क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया, मोदी सरकार ने पिछले तीन सालों में 1183 अप्रासंगिक हो चुके क़ानूनों को समाप्त कर दिया है.
नई दिल्ली: लोकसभा ने मंगलवार को 245 पुराने एवं अप्रसांगिक क़ानूनों को निष्प्रभावी बनाने वाले निरसन और संशोधन विधेयक 2017 तथा निरसन और संशोधन दूसरा विधेयक 2017 को मंजूरी दे दी.
सदन में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पुराने एवं अप्रसांगिक कानून को समाप्त करने की यह जो पहल शुरू की गई है, वह स्वच्छता अभियान है. हमारी देश की आजादी के 70 वर्ष हो गए हैं लेकिन आजादी के 70 वर्ष बाद भी अंग्रेजों के ज़माने के क़ानून आज भी मौजूद हैं. ये ऐसे क़ानून हैं जो आजादी के आंदोलन को दबाने के लिए बनाए गए थे. हम उन्हें समाप्त करने की पहल कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि देश में क़ानून बनाना संसद का काम है और कौन सा क़ानून चलेगा या नहीं चलेगा… वह भी संसद को तय करना है. हम इस अधिकार को आउटसोर्स नहीं कर सकते. हमने इस बारे में सभी पक्षों के साथ व्यापक चर्चा की है.
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से दोनों विधेयकों को पारित कर दिया. निरसन और संशोधन विधेयक 2017 के तहत 104 पुराने क़ानूनों को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया है जबकि निरसन और संशोधन दूसरा विधेयक 2017 के तहत 131 पुराने एवं अप्रसांगिक क़ानूनों को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया है.
निरसन और संशोधन दूसरा विधेयक 2017 के माध्यम से 131 पुराने और अप्रचलित क़ानूनों को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया है. इनमें सरकारी मुद्रा अधिनियम, 1862, पश्चिमोत्तर प्रांत ग्राम और सड़क पुलिस अधिनियम 1873, नाट्य प्रदर्शन अधिनियम 1876, राजद्रोहात्मक सभाओं का निवारण अधिनियम 1911, बंगाल आतंकवादी हिंसा दमन अनुपूरक अधिनियम 1932 शामिल हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पिछले तीन वर्षों के दौरान 1200 पुराने और अप्रचलित क़ानूनों को समाप्त कर चुकी है. विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि यह विधेयक इसलिए लाया गया है क्योंकि पुराने हो चुके अप्रचलित अधिनियमों को ख़त्म करना आवश्यक हो गया था.
इसके माध्यम से पुलिस अधिनियम 1888, फोर्ट विलियम अधिनियम 1881, हावड़ा अपराध अधिनियम 1857, सप्ताहिक अवकाश दिन अधिनियम 1942, युद्ध क्षति प्रतिकर बीमा अधिनियम 1943 जैसे अंग्रेजों के समय के पुराने और अप्रचलित क़ानूनों को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया है.
विधेयक में शत्रु के साथ व्यापार आपात विषयक उपबंधों का चालू रखना अधिनियम 1947, कपास उपकर संशोधन अधिनियम 1956, दिल्ली किरायेदार अस्थायी उपबंध अधिनियम 1956, विधान परिषद अधिनियम 1957, आपदा संकट माल बीमा अधिनियम 1962, ख़तरनाक मशीन विनियमन अधिनियम 1983, सीमा शुल्क संशोधन अधिनियम 1985 शामिल हैं.
विधि मंत्री मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अंग्रेजों के ज़माने के कई क़ानून हैं जो अब अप्रांसगिक हो चुके हैं. अंतिम बार 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में यह काम हुआ था जिसके बाद 2014 में अपनी सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में हर रोज़ एक ऐसे क़ानून को निष्प्रभावी बनाने की बात कही थी.
सरकार ने दो सदस्यों की समिति बनाई और 1824 क़ानूनों को निष्प्रभावी करने की आवश्यकता लगी. प्रसाद ने बताया कि सरकार ने अब तक 1183 ऐसे क़ानूनों को समाप्त कर दिया है.
विधेयक को चर्चा एवं पारित कराने के लिए रखते हुए प्रसाद ने इस संबंध में 1911 के एक ब्रिटिश कालीन क़ानून का उदाहरण दिया जिसमें देशद्रोहियों के बैठक करने पर रोकथाम लगाने संबंधी प्रावधान था.
इसका ज़िक्र करने पर बीजद के तथागत सत्पथि ने तंज कसते हुए कहा कि इस क़ानून को रखना चाहिए यह आपके काम आएगा. इस पर प्रसाद ने कहा कि बीजद सदस्य व्यंग्य कस रहे हैं लेकिन हमारी सरकार के कई मंत्री आपातकाल में जेल में रह चुके हैं और हमने व्यक्तिगत आजादी के साथ प्रेस और न्यायपालिका की आजादी का पूरा समर्थन किया था. लोकतंत्र में हमारी पूरी तरह आस्था है.
उन्होंने परोक्ष रूप से कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि आपातकाल किसने लगाया था. इस दौरान कांग्रेस के सदस्य सदन में नहीं थे. कांग्रेस के सदस्यों ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित टिप्पणी को लेकर माफ़ी की मांग करते हुए आज शून्यकाल में सदन से वाकआउट किया था.
प्रसाद ने आगे कहा कि कई क़ानून राज्यों की सूची में होते हैं और केंद्र सरकार के अनुरोध पर मिजोरम, मध्य प्रदेश, केरल, राजस्थान, असम और गोवा आदि राज्यों ने कई अप्रचलित क़ानूनों को समाप्त करने की कार्रवाई की है.
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार हर क्षेत्र में सुधार के लिए प्रयासरत है और इसी दिशा में अप्रासंगिक क़ानूनों को हटाने का प्रगतिशील, सुधारवादी क़दम उठाया जा रहा है.
विधेयकों पर चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने कहा कि देश में स्वच्छता अभियान की तर्ज पर सदन में इस तरह का सफाई अभियान बहुत ज़रूरी है और मोदी सरकार ने इस काम को अपने हाथ में लिया जो सालों से लंबित था. उन्होंने कहा कि इस सरकार के आने से पहले देश में नीतिगत पंगुता की स्थिति थी.
तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने कहा कि केवल क़ानूनों को निष्प्रभावी करने से त्वरित न्याय का उद्देश्य पूरा नहीं होगा. उन्होंने सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान का उल्लेख करते हुए कहा कि अदालतों में वाई-फाई की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे वकील इंटरनेट का इस्तेमाल करते हुए अदालती मामलों का अध्ययन कर सकें. उन्होंने अदालतों में खाली पड़े पदों को भरने की भी मांग उठाई.
उन्होंने इस दौरान प्रसाद द्वारा आपातकाल का ज़िक्र किए जाने की ओर इशारा किया और देश में मौजूदा समय में अघोषित आपातकाल की स्थिति होने का आरोप लगाया.
बनर्जी ने राजग सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि 1975 में तो सरकार ने आपातकाल घोषित किया था लेकिन 2014 के बाद से देश में अघोषित आपातकाल की स्थिति है. इस पर भाजपा और तृणमूल के कुछ सदस्यों के बीच नोंकझाोंक भी देखी गई.
बीजद के पिनाकी मिश्रा ने विधेयकों पर चर्चा में भाग लेते हुए उम्मीद जताई कि सरकार क़ानून के कामकाज में अड़चन पैदा करने वाले इस तरह के अप्रांसगिक क़ानूनों को किताबों से हटाने की प्रक्रिया को और तेज़ करेगी.
शिवसेना के विनायक राउत ने विधेयकों का समर्थन करते हुए अनुच्छेद को 370 को समाप्त करने की अपनी मांग दोहराई. तेलगूदेशम पार्टी के रवींद्र बाबू ने कहा कि क़ानूनों को समाप्त करते समय उनकी न्यायिक पड़ताल कराई जानी चाहिए. भाजपा के नरेंद्र सवाईकर ने भी विधेयकों का समर्थन किया.