विधानसभा उपचुनाव से पहले ठाकुरवाद के आरोपों से घिरी योगी आदित्यनाथ सरकार

उत्तर प्रदेश विधानसभा के उपचुनावों के दौरान भाजपा को उस मुद्दे पर चुनौती मिल रही है, जहां वह ख़ुद को अजेय समझती थी- हिंदू एकता.

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योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीटों पर चुनाव की घोषणा के साथ ही हलचल शुरू हो गई है. करहल से पूर्व विधायक और समाजवादी पार्टी (सपा) सुप्रीमो अखिलेश यादव और मिल्कीपुर (अयोध्या) से अवधेश प्रसाद समेत सपा के पांच नेताओं ने लोकसभा चुनाव जीतकर अपनी विधानसभा सीटें छोड़ दीं, जबकि सपा के इरफ़ान सोलंकी ने सीसामऊ की सीट एक पुराने केस में सज़ा होने के कारण गंवा दी. हालांकि, मिल्कीपुर पर फिलहाल उपचुनाव नहीं हो रहे हैं.

इसके अलावा, राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के नेता चंदन चौहान (मीरपुर) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तीन नेता, जिनमें फूलपुर से प्रवीण सिंह और गाज़ियाबाद से अतुल गर्ग शामिल हैं, ने भी लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अपनी सीटें छोड़ दीं. यह उपचुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए व्यक्तिगत रूप से बहुत बड़ी चुनौती बन गया है.

गौर करें, आदित्यनाथ पहले से ही बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. 4 जून के बाद देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया है. इसका एक बड़ा असर उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी दिख रहा है, जहां भाजपा को इस चुनाव में सबसे बड़ी चोट लगी थी. चुनाव के बाद घटनाक्रम इस तरह बदला है कि भाजपा को उस मसले पर चुनौती मिल रही है, जहां वह खुद को अजेय समझती थी- हिंदू एकता.

पिछले महीनों में भाजपा पर ठाकुरवाद के आरोप गहराए हैं. भाजपा अन्य दलों की जातिगत राजनीति के लिए आलोचना करती आई है, अब उसे खुद ठाकुरवाद का आरोप झेलना पड़ रहा है.

इसका एक उदाहरण पिछले महीने देखने को मिला जब दैनिक भास्कर की पत्रकार ममता त्रिपाठी और टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय पर लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक एफआईआर हुई क्योंकि उन्होंने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ़ कथित रूप से भ्रामक खबर चलाई थी.

इस एफआईआर में आरोप था कि उनके द्वारा ‘एक जाति विशेष [ठाकुर] के नाम पर भ्रामक, झूठा, तथ्यहीन/साक्ष्यहीन पोस्ट किया गया है, जिसमें अंकित किए गए लोगों में कई लोग अन्य जातियों के हैं लेकिन उनको भी एक विशेष जाति के नाम का घोषित करते हुए पोस्ट किया गया है जो कि झूठा है.’

हालांकि एक पत्रकार ने सफ़ाई देते हुए लिखा कि उनकी पोस्ट में यह स्पष्ट किया गया था कि सिंह से उनका अर्थ केवल राजपूत या ठाकुर नहीं है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की कार्यवाही पर रोक लगा दी और कहा है कि ‘सिर्फ़ इसलिए कि किसी पत्रकार या लेखक का काम सरकार की आलोचना जैसा प्रतीत हो, उस पर आपराधिक केस नहीं लगाए जा सकते.’

गोरखपुर के पत्रकार मनोज सिंह ने योगी आदित्यनाथ की राजनीति को करीब से देखा है. उनका मानना है कि ठाकुरवाद का आरोप और विपक्ष की नई सोशल इंजीनियरिंग योगी के लिए बड़ी समस्या बन रहा है.

उन्होंने द वायर हिंदी को बताया कि, ‘चाहे हिंदुत्व की राजनीति हो या सामाजिक न्याय की, यूपी में कोई भी राजनीति, जाति से अछूती नहीं है.’

मनोज ने कहा कि जो समीकरण और गणित भाजपा को पहले लाभ दे रहे थे, वे अब उतने उपयोगी नहीं रहे हैं. वहीं, सपा ने पीडीए से जो नया जातीय गठबंधन बनाया है, वह काम करता दिख रहा है.

सपा ठाकुरों के बरअक्स ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश भी कर रही है. सपा का जनेश्वर मिश्र का जन्मदिन धूमधाम से मनाना हो, परशुराम जयंती मनाना हो, या 2022 में पूर्वांचल की जिम्मेदारी माताप्रसाद पांडे को सौंपना, या अब पांडे को यूपी में नेता विपक्ष बनाना, सपा ब्राह्मणों को कथित ठाकुरवाद से मुक्त कराने की बात कर रही है.

उल्लेखनीय है कि 1 अगस्त 2024 को गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा के लिए प्रस्तावित चबूतरे के तोड़े जाने के मुद्दे पर भी सपा ने इसे ब्राह्मण बनाम योगी (ठाकुर) का मुद्दा बनाया था. यही 2022 विधानसभा चुनाव से पहले दादरी में राजा मिहिर भोज की मूर्ति पर लगाए प्लाक पर हुए बवाल में हुआ, जिन्हें योगी विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ़ एक हिंदुत्व के प्रतीक की तरह प्रस्तुत करना चाहते थे. मगर जाति की राजनीति हिंदुत्व पर भारी पड़ी और ये गुर्जर बनाम राजपूत (ठाकुर) का मुद्दा बन गया.

अखिलेश ने गुर्जर समाज का समर्थन किया और कहा कि ये तो उन्हें इतिहास में पढ़ाया गया था कि राजा मिहिर भोज गुर्जर हैं.

द वायर हिंदी ने सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमीक जमई से इस राजनीति को समझने की कोशिश की. खुशी दुबे केस और कानपुर में अतिक्रमण हटाने के दौरान एक झोपड़ी में जलकर मर गई एक ब्राह्मण मां और बेटी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, ‘यादव और मुसलमान तो पीड़ित था ही लेकिन अब ब्राह्मण भी अत्याचार झेल रहा है.’

उन्होंने आगे कहा कि यह समाजवादी पार्टी द्वारा उठाया गया मुद्दा नहीं है, बल्कि योगी आदित्यनाथ और दिल्ली के बीच के तनाव का नतीजा है. ‘योगी खुद को उत्तर भारत के राजपूतों के नेता के रूप में दिखाकर केंद्र पर दबाव बनाना चाहते हैं.’

उनका आरोप है ठाकुरवाद इसलिए बढ़ा है क्योंकि योगी प्रदेश की कमान पूरी तरह अपने हाथों में चाहते हैं. ‘सपा केवल कोशिश कर रही है कि दो ट्रेनों (दिल्ली और यूपी) की टक्कर में प्रदेश की जनता को नुकसान न हो.’

उधर, भाजपा नेता राकेश त्रिपाठी का कहना है कि सपा यह आरोप इसलिए लगा रही क्योंकि वे खुद एक जाति को अपने कार्यकाल में लाभ देते थे. ‘सपा का पूरा शोर केवल ‘सिंह’ सरनेम पर है, लेकिन हर ‘सिंह’ राजपूत नहीं होता. ‘कभी ब्राह्मणों, कभी दलितों, तो कभी मुसलमानों के नाम पर सपा यह आरोप लगाती आई है लेकिन इनमें कोई तथ्य नहीं है. उन्होंने 80-20 वाले बयान पर भी यही कहा था. प्रदेश की सरकार जाति या मजहब नहीं देखती है,’ उन्होंने कहा.

ठाकुर बनाम अन्य के इस प्रश्न पर जब एक इंटरव्यू- जिसकी

क्लिप कई बार सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती है, में योगी आदित्यनाथ से पूछा गया कि क्या उन्हें दुख है कि उन पर जातिवाद का आरोप लगता है, तो उन्होंने कहा, ‘नहीं. राजपूत परिवार में पैदा होना अपराध नहीं है. इस जाति में कई बार भगवान ने भी जन्म लिया. मुझे राजपूत होने पर गर्व है.’

एक ओर आदित्यनाथ जाति के नाम पर न बंटने की चेतावनी दे रहे हैं, कह रहे हैं कि ‘बंटोगे तो कटोगे, एक रहोगे तो नेक रहोगे’, दूसरी ओर वे ख़ुद यादव और मुसलमान समुदाय को सपा और अपराध से जोड़कर उस पर टिप्पणी करते रहे हैं.

पिछले महीने लखनऊ के गोमतीनगर में एक महिला के साथ छेड़छाड़ की वीडियो वायरल हुई. पुलिस ने इस केस में 16 आरोपियों को गिरफ्तार किया लेकिन सीएम ने सदन में केवल दो आरोपियों के नाम लिए- अरबाज *खान* और पवन *यादव*. विधानसभा में चर्चा के दौरान आदित्यनाथ ने सपा पर हमला करते हुए कहा, ‘ये हैं आपके सद्भावना वाले लोग. हम इनके लिए सद्भावना ट्रेन चलाएंगे? नहीं अब इनके लिए ‘बुलेट’ ट्रेन चलेगी. आप चिंता मत करो.’

जब पवन यादव को जमानत मिली तब अखिलेश यादव ने उससे मुलाकात कर मीडिया को बताया कि पवन पर विद्वेष के चलते कार्रवाई की गई है. यही आरोप सपा ने सुल्तानपुर में हुई लूटपाट के कथित आरोपियों- मंगेश यादव के एनकाउंटर और कई अन्य एनकाउंटर के केस में लगाया है. मंगेश केस के बाद अखिलेश ने कहा था कि ‘एसटीएफ का नाम स्पेशल ठाकुर फोर्स रखा जिसे बाद में बदलकर सरेआम ठोको फोर्स रख दिया.’

राजनीतिक शोधकर्ता आशीष रंजन मानते है कि इस राजनीति को समझने के लिए हमें पिछले चुनाव के आंकड़ों में जाना होगा.

‘2009 के बाद से सपा और कांग्रेस मिलाकर भी 40% वोट शेयर हासिल नहीं कर पाई हैं. इस लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया’ ब्लॉक और एनडीए यूपी में लगभग बराबर वोट शेयर लाए, जबकि भाजपा का अपना दल, आरएलडी, निषाद पार्टी और सुभासपा के साथ थी. इसके बावजूद एनडीए सिर्फ 0.16% आगे थी. अगर विधानसभा में कोई भी जाति भाजपा से दोबारा छिटकी तो उसे नुकसान हो सकता है,’ उनका कहना है.

योगी के ख़िलाफ़ बढ़ता असंतोष

ठाकुर बनाम अन्य की राजनीति से अखिलेश यादव भी कई वर्षों में पहली बार योगी सरकार को उन मुद्दों पर घेर पा रहे हैं जिन्हें योगी की ताकत माना जाता था. पिछले सात वर्षों में प्रदेश की कानून व्यवस्था सुधारने के नाम पर जो बुलडोजर और एनकाउंटर राज स्थापित हुआ, उसके आगे विपक्ष असहाय नज़र आता था. इसका विरोध करने पर मुख्यधारा का मीडिया विपक्ष पर ही हमलावर हो जाता था, और उस पर तुष्टिकरण का आरोप लगा देता था लेकिन पिछले तीन महीनों में यह बदलता दिख रहा है.

पार्टी के भीतर विरोध ने भी योगी आदित्यनाथ को परेशानी में डाल दिया है. सपा और अखिलेश यादव भाजपा की अंदरूनी कलह इस्तेमाल योगी को घेरने के लिए कर रहे हैं.

लोकसभा चुनाव के बाद केशव प्रसाद मौर्य और अन्य भाजपा नेताओं ने यूपी सरकार पर निशाना साधा है. ‘संगठन सरकार से बड़ा है,’ ‘अधिकारी निरंकुश हो गए हैं,’ ‘कार्यकर्ता नाराज है,’ ‘बुलडोजर से नुकसान हुआ,’ ‘मेरे नेता मोदी हैं, योगी नहीं’ जैसे कई बयान सामने आए हैं. अखिलेश केशव प्रसाद मौर्य पर कटाक्ष करते हैं, ‘100 विधायक ले आओ, मुख्यमंत्री बना देंगे.’

पहली बार सरकार को अंदर और बाहर से विरोध का सामना करना पड़ रहा है- पेपर लीक विवाद, कांवड़ यात्रा में होटलों पर नाम लिखने के फैसले पर विरोध, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध बताया, दो वर्ष से आंदोलन कर रहे 69,000 शिक्षकों की भर्ती में देरी का विरोध हो, ‘बदले की भावना’ से की गई बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की रोक और नुजुल जमीनों के फैसले पर भाजपा के भीतर से विरोध उठा है.

जैसे-जैसे चुनाव पास आ रहा है, वैसे वैसे योगी और भाजपा इस राजनीति से चौतरफा घिरते जा रहे हैं.

दूसरी तरफ, पिछले दो महीनों में प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की भरपूर कोशिश हुई है. चाहे गाजियाबाद के डासना देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहनंद का पैगंबर मोहम्मद के पुतले जलाने वाला बयान हो या फिर बहराइच की हिंसा, जिसमें एक हिंदू युवक गोपाल मिश्रा की जान चली गई और भीड़ द्वारा करोड़ों की संपत्ति जला दी गई.

उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया है. उपचुनावों के मद्देनजर स्थिति और बिगड़ सकती है. अखिलेश यादव ने इसे ‘उपचुनाव की दस्तक’ कहा है. एक ट्वीट में उन्होंने बिना नाम लिए भाजपा पर वार करते हुए लिखा, ‘चुनाव का आना और सांप्रदायिक माहौल का बिगड़ जाना, ये इत्तफ़ाक़ नहीं है. जनता सब समझ रही है. हार के डर से हिंसा का सहारा लेना किसकी पुरानी रणनीति है, सब जानते हैं.’