‘ज़मानत मिलने के बावजूद तिहाड़ में बंद हैं 253 क़ैदी’

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश, क़ानूनी प्रावधानों और विधि आयोग की सिफ़ारिशों के बाद भी ज़मानत पा चुके क़ैदी जेल में हैं, यह दुखद है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश, क़ानूनी प्रावधानों और विधि आयोग की सिफ़ारिशों के बाद भी ज़मानत पा चुके क़ैदी जेल में हैं, यह दुखद है.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट का कहना है कि वह जमानत मिलने के बावजूद गरीबी की वजह से मुचलका या जमानत राशि नहीं भर पाने के कारण तिहाड़ जेल में बंद विचाराधीन कैदियों को देखकर बेहद दुखी है. अदालत ने ऐसे बंदियों को राहत पहुंचाने के लक्ष्य से निचली अदालतों के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न फैसलों में कहा है कि गंभीर अपराध करने वाले कैदियों के मौलिक अधिकारों को भी किसी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

पीठ ने कहा, ‘हमें इस बात का बहुत दुख है कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट रूप से तय कानून और वैधानिक प्रावधानों तथा विधि आयोग की सिफारिशों के बावजूद 253 विचाराधीन कैदी जमानत मिलने के बावजूद तिहाड़ जेल में बंद हैं और इसी वजह से यह आदेश देना पड़ा है.’

अदालत ने कहा कि विधि आयोग ने भी जमानत शर्तों को पूरा नहीं कर पाने के कारण जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों से हो सकने वाले खतरों का आकलन करने को कहा है, ताकि उन्हें रिहा किया जा सके.

वकील अजय वर्मा की ओर से अदालत में दायर जनहित याचिका में जमानत के बावजूद तिहाड़ जेल में सैकड़ों बंदियों के निरुद्ध होने की बात कहे जाने के बाद अदालत ने उक्त निर्देश दिए हैं.

अदालत ने निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि वह ऐसे मामलों में ज्यादा संवेदनशील और सतर्क रहें कि इन विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा क्यों नहीं किया जा सकता है.

गलत तरीके से जेल में डाले गए पीड़ितों को मुआवजे के बारे में कानून पर विचार करेगा विधि आयोग

क्या गलत तरीके से जेल में डाल दिए गए लोगों को मुआवजा दिया जाना चाहिए? क्या इस संबंध में भारत में कोई कानून होना चाहिए? दिल्ली हाईकोर्ट की पहल के बाद विधि आयोग इस मुद्दे पर विचार करेगा.

नवंबर में अपने आदेश में हाईकोर्ट ने गलत तरीके से जेल में डालने और दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के पीड़ितों के लिए कानूनी उपाय नहीं होने पर चिंता जताई थी.

राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार और क्रिमिनोलॉजी तथा क्रिमिनल जस्टिस के प्रोफेसर जीएस वाजपेयी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा था कि अमेरिका में 32 राज्यों ने इस तरह के कानून बनाए हैं, जो गलत तरीके से जेल में डाले गए लोगों के लिए आर्थिक तथा अन्य किस्म के मुआवजे की व्यवस्था देते हैं.

ब्रिटेन और न्यूजीलैंड में भी इस तरह की विशेष योजनाएं हैं. इस मामले में वाजपेयी को न्यायमित्र बनाया गया था.

भारत में इस संबंध में कोई विशेष कानून नहीं है. अदालत ने कहा कि ऐसे कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि बुनियादी अधिकारों के उल्लंघन के लिए संवैधानिक अदालतें मुआवजे देने का निर्देश दे सकती हैं. अदालत ने विधि आयोग से कहा कि वह सरकार को इस संबंध में कानूनी रूपरेखा का सुझाव दे.

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