सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, एक साल के लिए 12 विशेष अदालतें नेताओं के ख़िलाफ़ लंबित मामलों के निबटारे के लिए गठित की जाएंगी.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि नेताओं की संलिप्तता वाले उन आपराधिक मामलों के फैसलों के लिए कम से कम 12 विशेष अदालतें गठित की जाएंगी जिनमें वे आरोपी हैं.
केंद्र ने देश भर में सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों का विवरण एकत्र करने के लिए न्यायालय से कुछ समय देने का भी अनुरोध किया.
विधि एवं न्याय मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा कि इस काम के लिए 7.8 करोड रुपये आबंटित किए गए हैं. मंत्रालय ने शीर्ष अदालत के एक आदेश के बाद यह हलफनामा दाखिल किया है. न्यायालय ने कहा था कि विधिनिर्माताओं की संलिप्तता वाले मुकदमों के लिए विशेष अदालतें गठित करने की योजना पेश की जाए.
केंद्र ने विभिन्न उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में विधिनिर्माताओं के खिलाफ लंबित मामलों का विवरण पेश करने के लिए समय देने का अनुरोध करते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों से जानकारी मांगी गई है और उनके जवाब की प्रतीक्षा है.
मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव रीता वशिष्ठ के माध्यम से दायर हलफनामे में कहा गया है कि इस योजना के अनुसार, एक साल के लिए 12 विशेष अदालतें नेताओं के खिलाफ लंबित मामलों के निबटारे के लिए गठित की जाएंगी. इसमें कहा गया है कि वित्त मंत्रालय ने सिद्धांत रूप में इस योजना को आठ दिसंबर को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है.
शीर्ष अदालत ने एक नवंबर को केंद्र ,सांसदों और विधायकों की संलिप्तता वाले 1581 आपराधिक मामलों के बारे में विवरण पेश करने का निर्देश दिया था. इन सांसदों और विधायकों ने 2014 के आम चुनावों के दौरान नामांकन दाखिल करते समय इसकी घोषणा की थी.
न्यायलय ने सरकार से यह भी जानना चाहा था कि 1581 मामलों में से एक साल के भीतर कितने मुकदमों का निबटारा किया गया और इनमें से कितने में सजा हुई या अभियुक्त बरी हुए.
सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि 1581 मामलों का आंकड़ा एक गैर सरकारी संगठन से प्राप्त हुआ है परंतु यह आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि किन अदालतों में ये मामले लंबित हैं.
हलफनामे में कहा गया है, न्यायालय के आदेश में उल्लिखित सवालों का जवाब देने के लिए तथ्यों और आंकड़ों को एकत्र करना मुश्किल है. जिन राज्यों में ये मामले लंबित हैं, उनसे अपेक्षित विवरण एकत्र करने के लिए कार्रवाई शुरू की गई है.
सरकार ने न्यायालय को सूचित किया था कि निर्वाचन आयोग और विधि आयोग ने आपराधिक मामलों में दोषी नेताओं को उम्र भर के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने की सिफारिश की है और यह सरकार के पास विचाराधीन है.
न्यायालय जन प्रतिनिधित्व कानून के उन प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जो दोषियों को जेल की सजा पूरी करने के बाद उनके छह साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाता है.