रोहतास/पटना: कृष्णा पासवान दाएं पैर से घिसटकर चलते हैं. उन्हें नटवार थाना और सेमरा ओपी थाना से 21 मार्च और 30 मार्च को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 के तहत नोटिस आया, जिसके तहत उन्हें अदालत में जाकर एक बंध-पत्र (बॉन्ड) दाखिल करने का निर्देश मिला. पैंतीस वर्षीय पासवान रोहतास ज़िले के बरुना गांव के निवासी हैं और दिहाड़ी मजदूरी करते हैं.
कृष्णा पासवान से द वायर की मुलाकात बरुना से सटे करहसी गांव में हुई, जहां वह भवन निर्माण स्थल पर मजदूरी कर रहे थे. ‘मैं विकलांग आदमी हूं. घिसटकर चलता हूं, मैं दंगा और खूनखराबा करूंगा? मेरे खिलाफ थाने में कोई केस नहीं है. कभी किसी से झगड़ा भी नहीं किया,’ उन्होंने कहा.
उन्होंने बताया कि नोटिस आने के बाद उन्हें कोर्ट में जाना पड़ा, जिसमें उनके 500 रुपये खर्च हो गए और एक दिन की मजदूरी भी प्रभावित हुई.
पासवान इकलौते व्यक्ति नहीं हैं, जिनके खिलाफ कोई एफआईआर नहीं होने के बावजूद धारा 107 के तहत नोटिस आया है. बरुना गांव में ही बीस लोगों को यह नोटिस भेजा गया है. चुनावों के वक्त पुलिस अपराधिक किस्म के लोगों को ऐसे नोटिस भेजती है, लेकिन बरुना गांव के जिन लोगों को यह भेजा गया है, स्थानीय लोगों के अनुसार, उनमें से 2-3 को छोड़कर बाकी सभी सरल लोग हैं और उनके खिलाफ कोई केस नहीं है–वे किसी मारपीट में भी कभी शामिल नहीं हुए हैं. इन लोगों में राजू राम, लवकुश पासवान, विनोद पासवान इत्यादि शामिल हैं.
पड़ोस के गांव बलुआही निवासी अशोक चौबे के पास भी ऐसा नोटिस आया है. उनका कहना है कि उनके खिलाफ थाने में कोई केस नहीं है. उन्होंने कहा कि उनके गांव में चार-पांच अन्य लोगों के खिलाफ नोटिस आया है जबकि उनके खिलाफ कोई एफआईआर नहीं है. ‘इनमें से तो एक आदमी 70 साल का बुजुर्ग है, जो चल भी नहीं पाता है,’ चौबे ने बताया.
गौरतलब है कि ये नोटिस अमूमन पासवान, महतो और तेली जैसी अति-पिछड़ी जाति और अनुसूचित जातियों के सदस्यों के पास आए हैं. इस आरोप से डरकर ये लोग मतदान के दिन अपना गांव छोड़कर जाने का सोच रहे हैं- इस तरह यह नोटिस इन्हें मतदान के अधिकार से वंचित कर सकता है.
बेबुनियाद आरोप
24 मार्च को अनिल शाह बरुना गांव में अपने घर पर थे, जब गांव के एक चौकीदार धारा 107 के तहत नोटिस लेकर उनके घर पहुंच गये. द वायर के साथ बातचीत में अनिल शाह भोजपुरी में कहते हैं, ‘हम पुछनी कि ना हमार केहू से झगड़ा बा… ना थाना में केस फैदारी बा, फेर काहे ई नोटिस आ गइल (मैंने चौकीदार से पूछा कि मेरा किसी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ है, न ही थाने में मेरे खिलाफ कोई केस दर्ज है, फिर यह नोटिस क्यों आ गया).’
अनिल शाह अतिपिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की तेली जाति से ताल्लुक रखते हैं. नोटिस में अनिल शाह के पिता की जगह किसी और का नाम था, इसलिए उन्होंने नोटिस नहीं लिया. उन्हें लगा कि अगर नोटिस ले लेंगे, तो बाद में दिक्कत होगी.
चार दिन बाद चौकीदार वापस आया. इस बार अनिल शाह डर गए. ‘चौकीदार ने कहा कि नोटिस नहीं लेने के चलते मेरे खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी हुआ है और गिरफ्तारी से बचने के लिए मुझे विक्रमगंज कोर्ट में जाकर बॉन्ड भरना होगा,’ उन्होंने कहा.
पेशे से ऑटोरिक्शा चालक अनिल कहते हैं, ‘अगर मैं गिरफ्तार हो जाता, परिवार का क्या होता! मैं अगले दिन विक्रमगंज के अनुमंडल दंडाधिकारी (एसडीओ) के कोर्ट में हाजिर हो गया और बॉन्ड भर दिया.’ इस तरह अनिल शाह गिरफ्तारी से बच गए.
लेकिन उनके खिलाफ यह नोटिस क्यों आया, जिसके मुताबिक वह ‘मनबढ़ू (उद्दंड) हैं और चुनाव में मारपीट और खूनखराबा’ कर सकते हैं?
‘आज तक न मेरे पिता के खिलाफ किसी थाने में कोई केस दर्ज हुआ है और न मेरे खिलाफ. मैंने कभी किसी से मारपीट नहीं की. एगो रस्सी में बान्हल कुत्ता से डेराए बला आदमी पर अइसन आरोप लगावल जाई त ई गलत बा (रस्सी में बंधे कुत्ते से डरने वाले आदमी पर ऐसा आरोप लगाया जाए, यह गलत है),’ वह कहते हैं.
गौरतलब है कि नटवार थाना और सेमरा आउटपोस्ट से जारी किए गए ये नोटिस एक जैसी भाषा में लिखे गए हैं. ये नोटिस कहते हैं कि ‘आम सूचना संकलन’ और ‘क्षेत्र भ्रमण’ के आधार पर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची है कि ‘मनबढ़ू प्रवृति’ के लोगों द्वारा ‘लोकसभा चुनाव में अशांति फैलाने तथा विधि-व्यवस्था भंग करने’ की प्रबल संभावना है. अगर ऐसे लोगों पर ‘शीघ्र निरोधात्मक कानूनी कार्रवाई नहीं की गई, तो कभी भी मारपीट एवं खून-खराबा किया जा सकता है’.
धारा 107 का नोटिस आरोपित व्यक्ति को एक वर्ष तक शांति बनाए रखने का बंधपत्र कोर्ट में जमा करने का आदेश देता है. अगर आरोपी कोर्ट में पेश नहीं होता है, धारा 113 के तहत उसके खिलाफ गिरफ्तारी का वॉरंट जारी किया जा सकता है.
द वायर के पास दोनों थानाध्यक्षों द्वारा अनुमंडलीय दंडाधिकारी, बिक्रमगंज, को भेजे गए पत्रों की प्रति है, जिनमें इन लोगों के ख़िलाफ़ नोटिस जारी करने का निवेदन किया गया है. लेकिन पत्रों में इसका कोई जिक्र नहीं है कि इन लोगों के खिलाफ क्या प्रमाण मिले हैं, जिनके आधार पर उन्हें ‘खून-खराबा करने वाला’ माना गया है.
बिहार में यह पहली मर्तबा नहीं हुआ है. चुनाव के वक्त पुलिस दर्जनों लोगों के खिलाफ धारा 107 के तहत अंधाधुंध तरीके से नोटिस जारी करती है. बिहार कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास द वायर से कहते हैं, ‘पर्व-त्योहार व चुनावों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का थानों पर दबाव होता है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को नोटिस जारी किया जाए. मेरा अनुभव कहता है कि जिनके खिलाफ धारा 107 के तहत नोटिस जारी होता है, उनमें से अधिकांश लोग गरीब और निर्दोष होते हैं.’
मनगढ़ंत मामलों की कथाएं
वर्ष 2011 में पंचायत चुनाव के मद्देनजर औरंगाबाद जिले की पुलिस ने पांच साल के एक बच्चे के खिलाफ धारा 107 के तहत नोटिस जारी कर दिया था. साल 2019 में बिहार पुलिस ने छह लोगों के खिलाफ धारा -107 के तहत नोटिस जारी किया था, जिनमें से अजय कुमार की मौत वर्ष 2014 में हो चुकी थी. इसी तरह, बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के दौरान दरभंगा पुलिस ने 11 साल के एक बच्चे के खिलाफ धारा 107 के तहत नोटिस जारी कर दिया गया था.
साल 2022 में पंचायत चुनाव के दौरान भागलपुर जिले के पिपरपांती इलाके में अशोक साह नामक व्यक्ति के खिलाफ नोटिस जारी किया गया था, जबकि वह पिछले चार वर्षों से जमुई जिले में रह रहा था. इसी इलाके में गुड्डू तांती को भी नोटिस जारी किया गया था, मगर वह पिछले छह वर्षों से फरीदाबाद में रह रहा था. वहीं, अनुज कुमार अमेरिका में रह रहा है, मगर भागलपुर की पुलिस ने उसके खिलाफ भी धारा 107 के तहत नोटिस जारी कर दिया गया था.
ऐसी कार्रवाइयों को चुनौती देना आसान नहीं है. ‘अगर कोई विकलांग अपने खिलाफ जारी नोटिस को चुनौती देता है, थानाध्यक्ष कह देगा कि उसे सूचना मिली है कि वह घर में बैठकर हिंसा करने की योजना बना सकता है,’ अमिताभ कुमार दास कहते हैं.
हालांकि पटना हाईकोर्ट ने वर्ष 2022 में धारा 107 के तहत नोटिस जारी करने के लिए पुलिस रिपोर्ट में पर्याप्त आधार होने पर जोर दिया है, कृष्णा और अनिल जैसे निर्दोष लोगों के लिए बंध-पत्र कोर्ट में पेश करना मामले का अंत नहीं है. अनिल शाह को डर है कि ‘अगर वोटिंग के दिन गांव में कोई झगड़ा हुआ, तो हम फंस सकते हैं. इसलिए हम सोच रहे हैं कि उस दिन गांव में रहेंगे ही नहीं,’ उन्होंने कहा. यानी यह नोटिस उन जैसे लोगों को मतदान से वंचित कर सकता है.
अशोक चौबे भी वोट नहीं डालने का मन बना रहे हैं. ‘हमको गिरफ्तारी का डर है. क्या पता, वोट देने जाएंगे और कोई झगड़ा हो जाएगा तो हमको गिरफ्तार कर लिया जाएगा,’ उन्होंने कहा.
दूसरे, भविष्य में होने वाले किसी भी चुनाव व पर्व-त्योहार में इनके खिलाफ दोबारा नोटिस जारी होने की संभावना बढ़ गई है, क्योंकि इनके नाम पुलिस रिकॉर्ड में शामिल हो गए हैं.
अमिताभ कुमार दास कहते हैं, ‘कोई नया थानाध्यक्ष आएगा, तो पर्व त्योहार व चुनावों में निवारक कार्रवाई के लिए उन लोगों को नोटिस जारी करेगा, जिन्हें पहले नोटिस जारी किया जा चुका है.’
द वायर ने रोहतास के एसपी विनीत कुमार को कई बार फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. नटवार थाने के थानाध्यक्ष अजीत कुमार ने कहा कि अगर लोगों को लग रहा है कि वे निर्दोष हैं, तो एसडीएम के पास जाकर शिकायत कर सकते हैं. यह पूछने पर कि बगैर किसी शिकायत के किसी के खिलाफ़ कैसे नोटिस जारी हो गया, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
चुनावी समीकरण
रोहतास के ये गांव बक्सर लोकसभा क्षेत्र में आते हैं. इस सीट पर वोटिंग 1 जून को होगी. भाजपा ने मौजूदा सांसद अश्विनी चौबे का टिकट काटकर मिथिलेश तिवारी को प्रत्याशी बनाया है. वहीं, राष्ट्रीय जनता दल ने पार्टी के राज्य अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह को उतारा है, जो नीतीश सरकार में राजद के कोटे से मंत्री रह चुके हैं.
यहां शुरू में मुकाबला भाजपा और राजद के बीच दिख रहा था, लेकिन असम में काम कर चुके आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा के निर्दलीय चुनाव लड़ने की मजबूत संभावनाओं के चलते मुकाबला त्रिकोणीय बनता दिख रहा है. बताया जा रहा है कि भाजपा से टिकट की उम्मीद में उन्होंने वीआरएस ले लिया था, लेकिन पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बनाया है. इस स्थिति में भाजपा को नुकसान हो सकता है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)