नई दिल्ली: इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कड़ी निंदा करते हुए, इसे ‘राक्षसी कृत्य’ कहा था. उन्होंने कहा था, ‘इस आक्रोश को मैं महसूस कर रहा हूं. …ऐसा पाप करने वालों में डर पैदा हो कि फांसी पर लटकना पड़ता है, मुझे लगता है कि ये डर पैदा करना बहुत जरूरी है.’
यह सरसरी तौर पर की गई टिप्पणी नहीं थी. इसके नौ दिन के बाद वो इस बात से आगे बढ़े. ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस शासित बंगाल की राजधानी कोलकाता में बलात्कार–हत्या पर विवाद बढ़ने पर उन्होंने कहा, ‘महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्षम्य हैं. अपराधी चाहे कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जाना चाहिए… माताओं, बहनों और बेटियों की सुरक्षा देश की प्राथमिकता है.’
इस बार पीएम ने अपनी पिछली टिप्पणी से आगे बढ़कर ‘महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों की मदद करने वालों’ की भी निंदा की. उन्होंने कहा कि ‘किसी को बख्शा नहीं जाना चाहिए.’
इस दौरान पीएम मोदी ने याद दिलाया कि ‘मैंने लाल किले से बार–बार इस मुद्दे को उठाया है.’
ये सही है कि पीएम ने बार–बार इस मुद्दे को उठाया है. साल 2022 में लाल क़िले से दिए भाषण में मोदी ने अपनी ‘पीड़ा’ व्यक्त की थी. उन्होंने देशवासियों से ज़ोरदार अपील की थी कि ‘क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं.’
ध्यान रहे कि यह कोई साधारण स्वतंत्रता दिवस नहीं था. उस वर्ष भारत की आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ थी. लेकिन पीएम की ‘पीड़ा’ में कितनी सच्चाई थी?
प्रधानमंत्री मोदी ने जिस रोज़ लाल क़िले से पीड़ा की बात कही थी, उसी रोज़ बिलकीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए ग्यारह लोगों को रिहा कर दिया गया. इसके बाद उनका ज़ोरदार स्वागत किया गया.
2002 के गुजरात दंगों के दौरान जब 19 साल की बिलकीस बानो का सामूहिक बलात्कार हुआ था, तब वह पांच महीने की गर्भवती थीं. उनके परिवार के चौदह सदस्यों को दंगाइयों ने मार डाला. इन चौदह लोगों में बिलकीस बानों की तीन साल की बेटी भी थी, जिसका सिर कुचला गया गया था.
मोदी सरकार ने बिलकीस बानो के बलात्कारियों की रिहाई को मंज़ूरी दी थी. रिहाई की मंज़ूरी पर मोदी के सबसे करीबी सहयोगी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हस्ताक्षर किया था. ऐसी व्यवस्था जिसमें सत्ता पूरी तरह से प्रधानमंत्री के हाथों में केंद्रित है, ज़ाहिर है वह इस फ़ैसले से सहमत रहे होंगे.
सजायाफ्ता अपराधियों की रिहाई और इसकी टाइमिंग (जिस दिन मोदी ने लाल किले से महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अपनी ‘पीड़ा’ व्यक्त की थी) इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि वे (नरेंद्र मोदी) और उनकी सरकार वास्तव में ‘महिलाओं को अपमानित करने वाले व्यवहार, संस्कृति’ के बारे में क्या सोचते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने बिलकीस बानो के आग्रह पर मामले की सुनवाई की और हत्यारों और बलात्कारियों को वापस जेल भेजा.
अब मोदी का यह कहना कि उन्होंने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषणों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मुद्दे को बार–बार उठाया और अपराधियों को ‘न बख्शने’ की बात कही, यह कोरी बकवास है.
(लेखक लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडी में कॉमनवेल्थ स्टडीज़ के प्रोफेसर एमेरिटस हैं.)
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