अमेरिका में फिलिस्तीन के समर्थन में छात्र आंदोलन जारी है. सोमवार (22 अप्रैल) की सुबह 4 बजे, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय (एनवाईयू) के छात्रों के एक समूह ने स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस के सामने गोउल्ड प्लाजा में गाजा के साथ एकजुटता दिखाने के लिए एक अस्थायी कैंप बना लिया.
इसके बाद विद्यार्थियों ने इंस्टाग्राम पर लिखा, ‘हम फिलिस्तीनी मुक्ति की लड़ाई के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम विश्वविद्यालय से मांग करते हैं कि वह नरसंहार में सहायता करने सभी संस्थाओं से अलग हो जाए.’ इसके अलावा विद्यार्थियों की मांग है कि उनका विश्वविद्यालय उन संस्थाओं से भी मुक्ति पाए, जो भय पैदा कर अकादमिक जगत में लोगों के विचारों को प्रभावित करते हैं.
छात्र शांतिपूर्ण तरीके से पूरा दिन गोउल्ड प्लाजा पर जुटे रहे. लेकिन रात 8:15 बजे न्यूयॉर्क पुलिस छात्रों को हटाने पहुंच गई. न्यूयॉर्क पुलिस एनवाईयू के अनुरोध पर आई थी. पुलिस ने छात्रों को हटाने के लिए हिंसक तरीका अपनाया. लगभग 128 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 19 एनवाईयू के प्राध्यापक थे जो अपने विद्यार्थियों को बचाने के लिए घेरा बनाकर खड़े हो गए थे.
मैं उन प्राध्यापकों में से एक हूं, जिन्हें 10 मई को अपने ही परिसर में ‘अतिक्रमण’ करने के आरोप में एक क्रिमिनल कोर्ट में जज के सामने पेश होना है. इस बीच छात्रों ने एनवाईयू की एक अन्य इमारत के पास एक और शिविर स्थापित कर लिया है. वे गाजा में नरसंहार पर रोक लगाने में मदद करने के लिए तमाम अमेरिकी छात्रों के साथ मिलकर संघर्ष कर रहे हैं.
अमेरिका में छात्र आंदोलन की लंबी परंपरा रही है. इसकी शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी, जब मैं छात्र था. तब हमने वियतनाम युद्ध और ब्लैक पैंथर पार्टी के हिंसक दमन का विरोध किया था. छात्रों का हालिया संघर्ष उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहा है. छात्र अभी भी अमेरिकी साम्राज्यवादी युद्धों और नस्लीय अन्याय को खत्म करने के लिए लड़ रहे हैं. हर मामले में छात्रों और उनके समर्थकों को दमन, अपराधीकरण और हिंसा का सामना किया है.
अमेरिकी मुख्यधारा के विपरीत चल रहे इस छात्र आंदोलन को दबाने के तमाम प्रयास हुए, लेकिन आंदोलन अब भी खड़ा है. मजबूत हुआ है. राष्ट्रीय राजनीति पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. यही वजह है कि आंदोलन को दबाने के लिए नए पैंतरे अपनाए जा रहे हैं. उसकी झलक मुख्यधारा की मीडिया कवरेज में दिख रही है, जिसकी मदद से हमें निशाना बनाया जा रहा है. गाजा में सैन्य दमन और हत्या का विरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है. हमें अब अधिक निरंकुश विश्वविद्यालय प्रशासन, पुलिस और जजों का सामना करना पड़ रहा है.
फिलिस्तीनी छात्र आंदोलन के दमन का समर्थन करने वालों का तर्क ये होता है कि इजरायल के लोग अपने यहूदी देश के अस्तित्व बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्होंने सदियों से भेदभाव और हिंसा का सामना किया है, नाजियों ने उनका नरसंहार किया है. इजरायल के अस्तित्व को कथित खतरा ईरान द्वारा समर्थित फिलिस्तीनी उग्रवादियों से है. सात अक्टूबर, 2023 को हमास के हमलों के बाद इजरायली सेना ने उस कथित खतरे से सबसे अधिक मजबूती से निपटा, उसे हमेशा के लिए खत्म करने का दृढ़ संकल्प किया. फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए क्योंकि हमास उनके पीछे छिप रहा था, उनका समर्थन हासिल कर रहा था.
एनवाईयू समेत कई अमेरिकी विश्वविद्यालय वित्तीय, राजनीतिक और बौद्धिक कारणों से इस दृष्टिकोण के प्रति सहानुभूति रखते हैं. एनवाईयू में ‘इजरायल स्टडीज’, ‘हिब्रू एंड यहूदी स्टडीज’ के विभाग हैं. इजरायल स्टडीज के लिए एक ताउब सेंटर हैं. इस प्रकार हम एक ऐसे बौद्धिक वातावरण में रहते हैं जिसे अमेरिका-इजरायल की संयुक्त शक्ति आकार देती है, जहां फिलिस्तीन को आज़ाद कराने के लिए इंतिफादा का आह्वान करने वाले छात्र विरोधों को उसी तरह देखा जाता है जैसे कि उन्हें इजरायल में बरता जाता है.
आज छात्र प्रदर्शनकारियों के सामने नई स्थिति है, न केवल इसलिए क्योंकि हम अधिक दमनकारी समय में रह रहे हैं, बल्कि अब घरेलू और विदेशी राजनीति के बीच कोई स्पष्ट रेखा नहीं है. साथ ही, आज इजरायल के भीतर चल रहे युद्ध को लेकर अमेरिकी जनता भी विभाजित हो गई है.
(लेखक न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)
(यह मूल अंग्रेजी में लिखे लेख का संपादित अंश है.)