नई दिल्ली: मेरा नाम नेहा है. मैं 25 साल की हूं और गुड़गांव के मानेसर में अमेज़ॉन वेयरहाउस, जिसे डेल 4 के नाम से जाना जाता है, उसमें एक कर्मचारी हूं. अमेज़ॉन के साथ मेरे काम की शुरुआत अगस्त 2022 में हुई थी, जहां मुझे आउटबाउंड विभाग में शिपिंग के लिए सामान पैक करने का काम मिला था.
जब मैंने अपने काम की शुरुआत की, तो मुझे यक़ीन था कि मेरी कड़ी मेहनत से मेरे अनुबंध (contract) को बढ़ाया जाएगा और शायद प्रमोशन और वेतन बढ़ोत्तरी भी होगी, लेकिन जब मैंने यहां काम करने की स्थिति की सच्चाई देखी, तो मेरी सारी उम्मीदें जल्द ही टूट गईं.
हालांकि, भारत में हालिया कामगारों की एकता नई आशा जगा रही है. लेकिन यहां मेरी कहानी है…
मात्र छह घंटे के प्रशिक्षण के बाद मुझे एक कठिन रूटीन में डाल दिया गया. बिना पंखे के लगातार दस घंटे खड़ा रहना और प्रति घंटे 240 सामान पैक करना. ये काम शारीरिक रूप से मुश्किल है. लगातार खड़े रहने से अक्सर चक्कर आना और थकावट हो जाती है और चोटें लगना तो आम बात है.
इन अमानवीय स्थितियों के बावजूद हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम तेज़ रफ़्तार से काम करते रहें, बिना किसी सुविधा या स्वास्थ्य देखभाल के. कंपनी हमारे प्रदर्शन पर कड़ी नज़र रखती है और यदि हम अपने खतरनाक प्रति घंटा लक्ष्य को पूरा नहीं करते हैं, तो हमें सज़ा भुगतनी पड़ती है.
ब्रेक के समय पर कड़ी निगरानी
वेयरहाउस में कोई ढंग की आराम करने की जगह नहीं है, जिसके चलते हमें ब्रेक के दौरान वॉशरूम और लॉकर रूम में आराम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, और पकड़े जाने पर केवल डांट पड़ती है. हमारे ब्रेक के समय पर कड़ी निगरानी रखी जाती है, जिससे हमें तनाव का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि वॉशरूम जाने पर भी जुर्माना लगता है.
बीते साल मई 2023 में भीषण गर्मी के बीच एक अदद पंखे के लिए हमें कई बार गुहार लगानी पड़ी, जिसे आखिर में माना गया, लेकिन बावजूद इसके हमारे वेयरहाउस अभी भी गर्म ही रहे. डेढ़ साल तक ऐसी परिस्थितियों को सहने के बाद मुझे छुट्टी न मिलने के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़, और बाद में इनबाउंड विभाग में फिर से मुश्किल हालात में काम करना पड़ा.
काम का लगातार दबाव हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर बुरा प्रभाव डालता है. असंभव मांगों को पूरा करने में असफल होने या उसके खिलाफ बोलने पर अक्सर अनुबंध उल्लंघन के अस्पष्ट आरोप लगाकर कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया जाता है.
परेशानियां शारीरिक थकावट से भी कहीं ज्यादा
हमारी परेशानियां शारीरिक थकावट से भी कहीं ज्यादा हैं. हमें एक दिन पहले ही काम स्लॉट बुक करना पड़ता है, अक्सर अनुपलब्धता और नेटवर्क समस्याओं से जूझना पड़ता है. इन सबके अलावा टारगेट को पूरा करने के लिए निरंतर निगरानी और दबाव के कारण वेयरहाउस में एक बेतुकी शर्त माननी पड़ी कि हम बिना ब्रेक या यहां तक कि पीने के पानी के बिना काम कर लेंगे.
कड़ी मेहनत के बावजूद हमें महीने की तनख्वाह के तौर पर महज़ 10,088 रुपये है. इतना कम वेतन बुनियादी खर्चों को पूरा करना असंभव बना देता है. जब हम अपना परिवार चलाने के लिए ज़रूरी उचित मज़दूरी के लिए आवाज़ उठाते हैं, तब फिर विरोध का सामना करना पड़ता है. यहां किसी भी कर्मचारी को पक्का नहीं किया जाता, फिर चाहे वो कितने भी सालों से काम क्यों न कर रहा हो.
डेल 4 का प्रबंधन श्रम कानूनों और हमारे अधिकारों की खुलेआम अनदेखी करता है, जिसके चलते कई कानूनी मामले सामने आते हैं.
इस संबंध में अमेज़ॉन इंडिया वर्कर एसोसिएशन, जिससे मैं जुड़ी हूं, बेहतर स्थितियों के लिए लड़ रहा है. हमारी मांगों में काम के लिए आठ घंटे का निर्धारण, 25,000 रुपये का न्यूनतम वेतन, हासिल किए जा सकने वाले टारगेट, पुरुषों और महिलाओं के लिए समान वेतन, श्रम कानूनों का पालन, नौकरी की सुरक्षा, उचित बैठने की व्यवस्था, त्योहार बोनस और आईएलओ श्रम मानकों का अनुपालन शामिल है.
हमारा संघर्ष केवल वेतन या काम के घंटों को लेकर नहीं है, यह गरिमा और बुनियादी मानवाधिकारों के बारे में है.
हम अमेज़ॉन और उसके प्रबंधन से हमारी समस्याओं को जानने और हमारी कामकाजी परिस्थितियों में सुधार के लिए तत्काल कार्रवाई करने की मांग करते हैं. अब परिवर्तन का समय है.
(नेहा भारत में अमेज़ॉन के लिए काम करती हैं.)
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