20वीं पशुधन गणना में मोदी सरकार ने जाति के आंकड़े क्यों एकत्र किए थे?

यदि जाति का ब्योरा जुटाने से देश की एकता और अखंडता को कोई ख़तरा है तो भाजपा ने यह ब्योरा क्यों इकट्ठा किया? चूंकि मोदी सरकार ने 20वीं पशुगणना के तहत गाय, भैंस आदि की संख्या को सार्वजनिक कर दिया लेकिन जातियों के आंकड़े को सार्वजनिक नहीं किया.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: पिक्साबे)

हमारे देश में अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों (ओबीसी) और उच्च जातियों की राष्ट्रीय स्तर पर आखिरी गणना वर्ष 1931 में हुई थी. विभिन्न प्रशासनिक कार्यों के लिए 1931 के बाद प्रत्येक दस वर्ष में होने वाली जनगणना में सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की गणना तो करती है लेकिन पिछड़ा वर्ग और कथित ऊंची जातियों को नहीं गिना जाता है. लोकसभा चुनावों के लिए अपने घोषणा पत्र में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने वादा किया था कि यदि कांग्रेस चुनाव जीतती है तो देश में राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ा वर्ग और उच्च जातियों की जनगणना[1] कराई जाएगी.

21 अप्रैल को राजस्थान की एक चुनावी रैली में [2] प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के इस वायदे को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हुए कहा कि कांग्रेस हिंदुओं की संपत्ति का हिसाब लेकर इसे ‘घुसपैठियों’ में बांटना चाहती है. गुजरात की रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि ‘यदि आपके पास दो भैंस हैं और आप उन भैंसों को अपने बच्चों को देना चाहते है तो यदि कांग्रेस सत्ता में आती है, उन दो भैंसों में से एक कांग्रेस ले लेगी’.[3]

इन भाषणों को सुनकर प्रतीत होता है कि भारतीय जनता पार्टी जाति जनगणना के खिलाफ है. 2021 की जनगणना को केंद्र सरकार के द्वारा लगातार टाले जाने के कारण अनुसूचित जाति और जनजातियों की नवीनतम गिनती नहीं हो पाई है, साथ ही चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने जिस प्रकार से कांग्रेस द्वारा जातियों की गिनती के प्रस्ताव के विषय में भ्रम फैलाया, उससे लगता है कि केंद्र सरकार में अपने दस साल के कार्यकाल में भाजपा ने शायद विभिन्न जातियों का ब्योरा जुटाने की कोई कोशिश नहीं की होगी.

लेकिन यह पूरा सच नहीं है. भाजपा के शासन में 1 अक्टूबर 2018 से 20 सितंबर 2019 तक हुई 20वीं पशुधन गणना के दस्तावेज गवाह हैं कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर उन सभी परिवारों या गैर-घरेलू संस्थानों, जैसे मंदिर, एनजीओ, फार्म हाउस आदि के मालिकों की जाति के आंकड़े जमा किए थे जहां मवेशी (cattle)[4] पाले जाते है या मछली पालन किया जाता है.

साथ ही, एक मीडिया[5] रिपोर्ट संकेत देती है कि ऐसे परिवार या गैर-घरेलू संस्थान जहां कुत्ते, हाथी, खरगोश सरीखे जानवरों को पाला जाता है जिनकी गिनती सरकार पशुधन के रूप में नहीं करती है, उन परिवारों या गैर-घरेलू संस्थानों के मालिकों की जाति का डेटा भी 20वीं पशुधन गणना में जुटाया गया था.

उपरोक्त समूहों से जातियों का डेटा एकत्र करने का सीधा अर्थ है कि 20वीं पशुधन गणना में केंद्र सरकार ने न सिर्फ मैदानी उत्तर भारत से जातियों का ब्योरा बटोरा था बल्कि सरकार की संस्थाओं ने तटीय भारत के उन परिवारों और गैर-घरेलू संस्थाओं से भी संपर्क साधा था जो मछली पकड़ने/पालने का काम करते है.

इससे यह संकेत मिलता है कि सरकार ने देश के कुल 25 करोड़ परिवारों में से बहुत सारे परिवारों के मालिकों की जाति का डेटा एकत्र किया था, जिनमें पिछड़ा वर्ग और उच्च जातियां शामिल थीं. सरकार ने पशुधन गणना के अंतर्गत जाति गणना को अंजाम दे दिया था, लेकिन फिर भी मोदी कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित जातियों की गणना कर कटाक्ष कर रहे थे. यदि जाति का ब्योरा जुटाने मात्र से देश की एकता और अखंडता को कोई खतरा है तो स्वयं भाजपा ने यह ब्योरा राष्ट्रीय स्तर पर क्यों इकट्ठा किया?

यदि भाजपा ने देश भर से पशुपालकों की जाति का डेटा प्रशासनिक कार्यों के लिए नहीं जुटाया था, तो इस पूरी प्रक्रिया में भाजपा की भूमिका संदिग्ध नजर आती है.

यहां हम यह तर्क नहीं दे रहे कि 20वीं पशुधन गणना के अंतर्गत जातियों की गिनती कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित अन्य पिछड़ा वर्ग और उच्च जातियों की गिनती के पूर्णतया समान थी. क्योंकि कांग्रेस के प्रस्ताव के अनुसार यदि वह चुनाव जीतती है तो देश में प्रत्येक ओबीसी जाति और उच्च जाति के लोगों की गिनती की जाएगी अर्थात, देश में कितने लोधी, कितने यादव और कितने ब्राह्मण हैं, आदि.

यहां हम यह भी जोड़ रहे हैं कि ऐसा नहीं कि मोदी सरकार ने सबसे पहले पशुगणना के भीतर जाति गणना कराई थी. द वायर को प्राप्त हुए 19वीं पशुगणना के कुछ दस्तावेज इशारा करते है कि शायद मनमोहन सिंह के कार्यकाल में वर्ष 2007 में हुई 18वीं पशुगणना के दौरान भी पशु पालकों, मछुआरों आदि की जाति गणना की गई थी.

हमारा तर्क यह है कि यदि भाजपा सरकार जातियों के आंकड़े राष्ट्रीय स्तर पर जुटा सकती है, तो कांग्रेस पर यह आरोप कैसे लगा सकती है कि जाति जनगणना से हिंदुओं की संपत्ति मुसलमानों के बीच वितरित होने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा?

वर्ष 1931 के बाद सिर्फ बिहार में नीतीश कुमार की अध्यक्षता में ओबीसी और उच्च जातियों की गिनती कराई गई थी, जिसके आंकड़े वर्ष 2023 में बिहार सरकार ने जारी किए थे. लेकिन इससे पहले वर्ष 2019 में बिहार के एक अन्य राजनेता गिरिराज सिंह की अध्यक्षता में केंद्र सरकार ने देश में 20वीं पशुधन गणना करवाई थी. जब इस पशुधन गणना के आंकड़े जारी किए गए तो बहुत से लोगों ने ये कहा कि यदि केंद्र सरकार देश में गाय, घोड़े, भैंस आदि की गणना करा सकती है तो सरकार ओबीसी जातियों की गणना क्यों नहीं करा सकती है?

लेकिन उस समय लोगों ने सिर्फ सरकार द्वारा जारी किए गए विभिन्न पशुओं की संख्या के आंकड़ों पर ध्यान दिया. अधिकांश लोग 20वीं पशुधन गणना के लिए देश भर में भरे गए फार्मों के उन कॉलमों को देखने से चूक गए, जहां एक कॉलम में पशुधन गणना करने वाले कर्मचारी को पशुधन मालिकों की जाति का उल्लेख करना था.

चूंकि मोदी सरकार ने 20वीं पशुगणना के तहत गाय, भैंस और गधों आदि की संख्या को सार्वजनिक कर दिया लेकिन जातियों के आंकड़े को सार्वजनिक नहीं किया[6], उन्होंने यह जाति गणना क्यों करवाई,  इसका कोई कारण आज तक नहीं मालूम है. शायद नई सरकार इस पर कोई प्रकाश डालेगी.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और वर्तमान में द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के साथ फेलो के बतौर जुड़े हुए हैं.)

संदर्भ

[1]  कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में प्रसिद्ध शब्द ‘ओबीसी जाति जनगणना’ के लिए ‘Socio- Economic and Caste Census’ शब्द का प्रयोग किया गया था. पूरी भारत जोड़ो यात्रा के समय कांग्रेस ने गिनती करो नारे के तहत शब्द, ‘ओबीसी जाति जनगणना’ पर ही जोर दिया था.

[2]  34वें मिनट से यह वीडियो देखें.

[3] 2.23वें मिनट से यह वीडियो देखें.

[4] ‘Cattle’ शब्द व्यापक तौर पर गाय के संदर्भ में है. पशुधन गणना में सरकार ने अधिकांशतः ‘Cattle’ शब्द का ही प्रयोग किया है न कि ‘गाय’ शब्द का.

[5] नीचे दिया गया उद्धरण स्टॉर ऑफ मैसूर नाम के एक संस्थान की एक रिपोर्ट से लिया गया है. जब मैसूर में पशुधन गणना कर्मचारियों ने घर-घर के मालिकों की जाति पूछना शुरू किया तो संभवतः स्टॉर ऑफ मैसूर मात्र एक अकेला संस्थान था जिसे यह गतिविधि संदिग्ध प्रतीत हुई. यह उद्धरण इस बात का गवाह है कि वे घर/गैर घरेलू संस्थान जहाँ वे जानवर पाले जाते हैं,  जिनको पशुधन में नहीं गिना जाता है, उन घरों/ गैर-घरेलू संस्थानों से भी जाति का डेटा जमा किया गया था-

‘पालतू जानवर की नस्ल से जानवर के मालिक की जाति का क्या लेना-देना है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिससे बहुत सारे पालतू जानवरों के मालिक परेशान हैं क्योंकि पशु गणना कर्मचारी पालतू जानवरों की नस्ल का हिसाब लिखते हुए जानवर के मालिकों की जाति भी पूछ रहे है. उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति के पास लेब्राडोर (कुत्ता) है और वह व्यक्ति किसी समुदाय विशेष से आता है तो पशुगणना कर्मचारी उस व्यक्ति के समुदाय का नाम भी दर्ज करेगा. इतना ही नहीं पशु के मालिक का व्यवसाय भी पूछा जा रहा है और उसे दर्ज किया जा रहा है.’

[6] मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के द्वारा 20वीं पशुधन गणना के सार्वजनिक किए गए सभी दस्तावेजों में फार्म 3A, 3B, 4A और 4B के कॉलम नंबर 6 के द्वारा एकत्र किए गए जाति के डेटा को सार्वजनिक नहीं किया गया था. जब मैंने इसी जाति के डेटा को मांगने के लिए आरटीआई आवेदन दायर किया तो मंत्रालय द्वारा 20वीं पशुधन गणना की रिपोर्ट थमा दी गई, जिसमें जाति का वह डेटा मौजूद था ही नहीं, जिसकी मांग की गई थी.