नई दिल्ली: दस्तावेजों के अनुसार दो भाजपा शासित राज्यों ने बिजली उत्पादन का ठेका देते समय विभिन्न बिजली उत्पादकों को ठेका प्रक्रिया में आवेदक के रूप में बोली लगाने के लिए जो मापदंड तय किए वे मापदंड आश्चर्यजनक रूप से दोनों राज्यों में हूबहू एक जैसे थे, और ये मापदंड अडानी समूह के द्वारा बिजली उत्पादन करने की क्षमताओं व बिजली उत्पादन से जुड़ी अडानी समूह की भविष्य की योजनाओं के भी अनुकूल थे.
महाराष्ट्र और राजस्थान ये वो दो राज्य हैं, जिन्होंने एक के बाद एक उन बिजली प्रदाताओं से बिजली उत्पादन करने के प्रस्ताव मांगे जो बिजली प्रदाता इन राज्यों को अगले 25 साल तक बिजली प्रदान करने की क्षमता रखते हैं. दोनों राज्यों ने बिजली उत्पादन करने का ठेका प्राप्त करने की इच्छुक संस्थाओं के सामने ये शर्त रखी कि आवेदक संस्था को सौर और कोयला आधारित दोनों विधाओं से एक साथ बिजली बनाने के कारखानों की सुविधा से लैस होना चाहिए.
भाजपा शासित राज्यों ने बिजली उत्पादन करने का ठेका देने की प्रक्रिया में जारी किए गए टेंडर में यह शर्त रखकर की आवेदक संस्थाओं को सौर और कोयला आधारित दोनों प्रकार की विधाओं से एक साथ बिजली उत्पादन करने में सक्षम होना चाहिए अडानी समूह के लिए, उसके प्रतिस्पर्धियों की तुलना में, राह आसान कर दी.
जहां एक ओर महाराष्ट्र ने कुल 6,600 मेगावाट बिजली का ठेका देने का प्रस्ताव दिया, जिसमें से 5,000 मेगावाट का उत्पादन सौर ऊर्जा से और बाकी का कोयले से होना था. वहीं, राजस्थान ने कुल 11,200 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए बोलियां लगवाईं जिसमें से 8,000 मेगावाट बिजली सौर ऊर्जा से और बाकी कोयले से बनाने का प्रस्ताव था.
लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि अडानी समूह को छोड़कर देश में बहुत कम ऐसी संस्थायें हैं जो इतनी बड़ी मात्रा में सौर ऊर्जा और कोयले दोनों से एक साथ बिजली का उत्पादन करने की क्षमता रखती हैं.
इस पूरी प्रक्रिया से होते हुए महाराष्ट्र में बिजली उत्पादन का ठेका अडानी समूह को मिल गया है जो अडानी समूह के अनुसार, दुनिया में सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादित करने का सबसे बड़ा ठेका है.. वही राजस्थान में जहां अडानी समूह बिजली उत्पादन का ठेका लेने की रेस में सबसे आगे है अभी इस पर आखिरी मुहर लगना बाकी है कि ठेका किसको मिलेगा.
लेकिन राजस्थान में भी महाराष्ट्र की ठेका प्रकिया संबंधी दस्तावेज़ों की ही तरह बिजली उत्पादन करने के लिए आवेदक संस्थाओं के लिए जिन नियम और शर्तों को सामने रखा गया है, वे नियम और शर्तें राम मिलाई जोड़ी के मुहावरे को फलीभूत करते हुए अडानी समूह के द्वारा भविष्य में बिजली उत्पादन करने की योजनाओं से हूबहू मेल खाती हैं.
पहले बिजली उत्पादक संस्थाओं को कोयले या फिर कभी खत्म न होने वाली सौर ऊर्जा सरीखे रिन्यूएबल ऊर्जा के स्रोतों से बिजली का उत्पादन करना होता था. लेकिन अब अलग–अलग स्रोतों से बिजली का उत्पादन कर उसको इकठ्ठा मुहैया कराने का नियम ऊर्जा के क्षेत्र में बिल्कुल नया है.
इस नए नियम को भाजपा शासित राज्यों की तरफ से लागू करने की वजह से रिन्यूएबल ऊर्जा के क्षेत्र में गत वर्षों में तेजी से विकसित हुई छोटी संस्थाओं के ऊपर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. और इस नियम के कारण बिजली उत्पादित करने को लेकर विभिन्न संस्थानों के बीच होने वाली आपसी प्रतिस्पर्धा भी कोयले के साथ– साथ सौर ऊर्जा से बिजली बनाने वाली कुछ चुनिंदा संस्थाओं के हाथों तक सिमटकर रह गई है. इन चुनिंदा संस्थानों में से अडानी समूह सबसे बड़ी निजी संस्था है.
इस बात की पर्याप्त संभावना है कि बिजली उत्पादन के क्षेत्र में राज्य सरकारों की तरफ से कोयले और सौर ऊर्जा दोनों से बिजली बनाने वाली कंपनियों की हौसलाअफजाई की वजह से रिन्यूएबल ऊर्जा के क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा कम हो जाए जिससे भविष्य में सामान्य लोगों के लिए बिजली के दाम बढ़ जाए.
सरकार की तरफ से दिए जाने वाले ठेकों में एक मुख्य नियम यह रहा है कि ठेका लेने के लिए इच्छुक संस्थाओं के बीच प्रतियोगी माहौल को बढ़ावा दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी 2014 के कोयला घोटाला जैसे विवादों से संबंधित अपने फैसलों में यह कह रखा है कि सरकार को कोयला खदान जैसी वस्तुओं को बेचते या इनकी नीलामी करते समय खरीददारों के बीच ज्यादा से ज्यादा प्रतिस्पर्धी माहौल को बढ़ावा देना चाहिए जिससे बेची गई वस्तु का अधिकतम मूल्य वसूल किया जा सके.
लेकिन बिजली उत्पादन से जुड़ी पूरी ठेका प्रक्रिया में भाजपा शासित राज्य सरकारों ने अपनी तरफ से खुद प्रतियोगी माहौल को ठेका लेने की इच्छुक सिर्फ कुछ चुनिंदा संस्थाओं तक सीमित कर दिया.
वित्तीय भाषा में कहें, तो सरकार की तरफ से कुछ संस्थाओं को फायदा पहुंचाने के लिए किसी तरीके के अनूठे मानक बनाना या विशिष्ट तकनीकी स्थितियों की मांग करने को भाई–भतीजावाद कहा जाता है.
विशेषज्ञों के अनुसार भी रिन्यूएबल ऊर्जा को बढ़ावा देने और पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने के नाम पर राज्य सरकारों के द्वारा सिर्फ कोयले और सौर ऊर्जा से एक साथ बिजली का उत्पादन करने वाली संस्थाओं को मंजूरी देने का निर्णय काफी समस्याग्रस्त है. विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारों को किसी एक बिजली उत्पादक से बिजली खरीदने की बजाय अलग–अलग उत्पादकों से बिजली की खरीद करनी चाहिए.
डॉक्टर प्रियांशु गुप्ता ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में पिछले दस वर्षों से शोधार्थी के रूप में कार्यरत हैं. प्रियांशु कहते हैं कि सरकार को सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादित करने के ठेके और कोयले से बनाई जाने बिजली के ठेके को अलग–अलग रखना चाहिए.
ईश्वरीय संयोग!
बिजली का उत्पादन करने से संबंधित ठेका प्रक्रिया से जुड़े कागजातों की तहकीकात करने पर द रिपोर्टर्स कलेक्टिव को केवल यह नहीं पता चला कि राज्यों ने ठेका देने की प्रक्रिया के दौरान बोली लगाने की प्रतियोगिता को सिर्फ कोयले और सौर ऊर्जा से एक साथ बिजली उत्पादित कर सकने वाले संस्थानों तक सीमित कर दिया था बल्कि आश्चर्यजनक तौर पर ठेका देने की पूरी प्रक्रिया जिन नियमों और शर्तों के साथ राज्य सरकारों ने शुरू की थी वो नियम और शर्तें अडानी समूह की आने वाली बिजली उत्पादन से संबंधित परियोजनाओं के बिल्कुल अनुरूप थे.
महाराष्ट्र के ठेके में बिजली उत्पादकों को जहां इस बात की अनुमति थी कि वो कोयले से बिजली बनाने वाले 1,600 मेगावाट की क्षमता के संयंत्र को देश में कही पर भी स्थापित कर सकते थे, वहीं सौर ऊर्जा से बनी बिजली को वे महाराष्ट्र के बाहर से ला सकते थे.
महाराष्ट्र सरकार के बिजली उत्पादन से संबंधित ये नियम अडानी समूह की दो परियोजनाओं से मेल खाते थे.
पहली परियोजना के तहत अडानी समूह पहले से ही तीन राज्यों में 1,600 मेगावाट की क्षमता के, कोयले से बिजली उत्पादित करने वाले, अलग–अलग संयंत्रों को स्थापित कर रहा है. और दूसरी परियोजना के तहत अडानी समूह ने गुजरात के कच्छ में दुनिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा आधारित रिन्यूएबल एनर्जी पार्क से इस वर्ष की शुरूआत में बिजली उत्पादित करना शुरू कर दी है जिसे महाराष्ट्र की तरफ भेजा जा सकती है.
वहीं दूसरी ओर राजस्थान में बिजली उत्पादन का ठेका लेने की इच्छुक ठेकेदार संस्थाओं के सामने ये शर्त रखी गई थी कि उनको 3,200 मेगावाट बिजली सिर्फ कोयले से और 8,000 मेगावाट बिजली कोयले और सौर आधारित पद्धतिओं से सामूहिक रूप से उत्पादित करनी होगी. राजस्थान में बिजली उत्पादक को अपने कारखाने राजस्थान की सीमा क्षेत्र के भीतर ही स्थापित करने थे.
इसे मात्र ईश्वरीय संयोग कह लीजिए, लेकिन हुआ ये कि राजस्थान में आगामी ठेके की सूचना सार्वजनिक क्षेत्र में आने के पहले ही अडानी समूह ने राजस्थान के बारां जिले के कवाई गांव में अपने पहले से स्थापित कोयले से बिजली उत्पादित करने वाले संयंत्र की क्षमता को 3,200 मेगावाट तक बढ़ाने का प्रयास शुरू कर दिया.
और इसी रणनीति के तहत अडानी समूह ने राजस्थान सरकार के साथ एक समझौता पत्र को भी हस्ताक्षरित कर दिया, जिसके अनुसार अडानी समूह को राजस्थान की सीमा क्षेत्र के भीतर सोलर पार्क विकसित करना है.
देखते–देखते अडानी समूह की कवाई में स्थित बिजली संयंत्र की क्षमता में बढ़ोत्तरी हो गई और राजस्थान की ठेका प्रक्रिया के अनुसार अडानी के राजस्थान वाले कोयला और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादित करने वाले संयंत्रों की भौगोलिक स्थिति का राजस्थान की बिजली वितरक कंपनी, राजस्थान ऊर्जा विकास एंड आईटी सर्विसेज (आरयूवीआईटीएसएल) की जरूरतों से मिलान भी हो गया.
जब महाराष्ट्र की ठेका प्रक्रिया और अडानी समूह की बिजली उत्पादन करने की क्षमता में विस्तार करने के निर्णय के बीच सांठगांठ होने को लेकर द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने संशय व्यक्त करते हुए अडानी पावर के प्रवक्ता से सवाल पूछे तो उन्होंने कहा कि इन सवालों के जवाब केवल ठेका देने वाली संस्था ही दे सकती है.
आगे उन्होंने राजस्थान की बिजली वितरक संस्था के द्वारा जारी किए गए टेंडर और अडानी समूह के राजस्थान स्थित बिजली संयंत्रों के संदर्भ में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आरयूवीआईटीएसएल का ठेका अभी किसी को भी मिलना बाकी है और अडानी समूह के कवाई स्थित बिजली संयंत्र में जो प्रसार किया जा रहा है उसका आरयूवीआईटीएसएल के ठेके से कुछ लेना देना नहीं है.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने महाराष्ट्र और राजस्थान दोनों प्रदेशों की विद्युत वितरक संस्थाओं से इस पूरे विषय पर जानकारी मांगने के लिए विस्तृत प्रश्न भेजे थे लेकिन बार–बार याद दिलाने के बावजूद कोई जवाब नहीं मिला.
अडानी समूह खुद को भारत की रिन्यूएबल ऊर्जा से संबंधित सबसे बड़ी संस्था के रूप में प्रचारित करता रहा है और इस साल की शुरुआत में यह समूह भारत की पहली 10,000 मेगावाट से ज्यादा बिजली उत्पादित करने वाली एक ऐसी संस्था के रूप में उभरकर सामने आया था जो 10,000 मेगावाट में से 7,393 मेगावाट बिजली सिर्फ सौर ऊर्जा के माध्यम से बनाती है.
साथ ही साथ अडानी समूह कोयले से 15,000 मेगावाट की भारी क्षमता के साथ बिजली का उत्पादन करने वाला भारत का सबसे बड़ा निजी समूह भी है. हालांकि ऊर्जा के क्षेत्र में अडानी समूह इकलौता ऐसा समूह नहीं है जो अपने द्वारा उत्पादित सौर ऊर्जा आधारित बिजली की बाजार में भागीदारी बढ़ाने के साथ–साथ अपनी कोयला आधारित बिजली की मात्रा को भी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
अडानी के अलावा जेएसडब्ल्यू ग्रुप जैसी कारोबारी समूह भी इसी दिशा में प्रयासरत है, लेकिन वे अडानी से इस पूरी रेस में कहीं पीछे छूट गए हैं.
लेकिन जिस तरीके से भाजपा शासित प्रदेशों ने अपनी बिजली उत्पादन संबंधित ठेका नीतियों में अरबपति ठेकेदार अडानी की सुविधा के अनुसार फेरबदल किया है उसको देखकर इस आरोप को फिर से बल मिलता है कि गौतम अडानी की तरक्की का कारण कुछ और नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी नजदीकियां हैं.
शुरुआत महाराष्ट्र से हुई
13 मार्च 2024 को देश के पश्चिमी प्रदेशों को बिजली प्रदान करने वाली महाराष्ट्र सरकार की संस्था ‘महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड‘ ने बिजली खरीदने का ठेका देना के लिए बिजली प्रदाताओं को बोली लगाने के लिए आमंत्रित किया था.
नियम ये है कि बिजली का उत्पादन करने वाली जो संस्था बिजली को सबसे कम दाम पर वितरक को बेचने की बोली लगाती है उसको बिजली उत्पादन करने का ठेका दे दिया जाता है और सरकार की संस्थाओं की चेतावनी को ध्यान में रखते हुए किसी संस्था को 25 वर्ष के लिए बिजली उत्पादन का ठेका देना भी सामान्य बात है. लेकिन महाराष्ट्र सरकार के 13 मार्च 2024 को बिजली उत्पादन करने का ठेका देने के लिए जारी किए गए टेंडर में एक विशेष शर्त ये थी कि आवेदकों को अनिवार्य रूप से 1,600 मेगावाट बिजली का उत्पादन कोयला आधारित संयंत्रों से और बाकी 5,000 मेगावाट का उत्पादन सौर ऊर्जा आधारित पद्धति से करना था.
चूंकि किसी ठेका देने की प्रक्रिया में बिजली उत्पादकों से ये पहली बार कहा जा रहा था कि ठेका पाने की न्यूनतम अर्हता को संतुष्ट करने के लिए उन्हें कोयले और सौर ऊर्जा से सामूहिक रूप से बिजली का उत्पादन करना पड़ेगा इसलिए राज्य में इस प्रस्तावित ठेके की शर्तों को लेकर लोगों के कान खड़े हो गए.
महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने तुरंत आरोप लगाया की इस ठेके की नियमावली को इस प्रकार से बनाया गया है कि शिवसेना, एनसीपी और भाजपा की महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार की तरफ से अडानी समूह को लाभ पहुंचाया जा सके.
इस ठेके के टेंडर में कोयले से उत्पादित की जाने वाली 1,600 मेगावाट बिजली के हिस्से के लिए कहा गया था कि बिजली उत्पादक अपनी प्राथमिकता के अनुसार महाराष्ट्र में या महाराष्ट्र के बाहर कारखाना लगा सकता है. इसी तरीके से उत्पादक सौर आधारित बिजली का देश के किसी भी कोने से महाराष्ट्र में आयात कर सकता है.
यहां पर ये ध्यान देने वाली बात ये है कि चूंकि आगामी दिनों में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में मध्य प्रदेश की कोयला बेल्ट और छत्तीसगढ़ में अडानी पावर की 1,600 मेगावाट की कम से कम तीन अलग–अलग विद्युत परियोजनाएं आने वाली हैं इसलिए महाराष्ट्र सरकार के टेंडर में बिजली उत्पादकों के लिए जो शर्तें रखी गई थीं, वो शर्तें अडानी समूह की विद्युत के क्षेत्र में भविष्य की जो योजनाएं हैं ठीक उसके अनुरूप थी.
मीडिया की खबरों के अनुसार अडानी समूह, जेएसडब्ल्यू एनर्जी और टोरेंट पावर समेत कुल चार कंपनियों ने महाराष्ट्र में बिजली उत्पादन का ठेका लेने के लिए नीलामी प्रक्रिया में बोली लगाई थी और अंत मे 15 सितंबर 2024 को ये ठेका अडानी समूह को दे दिया गया.
महाराष्ट्र के लिए बिजली उत्पादित करने का ठेका मिलने के बाद एक प्रेस विज्ञप्ति में अडानी समूह ने कहा कि वो सौर आधारित बिजली का इंतजाम गुजरात के कच्छ में स्थित अपने रिन्यूएबल एनर्जी पार्क से करेगा और वहीं कोयला आधारित बिजली की खपत अडानी पावर के 1,600 मेगावाट के अल्ट्रा– सुपरक्रिटिकल थर्मल ऊर्जा प्रोजेक्ट से पूरी की जाएगी.
राजस्थान भी चला महाराष्ट्र के रास्ते पर
महाराष्ट्र में बिजली उत्पादन के ठेके के लिए टेंडर निकलने के दो हफ्ते बाद 28 मार्च 2024 को अडानी पावर ने राजस्थान के कवाई गांव में स्थित अपने कोयला आधारित विद्युत संयंत्र का विस्तार करने के लिए अर्जी दाखिल कर दी.
वर्तमान में अडानी समूह की राजस्थान स्थित विद्युत संयंत्र में 660 मेगावाट की क्षमता वाली दो इकाइयां हैं जिनकी कुल क्षमता 1,320 मेगावाट है. इन इकाइयों से अडानी समूह राजस्थान सरकार की ‘राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड‘ नामक कंपनी को बिजली प्रदान करता है. अब अडानी समूह राजस्थान में प्रति इकाई 800 मेगावाट की क्षमता वाली चार अन्य इकाइयों की स्थापना करके अपनी क्षमता को लगभग दोगुना करते हुए 3,200 मेगावाट तक पहुंचाना चाहता था.
अडानी समूह के द्वारा अपने बिजली संयंत्रों की क्षमता में विस्तार करने के लिए पर्यावरणीय मंजूरी लेने संबंधी अर्जी दायर करने के लगभग एक महीने के बाद राजस्थान सरकार की विद्युत वितरक कंपनी ‘राजस्थान ऊर्जा विकास एंड सर्विसेज लिमिटेड‘ ने एक लंबे समय तक किसी बिजली प्रदाता से बिजली खरीदने के लिए बिजली प्रदाताओं को इसका ठेका देने के उद्देश्य से टेंडर निकाल दिया.
राजस्थान सरकार ने टेंडर में यह कहा गया कि सरकार की विद्युत वितरक कंपनी को 3,200 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है. जिस मात्रा में राजस्थान सरकार बिजली की मांग कर रही थी वो अडानी समूह के विद्युत संयंत्रों की क्षमता में प्रस्तावित विस्तार के बराबर थी.
ठीक महाराष्ट्र की विद्युत वितरक संस्था की तरह राजस्थान की विद्युत वितरक संस्था–राजस्थान ऊर्जा विकास ने भी बिजली उत्पादन का ठेका लेने की इच्छुक ठेकेदार संस्थाओं के सामने यह अनिवार्य शर्त रख दी कि बिजली प्रदाता को कोयले के साथ–साथ सौर विधा से भी बिजली का उत्पादन करना पड़ेगा.
राजस्थान में ठेका प्राप्त करने वाली संस्था के सामने 8,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन सौर ऊर्जा से और 3,200 मेगावाट बिजली का उत्पादन कोयला आधारित थर्मल ऊर्जा से करने की शर्त थी.
महाराष्ट्र के ठेके की तुलना में राजस्थान के ठेके में अंतर मात्र इतना था कि जहां महाराष्ट्र में बिजली उत्पादन करने का ठेका प्राप्त करने वाली संस्था को ये छूट थी कि वो कोयला या सौर ऊर्जा आधारित अपने विद्युत संयंत्र को महाराष्ट्र के बाहर भी स्थापित कर सकती थी. वहीं राजस्थान में ठेकेदार संस्था को बिजली उत्पादन के लिए अपने संयंत्र की स्थापना कहीं राजस्थान के भीतर ही करनी थी.
राज्य के भीतर ही विद्युत संयंत्र लगाने की राजस्थान की इस नियमावली और अडानी समूह की राजस्थान में कोयला और सौर आधारित बिजली संयंत्र स्थापित करने की योजना में आश्चर्यजनक तौर पर गहरा जुड़ाव दिखता है.
इसके आगे राजस्थान ने बिजली उत्पादन का ठेका प्राप्त करने के कायदे–कानूनों को और भी कड़ा बनाते हुए केवल उन आवेदकों को सौर ऊर्जा आधारित बिजली संयंत्र स्थापित करने की अनुमति दी जो आवेदक इस प्रकार का एक नया संयंत्र लगाना चाहते थे और इसके अतिरिक्त सरकार ने उन आवेदकों के आवेदन को खारिज कर दिया जो आवेदक अपने पहले से स्थापित सौर आधारित विद्युत संयंत्रों की क्षमता को बढ़ाने की अर्जी लेकर आए थे.
और अंत में अडानी समूह ने राजस्थान सरकार के साथ एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके अनुसार अडानी समूह को राजस्थान के सीमा क्षेत्र के भीतर 10,000 मेगावाट की क्षमता वाले के सोलर पार्क का निर्माण करना है.
नई ठेका नीति आपसी प्रतिस्पर्धा के लिए घातक है
ऊर्जा के क्षेत्र पर पैनी निगाह रखने वाले विशेषज्ञ, राजस्थान और महाराष्ट्र में बिजली उत्पादन के ठेकों को लेकर अपनाई गई नई नीति को लेकर खुश नहीं हैं. ऊर्जा क्षेत्र के ‘प्रयास’ नाम के एक विशेषज्ञ समूह के शोधार्थियों ने इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखते हुए महाराष्ट्र और राजस्थान के बिजली उत्पादन से जुड़े ठेकों को देने की प्रक्रिया में ठेका लेने के इच्छुक ठेकेदारों की आपसी प्रतिस्पर्धा को कम किए जाने पर बेहद आलोचनात्मक टिप्पणी की है.
प्रयास समूह के शोधार्थी लिखते हैं कि विभिन्न अन्य कारणों के साथ–साथ बिजली बनाने की बढ़ती हुई क्षमताओं, स्थापित बिजली के व्यापार से जल्द से जल्द मुनाफा कमाने के उद्देश्य के कारण बिजली के घटते दामों और बिजली के व्यापार के लिए कम निवेश करने की आवश्यकता के कारण रिन्यूएबल ऊर्जा के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए बाधाएं बेहद कम हो गई हैं और वही आजकल परंपरागत तरीके से बिजली बनाने के लिए बड़ी संस्थाओं के साथ–साथ छोटी संस्थाओं को भी प्रोत्साहित किया जाता है.
वास्तव में पिछले नौ वर्षों मे हुआ ये है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार ने देश में लगातार सौर ऊर्जा आधारित बिजली के उत्पादन को प्रोत्साहित किया है जिसके परिणामस्वरूप देश में सौर ऊर्जा आधारित पद्धति से बिजली का उत्पादन करने वाली संस्थाओं की संख्या में खासा बढ़ोत्तरी हुई है. इसके अतिरिक्त तमाम तकनीकी सुधारों के कारण भी सौर ऊर्जा के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बेहद कम हो जाने से सौर पद्धति से बनाई गई बिजली के दाम देश में काफी कम हो गए है.
यही कारण है कि विशेषज्ञों के अनुसार यदि भविष्य में सौर ऊर्जा से उत्पादित हुई बिजली के दामों के और भी ज्यादा गिरने की संभावना है या फिर कुछ दशकों के भीतर बिजली उत्पादन के लिए बिल्कुल नई तकनीकों के विकसित होने की संभावना है तो राज्यों को आगामी 25 साल तक ऊंची दरों पर बिजली खरीदने के किसी भी सौदे में फंसने से बचना चाहिए. सौर ऊर्जा की इन्हीं सकारात्मक संभावनाओं के मद्देनजर विशेषज्ञ राज्यों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं कि वो सौर ऊर्जा के रास्ते में अड़ंगा न लगाए और न ही सौर ऊर्जा आधारित बिजली की योजनाओं को कोयला आधारित बिजली उत्पादन की प्रक्रिया के साथ बांधने की कोशिश करें.
जिस प्रकार से महाराष्ट्र और राजस्थान के ठेकों में बिजली उत्पादन करने की आपसी प्रतिस्पर्धा को मात्र कोयले के साथ–साथ सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादित करने वाली संस्थाओं तक सीमित कर दिया गया उसको देखकर प्रयास समूह के शोधार्थियों कहते हैं कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में जो सकारात्मक सिलसिला चला आ रहा था, हाल के घटनाक्रम के कारण उसको चोट पहुंची है.
शोधार्थी आगे कहते हैं कि राजस्थान और महाराष्ट्र ने ठेका देने की जिस नीति को अपनाया उस नीति का दुष्परिणाम ये हुआ कि बिजली उत्पादन का ठेका लेने के लिए इच्छुक बहुत से दावेदारों को ठेका प्रक्रिया से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
डॉक्टर प्रियांशु गुप्ता द रिपोर्टर्स कलेक्टिव से कहते है कि वर्तमान में हम ऊर्जा उत्पादन और उपभोग के संक्रमण काल से गुजर रहे है इसलिए आदर्श रूप से सरकारों को एक लंबे समय के लिए सौर ऊर्जा पर गौर करना चाहिए और समय–समय पर ऊर्जा की कमी को पूरा करने के लिए कोयला आधारित ऊर्जा का आश्रय लेना चाहिए.’
डॉक्टर गुप्ता अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते है कि जिस तरीके से महाराष्ट्र और राजस्थान के बिजली उत्पादन संबंधी ठेकों को आकार दिया गया है उससे ऊर्जा संक्रमण के इस दौर में उत्पन्न हुए जोखिमों का भार सरकारी कंपनियों को उठाना पड़ेगा, वहीं निजी क्षेत्र की कंपनियां जमकर मुनाफा उठाएगी. जबकि होना ये चाहिए कि मुनाफा सरकारी कंपनियों के हाथ में आए और जोखिम निजी क्षेत्र की संस्थाओं को उठाना पड़े.
महाराष्ट्र में इस साल के आखिरी में विधानसभा के चुनाव है और चुनावों के पहले बिजली उत्पादन से संबंधित विवादास्पद ठेके को अडानी को आवंटित किए जाने को लेकर विपक्ष लगातार भाजपा द्वारा संचालित महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है.
(यह रिपोर्ट मूल रूप से द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा प्रकाशित की गई थी.)