अयोध्या का सूर्य-तिलक: उत्तर प्रदेश का वाराणसी सांसद के नाम संदेश

चूंकि मोदी ने यह चुनाव सिर्फ़ अपने नाम पर लड़ा था, सिर्फ़ अपने लिए वोट मांगे थे, भाजपा के घोषणापत्र का नाम भी ‘मोदी की गारंटी’ था- यह हार भी सिर्फ़ मोदी की है. उनके पास अगली सरकार के मुखिया होने का कोई अधिकार नहीं बचा है.

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अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: facebook/@BJP4India)

यह अयोध्या का सूर्य तिलक है. यह मंदिर की घिनौनी राजनीति का नकार है. यह उत्तर प्रदेश की जनता का नरेंद्र मोदी के नाम संदेश है.

जिस राज्य ने मोदी को पिछले दो चुनावों में दिल्ली भेजा था, उसने मोदी को उनके जीवन की सबसे भीषण चुनावी पराजय का स्वाद चखा दिया है.

चूंकि मोदी ने यह चुनाव सिर्फ़ अपने नाम पर लड़ा था, सिर्फ़ अपने लिए वोट मांगे थे, भाजपा के घोषणापत्र का नाम भी ‘मोदी की गारंटी’ था—यह हार भी सिर्फ़ मोदी की है. उनके पास अगली सरकार के मुखिया होने का अब कोई अधिकार नहीं बचा है.

अगर वे राजनीतिक नैतिकता का पालन करते हैं, उन्हें सिर्फ़ वाराणसी सांसद होने से संतोष करना होगा.

मोदी की विजय-यात्रा दस बरस पहले उत्तर प्रदेश से शुरू हुई थी, उत्तर प्रदेश में इसका अंत हो गया.

उत्तर प्रदेश ने मोदी को क्यों नकारा

इस पराजय को कई आईनों से देखा जा सकता है.

पहला, स्मृति ईरानी, कौशल किशोर, महेंद्र नाथ पांडेय, अजय मिश्रा और संजीव बालियान जैसे उनके मंत्री हार चुके हैं.

दूसरा, अमेठी सीट पर जब कांग्रेस अपने प्रत्याशी की घोषणा में देरी कर रही थी, मोदी ने राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा था, ‘डरो मत’. कांग्रेस ने एकदम आखिरी क्षण किशोरी लाल शर्मा को नामित किया था. उन्होंने आज भाजपा की दिग्गज नेता स्मृति ईरानी को करारी मात दे दी.

तीसरी, खुद मोदी 152513 मतों से जीते हैं. यह अंतर किशोरी लाल की 167196 मतों से हुई जीत से भी कम है.

चौथा, जिस अयोध्या के नाम पर भाजपा ने हिंदुत्व आंदोलन को खड़ा किया, इस बरस जनवरी में अधूरे मंदिर का मोदी ने उद्घाटन कर दिया, उस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा इस वक्त पचास हज़ार वोट से पीछे चल रही है.

इस हार की कई वजहें हैं. द वायर ने पिछले महीने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ प्रमुख इलाकों का दौरा कर लिखा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री से नाराज हैं. वे इस कदर नाखुश हैं कि पार्टी का प्रचार तक करने नहीं गए. साथ ही भाजपा के कई परंपरागत वोटर भी पार्टी के वर्तमान चुनावी अभियान से खुश नहीं हैं. उनके भीतर हिंदुत्व की राजनीति के प्रति उदासी आ रही है. वे अब असली मुद्दों पर केंद्रित होना चाहते हैं.

समाजवादी पार्टी की रणनीतिक सफलता

अगर यह भाजपा की हार है, तो अखिलेश यादव के चुनावी गणित की कामयाबी भी है.

हाल ही द वायर ने लिखा था कि इस बार टिकट वितरण में सपा ने जातियों का चतुर समीकरण बिठाया है. वह अब तक मुसलमान और यादव को टिकट देती आई है, लेकिन इस बार उसने इन दोनों समुदायों को बहुत कम टिकट दिए और उन प्रत्याशियों को चुना, जिनकी जाति का उस क्षेत्र में बाहुल्य था. इस तरह सपा ने कई पिछड़ी जातियों को भाजपा से और बसपा से दलित वोट को खींच लिया.

इस खबर के लिखे जाने तक भाजपा पूर्ण बहुमत से करीब चालीस सीट दूर है और उसकी अपने दम पर बहुमत पाने की संभावना अत्यंत क्षीण है. उत्तर प्रदेश ने सभी एग्जिट पोल को झुठलाते हुए मोदी के राजनीतिक करिअर के सामने भीषण चुनौती प्रस्तुत कर दी है.