स्वतंत्रता आंदोलन का अनकहा अध्याय: जब रायपुर में बनते थे बंदूक और बम

एक वक्त रायपुर में ख़ुफ़िया तरीके से पिस्तौलें बनाई गयीं, बम परीक्षण हुए. इन क्रांतिकारियों पर जो मुकदमा चला वह रायपुर षड्यंत्र केस के नाम से जाना गया. यह किसी एक घटना पर आधारित नहीं था, बल्कि उस समूचे क्रांतिकारी घटनाक्रम को इंगित करता था जिसने शहर को अपने आगोश में ले लिया था.

पुस्तक का आवरण

27 सितंबर 1995 को रायपुर शहर में ख़ामोशी छायी हुई थी. बारिश भले हल्की हो रही थी, लोगों के आंसू अविरल बह रहे थे. पूरे शहर में एक सन्नाटा पसरा हुआ था. लाल कपड़ों में लिपटा कॉमरेड सुधीर मुखर्जी का शव काफ़िले के साथ गुजरता, सन्नाटा सिसकियों से टूटता जाता.

ज़िंदगी भर अविवाहित होलटाइमर के तौर पर सीपीआई में रहने के बाद मृत्यु से करीब सवा साल पहले सुधीर मुखर्जी सीपीएम में आए थे ताकि ज़िंदगी के अंतिम पल जनता के बड़े हिस्से के बीच काम कर सकें.

सुधीर मुखर्जी मज़दूर, रिक्शावाले और ठेलेवालों के लोकप्रिय नेता ही नहीं, क्रांतिकारी भी थे.

सुधीर मुखर्जी का जन्म 30 नवंबर 1919 को मध्य प्रदेश के दमोह जिले में हुआ. उनके पिता परिवहन विभाग में काम करते थे जिसके चलते उनका छत्तीसगढ़ आना हुआ. बिलासपुर से वे रायपुर आकर सेंट पॉल हाई स्कूल में नवीं कक्षा में भर्ती हुए जहां परसराम सोनी और निखिल भूषण सूर से उनका मिलन होता है. ये नौजवान भगत सिंह से लेकर बंगाल के क्रांतिकारियों की वीरगाथाओं पर चर्चा किया करते और देश के लिए ऐसा ही कुछ करने का ख़्वाब देखते.

सुधीर मुखर्जी (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

सुधीर मुखर्जी जब स्कूली छात्र थे तब 1937 में सेंट्रल प्रोविंस के शिक्षा मंत्री युसूफ शरीफ की रायपुर टाउन हाल में सभा थी. सुधीर और अन्य छात्रों ने अपने प्राचार्य से शिक्षा मंत्री के कार्यक्रम में जाने छुट्टी की मांग रखी. जब प्राचार्य ने इनकार किया तो छात्र ‘स्ट्राइक’ कर न केवल टाउन हाल गए बल्कि शिक्षा मंत्री की कार रोककर उनसे आग्रह किया कि वे बाहर आकर जनता के सामने भाषण दें.

लेकिन जिस प्रकरण ने उन्हें अमर कर दिया, वह था रायपुर षड्यंत्र केस.

क्या था रायपुर षड्यंत्र केस?

छत्तीसगढ़ आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए, इसके लिए कुछ नौजवानों ने क्रांतिकारी हस्तक्षेप का प्रण लिया. उनका मानना था कि ‘हम स्वराज्य नहीं ला सकते, राज्य शक्ति के सामने हमारी शक्ति बिलकुल नगण्य है, किन्तु हम इस देश में जोश पैदा कर प्रेरणा दे सकते हैं’.

इस तरह छत्तीसगढ़ में ख़ुफ़िया तरीके से पिस्तौलें बनाई गईं, बम परीक्षण हुए लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि कई क्रांतिकारी पकड़े गए. इन पर जो मुकदमा चला वह रायपुर षड्यंत्र केस के नाम से जाना गया. यह किसी एक घटना पर आधारित नहीं था, बल्कि उस समूचे क्रांतिकारी घटनाक्रम को इंगित करता है जिसने रायपुर शहर को अपने आगोश में ले लिया था.

इस मुक़दमे में परसराम सोनी को सात वर्ष की सख्त कैद, सुधीर मुखर्जी को दो वर्ष की कैद समेत कई अन्य क्रांतिकारियों को सजा हुई.

सुधीर मुखर्जी की मृत्यु के बाद सीपीएम ने एक 12 पन्ने की बुकलेट सुधीर मुखर्जी -एक क्रांतिकारी जीवन’ नवंबर 1995 में प्रकाशित की.

इस पुस्तिका में दर्ज है कि परसराम सोनी के साथ सुधीर मुखर्जी ने पिस्तौलें और बम बनाने का हुनर सीख लिया था. रायपुर में मालवीय रोड स्थित ओरिएंटल होटल में उनकी क्रांतिकारी गतिविधियां चल रही थीं. इन गतिविधियों के लिए राशि की आवश्यकता थी. इस तरह एक बैंकर को लूटने की योजना बनाई, लेकिन वे सफल नहीं हो सके और पकड़े गए. 15 जुलाई 1942 को इनकी गिरफ़्तारी हुई और सुधीर मुखर्जी सहित 11 क्रांतिकारियों को जेल में डाल दिया गया. इन सभी पर मुक़दमे चलाए गए. विशेष न्यायधीश जे बी कोरबाला ने 27 अप्रेल 1943 को सजा सुनाई.

जज जब सजा सुना रहे थे तो ये युवक कटघरे में खड़े होकर रूमाल का चूहा बनाकर अदालत का उपहास उड़ा रहे थे और इंक़लाबी नारे लग रहे थे. जज ने टिप्पणी की थी, आप लोगों पर सरकार ने गंभीर आरोप लगाया है और आप लोगों को कोई चिंता नहीं?’

मई 1946 में भगत सिंह के प्रमुख साथी और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारी जयदेव कपूर रायपुर आए. गाँधी चौक में एक बड़ा जलसा हुआ और रायपुर षड्यंत्र केस के दोषियों को रिहा किए जाने को लेकर प्रस्ताव पारित हुआ. इस तरह वे सभी 26 जून, 1946 की रात रिहा किए गए.

परसराम सोनी और बिहार के लुहार की कथा

इस केस के प्रमुख अभियुक्त परसराम सोनी ने अपनी क्रांतिकारी गाथा को 1967 में प्रकाशित एक पुस्तिका में रायपुर षड्यंत्र केस के नाम से दर्ज़ किया. सुधीर दादा के चलते मुझे परसराम सोनी से नब्बे के दशक में रायपुर में मिलने का सौभाग्य मिला और साथ ही यह पुस्तिका भी मिली. परसराम जी की उस स्मृति के मद्देनजर मुझे फ़िराक़ का शेर याद आता है: ‘आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने ‘फ़िराक़’ को देखा है’.

परसराम सोनी (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

परसराम सोनी ने इस पुस्तिका में अपनी लड़ाई के उद्देश्य पर लिखा, ‘हमें अच्छी तरह जानकारी थी कि हम पूर्णरूपेण सफल नहीं हो सकते. पर हमारे आदर्श क्रांतिकारियों ने जो मशाल जलाई थी, वह समय प्रतिकूल पाकर निस्तेज सी हो गई थी, उसे फिर से प्रज्ज्वलित करना था. हमें तेल का काम करना था.’

परसराम सोनी ‘भारत में अंग्रेजी राज’ और शचींद्रनाथनाथ सान्याल की ‘बंदी जीवन’ जैसी किताबें पढ़कर विद्रोही बने थे. उन्होंने रायपुर में अपने मित्र सूर बाबू से रसायन की किताबें लेकर पढ़ीं.

परसराम सोनी ने एक अन्य मित्र होरी लाल सोनी से रासायनिक पदार्थ लेकर घर में ही एक लघु प्रयोगशाला स्थापित की. इसी तरह बिहार के खानदानी लुहार गिरिलाल से उन्होंने रिवाल्वर और गोली बनाने की कला भी सीखी. गिरिलाल ने चटगांव विद्रोह के समय क्रांतिकारियों के लिए पिस्तौल बनाई थीं.

परसराम सोनी ने गिरिलाल के बारे में लिखा है कि वे इतने कुशल कारीगर थे कि जब जबलपुर से एक अंग्रेज इस केस में गवाही देने आया, उसने गिरिलाल के लिए कहा, ‘ये इसके कुशल हैं कि हमारे देश में होते तो (इनकी) बहुत इज़्ज़त की जाती.’

परसराम सोनी ने इन हथियारों का परीक्षण रायपुर की सूनी और खाली जगहों पर किया. पहला परीक्षण उन्होंने अपने दो दोस्तों की उपस्थिति में रावण भाटा में किया, दूसरा राजकुमार कॉलेज के पास ईदगाह भाटा में रात आठ बजे बम फेंककर किया. एक अन्य विस्फोट के दौरान उनका हाथ झुलस गया, लेकिन भेद खुलने की आशंका के चलते वे अस्पताल नहीं गए.

परसराम सोनी ने लिखा है कि ‘मालवीय रोड स्थित ओरिएंटल होटल’ एक गुजराती सज्जन ने खोला था. उसने हम लोगों के लिए एक कमरा छोड़ रखा था.’ ये क्रांतिकारी वहां मिलते और आगामी रणनीति पर चर्चा करते. गिरफ्तारी के बाद होटल मालिक को पुलिस ने परेशान किया और होटल बंद हो गया. सुधीर मुखर्जी और परसराम सोनी संगठन बढ़ाने के उद्देश्य से जबलपुर में क्रांतिकारी सृष्टिधर मुखर्जी के संपर्क में भी आए, डकैती की योजना बनाई गई पर यह भी सफल न हो पाई.

लेकिन रायपुर का यह क्रांतिकारी अध्याय भले ही अधूरा रह गया, इस शहर को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पन्नों में एक ख़ास जगह दे गया.

(अपूर्व गर्ग रायपुर में निवास करते हैं.)