कंमेंट्री के नाम से हिंदी से खिलवाड़ कर रहे पूर्व क्रिकेटर: सुशील दोशी

कमेंटेटर सुशील दोषी ने सवाल उठाया कि क्या टीवी चैनलों पर कमेंट्री के दौरान गलत अंग्रेज़ी बोली जा सकती है?

कमेंटेटर सुशील दोषी ने सवाल उठाया कि क्या टीवी चैनलों पर कमेंट्री के दौरान गलत अंग्रेज़ी बोली जा सकती है?

Sushil Doshi Youtube

इंदौर: पद्मश्री से सम्मानित मशहूर खेल कमेंटेटर सुशील दोशी ख़ासकर टीवी चैनलों पर ज़्यादातर पूर्व क्रिकेटरों की हिंदी कमेंट्री के गिरते स्तर के कारण बेहद ख़फ़ा हैं.

उनका कहना है कि क्रिकेट को देश के घर-घर तक पहुंचाने वाली ज़ुबान से इन कमेंटेटरों का खिलवाड़ रोकने के लिए बीसीसीआई को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी ही चाहिए.

अगले साल खेल कमेंट्री की दुनिया में 50 साल पूरे करने जा रहे दोशी ने समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा को दिए साक्षात्कार में कहा, ज़्यादातर पूर्व क्रिकेटर व्याकरण के हिसाब से निहायत गलत और अशुद्ध हिंदी बोलकर कमेंट्री कर रहे हैं.

नतीजतन ख़ासकर टीवी चैनलों पर हिंदी को उचित मान-सम्मान नहीं मिल रहा है.

उन्होंने इंदौर के जावरा कंपाउंड इलाके में स्थित अपने घर पर कहा, हिंदी वह ज़ुबान है जिसने भारत में क्रिकेट को मशहूर करने में अहम भूमिका निभाई है.

बड़े दर्शक और श्रोता वर्ग के कारण हिंदी का महत्व दिनों-दिन बढ़ ही रहा है. लेकिन मुझे अफसोस है कि देश में पूर्व क्रिकेटरों की गलत हिंदी कमेंट्री खामोशी से सहन की जा रही है. कमेंट्री के नाम पर इस भाषा से पूर्व क्रिकेटरों का खिलवाड़ बंद होना चाहिए.

दोशी ने कहा, ‘अच्छे कमेंटेटरों से मुझे कोई शिकायत नहीं है. भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर अच्छी हिंदी कमेंट्री कर लेते हैं. पूर्व बल्लेबाज़ नवजोत सिंह सिद्धु भी हिंदी कमेंटेटर के रूप में ख़ासे लोकप्रिय हैं.’

भाषाई शुद्धता की कसौटी पर हिंदी और अंग्रेज़ी कमेंट्री की तुलना करते हुए वह सवाल करते हैं, ‘क्या टीवी चैनलों पर कमेंट्री के दौरान ग़लत अंग्रेजी बोली जा सकती है.’

मुझे याद है कि दक्षिण अफ्रीका में कुछ पूर्व क्रिकेटरों ने जब एक बार कमेंट्री के वक़्त व्याकरण की दृष्टि से ग़लत अंग्रेज़ी बोली थी, तो वहां के अख़बारों में उनकी आलोचना की गई थी.

दोशी ने ज़ोर देकर कहा कि कमेंट्री की दुनिया में हिंदी की अस्मिता की रक्षा की ज़िम्मेदारी से बीसीसीआई पल्ला नहीं झाड़ सकता.

70 वर्षीय कमेंटेटर ने कहा, ‘बीसीसीआई टीवी चैनलों को क्रिकेट मैचों के प्रसारण के अधिकार बेचता है. लेकिन इस देश में हिंदी भाषा की अस्मिता को हर्गिज़ नहीं बेचा जा सकता. बीसीसीआई को मैचों के प्रसारण अधिकार बेचने के अनुबंध में विशेष प्रावधान करने चाहिए, ताकि संबंधित टीवी चैनलों पर शुद्ध हिंदी कमेंट्री सुनिश्चित हो सके.’

दोशी ने यह भी कहा कि बीसीसीआई को अच्छे हिंदी कमेंटेंटरों का चुनाव कर एक पैनल तैयार करनी चाहिए. इसके साथ ही, पूर्व क्रिकेटरों को हिंदी कमेंट्री का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.

वह इस बात से कतई सहमत नहीं हैं कि अच्छी क्रिकेट कमेंट्री के लिए एक पेशेवर खिलाड़ी के रूप में खेल की बारीकियां जाननी अनिवार्य है.

हिंदी के सबसे ज़्यादा अनुभवी खेल कमेंटेटरों में शामिल इस हस्ती ने कहा, क्रिकेट कोई रॉकेट साइंस नहीं है.

कोई ग़ैर खिलाड़ी कमेंटेटर भी अध्ययन और मनन के ज़रिये इस खेल की बारीकियां समझकर अच्छी कमेंट्री कर सकता है. इस सिलसिले में हमारे पास उदाहरणों की कोई कमी नहीं है.

हिंदी कमेंट्री करने वाले कुछ पूर्व क्रिकेटरों का नाम लिए बग़ैर वह कटाक्ष करते हैं, ‘हिंदी कमेंट्री की दुनिया में कुछ ऐसे पूर्व क्रिकेटर भी सक्रिय हैं, जिन्होंने अपने करियर में इक्का-दुक्का टेस्ट मैच खेले हैं और इनमें उन्हें नाकाम होते देखा गया है. लेकिन आज वे कमेंटेटर के रूप में देश के स्टार क्रिकेटरों के खेल की कुछ इस तरह कमियां निकालते हैं, मानो मौजूदा खिलाड़ियों को खेलना ही नहीं आता हो.’

उन्होंने कहा, ‘मैंने तो अपनी पारी खेल ली. मैं बस इतना चाहता हूं कि नई पीढ़ी को शुद्ध हिंदी कमेंट्री सुनने को मिले और इस भाषा की गरिमा बरक़रार रह सके.

दोशी ने वर्ष 1968 में मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच इंदौर के नेहरू स्टेडियम में खेले गए रणजी मैच के लिए पहली बार हिंदी में कमेंट्री की थी.

गुज़रे 49 सालों में वह अलग-अलग रेडियो और टेलीविज़न चैनलों के लिए 400 से ज़्यादा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों और टी-20 मैचों की कमेंट्री कर चुके हैं.

इसके अलावा, उन्होंने 85 से ज़्यादा टेस्ट मैचों के लिए भी कमेंट्री की है. दोशी संभवत: ऐसे अकेले हिंदी कमेंटेटर हैं, जिन्होंने क्रिकेट के एक दिवसीय और टी-20 प्रारूपों के कुल जमा 10 विश्व कपों का आंखों देखा हाल श्रोताओं और दर्शकों को सुनाया है.

खेल कमेंट्री की दुनिया में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से वर्ष 2016 में नवाज़ा गया था.