भिवानी: ‘अंतरराष्ट्रीय महिला पहलवान गीता, बबीता, विनेश, रितू… खिलाड़ियों के गांव बलाली में आपका स्वागत है.’ यह गांव के प्रवेश द्वार पर लिखे शब्द मात्र नहीं हैं, बल्कि खेल और खिलाड़ियों को लेकर बलाली में जो सम्मान का भाव है, उसका प्रतीक भी हैं.
इस गांव के एक ही परिवार ने कई अंतरराष्ट्रीय पहलवान दिए हैं. अन्य परिवारों से भी लगातार खिलाड़ी निकल रहे हैं.
हाल ही में पहलवानों के विरोध प्रदर्शन और पेरिस ओलंपिक में अपने प्रदर्शन के चलते इसी गांव की विनेश फोगाट सुर्खियों में रही हैं. अब वह राजनीति में प्रवेश कर गई हैं और हरियाणा के जुलाना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी हैं.
बलाली गांव बाढड़ा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है, इसलिए लगातार सवाल उठता रहा है कि गांव के सबसे चमकते सितारे ने जब खेल से राजनीति में प्रवेश करने की राह चुनी तो बाढरा विधानसभा को क्यों अपना चुनावी मैदान नहीं बनाया?
जिस गांव की मिट्टी ने उन्हें कुश्ती के शुरुआती दांव सिखाए, जिस चरखी दादरी जिले के लोगों ने ओलंपिक में मिली हालिया निराशा से उपजे उनके घावों पर उनका विजेताओं की तरह स्वागत करके मरहम लगाए, आखिर विनेश ने उस क्षेत्र से अपनों के बीच चुनाव क्यों नहीं लड़ा?
या फिर चुनावी जंग के लिए उन्हें अपना ससुराल (जींद ज़िले की जुलाना विधानसभा सीट) अधिक सुरक्षित लगा, जहां वह कभी भी लंबे समय तक नहीं रहीं?
जुलाना में विनेश के प्रचार अभियान में शामिल होकर लौटे बलाली के युवक बलजीत ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘हम तो चाहते थे कि विनेश हमारे बाढड़ा से चुनाव लड़े, लेकिन यह भी ठीक ही है कि वह अपने ससुराल से लड़ रही हैं. हम उनके साथ हैं.’
हालांकि, बलाली निवासी राहुल इसके पीछे का कारण भी बताते हैं. वह कहते हैं, ‘आप जहां रहते हैं, वहां लोग आपको स्टार नहीं समझते. बबीता (फोगाट) ने चरखी-दादरी (अपने गृह जिले की एक अन्य विधानसभा सीट) से चुनाव लड़ा और हार गईं. वह कहीं और से चुनाव लड़तीं तो शायद नहीं हारतीं. आप देश-दुनिया के लिए स्टार हो सकते हो, लेकिन अपने घर पर उन लोगों के बीच नहीं जो 20-30 साल से आपको जानते हों. इसलिए विनेश द्वारा जुलाना का चयन सही है.’
बाढड़ा विधानसभा क्षेत्र से पिछली बार जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) की नैना चौटाला निर्वाचित हुई थीं. नैना जेजेपी प्रमुख दुष्यंत चौटाला की मां और ओम प्रकाश चौटाला की बहू हैं. ये सभी देश के उपमुख्यमंत्री रहे और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल के वंशज हैं.
इस बार जेजेपी के प्रत्याशी लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) यशवीर सिंह श्योराण हैं, जबकि कांग्रेस ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के दामाद सोमवीर सिंह को उम्मीदवार बनाया है. भाजपा उम्मीदवार उमेद पातुवास हैं.
स्थानीय लोग बताते हैं कि इस विधानसभा में मुकाबला अक्सर बंसीलाल बनाम देवीलाल होता आया है और इनके ही परिवार के सदस्य चुनाव लड़ते रहे हैं. इसलिए विनेश के लिए यहां संभावना तलाशना जोखिमपूर्ण हो सकता था.
गौरतलब है कि पिछले चार चुनावों से कांग्रेस ने इस विधानसभा से बंसीलाल के परिवार पर ही भरोसा जताया है. स्थानीय मतदाताओं ने विनेश के बाढड़ा से चुनाव न लड़ने की एक प्रमुख वजह यह भी बताते हैं.
‘विनेश के राजनीति में जाने पर हंगामा नहीं होना चाहिए’
पहलवानों के प्रदर्शन की अगुवाई करने वालीं विनेश के राजनीति में प्रवेश पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. इस संबंध में, विनेश के ही घर के नजदीक रहने वाले एक युवक कहते हैं, ‘फोगाट परिवार अभी-अभी राजनीति में नहीं आया है. खेलों में पहचान बनाने से पहले से ही परिवार राजनीति से जुड़ा हुआ था. महावीर फोगाट की पत्नी दया कौर और भाई सज्जन सिंह दो-दो बार गांव के सरपंच रहे.’
उन्होंने कहा, ‘कुछ साल पहले महावीर फोगाट जेजेपी की खेल शाखा के अध्यक्ष बनाए थे और पार्टी की कोर कमेटी के सदस्य भी थे. इसलिए विनेश की राजनीतिक एंट्री पर हंगामा नहीं होना चाहिए.’
विनेश कांग्रेस में ही क्यों गईं? इस सवाल के जवाब में विनेश के परिवार के एक सदस्य ने कहा, ‘बृजभूषण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान दीपेंद्र हुड्डा, प्रियंका गांधी और कांग्रेस लगातार पहलवानों के साथ खड़े रहे. भाजपा ने कोई सुनवाई नहीं की. जो साथ देगा, उसी के साथ जाएंगे न.’
उन्होंने सवाल दागा, ‘भाजपा ने पहलवानों के साथ जो किया, क्या उसके बाद भी विनेश उनके साथ जाती?’ उनका आशय भाजपा द्वारा पहलवानों के प्रदर्शन की अनदेखी और जंतर-मंतर पर पुलिस द्वारा उन्हें घसीटे जाने से था.
उनके आगे के शब्द थे, ‘अगर भाजपा सरकार में खिलाड़ियों की सुनवाई हो जाती तो राजनीति में उतरने की ज़रूरत ही नहीं थी. इसलिए, बड़े-बुजुर्गों ने सलाह दी कि बेटी जो तेरे साथ हुआ, वह भविष्य में किसी और के साथ न हो इसके लिए मैदान में उतरो.’
परिवार के मुताबिक़, ओलंपिक फाइनल में पहुंचने तक विनेश की राजनीति में जाने की कोई योजना नहीं थी.
नाम न छापने की शर्त पर उनके पारिवारिक सदस्य ने द वायर से कहा, ‘फाइनल में पहुंचने के बाद यही बात हो रही थी कि अगला ओलंपिक भी खेलना है, लेकिन मेडल हाथ में आते-आते रह गया. बिना पदक के लौटने के बाद राजनीति में जाने का ख्याल मन में आया.’
विनेश के राजनीति में जाने के फैसले पर उठते सवालों पर एक ग्रामीण कहते हैं, ‘संन्यास के बाद खिलाड़ी जो मर्जी चाहे करे. पहलवान योगेश्वर दत्त, संदीप सिंह (भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान) और बबीता फोगाट भी तो भाजपा में गए थे….’