ग़ाज़ीपुर: जब दो बरस पहले अग्निपथ योजना का विरोध होना शुरू हुआ था, भारतीय सेना ने तर्क दिया था कि यह योजना उसके आधुनिकीकरण के लिए अनिवार्य है और यह उसे बेहतर जवान चुनने में मदद करेगी. इन दिनों द वायर के पत्रकार ‘फौजियों के गांव’ कहे जाने देश के कई प्रमुख इलाकों में इस योजना के प्रभाव की ज़मीनी पड़ताल कर रहे हैं.
द वायर ने पाया है कि इन इलाकों में इस योजना के लागू होने के बाद बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने सेना की तैयारी छोड़ दी है.
मसलन, उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर ज़िले में गंगा के दक्षिणी किनारे बसा हुआ फौजियों का गांव गहमर, जिसे आबादी के हिसाब एशिया का सबसे बड़ा गांव माना जाता है. इस गांव के निवासी, छिहत्तर वर्षीय राम लक्षण सिंह ने बताया कि गांव की खुशहाली का एक ही कारण है, यहां के अधिकांश लड़के सेना में है. हर घर से दो-तीन लोग सेना में है. सेना के जीवन ने गांव को खुशहाली के साथ सम्मान भी दिया है. आज सभी सोच रहे हैं कि अग्निवीर की चार साल की नौकरी के बाद क्या होगा? सबसे बड़ी बात, अगर ढेरों योग्य अभ्यर्थी सेना के रास्ते को छोड़ देंगे, किस तरह के युवक सेना में भर्ती होंगे?
‘लड़कों के मनोबल के साथ सेना पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा,’ राम लक्षण सिंह कहते हैं.
गमहर में रॉफेल एकेडमी चलाने वाले पूर्व सैनिक कुणाल सिंह कहते है, ‘यह सरकार का एकतरफा निर्णय है. इससे सेना की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.’
इन पूर्व सैनिकों का कहना है कि जब आप चार साल के अनुबंध पर लड़कों को भर्ती करेंगे, तो संभव है कि कहीं कम और कमतर लड़के सेना में जाएंगे, जिनके भीतर जुनून कम होगा, और देश के लिए मिट जाने का जज्बा भी नहीं होगा. इस तरह क्या सेना को उस श्रेणी और गुणवत्ता के जवान मिल पाएंगे जो वह चाहती है?
गहमर प्रक्षेत्र के भूतपूर्व सैनिक संगठन के अध्यक्ष सूबेदार मेजर मार्कंडेय सिंह एक नया पहलू जोड़ते हैं. ‘यहां के कुछ लड़के अग्निपथ में गए हैं. उनके साथ बेहतर सलूक नहीं किया जाता है. हथियार चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता. सेना के अधिकारी अग्निवीरों पर भरोसा नहीं करते हैं. इन सबका वहां मन नहीं लगता है.’
अपनी सांस्कृतिक छवि बिखरने का डर
गहमर मशहूर जासूसी उपन्यासकार गोपाल राम गहमरी की जन्मस्थली है. गांववालों ने उनकी स्मृति में यहां एक अशोक स्तंभ बनवाया है. गांव में पक्के घर हैं. नालियां साफ-सुथरी है. रेलवे स्टेशन से गहमर में प्रवेश करने वाली मुख्य सड़क चिकनी और साफ है. यह गांव फौज की गौरवशाली परंपरा का ध्वजवाहक है. फौज की नौकरी ने सैनिकों के परिवारों के साथ इन इलाकों को भी एक विशिष्ट पहचान दी है, ख़ास संस्कार दिया है.
इस गांव की आब-ओ-हवा में फौजी संस्कार कदम-दर-कदम दिखता है. गांव के मोहल्लों का नाम जवानों के नाम पर है. इस गांव के भोजपुरी कवि भोलानाथ गहमरी ने कभी लिखा था-
जब-जब देसवा पर
परली बिपतिया
मोर सिपाही हो, जिया के तूं ही रखवार
बाप-महतारी तेजलऽ
तेजलऽ जियावा
मोर सिपाही हो, तेजल तू घरवा-दुआर.
(जब कभी इस देश पर संकट आया, हमारे सैनिकों ने इस कलेजे जैसे देश की रक्षा की है. इस देश की रक्षा के लिए माता-पिता, गांव-घर के साथ खुद को भी हमारे सैनिकों ने न्यौछावर कर दिया है.)
गौरतलब है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में इस गांव के ढेर सारे सैनिक शहीद हुए थे. वे अलग-अलग मोर्चों पर लड़ने गए थे. लेकिन इस समृद्ध गांव पर इन दिनों निराशा मंडरा रही है. अगर एक प्रश्न नौकरी का है, दूसरा इस गांव के विशिष्ट चरित्र और संस्कार को लेकर है.
अगर लड़के फौज में नहीं जाएंगे, इस गांव का सामाजिक परिदृश्य भी बदल जाएगा. ‘जब बच्चे सेना में जाएंगे नहीं, तो यह गांव सैनिकों का नहीं रहेगा,’ मार्कंडेय सिंह कहते हैं.
यह अप्रैल का अंतिम सप्ताह है. दिन के लगभग दस बजे है. ठाकुर-बाहुल्य गहमर गांव के हनुमान चबूतरा पर पीपल के पेड़ के नीचे कुछ लड़के बैठे है. 20 वर्षीय दीप सिंह ने बताया, ‘अग्निपथ योजना आने के चलते यहां के लड़के अब दूसरे विकल्प की तलाश में है. चार साल नौकरी करके क्या फायदा.‘
एक पेड़ के नीचे बुजुर्ग ताश खेल रहे हैं. उनमें से अधिकांश सेना से रिटायर्ड है. 89 वर्षीय रिटायर्ड सूबेदार बंशीधर सिंह ने ताश के पत्तों को समेटते हुए बताया कि वे 1953 में सेना में भर्ती हुए और 1977 तक नौकरी में रहे. उनका कहना है कि ‘अग्निपथ योजना ने युवाओं के भरोसे को तोड़ दिया है.’
हालांकि, कुछ अन्य उनसे असहमत भी हैं. उनके समीप बैठे 60 वर्षीय अनिल सिंह सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हुए थे. उनके दो बेटे अग्निपथ योजना लागू होने से पहले सेना में भर्ती हुए है. अनिल सिंह ने बताया,’ अग्निपथ अच्छी योजना है. विदेशों में ऐसा ही होता है.’
वहां बैठे लोग तुरंत उनसे असहमति जताते हैं. ताश के खेल में खलल पड़ता है. अंत में खेल भंग हो जाता है.
गहमर के पोखर किनारे टहल रहे मनीष कुमार सिंह ने बताया, ‘साल 2021 में क्वालीफाई कर गया था. मेडिकल होना बाकी था. तब तक अग्निपथ योजना सामने आ गई. पहले बहाली रद्द कर दी गई. अभी भविष्य के बारे में कुछ नही सोचा है. सोचने का तौर-तरीका मुझे मालूम नही है.’ यह कहते हुए मनीष की आंखें नम हो जाती हैं.
इस गांव के एक अन्य रहवासी विनय कुमार सिंह हैं, जो तकनीकी कारणों से सेना में भर्ती नहीं हो सके. वे अपने पांव दिखाते हुए बताते हैं कि उन्होंने बहुत लंबा अभ्यास किया, पर सेना की नौकरी नहीं मिली. आज विनय इस गांव का एनसाक्लोपीडिया माने जाते हैं.
जासूसी उपन्यासकार की स्मृति में अशोक स्तम्भ
गहमर का इतिहास सिर्फ़ सेना तक सीमित नहीं है. इस गांव ने हिंदी को एक बेजोड़ उपन्यासकार दिया है. विनय कुमार हनुमान मैदान के बीच बने अशोक स्तंभ के बारे में बताते हैं कि इसे सरकार ने नहीं बल्कि गांव के लोगों ने उपन्यासकार गोपालराम गहमरी की याद में बनवाया है, जिन्होंने हिंदी के जासूसी उपन्यासों को एक नया मोड़ दिया था.
इस गांव में सम्राट अशोक के स्तंभ को देखकर अचंभा होता है. लोग किसी की याद में मंदिर, प्याऊ इत्यादि बनाते हैं, लेकिन अशोक स्तंभ? ग्रामीण बताते हैं कि सारनाथ यहां से करीब है, इसलिए बुद्ध का थोड़ा प्रभाव रहा है.
इस गांव में विश्व हिंदू परिषद के संगठन मंत्री 42 वर्षीय डॉ. बुद्ध नारायण उपाध्याय भी रहते हैं. उनके पिता और उनके दोनों भाई सेना में रहे हैं. उनके दुआर पर दो देसिला (देसी) गाय बंधी नजर आती हैं. बुद्ध नारायण ने बताया, ‘अग्निपथ योजना देश हित में है. इससे देश के सभी लोगों को काम का मौका मिलेगा. एकता और समरसता का संचार होगा.’ उनकी बात सुनकर वहां से गुजर रहे युवा किसान विवस्वान उपाध्याय ठिठक कर रुक जाते हैं और तल्खी से कहते हैं, ‘गांव का भविष्य खतरे में है. अब ये लड़के क्या करेंगे?’
यह आक्रोश शिवम सिंह के चेहरे पर भी है. ‘अग्निपथ योजना लागू होने से पहले यहां के लड़के सेना की तैयारी करते थे. मैदान में दंड-बैठक किया करते थे. इस योजना ने युवाओं का भविष्य लगभग चौपट कर दिया है. अब वे यहां-वहां भटक रहे हैं.’
इक्कीस वर्ष के शिवम आगे कहते हैं, ‘सेना के लिए अब मेरी उम्र सीमा भी लगभग खत्म होने को है.’ तीन भाइयों में शिवम सबसे छोटे है. सबसे बड़े भाई अभिषेक सिंह भारतीय सेना में कार्यरत है और दूसरे मोहित सिंह सीआईएसएफ में जवान है.
सूबेदार मेजर मार्कंडेय सिंह कहते हैं, ‘अग्निपथ योजना ने युवाओं के सपनों पर ताला लगा दिया है. मेरा गांव फौजियों का गांव है. यहां से हर साल 18-20 लड़के भर्ती होते थे.’ उनके मुताबिक इस गांव के करीब पंद्रह हज़ार निवासी सेना में कार्यरत हैं और बीस हज़ार से अधिक सेवानिवृत्त सैनिक हैं.
निवासियों ने बताया कि यहां के पूर्वजों ने प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लिया था. वे 1962 के भारत-चीन युद्ध, पाकिस्तान के साथ हुए 1965 और 1971 के युद्ध और फिर 1999 के करगिल युद्ध का भी हिस्सा रहे थे.
फरवरी 2022 में लोकसभा में जारी रक्षा मंत्रालय का डेटा बताता है कि साल 2019-2020 में भारतीय सेना ने मोदी सरकार के कार्यकाल की सर्वाधिक भर्तियां (80,572) की थीं, और इनमें सबसे अधिक भर्ती (8,425) उत्तर प्रदेश से हुई थीं.
सेना द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, अग्निपथ योजना आने के बाद से अब तक 40,000 अग्निवीरों के दो बैचों का प्रशिक्षण पूरा हुआ है और उनको तैनात किया गया है. इसके अलावा नवंबर 2023 से 20,000 युवाओं के एक नए बैच का प्रशिक्षण शुरू हुआ है. इसी अवधि में नौसेना में 7,385 अग्निवीरों के तीन बैच ने ट्रेनिंग पूरी की है. वहीं वायुसेना में 4,955 अग्निवीर ट्रेनिंग पा चुके हैं.
गाज़ीपुर से अग्निपथ के तहत हुई भर्तियों के बारे में जानने के लिए द वायर ने जिला प्रशासन से संपर्क किया था, जिसने कहा कि उनके पास सेना की भर्ती के बारे में कोई ठोस आंकड़ा नहीं है.
गहमर गांव गाज़ीपुर लोकसभा के अंर्तगत आता है. वर्तमान सांसद अफजल अंसारी हैं. इस बारे में संपर्क किए जाने पर उन्होंने कहा, ‘यह गर्व की बात है कि मैं इस इलाके का जनप्रतिनिधि हूं. अग्निपथ योजना से फौज में जाने का सपना देखने वाले युवा और उनके माता-पिता भयभीत हैं.’
शाम के करीब साढ़े पांच बजे गहमर के मठिया मैदान में कुछ युवक चहलकदमी करते नज़र आते हैं. यहां मठिया युवा समिति मैदान के अध्यक्ष कुंदन सिंह भी हैं जो युवकों के लिए मैदान तैयार करते हैं.
उन्होंने लगभग हताश स्वर में बताया, ‘यहां पहले डेढ़-दो हजार लड़के शारीरिक परीक्षण का अभ्यास करते थे. आज बीस लड़के भी नहीं हैं. अग्निपथ योजना ने बच्चों के सपनों को ध्वस्त कर दिया है.’
यह कहते हुए कुंदन सिंह डूबते सूरज और गहराते अंधेरे में घर की ओर निकल जाते हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)
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