भारत की कोयला गैसीकरण योजना: संभावनाएं, रोडमैप और चुनौतियां

भारत की योजना 2030 तक 100 मीट्रिक टन कोयले का गैसीकरण करने की है और देश के पास इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रचुर भंडार हैं. लेकिन इसे सफल बनाने के लिए कुछ चुनौतियों, जैसे ख़राब गुणवत्ता के कोयले, और प्रभावी कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन और स्टोरेज तकनीक की कमी आदि से निपटना होगा.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: हाल के वर्षों में भारत ने बड़े पैमाने पर कोयला गैसीकरण पर काम शुरू किया है. इसके कारण स्पष्ट हैं – जीवाश्म ईंधन से ‘ट्रांज़िशन अवे’, यानी प्रयोग कम करके कार्बन उत्सर्जन घटाने का संकल्प भारत ने भी किया है. भारत का इरादा 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने का भी है. लेकिन इन संकल्पों के साथ ही यह संभावना उत्पन्न होती है कि भारत में सस्ते घरेलू कोयले की जो प्रचुर आपूर्ति होती है, वह किसी काम में नहीं आएगी.

ऐसे में, भारत को कोयला गैसीकरण ‘वास्तव में कोयला जलाने’ की तुलना में उत्सर्जन कम करने का अधिक स्वच्छ विकल्प दिखाई देता है. इससे भारत प्राकृतिक गैस और और मेथनॉल, इथेनॉल और अमोनिया जैसे ऊर्जा ईंधनों के बढ़ते आयात में भी कटौती कर सकता है.

क्या है कोयला गैसीकरण

कोयला गैसीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कार्बनयुक्त पदार्थों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, पेट्रोलियम कोक या बायोमास आदि को कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन में परिवर्तित किया जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो यह कोयले के रासायनिक घटकों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में सिंथेसिस गैस उत्पन्न होती है, जिसे सिनगैस भी कहा जाता है. सिनगैस हाइड्रोजन (H2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) का मिश्रण है और इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है.

कोयले के गैसीकरण का रासायनिक समीकरण इस प्रकार है:

 3C (कार्बन)+ O2 + H2O = H2 + 3CO (सिनगैस)

कोयला गैसीकरण की प्रक्रिया में काफी ऊर्जा और पानी खर्च होता है और भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है.

प्रिंसटन स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स द्वारा प्रकाशित एक पेपर में कहा गया है कि कई मामलों में यह उत्सर्जन कोयला जलाने से भी अधिक होता है. अतः, गैसीकरण को सफल बनाने के लिए जरूरी है उत्सर्जित कार्बन का संग्रहण (कैप्चर), उपयोग (यूटीलाइज़ेशन) और भंडारण (स्टोरेज) बहुत महत्वपूर्ण है.

कोयला गैसीकरण भारत के लिए क्यों है जरूरी

जैसा की पहले बताया गया किकोयला गैसीकरण के माध्यम से भारत स्वच्छ ईंधन की और बढ़ना चाहता है और प्राकृतिक गैस, कोकिंग कोल, मेथनॉल, अमोनिया और अन्य आवश्यक उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम करना चाहता है. सिनगैस मैनुफैक्चरिंग क्षेत्रों जैसे स्टील उत्पादन में कोकिंग कोल और प्राकृतिक गैस की जगह ले सकती है. इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के उर्वरक, ईंधन, साल्वेंट और सिंथेटिक सामग्री का उत्पादन करने के लिए भी किया जा सकता है.

इसके अलावा यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत द्वारा की गई उत्सर्जन में कटौती की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने भी सहायक हो सकता है.

कोयला गैसीकरण की जरूरत भारत में कोयले की प्रचुरता से भी जुड़ी है. भारत दुनिया के शीर्ष पांच कोयला भंडारों में से एक है. देश में लगभग 344 बिलियन टन (बीटी) कोयला भंडार हैं, जिनमें से 163 बिलियन टन कोयला निश्चित रूप से निकाला जा सकता है. सरकार इन भंडारों का दोहन करने के लिए तत्पर है.

2017 में तत्कालीन कोयला सचिव सुशील कुमार ने दावा किया था कि कोयला गैसीकरण से भारत के (प्राकृतिक गैस, कोकिंग कोल और यूरिया, मेथनॉल और अमोनिया आदि जैसे अन्य रसायनों के) आयात बिल में पांच वर्षों में 10 बिलियन डॉलर की कमी आएगी.

पिछले एक दशक में कोयले और लिग्नाइट के गैसीकरण की योजना में तेजी आई है. सितंबर 2021 में सरकार ने कोयला गैसीकरण मिशन की रूपरेखा बताते हुए पहला व्यापक मिशन दस्तावेज़ प्रकाशित किया. दस्तावेज़ के अनुसार: ‘पर्यावरण संबंधी चिंताओं और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के साथ, इसके सस्टेनेबल उपयोग के लिए कोयले का विविधीकरण अपरिहार्य है.’

सरकार कोयला गैसीकरण संयंत्रों को ‘रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण’ बताती है क्योंकि ‘कोयले की कीमतें बहुत तेजी से नहीं बदलती और घरेलू कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है’. भारत ने 2030 तक 100 मिलियन टन (एमटी) कोयला गैसीकरण का लक्ष्य रखा है.

सरकार के नीति दस्तावेज़ में कहा गया है, ‘कोयला जलाने की तुलना में गैसीकरण को एक स्वच्छ विकल्प माना जाता है. गैसीकरण कोयले के रासायनिक गुणों के उपयोग की सुविधा प्रदान करता है. कोयला गैसीकरण से उत्पन्न सिनगैस का उपयोग सिंथेटिक प्राकृतिक गैस (एसएनजी), ऊर्जा ईंधन (मेथनॉल और इथेनॉल), उर्वरकों और पेट्रो-रसायनों के लिए अमोनिया के उत्पादन में किया जा सकता है.’

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने लगभग 56 मीट्रिक टन कोकिंग कोल का आयात किया, जो कुल आयातित कोयले का लगभग 23.5% था. इस पर सरकार ने 19.2 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए. इसी तरह, भारत लगभग 50% प्राकृतिक गैस का आयात करता है. भारत अपनी इथेनॉल खपत का 90% से अधिक और लगभग 15% अमोनिया का भी आयात करता है.

सरकार की कोयला गैसीकरण की नीति और योजना

नीति आयोग और केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने गैसीकरण रोडमैप को लागू करने के लिए प्रमुख समितियों का गठन किया. इस साल जनवरी में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी.

सरकार ने इन परियोजनाओं पर 8,500 करोड़ रुपये (लगभग 1.02 बिलियन डॉलर) खर्च करने की घोषणा की. इसके बाद कोयला मंत्रालय ने भारत में कोयला गैसीकरण संयंत्र स्थापित करने के लिए ‘इच्छुक सरकारी सार्वजनिक उपक्रमों और निजी निवेशकों की प्रतिक्रिया मांगने’ के लिए तीन ड्राफ्ट रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) जारी किए.

इस 8,500 करोड़ रुपये के आवंटन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है.

सरकारी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (पीएसयू) के लिए 4,050 करोड़ रुपये का प्रावधान है. इसमें तीन परियोजनाओं को एकमुश्त 1,350 करोड़ रुपये तक (या पूंजीगत व्यय के 15% तक, जो भी कम हो) की मदद की जा सकती है. निजी क्षेत्र और सरकारी पीएसयू के लिए 3,850 करोड़ रुपये का प्रावधान है. प्रत्येक परियोजना को 1,000 करोड़ रुपये या पूंजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, का एकमुश्त अनुदान दिया जा सकता है.

पायलट परियोजनाओं (स्वदेशी प्रौद्योगिकी) और/या छोटे पैमाने के प्रोडक्ट-आधारित गैसीकरण संयंत्रों के लिए 600 करोड़ रुपये रखे गए हैं. वे 100 करोड़ रुपये या पूंजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, का एकमुश्त अनुदान प्राप्त कर सकते हैं.

26 जुलाई, 2023 को कोयला मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘मिशन दस्तावेज़ के अनुरूप, कोल इंडिया लिमिटेड ने देश में कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को शुरू करने के लिए बीएचईएल, गेल और आईओसीएल के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.’

इसमें यह भी कहा गया कि ‘कोयला गैसीकरण को बढ़ावा देने के लिए कोयला मंत्रालय ने एक नीति बनाई है, जिसमें भविष्य में होनेवाली सभी वाणिज्यिक कोयला ब्लॉक नीलामियों में, गैसीकरण के लिए कोयला उपलब्ध कराने वाले ब्लॉकों को राजस्व हिस्सेदारी में 50% छूट मिलेगी, यानी उन्हें सरकार को राजस्व हिस्सेदारी का आधा ही देना होगा बशर्ते कि कुल कोयला उत्पादन का कम से कम 10% गैसीकरण के लिए उपलब्ध कराया जाए.

इसके अलावा, नए कोयला गैसीकरण संयंत्रों के लिए कोयला उपलब्ध कराने हेतु एनआरएस (गैर-विनियमित क्षेत्र) के तहत एक अलग नीलामी विंडो बनाई गई है.’

केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने पिछले साल घोषणा की थी कि ओडिशा में देश का पहला कोयला गैसीकरण-आधारित तालचेर उर्वरक संयंत्र अक्टूबर 2024 तक तैयार हो जाएगा. जब भारत की कोयला गैसीकरण योजना हकीकत में बदलेगी, तो यह प्लांट कई परियोजनाओं में से एक होगा.

दिसंबर 2022 में, तत्कालीन केंद्रीय कोयला सचिव अमृत लाल मीना और कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के अध्यक्ष प्रमोद अग्रवाल ने ओडिशा के अंगुल में जिंदल स्टील (जेएसपीएल) की फैसिलिटी का दौरा किया. कंपनी का दावा था कि यह ‘दुनिया का सबसे बड़ा गैसीकरण संयंत्र‘ है.

‘अंगुल संयंत्र में जेएसपीएल घरेलू कोयले द्वारा गैस-आधारित डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (डीआरआई) संयंत्र का संचालन कर रहा है. तालचेर फर्टिलाइजर लिमिटेड (टीएफएल) यूरिया उत्पादन के लिए हाई ऐश घरेलू गैर-कोकिंग कोयले में पेट कोक मिलाने की दिशा में भी आगे बढ़ रही है,’ कोयला मंत्रालय ने अपने मिशन पेपर में कहा.

क्या हैं चुनौतियां

लेकिन इस मार्ग में कुछ बड़ी बाधाएं हैं जिन्हें दूर करना अभी बाकी है. इनमें प्रमुख हैं भारत में पाए जाने वाले कोयले की खराब गुणवत्ता और गैसीकरण की प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित कार्बन को संग्रहीत करने और उपयोग करने (सीसीयूएस) के लिए प्रभावी तकनीक का अभाव.

सार्वजनिक और निजी कंपनियों ने गैसीकरण संयंत्र स्थापित करने में रुचि दिखाई है, लेकिन उन्हें सरकार से भारी सब्सिडी की उम्मीद है. इस कारण एक बड़ी वित्तीय चुनौती भी है. भारत इस्पात और उर्वरक जैसे उद्योगों के लिए कोयला गैसीकरण का उपयोग करना चाहता है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या गैसीकरण से यह उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहले से ही मौजूद उत्पादों से सस्ते होंगे?

यह कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं और इस मिशन को सफल बनाने के लिए इन्हें तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है.

घरेलू कोयले की ख़राब क्वालिटी

भारत में खनन किए जाने वाले कोयले में राख की मात्रा बहुत अधिक होती है- लगभग 25% -40%, जबकि आयातित कोयले का औसत ऐश (राख) कंटेंट 10% -20% होता है.

ऊर्जा उत्पादन में राख का योगदान नहीं होता. इसलिए अधिक ऐश कंटेंट वाले कोयले से सिनगैस की कम मात्रा उत्पन्न होती है. गैसीकरण के दौरान ऐश पिघलकर इकठ्ठा हो जाती है जिससे संयंत्र के संचालन में दिक्कत आ सकती है. अधिक राख से अधिक स्लैग भी पैदा होता है, जिसके कारण प्रबंधन और निपटान की लागत बढ़ जाती है. इस सब का मिलाजुला असर यह होता है कि सिनगैस की गुणवत्ता कम हो जाती है.

कोयले में मौजूद राख जैसी अशुद्धियों को कोल वाशिंग से हटाया जा सकता है. लेकिन भारत में पाए जाने वाले कोयले की वाशिंग क्षमता भी कम है.

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (टेरी) ने 2020 में नीति आयोग के लिए एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें कहा गया, ‘भारतीय कोयले में अधिक ऐश कंटेंट (35-55%), अधिक नमी की मात्रा (4-20%), कम सल्फर की मात्रा (0.2-0.7%) और कम कैलोरिफिक वैल्यू (2,500-5,000 किलो कैलोरी/किग्रा के बीच) ) होती है. यह अन्य देशों के कोयले में पाई जाने वाली सामान्य सीमा (5,000 से 8,000 किलो कैलोरी/किग्रा) से बहुत कम है.’

रिपोर्ट में कहा गया कि ‘75% से अधिक भारतीय कोयले में राख की मात्रा 30% से अधिक है, कुछ में तो यह 50% तक भी है. इसकी वॉशएबिलिटी भी ख़राब है’.

पूर्व ऊर्जा सचिव आलोक कुमार ने कार्बनकॉपी को बताया, ‘यह एक वास्तविक चुनौती है. चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य देश (कोयला) गैसीकरण की प्रक्रिया के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले कोयले का उपयोग कर रहे हैं. गैसीकरण के लिए अपने कोयले का प्रभावी ढंग से उपयोग करने से पहले भारत को अभी भी तकनीकी प्रगति की जरूरत है.’

नीति आयोग के सलाहकार (ऊर्जा) राजनाथ राम खराब कोयले की चुनौती को स्वीकार करते हैं, लेकिन कहते हैं कि इस मुद्दे के समाधान के लिए ‘टेक्नोलॉजी विकसित की जा रही है’. ‘हम भारत में पाए जाने वाले कोयले के हाई ऐश कंटेंट से निपटने का तरीका खोजने की कोशिश कर रहे हैं. हमारे पायलट प्रोजेक्ट में 40% तक ऐश कंटेंट वाले कोयले का परीक्षण किया जा रहा है,’ उन्होंने कहा.

कार्बन कैप्चर, यूटीलाइज़ेशन और स्टोरेज

दूसरी ओर कार्बन का संग्रहण (कैप्चर), उपयोग (यूटीलाइज़ेशन) और भंडारण (स्टोरेज) यानि सीसीयूएस की टेक्नोलॉजी कितनी प्रभावी है, यह भी चर्चा का विषय है.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के प्रोग्राम मैनेजर पार्थ कुमार ने बताया, ‘(गैसीकरण के दौरान) भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के कारण इस तकनीक में सीसीयूएस की भूमिका महत्वपूर्ण है. लेकिन सीसीयूएस पर स्पष्ट सरकारी नीति और समर्थन की कमी है, देश में वास्तविक भंडारण क्षमता स्थापित करने में भी कोई प्रगति नहीं हुई है और न ही देश ने CO2 के उपयोग का आर्थिक रूप से व्यवहार्य कोई मॉडल विकसित किया है.’

नीति आयोग के राजनाथ राम कहते हैं, ‘कार्बन सेक्वेस्ट्रेशन (यानि CO2 का संग्रहण और भंडारण) के लिए भूवैज्ञानिक अध्ययन किए जा रहे हैं’. लेकिन शोधकर्ताओं और ऊर्जा विशेषज्ञों को सीसीयूएस की व्यवहार्यता पर संदेह है, वे इसे एक महंगी और अप्रमाणित तकनीक बताते हैं और परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता पर सवाल उठाते हैं.

आलोक कुमार के अनुसार, ‘यदि आप कोयले का उपयोग (गैसीकरण के लिए) करना चाहते हैं तो आपको इसे कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (सीसीयू) के साथ करना होगा, अन्यथा आप CO2 उत्सर्जन को बढ़ा देंगे. हालांकि, गैसीकरण में CO2 उत्सर्जन की (उच्च) सांद्रता के कारण कार्बन कैप्चर की लागत कम होती है क्योंकि गैसीकरण यथास्थान किया जाएगा. लेकिन हां, उन्नत (कार्बन कैप्चर और उपयोग) तकनीक जरूरी है.’

(मूल रूप से कार्बन कॉपी पर प्रकाशित.)