हमनवाई हो न हो, विश्वास ज़रूर हो 

पुस्तक समीक्षा: प्रेम में अधिकार और विश्वास का सवाल हमेशा से उपस्थित रहा है. सोशल मीडिया के दौर में ये भाव किस तरह परिवर्तित हुए हैं, तसनीम खान का उपन्यास इस नए बदलाव की कथा है.

(फोटो साभार: सेतु प्रकाशन)

‘हमनवाई न थी’ तसनीम खान का नवीनतम उपन्यास है जो शिवेन और सनम की प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द बुना गया है. हमनवाई का अर्थ है जिसकी सोच आपके समान हो. मानव विचार भिन्न हैं, तभी यह जीवन नया भी है वरना अगर सब एक ही विचार रखने वाले हो जाएं तो जीवन कितना उबाऊ हो जाए.

शिवेन और सनम का संबंध उस बिंदु पर आकर पलटता है, जब शिवेन किसी भुलावे में आकर उससे सारे संपर्क तोड़ लेता है. इस पूरे घटनाक्रम में लेखिका प्रश्न करती हैं कि सोशल मीडिया के जमाने में प्रेम के पनपने की परिस्थितियां क्या हैं? किसी संबंध के पीछे कौन-सा मनोविज्ञान काम करता है? विगत वर्षों में सोशल मीडिया का अत्यधिक विस्तार हुआ है. यहां लंबे समय से अलग हुए लोग एक-दूसरे को खोज पाए हैं, लेकिन इसके जरिए प्रेम का स्वरूप भी बदला है. समय के साथ लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप भी बढ़े हैं. संबंधों में विश्वास और अधिकार का मसला जटिल हुआ है.

शिवेन भले ही बहुत पहले से सनम की ओर आकर्षित है, लेकिन सालों तक सनम के लिए उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है. सनम के जीवन में कुछ ऐसा होता है कि वह बेइंतहा अकेली हो जाती है, और ऐसे वक्त वह शिवेन से जुड़ जाती है.

आप जब अपने जीवन के सबसे तनावपूर्ण समय से गुजर रहे हों, उस वक़्त यदि कोई भी ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो कोमलता से आपसे बात कर ले तो लगता है किसी ने आपके अंतःमन को सहला दिया है. इसके बाद जिस तरह कुछ समय बाद दोनों का संबंध खत्म हो जाता है, यह पूरी प्रक्रिया संशय पैदा करती है कि आखिर दोनों के बीच क्या था?

जहां प्रेम होगा वहां विश्वास भी जरूर होगा. ‘कबीरा यह घर प्रेम का ख़ाला का घर नांहि/ सीस उतारै हाथि करै सो पैसे घर मांहि…’ कबीर की यह पंक्ति प्रेम को सरलतम रूप में परिभाषित करती है.

विश्वास के लिए जरूरी है बात होना, संवाद होना. विश्वास यूं ही हवा में नहीं बन जाएगा. अगर शिवेन का विश्वास टूटता है, तो शायद यहां अहंकार आड़े आ रहा है, और हम जानते हैं कि अहंकार का एक बहुत बड़ा सिरा अधिकार से जुड़ा होता है. स्त्री-पुरुष संबंध दोनों के मन में एक-दूसरे के प्रति अधिकार भाव को जन्म देता है. क्या शिवेन का अधिकार बोध उसके अहंकार से जुड़ा था? क्या जब उसे सनम पर अपना अधिकार दरकता महसूस हुआ, उसने संबंध तोड़ दिया? यह स्थिति नायक पर तीखे प्रश्न खड़े कर देती है.

लेकिन अगर यह पुरुषोचित अहंकार है, तो इसका टूटना ही श्रेयस्कर है.

सनम आर्थिक रूप से स्वतंत्र तो है ही, उसका व्यक्तित्व भी शुरू से ही मजबूत और आत्मनिर्भर रहा है. जैसे ही उसे मालूम होता है कि शिवेन ने अपने दोस्त के बहकावे में आकर उससे संपर्क तोड़ दिया था, वह उसी क्षण उसे छोड़ कर चली जाती है. वह प्रेम से पहले सम्मान की आकांक्षा रखती है.

लेखिका ने जिस तरह से सनम के व्यक्तित्व को गढ़ा है, वह प्रेरणास्पद तो है ही, पुरुष मानसिकता के सूक्ष्मतर पहलू को भी उजागर कर देता है. प्रेम में अधिकार और विश्वास का सवाल हमेशा से उपस्थित रहा है. सोशल मीडिया के दौर में ये भाव किस तरह परिवर्तित हुए हैं, यह उपन्यास इस नए बदलाव की कथा है.

(अनुरंजनी दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग में शोधार्थी हैं.)