाम अत्याचार किए थे. जुडुम अभियान ख़त्म हो जाने के बाद चिन्ना गोटा बीजापुर से जिला जनपद सदस्य चुने गए और गांव के सरपंच भी रहे, तीन बार उन्होंने विधायक का चुनाव भी लड़ा था. लंबे समय तक नक्सलियों के निशाने पर रहे चिन्ना की नक्सलियों ने 2012 में हत्या कर दी. आज उनके बेटे डॉक्टर प्रकाश गोटा बस्तर लोकसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. एमबीबीएस डॉक्टर प्रकाश कुमार गोटा उच्च अध्ययन छोड़कर राजनीति में उतर आए हैं.
इस आदिवासी-बाहुल्य लोकसभा में मतदान पहले चरण में उन्नीस अप्रैल को होना है. पिछले दिनों में तमाम राजनीतिक हस्तियां हिंसा-प्रभावित बस्तर आ चुकी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशाल जनसभा, छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का रोड शो, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का दंतेवाड़ा प्रवास और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की जगदलपुर में जनसभा हुई हैं.
बस्तर सीट के तीन मुख्य उम्मीदवार अलग-अलग विचारधारा के हैं. भाजपा के उम्मीदवार महेश कश्यप मोदी के नाम पर वोट की अपील कर रहे हैं, तो कांग्रेस के कवासी लखमा अपने चिरपरिचित अंदाज में सिर्फ़ अपने दम पर जनता के सामने आ रहे हैं.
कवासी लखमा के पास उल्लेखनीय राजनीतिक ट्रैक रिकॉर्ड है. वह सुकमा ज़िले की कोंटा विधानसभा क्षेत्र से विधायक के रूप में लगातार छह बार जीत चुके हैं और कई बार कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं. भले ही इस आदिवासी नेता के पास औपचारिक शिक्षा नहीं है, उन्हें राजनीति और जनसंपर्क का व्यापक अनुभव है.
कवासी लखमा अपने चुनावी अभियान में बस्तर के विकास को तरजीह देते हुए पिछली भाजपा सरकारों पर तंज कसते नहीं थकते.
वे कहते हैं कि लोकसभा चुनाव लड़ने का मकसद बस्तर की आवाज दिल्ली में उठाना है, लेकिन दिलचस्प है कि खुद मंत्री रहते हुए वे अपने क्षेत्र का ही विकास नहीं कर सके. उनके मुताबिक माओवाद से बस्तर की मुक्ति सबसे बड़ा मुद्दा है. आदिवासियों को वनोपज की अच्छी कीमत मिले, इसके लिए बस्तर में रेल लाइन का विस्तार जरूरी है. इसके साथ ही नगरनार स्टील प्लांट तथा बैलाडिला लोह अयस्क खदान का निजीकरण रोकने की भी वे वकालत करते हैं.
कवासी लखमा वादा करते हैं कि दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी मंदिर के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं, इसके लिए हवाई अड्डा का निर्माण करावाया जाएगा. वे ध्यान दिलाते हैं कि भाजपा सरकार के पिछले तीन महीनों में दक्षिण बस्तर में गोलीबारी की कई घटना हो चुकी हैं.
उनके प्रतिद्धंदी भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी महेश कश्यप कहते हैं कि प्रधानमंत्री की योजनायें गांव-गांव तक पहुंचाईजाएगी. बस्तर की रेल लाइन, बस्तर की संस्कृति तथा बस्तर की धरोहर इंद्रावती नदी को बचाने का प्रयास किया जाएगा.
महेश कश्यप के मुताबिक बस्तर की सबसे बड़ी समस्या माओवाद की है जिसे दूर किया जाएगा. महेश कश्यप आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं. उन्होंने बस्तर के आदिवासी समुदाय द्वारा ईसाई धर्म को अपनाने को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी है. विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए धर्मांतरण अहम मुद्दा था, जिसका लाभ भाजपा को भरपूर मिला था.
डॉ. प्रकाश कुमार गोटा भी कहते हैं कि उनका चुनाव लड़ने का मुख्य कारण माओवादी समस्या का निराकरण करना है. इसके लिए स्थानीय स्तर से लेकर बुद्धिजीवी संगठनों और अधिकारियों की एक टीम का गठन किया जाएगा और माओवादियों से बातचीत की जाएगी.
भले ही दूर दराज के क्षेत्रों में नक्सली भय की वजह से इन प्रत्याशियों का प्रचार कम नजर आ रहा है, सोशल मीडिया जैसे माध्यमों से प्रत्याशी अंदरूनी इलाकों में पहुंच बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
बस्तर क्षेत्र में कुल पुरुष मतदाता 6,98,197, महिला मतदाता 7,68,088, और विशेष रूप से सक्षम मतदाता 12,600 हैं. 18 से 19 वर्ष वर्ग के मतदाता 46,777 हैं और 85 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाता 3,489 हैं.
यह सीट छत्तीसगढ़ की राजनीति में बहुत महत्त्व रखती है, क्योंकि अगर पिछले कई दशकों से यह नक्सलवाद का गढ़ रही है, तो इस जंगल की भूमि के नीचे तमाम खनिज पदार्थ भी हैं जिन पर निजी कंपनियों की निगाहें गढ़ी हैं.
(लेखक स्थानीय पत्रकार हैं.)