मोदी का पाकिस्तान को बीच में लाना गुजरात चुनाव में भाजपा की असुरक्षा दिखाता है

बिहार विधानसभा चुनाव के समय भी जीत की अनिश्चितता के चलते भाजपा नेताओं ने ऐसी ही चुनावी रणनीति अपनायी थी.

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फोटो: पीटीआई

बिहार विधानसभा चुनाव के समय भी जीत की अनिश्चितता के चलते भाजपा नेताओं ने ऐसी ही चुनावी रणनीति अपनायी थी.

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भाजपा की विधानसभा चुनावों की रणनीति देखें तो गुजरात और बिहार के चुनावों में काफी समानताएं दिखाई देती हैं. गुजरात चुनाव के बीच, पहले दौर की वोटिंग के बाद, नरेंद्र मोदी ने ‘पाकिस्तान’ कनेक्शन की बात की है. आजकल इस्तेमाल हो रही चुनावी भाषा के हिसाब से कहें तो ये एक ‘नीच’ पैंतरा ही है. जैसा एक प्रधानमंत्री को करना शोभा नहीं देता, मोदी ने वही किया है.

उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मणिशंकर अय्यर पर आरोप लगाया है कि वे गुजरात चुनाव को प्रभावित करने के इरादे से दिल्ली में पाकिस्तानी राजनयिकों से मिले. साफतौर पर दिख रहा है कि दूसरे दौर की वोटिंग से पहले पाकिस्तान का ज़िक्र मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश है.

यहां ज़रूरत है कि पिछले बिहार विधानसभा चुनाव को याद किया जाये. पांच चरणों में हुए इस चुनाव के बीच ही अमित शाह ने पाकिस्तान राग छेड़ा था. उन्होंने कहा कि अगर भाजपा बिहार चुनाव में हारेगी तो पाकिस्तान में पटाखे चलेंगे.

पहले दो चरणों की वोटिंग के बाद अमित शाह को पाकिस्तान को बीच में लाने की ऐसी क्या ज़रूरत पड़ी? शायद उनके हिसाब से पहले दो चरणों में दक्षिण और मध्य बिहार में हुई वोटिंग में पार्टी का प्रदर्शन उनकी उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा था.

यहां ये भी याद करिए कि तब भी शाह लगातार दो-तिहाई बहुमत का दावा कर रहे थे. हालांकि जीत के इस दावे के पीछे भाजपा की घबराहट छिपी हुई थी.

गुजरात में भी भाजपा अध्यक्ष ने दो-तिहाई बहुमत मिलने का दावा किया है. यहां संभव है कि बिहार चुनाव की तरह शाह पहले दौर के मतदान में भाजपा के प्रदर्शन से पूरी तरह ख़ुश न हों. इसी वजह से चुनावी मैदान में पाकिस्तान को लाने की ज़रूरत पड़ी.

लेकिन पहले दौर की वोटिंग में भाजपा की घबराहट क्या वजह हो सकती है? देखा जाये तो सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में भाजपा हमेशा से मज़बूत रही है. लेकिन जैसा कि कई राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं, सौराष्ट्र में भाजपा पाटीदारों के वोटों के बारे में अनिश्चित है, जिनका इस क्षेत्र में बाहुल्य है. ये कुल वोटों का 13 फीसदी हैं, जिनमें से लगभग एक-तिहाई 18 से 23 साल के हैं यानी वोट दे सकते हैं. हार्दिक पटेल की रैलियों में भी युवाओं की भारी भीड़ उमड़ रही है, जो उत्साह से उन्हें समर्थन देती दिख रही है.

पहले दौर की वोटिंग के इतिहास को देखते हुए भाजपा का दावा है कि उसे 89 में से करीब 60 सीटें मिलेंगी. हालांकि कांग्रेस भी पूरे विश्वास के साथ कह रही है कि युवा पाटीदारों और किसानों की मोदी से नाराज़गी के कारण ग्रामीण वोटरों के समर्थन से उसे लगभग 45 सीटें मिलेंगी.

अगर केवल हाव-भाव की बात करें, तो मोदी के मुकाबले राहुल गांधी ज्यादा सहज दिखायी दे रहे हैं. बीते 15 दिनों में भाजपा का चुनावी अभियान पूरी तरह से राष्ट्रवादी-बहुसंख्यक संदेश में बदल गया है, पाकिस्तान का ज़िक्र आना इसका चरम है.

यहां तक कि अगर भाजपा नेताओं को गुजरात में जीत के बारे में पूरा भरोसा है, तब भी उनके मन के किसी कोने में बिहार का अनुभव ज़रूर होगा. आखिर वोटरों को इस तरह के सरप्राइज देने के लिए ही जाना जाता है. अगर आज की तारीख में देखा जाये तो इस बार भाजपा की किसी और से कड़ी टक्कर भी उनके लिए सरप्राइज सरीखी ही होगी.

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