नई दिल्ली: बुधवार (2 अक्टूबर) की शाम को भारी सुरक्षा बलों की तैनाती के बीच दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिए गए जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और जलवायु मार्च के सदस्यों को रिहा कर दिया और उन्हें उनकी मांग के अनुसार राजघाट ले आई, ताकि वे महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दे सकें, जिनकी मंगलवार को जयंती थी.
रिपोर्ट के अनुसार, राजघाट पर वांगचुक ने मीडिया को बताया कि उन्होंने हिमालय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संवैधानिक सुरक्षा उपाय प्रदान करने की लद्दाख की मांगों के बारे में केंद्र सरकार को एक ज्ञापन सौंपा है. गृह मंत्रालय ने उन्हें गारंटी दी है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित नेताओं से मिल सकेंगे. इसलिए वे इस गारंटी पर अपना उपवास तोड़ रहे हैं.
वांगचुक और लगभग 120 अन्य लोगों को सोमवार रात (1 अक्टूबर) को हिरासत में लिया गया था, जब वे लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग करते हुए राजधानी की ओर मार्च कर रहे थे. अपनी हिरासत के विरोध में लगभग 48 घंटे तक हिरासत में रहते हुए अनिश्चितकालीन उपवास पर थे.
इससे पहले 2 अक्टूबर की दोपहर को पीपुल फॉर हिमालय और यूथ फॉर हिमालय द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस में पर्वत श्रृंखला के विभिन्न संगठनों के समूह, दल के सदस्यों, जिनमें से एक को हिरासत में लिया गया था, ने दोहराया कि उनकी हिरासत अब ‘अवैध’ है, क्योंकि उन्हें हिरासत में लिए जाने के 24 घंटे बीत चुके हैं और उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया है.
हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड सहित अन्य हिमालयी राज्यों के कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों ने लद्दाखियों की मांगों और जलवायु मार्च के साथ अपनी एकजुटता दोहराते हुए कहा कि वे जो मुद्दे उठा रहे हैं, वे सभी हिमालयी राज्यों और पर्वत श्रृंखला में नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित हैं.
इस बीच, दिल्ली पुलिस ने 2 अक्टूबर को दोपहर के समय नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट (एनएपीएम) के करीब दस सदस्यों को हिरासत में लिया, जिनमें सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता मेधा पाटकर और प्रफुल्ल सामंतरा भी शामिल थे, जो मौन विरोध में गुलाब वाटिका में बैठे थे और हिरासत में लिए गए जलवायु मार्च करने वालों के साथ एकजुटता दिखा रहे थे.
बाद में उन्हें राजघाट ले जाया गया और फिर दोपहर बाद रिहा कर दिया गया.
2 अक्टूबर को रात करीब 10 बजे दिल्ली पुलिस वांगचुक और जलवायु मार्च के सदस्यों को राजघाट ले आई, हालांकि उनकी तय योजना के अनुसार देरी हुई.
राजघाट की यात्रा वांगचुक के नेतृत्व में लेह से दिल्ली तक 1,000 किलोमीटर लंबे जलवायु मार्च में निर्धारित पड़ावों में से एक थी, जिसमें 80 वर्षीय बुजुर्गों सहित करीब 150 लोग भाग ले रहे हैं.
उनकी पहले की योजना 1 अक्टूबर को दिल्ली में शांतिपूर्ण तरीके से मार्च निकालने और 2 अक्टूबर को राजघाट पहुंचने की थी, जिसके बाद उन्होंने केंद्र सरकार से मिलकर अपनी मांगें रखने की योजना बनाई थी, जिसमें लद्दाख में छठी अनुसूची लागू करना भी शामिल है.
हालांकि, दिल्ली पुलिस ने 30 सितंबर की रात को छह दिन की निषेधाज्ञा लागू कर दी थी, जिसमें पांच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और साथ ही अन्य शर्तें भी लगाई गई थीं.
इसके तुरंत बाद पुलिस ने सिंघू सीमा पर वांगचुक और कई अन्य लोगों को हिरासत में ले लिया और उन्हें दिल्ली भर के कई पुलिस स्टेशनों और स्थानों पर ले गई.
जलवायु मार्च करने वालों ने विरोध में अनिश्चितकालीन उपवास शुरू कर दिया और मांग की कि उन्हें 2 अक्टूबर को उनके तय कार्यक्रम के अनुसार राजघाट ले जाया जाए.
राजघाट पर 2 अक्टूबर की रात को मीडिया को संबोधित करते हुए वांगचुक ने कहा कि दिल्ली पहुंचने पर उन्हें कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया था. हालांकि, जो कुछ भी होता है, अच्छे के लिए होता है.
वांगचुक ने कहा कि यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि गांधी ने पर्यावरण के बारे में क्या कहा था और हमें ‘सरल जीवन जीना चाहिए ताकि दूसरे भी सरलता से जी सकें.’ उन्होंने कहा कि आप चाहे जिस भी शहर में रहें, आपको यह याद रखना चाहिए कि बिजली और अन्य संसाधनों का अत्यधिक उपयोग लद्दाख और हिमालय जैसे स्थानों पर पर्यावरण को प्रभावित करता है.
वांगचुक ने कहा, ‘जैसा कि बापू ने कहा था, हर किसी की ज़रूरत के लिए पर्याप्त है, लेकिन हर किसी के लालच के लिए पर्याप्त नहीं है.’ उन्होंने लोगों को अधिक टिकाऊ और सरल जीवन शैली बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.
वांगचुक ने मीडिया को बताया कि उन्होंने हिमालय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संवैधानिक सुरक्षा उपाय प्रदान करने की लद्दाख की मांगों के बारे में केंद्र सरकार को एक ज्ञापन सौंपा है.
उन्होंने कहा, ‘लद्दाख के मामले में यह छठी अनुसूची है जो सुनिश्चित करेगी कि स्थानीय समुदायों की शासन में बड़ी हिस्सेदारी होगी.’
उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय ने उन्हें गारंटी दी है कि वे इस बारे में चर्चा करने के लिए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और गृह मंत्री सहित भारत के शीर्ष नेताओं से मिल सकेंगे.
वांगचुक ने कहा, ‘हमने इस गारंटी पर अपना उपवास खत्म कर दिया है और राजघाट तक हमारी पदयात्रा भी अब समाप्त हो गई है.’
गौरतलब है कि ‘दिल्ली चलो पदयात्रा’ का आयोजन लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) द्वारा किया गया था, जो करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के साथ मिलकर पिछले चार वर्षों से राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची के विस्तार, लद्दाख के लिए लोक सेवा आयोग के साथ शीघ्र भर्ती प्रक्रिया और लेह तथा करगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीटों की मांग को लेकर संयुक्त रूप से आंदोलन चला रहा है.
इससे पहले 2 अक्टूबर को यूथ फॉर हिमालय प्रेस कॉन्फ्रेंस में केडीए के सज्जाद करगिली ने कहा ने कहा कि क्लाइमेट मार्च की चार मांगें बहुत स्पष्ट हैं: लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए ताकि उसकी आवाज सुनी जा सके, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार लद्दाख में छठी अनुसूची को लागू करे जैसा कि भाजपा ने लद्दाख से वादा किया था, स्थानीय समुदाय के लोगों को सरकारी नौकरी दी जाए और वे राजपत्रित पदों के लिए पात्र हों और कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करे कि व्यापक चरागाह और अन्य भूमि जो स्थानीय समुदायों द्वारा उपयोग की जाती है और आम भूमि है – जिसमें ग्लेशियर वाले क्षेत्र शामिल हैं जो नदियों और बदले में लद्दाखियों की फसलों को पोषण देते हैं – को सरकारी भूमि के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए जैसा कि अब किया जा रहा है.
करगिली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडियाकर्मियों से कहा, ‘ये मांगें असंवैधानिक नहीं हैं … बल्कि हमारे अधिकारों को छीन लिया गया है और इसके बजाय लेफ्टिनेंट गवर्नर को शक्तियां दे दी गई हैं. हमें केंद्र सरकार या लेफ्टिनेंट गवर्नर के खिलाफ कोई व्यक्तिगत गुस्सा नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘हम अपनी लेह-करगिल भावनाओं, अपनी बौद्ध-मुस्लिम भावनाओं, अपनी सभी क्षेत्रीय भावनाओं और भाषाई भावनाओं से बाहर निकल आए हैं … यह कहने के लिए कि हमारा अस्तित्व ही खतरे में है.’
उन्होंने कहा कि पूरे हिमालयी क्षेत्र में मुद्दे – चाहे वह जम्मू, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख या सिक्किम हो – और इन सभी क्षेत्रों की शिकायतें सामूहिक और समान हैं.
नुब्रा घाटी के एक लद्दाखी त्सेरिंग डोलमा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हिरासत में लिए गए लोग लद्दाखियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं और छठी अनुसूची का कार्यान्वयन – जो अनिवार्य रूप से एक क्षेत्र को आदिवासी क्षेत्र के रूप में चिह्नित करता है – लद्दाख के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसकी लगभग 97% आबादी आदिवासी है. इसलिए छठी अनुसूची का कार्यान्वयन लद्दाख के पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और अगर ऐसा नहीं किया गया, तो जिस दर से जलवायु परिवर्तन तेज हो रहा है, उसे देखते हुए सभी लद्दाखी जल्द ही जलवायु शरणार्थी बन जाएंगे.
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