मध्य प्रदेश के गुना में 14 जुलाई को पुलिस ने एक दूल्हे को उसकी शादी वाले दिन पूछताछ के लिए हिरासत में लिया और बाद में उसकी संदेहास्पद परिस्थितियों में मौत हो गई. पुलिस का दावा है कि युवक की मौत हार्ट अटैक से हुई, जबकि परिजनों का आरोप है कि हिरासत में उसके साथ मारपीट की गई. विवाद इतना बढ़ा कि मृतक के परिजनों ने कलेक्ट्रेट में विरोधस्वरूप अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए. मजिस्ट्रेट जांच के आश्वासन के बाद मामला शांत हो सका.
मध्य प्रदेश में पुलिस हिरासत में मौत का यह अपने आप में पहला मामला नहीं है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच साल में पुलिस हिरासत में सबसे ज्यादा मौत के मामले में मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर है.
1 अगस्त 2023 को संसद में एक प्रश्न के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने देश भर में पुलिस हिरासत में हुई मौतों का आंकड़ा पेश किया था. 1 अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2023 तक पुलिस हिरासत में हुई मौतों के मामले में गुजरात पहले, महाराष्ट्र दूसरे और मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर था.
इन पांच वर्षों के दौरान गुजरात में जहां 81 मौतें पुलिस हिरासत में हुईं, महाराष्ट्र में 80 मौतें हुईं और मध्य प्रदेश में 50, बिहार में 47 और उत्तर प्रदेश में इसी अवधि में 41 मौतें हुईं.
दो सरकारी एजेंसियों के आंकड़ों में चार गुना से ज्यादा का अंतर
देश में पुलिस हिरासत में मौत की असल तस्वीर सामने आना काफी मुश्किल है. इसकी बड़ी वजह है कि सरकारी एजेंसियों की तरफ से जारी होने वाले आंकड़ों में फ़र्क है.
एनएचआरसी की 2021-22 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर में 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2022 तक पुलिस हिरासत में मौत की 175 शिकायतें मिलीं. जबकि, एनसीआरबी की ‘क्राइम इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट कहती है कि 1 जनवरी 2022 से 31 दिसंबर 2022 के बीच देश भर में पुलिस हिरासत में 41 मौतें हुईं और हिरासत में मौत के केवल 9 मामलों में एफआईआर दर्ज हुई. भले ही दोनों रिपोर्ट का समय अलग-अलग है, लेकिन 12 महीने में मौत के आंकड़ों में चार गुना से ज्यादा का अंतर है.
हिरासत में मौत पर पुलिस को लेना होता है तुरंत एक्शन
वैसे इस अंतर की वजह यह भी हो सकता है कि एनएचआरसी हिरासत में होने वाली हर तरह की मौत की शिकायत पर संज्ञान लेता है, जबकि पुलिस अपनी हिरासत में मौत के कई मामलों को आत्महत्या, हार्ट अटैक या पुरानी बीमारी के कारण हुई मौत भी बताती है.
पुलिस पर लगातार मानवाधिकार हनन और हिरासत में मृत्यु के मामलों को छिपाने का आरोप लगता आया है. समय-समय पर मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग, अनुसूचित जाति-जनजाति जैसे आयोग और अदालतें भी इन मुद्दों पर स्वत: संज्ञान लेते रहते हैं. इसलिए हिरासत में मौत के मामले में पुलिस को कम से कम इन निर्देशों का पालन करना होता है:
- हिरासत में मौत के 24 घंटे के अंदर संबंधित पुलिस स्टेशन एनएचआरसी को इसकी जानकारी देगा.
- मृतक के पोस्टमॉर्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, विसरा जांच रिपोर्ट एनएचआरसी को भेजी जाएगी.
- घटना की मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट दो महीने के भीतर एनएचआरसी को भेजी जाएगी.
13 कैमरों की निगाह में होना चाहिए एक थाना, कई जगह एक कैमरा भी नहीं
हिरासत में मारपीट या मौत की ऐसी ही घटनाओं से बचने या इन्हें कम करने के लिए सर्वोच्च अदालत ने अहम दिशानिर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसंबर 2020 को ‘परमवीर सैनी बनाम बलजीत सिंह व अन्य’ मामले में देश के सभी पुलिस स्टेशनों को सीसीटीवी से कवर करने के संदर्भ में निर्देश जारी किए.
इन दिशानिर्देशों में कहा गया कि एक पुलिस स्टेशन को 13 कैमरों से कवर्ड होना चाहिए, लेकिन अब भी देश के कई पुलिस स्टेशन ऐसे हैं जहां एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं है.
पुलिस थानों को सीसीटीवी कैमरे से कवर करने के लिए राज्य अपना बजट आवंटित करते हैं और केंद्र के फंड का भी इस्तेमाल करते हैं. इसके बावजूद ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 2022’ के आंकड़े बताते हैं कि जनवरी 2022 तक देश में चार पुलिस स्टेशनों में से एक में एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा था.
आईजेआर की आरटीआई में आधे से ज्यादा राज्य गोल कर गए जवाब
‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट’ की ओर से सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से सूचना के अधिकार के तहत पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी को लेकर पूछे गए सभी सवालों का जवाब आधे से भी कम राज्यों ने दिया.
मध्य प्रदेश पुलिस ने जवाब दिया कि राज्य के पुलिस स्टेशनों में कुल 3,436 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. हालांकि, यह नहीं बताया गया कि कितने पुलिस स्टेशनों में कम से कम एक सीसीटीवी कैमरा है.
लेकिन गृह मंत्रालय की ‘पुलिस संगठनों के आंकड़े’ वाली रिपोर्ट के बताती है कि 1 जनवरी 2023 तक मध्य प्रदेश के 1,350 पुलिस स्टेशनों में से 1,136 पुलिस स्टेशनों यानी 84% पुलिस स्टेशनों में कम से कम एक सीसीटीवी कैमरा लगा था.
पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे का महत्त्व
पुलिस हिरासत में मौत के मामले में सबसे आगे रहने वाले गुजरात की बात करें, तो गृह मंत्रालय की ‘पुलिस संगठनों के आंकड़े’ वाली रिपोर्ट के अनुसार यहां केवल 69% पुलिस स्टेशन सीसीटीवी कैमरे से कवर्ड हैं और महाराष्ट्र में 82% पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं.
1 जनवरी 2023 तक गुजरात के 957 पुलिस स्टेशनों में से 662 पुलिस स्टेशनों में और महाराष्ट्र के 1,320 पुलिस स्टेशनों में से 1,082 पुलिस स्टेशनों में कम से कम एक सीसीटीवी कैमरा लगा था.
ऐसी कई घटनाएं हैं, जो पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी की महत्ता को साबित करती हैं. यह न केवल हिरासत में आरोपियों के लिए बल्कि पुलिसकर्मियों के लिए भी जरूरी है.
22 जुलाई 2024 को गुजरात हाईकोर्ट की जस्टिस गीता गोपी ने एक जमानत आदेश पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी में पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि पुलिस थानों में सीसीटीवी होने से पुलिस और पीड़ित पक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोपों की असलियत जानना आसान हो जाता है.
पुलिस पर अक्सर हिरासत में अमानवीय और गैरकानूनी तरीके अपनाने का आरोप लगता है. सीसीटीवी होने से पुलिस उसे अपने बचाव के तौर पर पेश कर सकती है. किसी शिकायतकर्ता, आरोपी या गवाह के साथ पुलिस का व्यवहार किस तरह का है, यहां तक कि थाने की आंतरिक स्थिति को भी सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग से समझा जा सकता है.
अलग-अलग राज्यों में हुईं ये छह घटनाएं बताती हैं कि पुलिस हिरासत में मौत के मामले कितने गंभीर हैं और इनका सीसीटीवी से कवर्ड होना कितना जरूरी है:
1.महाराष्ट्र के मुंबई पुलिस मुख्यालय में 1 मई 2024 को एक आरोपी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी. आरोपी पर फिल्म एक्टर सलमान खान के घर के बाहर फायरिंग का आरोप था. पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया.
2.आंध्र प्रदेश के नांदयाल जिले के मितदूर पुलिस स्टेशन में 20 जुलाई 2024 को एक युवक की पुलिस हिरासत में मौत हो गई. उसे पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था.
3.छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में 19 जुलाई 2024 में लूट के एक आरोपी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई. परिजनों ने आरोप लगाया कि पीड़ित के पांव में गोली के निशान मिले हैं.
4.अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले में 19 जुलाई 2024 को 47 वर्ष की एक महिला की पुलिस हिरासत में मौत हो गई. महिला को एक दिन पहले ही हिरासत में लिया गया था.
5. गुजरात के राजकोट में 14 अप्रैल 2024 को पुलिस ने एक युवक को हिरासत में लिया और दो घंटे बाद छोड दिया. परिजनों ने आरोप लगाया कि हिरासत में मारपीट से उसकी जान गई.
6. उत्तर प्रदेश के नोएडा में पुलिस ने मई 2024 में एक बेकरी सुरवाइजर को रेप के आरोप में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था, जो 24 घंटे के अंदर ही पुलिस बैरक में फांसी से लटका मिला. परिजनों ने इसका जिम्मेदार पुलिस को ठहराया.
एनएचआरसी के आंकड़ों के मुताबिक, देश भर में हिरासत में मौत के मामले बढ़ रहे हैं. 2019-20 में 112, 2020-21 में 100, 2021-22 में 175 और 2022-23 में 164 मौत के मामले सामने आए. हिरासत में मौत या पुलिस प्रताड़ना को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का कदम काफी अहम साबित हो सकता है. लेकिन तीन साल से ज्यादा होने के बावजूद उन निर्देशों पर पूरी तरह अमल नहीं हो सका है.
यही वजह है कि उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक पुलिस हिरासत में होने वाली हिंसा को लेकर हर राज्य का हाल एक जैसा है. इसी साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस के कुछ युवकों को बांधकर पीटने पर सवाल किया कि पुलिस ने किस अधिकार से उनके साथ ऐसा व्यवहार किया.
वहीं, तमिलनाडु के तूतीकुड़ी जिले के साथनकुलम में 2020 में लॉकडाउन के उल्लंघन के आरोप में पुलिस ने पिता-पुत्र जयराज और बेनिक्स को हिरासत में लिया और टॉर्चर किया, जिससे दोनों की मौत हो गई. जांच में सहयोग न करने पर मद्रास हाईकोर्ट की मदुरई बेंच ने पूरे थाने को डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर के अधीन दे दिया था. यह अपने आप में अनोखा मामला था.
भारत टॉर्चर के खिलाफ यूएन के कन्वेंशन का हिस्सा है. इसके बावजूद न तो पुलिस में और न ही समाज में पुलिसिया हिंसा को लेकर वैसी जागरूकता नहीं है, जैसी दूसरे देशों में हैं.
(लेखक इंडिया जस्टिस रिपोर्ट से संबंद्ध हैं.)