ढाका के हिंदू: बांग्लादेश के माने नहीं जाओगे, भारत में पहचाने नहीं जाओगे

पिक्चर पोस्टकार्ड: बांग्लादेश का हिंदू चुभती हुई पीड़ा के साथ जी रहा है. अपने मुल्क में वह पराया हो गया है, और भारतीय सत्ता उसे 'दीमक' कह कर लांछित करती आ रही है.

ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर में पिछले महीने हुई हिंसा में जान गंवाने वाले छात्रों/लोगों के समर्थन में लगा एक बैनर. (सभी फोटो: शोम बसु)

ढाका: मुगलों ने जरूर कुछ अवधि के लिए इसका नाम बदलकर जहांगीर नगर कर दिया था, लेकिन बांग्लादेश की राजधानी सदियों से अमूमन ढाका ही पुकारी जाती थी. गंगा नदी पर स्थित बंदरगाह वाला यह शहर सुदूर पूर्व और पश्चिम के लिए लंबे समय तक व्यापार का केंद्र रहा था. तुर्कों के आक्रमण और बाद में राजा बल्लाल सेन के शासन में यहां की तस्वीर बदल गई. बल्लाल सेन ने 12वीं सदी में ढाका पर शासन किया और मां दुर्गा ढाकेश्वरी मंदिर की स्थापना की. तब से ही यह ढाका के नाम से जाना जाने लगा.

आज ढाकेश्वरी मंदिर बांग्लादेश में रह रहे सभी हिंदुओं के लिए किले की तरह खड़ा है. इस मंदिर में अभी भी हिंदुओं के मुख्य त्योहार मनाए जाते हैं और अक्टूबर में होने वाली दुर्गा पूजा सबसे बड़ा त्योहार है जो हर साल पूरे उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है.

साल 2021 में दुर्गा पूजा के दौरान कुछ कट्टरपंथियों ने पूजा स्थलों पर हमले किए थे, तोड़-फोड़ कर उपद्रव मचाया था, जिसने विश्व भर में बांग्लादेश की छवि को नुकसान पहुंचाया था, और यह सब शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते हुए हुआ था (जिन्हें हाल ही में देश में हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद सत्ता से बेदखल होना पड़ा है). तब भारत ने इस घटना पर विरोध दर्ज कराया था, जबकि हसीना की पुलिस ने घटना के सिलसिले में कार्रवाई की थी.

शाम की पूजा के समय एकत्र हुए श्रद्धालु.

आज बांग्लादेश में करीब 8 प्रतिशत हिंदू रह रहे हैं. उन पर हमलों को अल्पसंख्यक समुदाय को किनारे करने की साजिश के रूप में देखा जाता है. समान भाषा बोलने वाले, लेकिन भिन्न धार्मिक आस्था रखने वाले कई मुसलमान इस दरार को किसी सामुदायिक मुद्दे के बजाय राजनीतिक हथियार के तौर पर देखते हैं.

पिछले कुछ सालों में अल्पसंख्यकों, खासतौर पर हिंदुओं का मुद्दा एक बड़ा आर्थिक मुद्दा बन गया है. जमीन और अचल संपत्ति की बिक्री विवादित हो गई है. कई हिंदुओं को अपनी जमीन की सही कीमत नहीं मिल पाती है क्योंकि खरीदार उन्हें धमकाते हैं. ढाका में अवामी लीग के दिनों से ही जमीन हड़पना और जबरन वसूली शुरू हो गया था, जो अब तक जारी है. इसने हिंदुओं के अलावा बौद्ध और ईसाइयों को भी शिकार बनाया है.

बीते महीने अवामी लीग सरकार के गिरने के बाद रंगपुर में मंदिरों पर हमला किया गया था और कई हिंदुओं, जिन्होंने अवामी लीग को इसके बहुलवादी शासन के लिए समर्थन किया था, को कट्टरपंथियों द्वारा निशाना बनाया गया.

लेकिन यहां के निवासी बासुदेव धर का कहना है कि ‘ढाकेश्वरी मंदिर और आस-पास के हिंदू परिवारों को जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने संरक्षण प्रदान किया था, जिन्होंने मंदिर परिसरों और क्षेत्रों की चौकीदारी की ताकि अनियंत्रित भीड़ को रोका जा सके जिसका मकसद सिर्फ आगजनी और तोड़-फोड़ था.’

बासुदेव धर.

एक अन्य हिंदू ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए याद दिलाया कि साल 1992 में हिंदुस्तान में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से हिंसा शुरू हुई थी, जिसकी चिंगारी आज भी बची हुई हैं. ढाका के निवासी  जगन्नाथ बाबरी मस्जिद की घटना पर अफ़सोस प्रकट करते हैं, जिसने हिंदू-मुस्लिमों संबंधों को चोट पहुंचाई.

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रात की बस में बैठकर आलोक और रानू सिलहट से ढाकेश्वरी मंदिर पहुंचे हैं. इस मंदिर को आज राष्ट्रीय मंदिर का दर्जा प्राप्त है. जब उनसे हालिया हमलों के बारे में पूछा, आलोक ने कहा कि ज्यादातर हिंदू अवामी समर्थक रहे हैं, जिनमें उनका परिवार भी शामिल है. आलोक छात्र हैं और किसी यूरोपीय देश में बसने की तमन्ना रखते हैं.

आलोक और रानू.

आज आलोक और उन जैसे कई लोग शेख हसीना के अवामी समर्थकों को खतरे में छोड़कर देश से भाग जाने पर खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.

आलोक का कहना है, ‘वे एक नेता थीं और उन्होंने अपने सभी समर्थकों और कार्यकर्ताओं का ख्याल रखा, लेकिन आज उनके भागने ने हमें अनाथ बना दिया है, चाहे अवामी समर्थक हिंदू हों या मुसलमान, वे आक्रामकता के साथ निशाना बनाए जा रहे हैं…’

2015 में मोदी ढाका और ढाकेश्वरी मंदिर गए थे. आज उस यात्रा की कमजोर स्मृति बची रह गई है, जो हिंदुओं को सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकती. अवामी लीग के पतन और शेख हसीना के सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में पदभार संभाला और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय पर हो रहे हमलों के बीच ढाकेश्वरी मंदिर का दौरा किया. 13 अगस्त को जब वे मंदिर गए तो उन्होंने कहा, ‘सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं.’

लेकिन रात होते ही मंदिर के पुजारी और सुरक्षाकर्मी दरवाजा बंद कर देते हैं. नाइटगार्ड मोर्चा संभाल लेते हैं. आधी रात के बाद पुलिस दौरे पर आती है और सुरक्षा का जायजा लेती है.

कुछ परिवार मंदिर में नियमित तौर पर आते रहे हैं. ऐसे ही एक परिवार के सदस्य.

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लेकिन इस हिंसा के बीच के असहज करने वाले सत्य भी हैं. खुलना के एक हिंदू पत्रकार ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि उत्सव मंडल नामक एक लड़के की पुलिस थाने में पीटकर हत्या की ख़बर झूठी और निराधार है. भारत के हिंदुत्ववादियों ने इस पर अनावश्यक विवाद खड़ा किया है. यह सही है कि मंडल को पैगंबर पर उसकी कथित टिप्पणी के लिए पीटा गया था, लेकिन उसे बांग्लादेशी सेना ने बचा लिया और अपनी हिरासत में भी लिया था.

उन्होंने आगे कहा कि ऐसी ही एक घटना शेख हसीना के भाग जाने के दो दिन बाद हुई, जब बांग्लादेश पुलिस के एक हिंदू असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर संतोष साहा की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. यह हत्या हिंदू-विरोधी भावनाओं का परिणाम नहीं थी, बल्कि साहा द्वारा लंबे समय से जबरन वसूली किए जाने और लोगों पर मुकदमे थोपने के चलते लोगों के मन में गुस्सा भरा हुआ था, जो उनकी हत्या का कारण बना. लेकिन इसका अर्थ यह एकदम नहीं कि जनता को हिंसा और लिंचिंग करने का अधिकार है. युनूस को तत्काल भीड़ पर लगाम कसनी चाहिए और देश में शांति-व्यवस्था बनानी चाहिए.

दुर्गा पूजा से पहले देवी की निर्माणाधीन प्रतिमाएं.

भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के बारे में पूछे जाने पर बांग्लादेश के आक्रोशित हिंदुओं ने इसे मुश्किल पैदा करने वाला बताया. इसकी वजह से भारत-विरोधी लोग और बांग्लादेश के कई कट्टरपंथी गुट आजकल उनके साथ दुर्व्यहार करते हुए उन्हें ‘भारत वापस जाओ’ कहते हैं.

बांग्लादेश के अधिकांश हिंदू ऐसी नीति को अल्पसंख्यकों के लिए खतरनाक मानते हैं. वे भारत के गृहमंत्री अमित शाह की उस टिप्पणी को भी रेखांकित करते हैं जब उन्होंने बांग्लादेशियों को ‘दीमक’ कहा था.

मंदिर में मुस्लिम भी आते हैं.

सुनील मंडल जैसे कई लोगों ने यह भी कहा, ‘बांग्लादेश के चाहे हिंदू हों या मुसलमान, भारत में उन सभी को बांग्लादेशी की नजर से ही देखा जाएगा.’

ऐसे में एक नागरिक के लिए राहत अभी दूर तक दिखाई नहीं देती.