राजस्थान: लगातार बंद हो रहे इंटरनेट से परेशान क़रीब 4 लाख कर्मियों के मुद्दे चुनाव में कहां हैं?

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर इंडिया के मुताबिक़, 2012 से 2024 के बीच जम्मू कश्मीर के बाद राजस्थान में सबसे ज़्यादा बार इंटरनेट बंद किया गया है. इस तरह इंटरनेट पर आधारित ऐप्स से जुड़े रोज़गारों के लिए नियमित इंटरनेट बंदी बड़ी मुसीबत बन गई है.

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निवाई के रहने वाले राजपाल कोविड महामारी के बाद से फूड डिलीवरी ऐप्स के साथ काम कर रहे हैं. (फोटो: माधव शर्मा)

जयपुर: अनवर हुसैन (38) पिछले 12 साल से जयपुर में रह रहे हैं. शुरुआत में उन्होंने साइकिल रिक्शा चलाया और फिर ऑटो रिक्शा चलाने लगे. साल 2021 में वह ओला-उबर, रेपिडो और अन्य ऐप-आधारित रोजगार देने वाली कंपनियों से जुड़ गए. लेकिन गिग अर्थव्यस्था से हुसैन खुश नहीं हैं.

वह कहते हैं, ‘तीन साल में बढ़ी महंगाई को देखते हुए, मेरी कमाई पहले से कम ही हुई है. साथ ही इस पेशे में सम्मान और सुरक्षा भी नहीं है. रही-सही कसर आए दिन सरकार की ओर से होती नेटबंदी पूरी कर देती है. परीक्षा, सुरक्षा और अन्य कई कारणों के चलते सरकार इंटरनेट बंद कर देती है. जितनी देर या दिन इंटरनेट बंद होता है, राजस्थान में मेरे जैसे लाखों गिग वर्कर्स बेरोजगार हो जाते हैं. इन तीन सालों में मुझे हर रोज यही लगता है कि जैसे मैं साइकिल रिक्शा ही चला रहा हूं.’

पिछले एक दशक में देश में एक नई इकोनॉमी गिग वर्कर्स के रूप में उभरी है. मतलब ऐसे लोग जो ऑनलाइन प्लेटफार्म से जुड़े हुए हैं और डोर स्टेप डिलीवरी देते हैं. इन लोगों में ओला, उबर जैसी टैक्सी सर्विस, जोमैटो, स्विगी जैसी ऑनलाइन फूड सर्विस देने वाले डिलीवरी मैन और फ्लिपकार्ट, अमेजन जैसी तमाम शॉपिंग वेबसाइट की डिलीवरी देने वाले लोग शामिल हैं. साधारण भाषा में कहें, तो ऑनलाइन कंपनियों के साथ डिलीवरी से जुड़े काम करने वाले लोग गिग वर्कर्स कहलाते हैं.

देश में ऑनलाइन इंड्रस्टी से करीब 80 लाख लोग जुड़े हुए हैं, जो गिग वर्कर्स के रूप में काम कर रहे हैं.

 नीति आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक, 2029-30 तक देश में इनकी संख्या 2.35 करोड़ हो जाएगी. इसी अध्ययन के मुताबिक फिलहाल देश में 47 प्रतिशत गिग वर्कर्स मीडियम स्किल्ड जॉब में हैं. जबकि 22 प्रतिशत हाई स्किल्ड और 31 प्रतिशत गिग वर्कर्स लो स्किल वाले काम कर रहे हैं.

गिग इकोनॉमी का वित्तीय वर्ष 2021-22 में देश की कुल वर्कफोर्स 1.5% से बढ़कर साल 2030 तक कुल वर्कफोर्स का 4.1% होने का अनुमान है. इस इकोनॉमी से राजस्थान में करीब चार लाख लोग जुड़े हैं लेकिन राजस्थान में आए दिन होने वाली इंटरनेट बंदी से इन गिग वर्कर्स के व्यवसाय पर खासा असर पड़ रहा है.

इंटरनेट शटडाउन बड़ी समस्या

गिग वर्कर्स के सामने सामाजिक सुरक्षा और कंपनियों की मनमानी जैसी समस्याएं तो हैं ही, लेकिन आए दिन हो रहा इंटरनेट शटडाउन भी एक बड़ी मुसीबत बन गया है. प्रतियोगी परीक्षाएं हो, या किसी भी तरह की कानून और व्यवस्था की स्थिति प्रशासन के पास पहला हथियार इंटरनेट बंद करना ही होता है.

अनवर हुसैन अपना दुख साझा करते हुए कहते हैं, ‘कोई भी परीक्षा हो या कोई और परेशानी, सबसे पहले प्रशासन इंटरनेट बंद कर देता है बिना यो सोचे-समझे कि इसका असर आम लोगों के जीवन पर क्या होने वाला है. इसका सबसे पहले शिकार हम गिग इकोनॉमी से जुड़े लोग ही होते हैं. जितने समय या दिन के लिए इंटरनेट बंद होता है, इतने वक्त तक हम बेरोजगार हो जाते हैं. यह सरकार की ओर से जबरदस्ती दी गई बेरोजगारी है.’

उन्होंने जोड़ा, ‘देश में जितने भी गिग वर्कर्स हैं, वे रोजाना कमाने-खाने वाले लोग हैं. इसीलिए अगर एक दिन या कुछ घंटों के लिए भी इंटरनेट बंद होता है तो हमारी आमदनी पर उसका सीधा असर होता है. चूंकि देश में महंगाई और बेरोजगारी काफी ज्यादा है इसीलिए जिन युवाओं की पढ़-लिख कर नौकरी नहीं लगी, वे अब फुल टाइम यही काम कर रहे हैं.’

राजस्थान गिग एंड ऐप बेस्ड वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष आशीष अरोड़ा से इस संबंध में इंडियास्पेंड ने बात की.

वे कहते हैं, ‘राजस्थान में जब भी कोई अप्रिय घटना होती है या प्रतियोगी परीक्षा होती है, सरकार हर बार इंटरनेट बंद कर देती है. इससे गिग वर्कर्स और पूरी गिग इकोनॉमी को रोजाना करोड़ों रुपये का नुकसान होता है. पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर रहने वाला यह क्षेत्र रोजगार विहीन हो जाता है. सरकार का दावा है कि इंटरनेट बंद होने से पेपर लीक नहीं हो पाता है. जबकि ऐसा नहीं है. राजस्थान में हुई रीट, एसआई और अन्य भर्ती परीक्षा में इंटरनेट बंद किया गया था, लेकिन फिर भी पेपर लीक हुए. अन्य परीक्षाओं के पेपर भी इंटरनेट बंदी के बावजूद लीक हुए. इसलिए साफ है कि इंटरनेट शटडाउन इसका कोई समाधान नहीं है. सरकार चाहे तो परीक्षा केंद्रों पर जैमर लगा सकती है.

बता दें कि राजस्थान में इस साल अब तक दो बार इंटरनेट बंद हो चुका है. पहला आरपीएससी परीक्षा आयोजन के लिए सात जनवरी को और दूसरी बार नेटबंदी कुछ जिलों में किसान आंदोलन के चलते की गई है.

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर इंडिया (एसएफएलसी) के आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में जम्मू एवं कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा बार इंटरनेट बंद किया गया है. जम्मू एवं कश्मीर में 433 और इसके बाद राजस्थान में 100 बार इंटरनेट बंद किया गया है. यह आंकड़ा साल 2012 से 2024 का है.

हालांकि, जिलों के हिसाब से देखें तो एसएफएलसी के ही आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कुल 283 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया है. इसमें सबसे अधिक जयपुर में 20 बार प्रशासन की ओर से इंटरनेट बंद किया गया है.

पार्टियों के घोषणा पत्र: एक लाइन में सिमट गए 80 लाख गिग वर्कर्स

देश में इस वक्त लोकसभा चुनाव चल रहे हैं. दो चरण की वोटिंग भी हो चुकी हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि दोनों मुख्य पार्टियों ने गिग वर्कर्स के लिए क्या वादे किए हैं.

इंडियास्पेंड ने दोनों पार्टियों के घोषणा पत्रों को पढ़ा. दोनों दलों ने गिग वर्कर्स को एक-एक लाइन में समेट दिया. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र के श्रमिक न्याय चैप्टर में गिग वर्कर्स का ज़िक्र किया है. छह नंबर घोषणा में लिखा है, ‘कांग्रेस गिग (Gig) और असंगठित श्रमिकों के अधिकारों को निर्दिष्ट और संरक्षित करने और उनकी सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक कानून बनाएगी.’

वहीं, भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में श्रमिकों का सम्मान, मोदी की गारंटी में लिखा है कि हम नई अर्थव्यवस्था में काम करने वाले गिग वर्कर्स का ई-श्रम पंजीकरण सुनिश्चित करेंगे और उनकी पात्रता अनुसार सरकारी योजनाओं में लाभ लेने में सहायता करेंगे.

आशीष आगे कहते हैं, ‘पिछले 7-8 साल में गिग इकोनॉमी ने भारत में काफी विस्तार किया है. लेकिन राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में हम कहीं नहीं हैं. हालांकि 2024 के घोषणा पत्र में दोनों दलों ने गिग वर्कर्स के लिए घोषणा की हैं. राजस्थान की तर्ज पर कांग्रेस देशव्यापी कानून बनाएगी. वहीं, भाजपा ने भी गिग वर्कर्स के रजिस्ट्रेशन और सरकारी योजनाओं का लाभ देने का वादा किया है. यह गिग वर्कर्स की दृष्टि से अच्छा निर्णय है. हमें उम्मीद है कि जो भी पार्टी जीतेगी, अपने वादे पर खरा उतरेगी.’

नियम विरुद्ध है इंटरनेट शटडाउन, फिर भी परीक्षाओं में बंद किया इंटरनेट

राजस्थान जैसे प्रदेश में सबसे अधिक इंटरनेट शटडाउन प्रतियोगी परीक्षाओं और लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ने पर किया गया है.

लेकिन सरकार के ही पत्र और नियम कहते हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान नेटबंदी कानूनी रूप से सही नहीं है. इस संबंध में राजस्थान सरकार के स्पष्ट सार्वजनिक पत्र हैं.

दरअसल, साल 2018 में उप-निरीक्षक पुलिस प्रतियोगी परीक्षा के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग ने गृह विभाग को इंटरनेट शटडाउन करने के लिए एक पत्र लिखा. इस पत्र के जवाब में गृह विभाग ने राजस्थान लोक सेवा आयोग को पत्र लिखते हुए इंटरनेट शटडाउन को गलत बताया.

पत्र के मुताबिक, इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 की धारा 5 और 7 में टेलीफोन सेवाओं का निलंबन केवल लोक सुरक्षा या लोक आपात (Public safety) के मामलों में ही किया जा सकता है. परीक्षाओं का आयोजन लोक सुरक्षा या आपात के दायरे में नहीं आता.

विभाग ने लिखा, ‘परीक्षाओं का आयोजन पूरे साल चलने वाली एक सतत प्रक्रिया है. इसीलिए परीक्षा आयोजन के दौरान इंटरनेट बंद करना न केवल विधि मान्य नहीं है बल्कि आम जन-जीवन भी प्रभावित करता है.’

इस पत्र के बाद 22 अक्टूबर 2018 को गृह विभाग ने प्रदेश के सभी संभागीय आयुक्तों को इस संबंध में आदेश जारी किए. पत्र में दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात या लोक सुरक्षा) नियम 2017 के अनुसार परीक्षा के दौरान इंटरनेट बंद नहीं किए जाने के निर्देश दिए थे. स्पष्ट नियम और आदेश होने के बावजूद पिछले 12 साल में करीब 100 बार सूबे में इंटरनेट बंद किया जा चुका है.

(फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

आरपीएससी के पत्र के तुरंत बाद ही जोधपुर हाइकोर्ट में इस संबंध में एक रिट दायर की गई. पिटीशनर की ओर से वकील रहे नितिन गोकलानी से इंडियास्पेंड ने बात की.

वे कहते हैं, ‘परीक्षाओं के दौरान इंटरनेट बंद करना कानूनन गलत है. कोर्ट में जब यह मामला आया तो सरकार की ओर से तय किए वकीलों ने भी इंटरनेट बंद नहीं करने का शपथ पत्र कोर्ट में दिया और गृह विभाग के ये पत्र वहां रखे गए.’

गोकलानी जोड़ते हैं कि कोर्ट, गृह विभाग के यह मानने पर भी कि इंटरनेट बंद करना विधि संगत नहीं है, इसके बावजूद पिछले साल फरवरी में रीट और 2021 में आरपीएससी की ओर से कराई गई परीक्षा के लिए प्रशासन ने इंटरनेट बंद किया गया. जयपुर में संभागीय आयुक्त ने यह बाकायदा आदेश निकालकर किया. यह कानूनी रूप से तो गलत है ही, लेकिन लोगों को उनके मूलभूत अधिकार से वंचित करना भी है. क्योंकि 2019 में केरल हाईकोर्ट ने भी लोगों तक इंटरनेट की पहुंच को मूलभूत अधिकारों की श्रेणी में रखा था.

(फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

राजस्थान में गिग वर्कर्स के लिए कानून, लेकिन अभी तक नियम नहीं

देश में लाखों की संख्या में गिग वर्कर्स होने के बावजूद ये किसी भी श्रम कानून के दायरे में नहीं आते. इसलिए इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के न तो सामाजिक अधिकार सुरक्षित हैं और न ही आर्थिक.

राजस्थान में बीते कई सालों से कई सामाजिक संगठनों के लोग एक एक्ट बनाने की मांग कर रहे थे ताकि प्रदेश के चार लाख से अधिक गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा तय की जा सके. राजस्थान सरकार ने पिछले साल राजस्थान प्लेटफॉर्म आधारित गिग कर्मकार (रजिस्ट्रीकरण और कल्याण) विधेयक- 2023 एक्ट पास किया. ये एक्ट पास करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य बना था.

राजस्थान सरकार के अधिनियम के मुताबिक, गिग वर्कर्स के पंजीकरण के लिए एग्रीगेटर यानी जिन ऑनलाइन कंपनियों के साथ ये काम कर रहे हैं वे अधिनियम के लागू होने के 60 दिनों में गिग वर्कर्स का डेटाबेस राज्य सरकार को उपलब्ध कराएंगे. राज्य सरकार एग्रीगेटर्स का रजिस्टर अपने वेब पोर्टल पर प्रकाशित करेगी.

हकीकत यह है कि राजस्थान सरकार की ओर से बनाए गए पोर्टल पर अब तक कोई संख्या अपलोड नहीं की है. हालांकि विभागीय सूत्रों के मुताबिक, अब तक सिर्फ तीन हजार गिग वर्कर्स का ही रजिस्ट्रेशन हो पाया है. जुलाई 2023 में एक्ट पास हुआ. दिसंबर में नई सरकार बनी, लेकिन अभी तक इसके नियम नहीं बन पाए हैं.

आशीष अरोड़ा बताते हैं, ‘ओला, उबर, स्विगी, जोमैटो, रैपिडो, पोर्टर, अर्बन कंपनी, अमेजन, फ्लिपकार्ट, ब्लिंकिट, बिग बास्केट पर काम करने वाले लोग गिग वर्कर्स हैं. इनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए राजस्थान में कानून तो पारित हो चुका है, लेकिन उसके नियम अभी तक नहीं बने. इसमें 200 करोड़ का बजट, शिकायत निवारण कमेटी बननी थी, लेकिन भाजपा सरकार आते ही सब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. देश में गिग इकोनॉमी करीब 25 लाख करोड़ से अधिक की है. इसलिए हमारी राजस्थान सरकार से मांग है कि एक्ट के नियम जल्द से जल्द बनाए जाएं. नियम बनाने से गिग वर्कर्स को राज्य सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ मिल सकेगा और उनकी शिकायतों की सुनवाई भी हो सकेगी.’

गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा की मांग करने वाले संगठन मजदूर किसान शक्ति संगठन के कमल टांक भी अब तक नियम नहीं बनने को सरकार की बेरुखी करार देते हैं.

वे कहते हैं, ‘नियम बनने से एक्ट में जो प्रावधान किए गए थे, वे लागू होंगे. अब एक्ट बन गया,लेकिन उसका फायदा किसी को नहीं मिल रहा. ऐसे एक्ट का क्या फायदा? अब तक जून तक नियम बनने की कोई संभावना भी नहीं है क्योंकि लोकसभा चुनावों के चलते सरकार और विपक्ष सभी व्यस्त हैं. आचार संहिता भी लगी हुई है. हालांकि हम लोग लगातार इस एक्ट के नियम बनाने की मांग सरकार से कर रहे हैं. ताकि गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.’

(माधव शर्मा स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

(यह रिपोर्ट मूल रूप से इंडियास्पेंड हिंदी पर प्रकाशित हुई है.)