दिल्ली के कई इलाकों में एक्यूआई 500 पहुंचा, बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए अधिक प्रयासों की ज़रूरत

दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलाना एक बड़ा कारण है, लेकिन लगभग 75% प्रदूषण दिल्ली के भीतर परिवहन, कचरा जलाना और निर्माण से उत्पन्न होता है. इसके साथ ही बिजली संयंत्र, हरियाणा-पंजाब क्षेत्र में भारी उद्योग से बढ़ते उत्सर्जन को रोकने में विफलता भी बढ़ते वायु प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारण हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: X/@sol_regam)

बेंगलुरु: देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में है. मंगलवार (19 नवंबर) सुबह 7 बजे दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 500 से ऊपर रिकॉर्ड किया गया. वहीं, दिल्ली का औसत एक्यूआई 494 रिकॉर्ड किया गया, जो इस सीजन में सर्वाधिक है.

इससे पहले 18 नवंबर को दिल्ली में एक बार फिर हवा की गुणवत्ता ‘गंभीर’ हो गई. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के दैनिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बुलेटिन के अनुसार, दिल्ली का एक्यूआई उस दिन शाम 4 बजे तक 494 था, जिसमें प्रमुख प्रदूषक सूक्ष्म कण थे.

मालूम हो कि दिल्ली सरकार ने सोमवार (18 नवंबर) से ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के चरण IV को लागू कर दिया है. इससे एनसीआर में ज्यादातर निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लग गया है. साथ ही अब दिल्ली में केवल आवश्यक वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करने वाले ट्रकों को छोड़कर अन्य सभी भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है.

इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए दिल्ली में 12वीं कक्षा तक के सभी स्कूली छात्रों के लिए शारीरिक कक्षाएं फिलहाल निलंबित कर दी जाएं. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने जीआरएपी के चरण III और IV को पहले लागू नहीं करने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की भी कड़ी आलोचना की.

एक वायु गुणवत्ता वैज्ञानिक ने द वायर को बताया कि वायु गुणवत्ता की यह ‘खतरनाक स्थिति’ बारहमासी स्रोतों (perennial sources) से प्रदूषण को रोकने में असमर्थता के चलते उत्पन्न हुई है. जो, स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों हैं. इसमें उद्योगों और बिजली संयंत्रों का उत्सर्जन शामिल है.

दिल्ली का गंभीर एक्यूआई

18 नवंबर को सीपीसीबी के दैनिक एक्यूआई बुलेटिन के अनुसार, दिल्ली का प्रमुख प्रदूषक (prominent pollutant) PM2.5 था. ये बुलेटिन दिल्ली के 39 निगरानी स्टेशनों में से 36 के डेटा पर आधारित है. वहीं, 17 नवंबर को एक्यूआई 441 था, जो ‘गंभीर’ श्रेणी का माना जाता है.

ज्ञात हो कि भारत का एक्यूआई कम से कम तीन प्रदूषकों के स्तर का माप है. उनमें से एक पार्टिकुलेट मैटर, PM2.5 (2.5 माइक्रोन से कम व्यास का सूक्ष्म कण) और PM10 (10 माइक्रोन व्यास से कम) है. एक्यूआई 0 से 500 के बीच मापा जाता है, और ये जितना अधिक होगा, स्वस्थ लोग भी उतने ही इसकी चपेट में आएंगे.

मालूम हो कि 0 से 50 के बीच एक एक्यूआई को आदर्श माना जाता है, 401-500 के बीच एक एक्यूआई को ‘गंभीर’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो सीपीसीबी द्वारा अपनाए गए मानकों के अनुसार सबसे खराब वायु गुणवत्ता का स्तर है. दिल्ली के लोग वर्तमान में इसी ‘गंभीर’ वायु गुणवत्ता से गुजर रहे हैं, जो हल्की शारीरिक गतिविधि के दौरान भी अनुभव किया जा सकता है.

सीपीसीबी के मुताबिक, ऐसी वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने से ‘स्वस्थ लोगों पर भी असर पड़ता है. इसके अलावा मौजूदा समय में बीमारियों से ग्रस्त लोगों पर इसका गंभीर प्रभाव देखने को मिलता है.

भारत के 2019 के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) के अनुसार, ऐसी वायु गुणवत्ता ‘स्वस्थ लोगों पर भी श्वसन प्रभाव पैदा कर सकती है और फेफड़ों/हृदय रोगों वाले लोगों पर गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव डाल सकती है.’इसे हल्की

दिल्ली के लिए वायु गुणवत्ता प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, जिसे भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे द्वारा प्रबंधित किया जाता है, पर 18 नवंबर को प्रकाशित बुलेटिन के अनुसार, ‘प्रदूषकों के प्रभावी फैलाव के लिए मौसम संबंधी स्थितियां बेहद प्रतिकूल रहने की संभावना है.’

बुलेटिन के अनुसार, 19 से 21 नवंबर तक हवा की गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में रहने की संभावना है. जबकि, अगले छह दिनों में, यह या तो ‘गंभीर’ या ‘बहुत खराब’ श्रेणी में हो सकती है

मालूम हो कि स्वचालित मौसम निगरानी स्टेशनों में रीडिंग कम करने के अनेक प्रयासों की भी खबरें हैं. एक सूत्र ने निगरानी स्टेशनों पर अधिकारियों द्वारा स्वचालित निगरानी प्रणालियों में कैद होने वाले कणों के स्तर को कम करने के लिए बड़े पंखे लगाने और पानी छिड़कने की बात कही है.

दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर का स्तर अब सीपीसीबी के ढीले मानकों से भी कहीं ऊपर है.

2019 के भारत के राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) के अनुसार, परिवेशी वायु में पार्टिकुलेट मैटर PM10 की सांद्रता (ambient ) 24 घंटे की अवधि में 100 µg/m3 (माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) है. वहीं, ये वार्षिक 60 µg/m3 है. सूक्ष्म कण पदार्थ या PM2.5 24 घंटे की अवधि में 60 µg/m3 और सालाना 40 µg/m3 है.

हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक इससे अधिक कड़े हैं. संगठन अनुशंसा करता है कि PM2.5 का स्तर 24 घंटे की अवधि के लिए 15 µg/m3 (और सालाना 5 µg/m3) से अधिक नहीं होना चाहिए. इसी तरह, पीएम10 का स्तर 24 घंटे की अवधि के लिए 50 µg/m3 (और सालाना 20 µg/m3) से अधिक नहीं होना चाहिए.

डब्ल्यूएचओ ने 2021 में अपने नवीनतम दिशानिर्देशों में इन सीमाओं को कम कर दिया. संगठन की मानें, तो इन प्रदूषकों की कम सांद्रता भी महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिमों का कारण बन सकती है.

प्रतिकूल मौसम विज्ञान

एनवायरोकैटलिस्ट्स एक ऐसी संस्था है, जो स्वच्छ हवा को लेकर काम करती है. इसके संस्थापक सुनील दहिया ने द वायर से कहा कि ये सभी को पता था कि साल के इस समय के आसपास हवा की गति कम हो जाती है, तापमान गिर जाता है और मुख्य हवा की दिशा उत्तर-उत्तर-पश्चिमी हो जाती है, जो हरियाणा-पंजाब की ओर से आती है.

उन्होंने बताया कि ये प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियां प्रदूषण के निर्माण और ठहराव में मदद करती हैं, जिससे एक व्युत्क्रम (inversion) परत बनती है, जो प्रदूषकों को वायुमंडल में फैलने से रोकती है और इस प्रकार सतह के पास प्रदूषकों की सांद्रता बढ़ जाती है. इस समय ये पराली जलाने की घटनाओं के साथ जुड़ते हैं, जो नवंबर में इन दो-तीन हफ्तों के आसपास केंद्रित होती हैं. इससे उत्सर्जन भार (emission load) में वृद्धि के साथ-साथ प्रदूषण की सघनता भी बढ़ती है.

दहिया ने द वायर से कहा कि इसके लिए दो चीजें बेहतर की जा सकती थीं. पहला, पराली जलाने की घटनाओं को थोड़ा बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सकता था और दूसरा परिवहन, उद्योग, निर्माण और बिजली संयंत्रों जैसे सभी बारहमासी स्रोतों से उत्सर्जन भार को कम करने के लिए व्यवस्थित और व्यापक कार्रवाई. मौजूदा समय में पटाखे फोड़ने और पराली जलाने जैसी गतिविधियां होती हैं, जो मौजूदा प्रदूषण भार को बढ़ा देती हैं और इसे खतरनाक बनाती हैं.

उन्होंने ये भी कहा कि पिछले साल की तुलना में इस साल आग की घटनाओं यानी पराली जलाने में कमी आई है. डेटा से पता चलता है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में इस साल ऐसी गतिविधियां कम हुई हैं.

बारहमासी स्रोतों पर अंकुश न लगाने के दुष्परिणाम

दहिया बताते हैं कि पराली जलाना प्रदूषण का बड़ा कारण है, लेकिन आज जिस समस्या का सामना करना पड़ रहा है, वो सिर्फ पराली या या पटाखे की वजह से नहीं है. लगभग 75% प्रदूषण के पीछे का कारण दिल्ली के भीतर परिवहन, कचरा जलाना और निर्माण के साथ ही अन्य क्षेत्रीय स्रोत बिजली संयंत्र, हरियाणा-पंजाब क्षेत्र में भारी उद्योग आदी हैं. ये चीजें पिछले हफ्ते या कल से शुरू नहीं हुई हैं. ये वर्षों से चली आ रही हैं और हम इन क्षेत्रों से बढ़ते उत्सर्जन को रोकने में विफल रहे हैं.

उदाहरण के लिए, डीएसएस से पता चलता है कि झज्जर (हरियाणा में) दिल्ली और सोनीपत में लगभग 5% प्रदूषण में योगदान देता है, क्योंकि झज्जर में दो बड़े बिजली संयंत्र हैं. एक ने कुशल प्रदूषण नियंत्रण तकनीक स्थापित की है, जबकि. दूसरे ने नहीं. प्रदूषण को कम करने के लिए लंबी अवधि में इनके संचालन या उत्सर्जन को कम करना होगा.

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मौजूदा नीतियों के कार्यान्वयन की कमी इस क्षेत्र में चिंता का विषय है. क्योंकि हमारे पास कागजों पर अच्छी नीतियां, अच्छे दिशानिर्देश, अच्छे नियम हो सकते हैं, लेकिन अच्छे निर्देशों का वास्तविक कार्यान्वयन बहुत कम है, जो जरूरी है.

दहिया ने कहा कि कम से कम अगले मानसून तक यही स्थिति रहेगी. प्रदूषण के स्तर में बहुत ज्यादा कमी नहीं आएगी, जबकि पूरे सर्दियों में एक्यूआई 250-300 के बीच रहेगा. बारिश में दिल्लीवासियों या उत्तर भारतीयों को प्रदूषण से थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन फिर भी हम डब्ल्यूएचओ मानकों के अनुरूप वायु गुणवत्ता में सांस नहीं लेते हैं, हम केवल भारतीय मानकों के करीब पहुंचते हैं.

दरअसल, अगर आप सीपीसीबी के 18 नवंबर के बुलेटिन को ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि सिर्फ दिल्ली ही खराब हवा से दम नहीं तोड़ रही है. गुड़गांव में हवा की गुणवत्ता भी ‘गंभीर’ है, एक्यूआई 469 है; नोएडा (एक्यूआई 423) भी ऐसा ही है. दिल्ली से लगभग 30 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में हरियाणा के बहादुरगढ़ का एक्यूआई भी 453 पर ‘गंभीर’ श्रेणी में है; दिल्ली से लगभग 60 किमी दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान का भिवाड़ी भी है, जिसका एक्यूआई 447 है. राजस्थान के चुरू का एक्यूआई 401 है. हरियाणा के धारूहेड़ा में एक्यूआई 447 है.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और हापुड़ में भी हवा की गुणवत्ता क्रमशः 438 और 431 एक्यूआई पर ‘गंभीर’ है. सोनीपत, जिस पर दहिया ने द वायर के साथ अपनी बातचीत में प्रकाश डाला, वह भी 18 नवंबर को 430 के एक्यूआई के साथ ‘गंभीर’ वायु गुणवत्ता श्रेणी में है.

भारत एक्यूआई बनाम अमेरिकी एक्यूआई

सोशल मीडिया पर लोग और मीडिया दिल्ली की वायु गुणवत्ता के विभिन्न मूल्यों को साझा कर रहे हैं. कुछ लोग भारतीय वायु गुणवत्ता सूचकांक का हवाला देते हैं, जबकि अन्य IQAIR, जो एक स्विस वेबसाइट है और वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता रिपोर्ट और प्रदूषण पूर्वानुमान प्रदान करती है, द्वारा सूचीबद्ध एक्यूआई का हवाला दे रहे हैं.

IQAIR द्वारा उद्धृत एक्यूआई संयुक्त राज्य अमेरिका में निर्धारित मानकों के अनुसार मापा गया एक्यूआई है. यह दो कारणों से सीपीसीबी द्वारा प्रदान की गई एक्यूआई या श्रेणियों के साथ सीधे मेल नहीं खाता है. पहला कारण संबंधित एक्यूआई की गणना के लिए उपयोग किया जाने वाला डेटा अलग है और दूसरा, दोनों एक्यूआई वायु गुणवत्ता के विभिन्न स्तरों को अलग-अलग तरीके से वर्गीकृत करते हैं.

NAAQS 2019 के अनुसार, भारत एक्यूआई आठ प्रदूषकों (PM10, PM2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, अमोनिया और सीसा) पर विचार करता है. लेकिन इसकी गणना तभी की जाती है जब कम से कम तीन प्रदूषकों के लिए डेटा उपलब्ध हो, जिनमें से एक PM2.5 या PM10 होना चाहिए.

इस बीच, अमेरिकी एक्यूआई में पांच प्रमुख वायु प्रदूषकों के लिए एक अलग एक्यूआई है: जमीनी स्तर के ओजोन, पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10), कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड.

भारत एक्यूआई वायु गुणवत्ता को छह स्तरों में वर्गीकृत करता है.

दूसरी ओर, नवीनतम नियमों के अनुसार, अमेरिकी एक्यूआई निम्नलिखित वर्गीकरण करता है:

इसलिए भारतीय और अमेरिकी एक्यूआई, साथ ही उनकी श्रेणियां, सीधे तौर पर तुलनीय नहीं हैं.

हालांकि, IQAIR की शहरों में वायु गुणवत्ता की विश्व रैंकिंग के अनुसार – अमेरिकी एक्यूआई गणना के आधार पर – 18 नवंबर को 8:51 समय पर दिल्ली का एक्यूआई 1113 था, जो अमेरिकी मानकों के अनुसार ‘खतरनाक’ श्रेणी में था.

दिल्ली इस समय दुनिया भर में सबसे प्रदूषित शहर है. इस रैंकिंग में कोलकाता तीसरे स्थान पर है, जबकि अमेरिका का एक्यूआई 204 है.

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