हिंदुस्तान में बढ़ती फ़िरक़ापरस्ती पर जज़्बाती हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने द वायर के लिए करण थापर को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि मस्जिदों के सर्वेक्षण की अनुमति देकर पूर्व सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 'संविधान और देश के साथ बहुत अन्याय किया' है.

/

नई दिल्ली: बीते सप्ताह देश के वरिष्ठ वकीलों में से एक और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष दुष्यंत दवे द वायर के लिए करण थापर को दिए गए एक साक्षात्कार के दौरान देश में बढ़ती सांप्रदायिकता के बारे में बात करते हुए भावुक हो उठे. उन्होंने कहा कि मस्जिदों के सर्वेक्षण की अनुमति देकर पूर्व सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ‘संविधान और देश के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी’ की है. उनकी बातचीत का संदर्भ मंदिर होने के दावों को लेकर देश की विभिन्न मस्जिदों के अदालतों के सर्वेक्षण के आदेशों को लेकर था.

पढ़िए इस साक्षात्कार का संपादित अंश.

§

करण थापर: नमस्कार और द वायर के एक विशेष साक्षात्कार में आपका स्वागत है. अचानक लग रहा है कि हम ऐसी मस्जिदों की खोज कर रहे हैं जिनके बारे में लोग दावा करते हैं कि वे हिंदू मंदिरों पर बनाई गई हैं, और अदालतों से उनकी जांच की अनुमति के लिए याचिकाएं दायर की जा रही हैं. यह वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह, और धार की कमाल मौला से शुरू हुआ…संभल की शाही जामा मस्जिद और अजमेर की अजमेर शरीफ दरगाह (तक आया है). यह आग से खेलना है. इससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है.

मेरे आज के मेहमान इसके लिए मई 2022 में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के एक फैसले को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हैं. इसे समझाने के लिए मेरे साथ हैं भारत के सबसे सम्मानित वकीलों में से एक और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष, दुष्यंत दवे. लगातार लग रहा है कि अदालतों से मस्जिदों, जो अक्सर कई सदियों पुरानी हैं, के सर्वेक्षण की अनुमति मांगी जा रही है यह देखने के लिए कि क्या वे पुराने हिंदू मंदिरों पर बनी हैं. हाल ही में यह संभल और अजमेर में हुआ है, लेकिन इससे पहले यह वाराणसी, मथुरा और मध्य प्रदेश के धार में हुआ था. आप मानते हैं कि जस्टिस चंद्रचूड़ का मई 2022 का फैसला इस गंभीर स्थिति के लिए जिम्मेदार है. क्या आप बता सकते हैं कि आप उन्हें क्यों दोषी मानते हैं?

दुष्यंत दवे: देखिए, यह देश में एक बेहद गंभीर स्थिति पनप रही है, और यह स्पष्ट रूप से उपासना स्थल अधिनियम 1991 द्वारा निषिद्ध था. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने, जिसमें जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में शामिल थे, स्पष्ट रूप से कहा कि इस अधिनियम के दो मूल मानदंड हैं: एक, यह 15 अगस्त 1947 को मौजूद हर धार्मिक पूजा स्थल की रक्षा करता है. दूसरा, उन्होंने धारा 4, उपधारा 2 की व्याख्या की कि किसी भी पूजा स्थल के चरित्र को बदलने के लिए कोई नया मुकदमा, अपील या कार्यवाही नहीं हो सकती .

उस अधिनियम ने धारा 5 द्वारा राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को स्पष्ट रूप से छूट दी थी क्योंकि मुकदमे और विवाद 1947 से पहले लंबित थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है. इसने कहा कि कानून राज्य को उतना ही संबोधित करता है जितना राष्ट्र के हर नागरिक को. इसने कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता स्थापित करने के लिए राज्य का दायित्व है.

इसने यह भी कहा कि अधिनियम राज्य के ऊपर एक गंभीर कर्तव्य है कि सभी धर्मों की समानता को एक संवैधानिक मूल्य के रूप में संरक्षित करना है. यह संविधान की मूल विशेषता है. और इसने यह भी कहा कि ऐतिहासिक गलतियों को लोगों द्वारा कानून को अपने हाथ में लेकर सही नहीं किया जा सकता. ये सुप्रीम कोर्ट के शब्द हैं, जिनमें चंद्रचूड़ भी थे. उन्हें इन शब्दों का पालन करना है.

इसलिए अधिनियम, और इसकी जो व्याख्या की गई, स्पष्ट रूप से यह आदेश देती है कि राम जन्मभूमि के फैसले के बाद सभी को अब इससे दूर रहना चाहिए. दिलचस्प बात यह है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शर्मा ने, जिन्होंने राम जन्मभूमि का फैसला दिया था, अपने फैसले में एक टिप्पणी की थी कि यह अधिनियम अन्य पूजा स्थलों के संबंध में नई कार्यवाही या नए मुकदमों को नहीं रोकता. संविधान पीठ ने इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया, कहा कि यह पूरी तरह से गलत है, त्रुटिपूर्ण है, और धारा 4, उपधारा 2 के विपरीत है, जो कहती है कि भविष्य में किसी नए पूजा स्थल के लिए कोई मुकदमा या कार्यवाही नहीं हो सकती.

अब, यदि यह अनुच्छेद 141 के आधार पर देश का कानून है, तो उस अनुच्छेद के आधार पर, हर कोई – कार्यपालिका, विधायिका, और यहां तक कि न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट सहित – इस कानून से बंधा है. इसलिए मैं इसे बेहद चौंकाने वाला पाता हूं कि जब ज्ञानवापी मस्जिद की बात आई, जब अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से दायर मुकदमे को खारिज करने के लिए एक आवेदन दिया गया, जिसे निचली अदालत और हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया, लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी, एएसआई की कार्रवाई को जारी रखने की अनुमति दी.

यह जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा अपने ही फैसले का सबसे चौंकाने वाला उल्लंघन था. अब इसने ऐसा पिटारा खोल दिया है. अगर उन्होंने उस दिन कहा होता कि, ‘कुछ नहीं होगा, कोई और कार्यवाही नहीं हो सकती,’ ‘कोई और कार्यवाही स्वीकार नहीं की जाएगी, और हम यह आदेश देते हैं कि भारत की कोई अदालत ऐसी कार्यवाही स्वीकार नहीं करेगी,’ तो चंद्रचूड़ ने इस देश का बहुत भला किया होता. लेकिन वह ऐसा करने को तैयार नहीं थे क्योंकि वह राजनेताओं के हाथों में खेल रहे थे, और यह मुझे चौंकाता है कि एक व्यक्ति जो दुनिया भर में दावे करता है, धर्मनिरपेक्षता पर, कानून के शासन पर व्याख्यान देता रहता है, वह अब इस देश में कानून के शासन के पतन का हिस्सा बन गया है.

करण: मई 2022 में जस्टिस चंद्रचूड़ ने क्या कहा जिससे आपको लगता है कि समस्याओं का पिटारा खुल गया. उनके शब्द थे, ‘पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का निर्धारण निषिद्ध नहीं है.’ उन्होंने दावा किया कि जो निषिद्ध है वह है 15 अगस्त 1947 के बाद पूजा स्थल के चरित्र को बदलना. लेकिन (स्थल के धार्मिक) चरित्र का निर्धारण करना गलत नहीं है. यह व्याख्या जो उन्होंने उपासना स्थल अधिनियम की दी, उसने तमाम संकटों को जन्म दे दिया?

दवे: यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्होंने वह व्याख्या दी. बौद्धिक होने का दावा करने वाले व्यक्ति को इस तरह की व्याख्या नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकि अगर आप किसी स्थान का चरित्र नहीं बदल सकते, तो चरित्र का निर्धारण करने का क्या मतलब है? इसलिए, सभी धार्मिक पूजा स्थलों के संबंध में एक पूर्ण प्रतिबंध, एक पूर्ण यथास्थिति थी. मुझे यकीन है कि जस्टिस चंद्रचूड़ जानते थे कि अधिनियम का उद्देश्य क्या था. विचार यह था कि इस देश में शांति और समृद्धि और सांप्रदायिक सद्भाव लाया जाए, और इसलिए, वह इस तरह की व्याख्या नहीं कर सकते थे.

संभल की शाही जामा मस्जिद के बाहर तैनात पुलिस. (फोटो: श्रुति शर्मा/द वायर हिंदी)

करण: जस्टिस चंद्रचूड़ ने व्याख्या की कि हालांकि आप 15 अगस्त 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल का चरित्र नहीं बदल सकते, आप यह निर्धारित और तय कर सकते हैं कि वह चरित्र क्या है. भले ही यह उपासना स्थल अधिनियम का उल्लंघन नहीं करता, क्या यह अधिनियम की भावना को कमजोर नहीं करता? यह बहुत गंभीर रूप से अधिनियम की भावना को कमजोर करता है.

दवे: मैं कहूंगा कि यह वास्तव में अधिनियम के विरुद्ध है. यह अधिनियम की भावना का भी उल्लंघन है, क्योंकि अधिनियम का उद्देश्य किसी भी पूजा स्थल के परिवर्तन को रोकना है जैसा कि वह 15 अगस्त 1947 को था. अब, अगर प्रतिबंध है, तो (धार्मिक स्थल) की प्रकृति के निर्धारण का सवाल कहां से आता है? यानी, क्या आप सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद संवेदनशील, सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर अकादमिक अभ्यास कर रहे हैं? क्या न्यायपालिका संभल में इन चार लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार नहीं है? हम यहां क्या चर्चा कर रहे हैं? लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. दोनों समुदाय स्थायी रूप से विभाजित हो रहे हैं, और इन घावों को भरना लगभग असंभव है, खासकर जब भाजपा इन राज्यों में सत्ता में है, जहां यह हो रहा है, चाहे वह राजस्थान हो या उत्तर प्रदेश. इसलिए, मैं मानता हूं कि चंद्रचूड़ ने संविधान और इस देश के साथ बड़ा अन्याय किया है.

करण: जस्टिस चंद्रचूड़ ने संविधान और इस देश की जनता के साथ बड़ा अन्याय किया है. क्या आप वाकई ऐसा मानते हैं?

दवे: मैं न केवल यह मानता हूं, बल्कि मुझे लगता है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय – और यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बार-बार कहा गया है – अपने ही फैसलों से बंधा है, तो यह सर्वोच्च न्यायालय, नागरिकों, नौकरशाहों और राजनेताओं को अपने आदेशों की अवमानना के लिए घसीटेगा. चंद्रचूड़ ने क्या किया है? क्या वह दोषी नहीं हैं? क्या वह और उनके सहयोगी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन करने के दोषी नहीं हैं? क्या वह और उनके सहयोगी कानून के शासन के खंडन के लिए जिम्मेदार नहीं हैं? क्योंकि उन्होंने उस फैसले में नोट किया था कि 1992 में मस्जिद का विध्वंस राज्य के साथ मिलीभगत में – विशेष रूप से भाजपा के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को वचन देने के बाद – सबसे जघन्य कृत्य था और उन्होंने कहा कि यह कानून के शासन नहीं रहा था. न्यायाधीश यह स्पष्ट रूप से कहते हैं. अब, वह इसका हिस्सा थे. इसलिए, वह इसे कैसे जारी रख सकते हैं?

करण: तो वह खुद अदालत की अवमानना के दोषी हैं.

दवे: किसी ने भी यह कभी नहीं परखा कि क्या न्यायाधीश अपने ही फैसले की अवमानना के दोषी हो सकते हैं, लेकिन निश्चित रूप से, वह अपने ही फैसले का उल्लंघन और अपमान करने के दोषी हैं.

करण: कुछ लोग जो जस्टिस चंद्रचूड़ की व्याख्या से सहमत हैं, कहते हैं कि यह कानून की एक चतुर व्याख्या है, लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि इसका उलट वास्तव में अधिक सच है? कि जस्टिस चंद्रचूड़ को पता होना चाहिए था कि यह भारत में एक विस्फोटक और अत्यंत संवेदनशील विषय है, और परिणामस्वरूप, आम लोगों का जीवन और देश की सांप्रदायिक सद्भावना दांव पर लगी होगी, और उस दूसरी, अधिक महत्वपूर्ण चिंता को उन्होंने बस नजरअंदाज कर दिया लगता है.

दवे: नहीं, जस्टिस चंद्रचूड़ ने न केवल बेईमान व्याख्या की है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि जस्टिस चंद्रचूड़ इस बात को भूल जाते हैं कि अधिनियम एक नागरिक को कोई भी कार्रवाई शुरू करने से रोकता है, और अनुच्छेद 51ए के आधार पर प्रत्येक नागरिक के कुछ मौलिक कर्तव्य हैं, जिनमें संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना शामिल है. यह अधिनियम राज्य पर एक प्रतिबंध लगाता है, जो कहता है कि आप सुनिश्चित करेंगे कि इस अधिनियम को इसकी समूची भावना के साथ लागू किया जाए. मुझे एक बात बताइए,  न्यायाधीशों – विशेष रूप से जस्टिस चंद्रचूड़ – के भीतर इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई तय करने का साहस क्यों नहीं था? क्योंकि वह जानते हैं कि यह बरकरार रहेगा.

दूसरी बात, क्या जस्टिस चंद्रचूड़ ने सरकार से, विशेष रूप से केंद्र में भाजपा से पूछा कि आप 1991 के इस अधिनियम को हटाने और निरस्त करने के लिए कानून क्यों नहीं लाते? ये वे चीजें हैं जिनका न्यायाधीशों को ध्यान रखना चाहिए. आखिरकार, वह संसद का एक अधिनियम था, और संवैधानिक शपथ के साथ आप शपथ लेते हैं कि ‘मैं संविधान और कानूनों का पालन करूंगा.’ एक बार जब आप वह शपथ ले लेते हैं, तो आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संविधान और कानूनों को बनाए रखने में हर संभव तरीके से उस शपथ का पालन और सम्मान किया जाए. और जस्टिस चंद्रचूड़ और उनके सहयोगी – देखिए, चंद्रचूड़ जिम्मेदार नहीं हैं; उनके सहयोगी जो अभी भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय में बैठे हैं, वे भी समान रूप से जिम्मेदार हैं कि वे मुख्य न्यायाधीश को बताएं कि ‘हम आपसे असहमत हैं, और हम इसका हिस्सा नहीं बनना चाहते.’

श्री अहमदी, एक सम्मानित वरिष्ठ अधिवक्ता जो इन सभी मामलों में अल्पसंख्यक समुदाय का पक्ष रख रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अब कोई भी इन पूजा स्थलों के चरित्र को नहीं बदल सकता. वे कहते हैं, ‘ज्ञानवापी में हस्तक्षेप मत कीजिए, मथुरा में हस्तक्षेप मत कीजिए.’ जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया, मैं कहना चाहूंगा कि जस्टिस कौल को सलाम, जिन्होंने कार्यवाही पर रोक लगा दी, जैसा उन्होंने कल संभल के संबंध में किया. तो ऐसे भी न्यायाधीश हैं. यह दिखाता है कि सुप्रीम कोर्ट में एक विभाजन है. इसलिए, जस्टिस चंद्रचूड़ और उनके सहयोगी जो ज्ञानवापी पर आदेश का हिस्सा थे, उनकी असलियत उजागर हो गयी है. इन न्यायाधीशों के प्रति बहुत सम्मान के साथ, मैं उनका सम्मान करता हूं, मैं उनकी प्रशंसा करता हूं – लेकिन उनमें मुख्य न्यायाधीश को यह कहने का साहस नहीं है, ‘मुख्य न्यायाधीश, हम इससे सहमत नहीं हैं, और हम खुद को इससे दूर रखते हैं.’

करण: पिछले कुछ हफ्तों में हमने जस्टिस चंद्रचूड़ पर कई बार चर्चा की है – पिछले दो महीनों में तीन, शायद चार बार. क्या आप चिंतित हैं कि मई 2022 की उनकी यह टिप्पणी उनके द्वारा कही गई सबसे नुकसानदायक बात हो सकती है?

दवे: न केवल नुकसानदायक, बल्कि जानबूझकर की गई. मुझे कोई संदेह नहीं है कि जब मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने यह फैसला किया तो वह किसी के हाथों में खेल रहे थे. वह इतने बुद्धिमान हैं कि ऐसा नहीं हो सकता कि वे कानून को न समझें. वह इतने बुद्धिमान हैं कि भूल जाएं कि उन्होंने खुद राम जन्मभूमि मामले में क्या कहा था. और उन्होंने अन्य फैसलों में धर्मनिरपेक्षता पर कई भाषण दिए हैं. तो, यहां एक व्यक्ति है, एक न्यायाधीश, जो सब कुछ जानता है, फिर भी वह ये टिप्पणियां करता है. चंद्रचूड़ जल्द ही भुला दिए जाएंगे. मुद्दा वह नहीं है. मुद्दा यह है कि देश भर की न्यायपालिका संसद द्वारा बनाए गए कानून का उल्लंघन करने के लिए जिम्मेदार है. यह एक दुखद स्थिति है. निचले स्तर के न्यायाधीश बाध्य हैं- मैं आपको बताऊं, सुप्रीम कोर्ट का एक बहुत ही दिलचस्प फैसला है जस्टिस चिन्नप्पा रेड्डी का असिस्टेंट कलेक्टर ऑफ कस्टम्स बनाम डनलप इंडिया लिमिटेड, जहां जस्टिस चिन्नप्पा रेड्डी बड़े दुखी शब्दों में कहते हैं कि इस देश में हर कोई सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून से बंधा है. हर कोई, कार्यपालिका और न्यायपालिका सहित. और वह कहते हैं, ‘हम उन्हें बार-बार याद दिला रहे हैं कि कृपया हमारे फैसलों का पालन करें, और हम बड़ी मुश्किल से पाते हैं कि वे पालन नहीं करते.’ तो, यह 1985 में था. फिर भी हम पा रहे हैं कि न्यायाधीशों को कानून या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रति कोई सम्मान नहीं है, चाहे वह संभल हो, वाराणसी हो, मथुरा हो या अजमेर.

करण: कुछ देर पहले आपने जस्टिस चंद्रचूड़ के बारे में कहा कि यह न केवल सबसे नुकसानदायक बात है, बल्कि यह जानबूझकर की गई थी, और फिर आपने जोड़ा, ‘मुझे कोई संदेह नहीं है कि वह किसी के हाथों में खेल रहे हैं.’ वह किसके हाथों में खेल रहे हैं? कौन उन्हें नियंत्रित कर रहा है?

दवे: हम सब जानते हैं कि क्या है… मुझे एक बात कहनी है. मैं आरएसएस के श्री भागवत का सम्मान करता हूं, हालांकि मैं उनकी विचारधारा से सहमत नहीं हूं, लेकिन उन्होंने खुद कहा कि आप ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि आपको हर मस्जिद के नीचे शायद एक शिवलिंग मिल सकता है.

करण: लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ किसके हाथों में खेल रहे हैं? आप किसकी ओर इशारा कर रहे हैं?

दवे: कौन सी ताकतें हैं जो चाहती हैं कि यह अभ्यास चलता रहे?

करण: आपका अर्थ मोदी और भाजपा से है?

दवे: …. देश को अस्थिर करने और अल्पसंख्यक समुदाय को दबाने और उत्पीड़न करने के लिए?

करण: आप एक बहुत गंभीर आरोप लगा रहे हैं कि एक न्यायाधीश और बाद में मुख्य न्यायाधीश के रूप में, वह राजनीतिक विचारों से प्रभावित हो रहे थे, और विशेष रूप से सत्तारूढ़ भाजपा के.

अगस्त 2024 में दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: पीआईबी)

दवे: इसमें कोई संदेह नहीं है. और उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ अपनी मित्रता से इसे साबित किया. उन्होंने फिर से साबित किया जब उन्होंने कहा कि अयोध्या के फैसले में मुझे भगवान से दिव्य ज्ञान मिला. मुख्य न्यायाधीश ये कैसे कर सकते हैं? आज देश में जो हो रहा है- और यहीं मुझे लगता है कि भाजपा, प्रधानमंत्री, श्री मोदी को गंभीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है- लव जिहाद, लैंड जिहाद, ये सभी भीड़ द्वारा हत्याएं, ये सभी राज्य के समर्थन से चल रहे हैं, विशेष रूप से भाजपा राज्यों में. मैं आपको एक उदाहरण देता हूं. बड़ौदा में हाल ही में एक युवक जिसके पिता भाजपा कार्यकर्ता हैं, की कथित तौर पर एक मुस्लिम लड़के द्वारा हत्या कर दी गई. अब, मुस्लिम लड़के पर मुकदमा चलना चाहिए, अभियोजन होना चाहिए, और उसे कानून के अनुसार सजा मिलनी चाहिए. वे क्या करते हैं कि वे बड़ौदा के पुराने हिस्से, मांडवी और अन्य क्षेत्रों में जाते हैं, और हर मुस्लिम हॉकर को हटाने की कोशिश करते हैं जो शायद 100 साल से वहां काम कर रहा है, और मुसलमानों की सभी दुकानें, जो थोड़ी सी भी बाहर निकली हुई हैं, उन्हें तोड़ देते हैं. और पुलिस, नगरपालिका अधिकारी डर का माहौल बनाते हैं.

आज आप डर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, और वह डर- एक बात याद रखिए, करण, ये मेरे शब्द नहीं हैं. आंबेडकर ने संविधान सभा की बहस के दौरान कहा था कि अल्पसंख्यक एक विस्फोटक शक्ति हैं, और अगर वे विस्फोट करते हैं, तो यह इस राष्ट्र के ताने-बाने को नष्ट कर देगा. हम वह स्थिति नहीं चाहते.

करण: तो आप क्या इसलिए चिंतित हैं- कि हम जल्द ही एक ऐसे समय में पहुंच सकते हैं जब सैकड़ों, शायद हजारों मस्जिदों का सर्वेक्षण किया जाएगा यह मानकर कि वे हिंदू मंदिरों पर बनाई गई थीं, केवल परंपरा या कहानियों के आधार पर? क्या आप चिंतित हैं कि यह बढ़ेगा, और यह पिटारा सैकड़ों, हजारों मामलों की ओर ले जाएगा?

दवे: मैं न केवल चिंतित हूं, बल्कि मैं उन लोगों से कहता हूं जो इस देश के इस्लामी इतिहास को मिटाना चाहते हैं, ‘आप लाल किले से क्यों नहीं शुरू करते? आप ताजमहल क्यों नहीं जाते? आप कुतुब मीनार क्यों नहीं जाते? उनके नीचे खुदाई शुरू करें! आइए इन हजारों स्मारकों को ध्वस्त कर दें जो इस देश की महान विरासत हैं.’ ताकि अब हम इस देश से इस्लामी आक्रमणकारियों का हर निशान मिटा दें? हम कहां खत्म करेंगे?

देखिए, यह एक अद्भुत राष्ट्र है. हिंदू धर्म एक अद्भुत धर्म है. मैं एक गौरवपूर्ण हिंदू हूं. मैं ब्राह्मण हूं. मैं हर दिन अपने भगवान की पूजा करता हूं. लेकिन मैं अन्य देवताओं और धार्मिक नेताओं का भी सम्मान करता हूं. आप इस चीज को जारी नहीं रख सकते. मुझे कोई संदेह नहीं है कि अगर इसे अभी नहीं रोका गया, तो यह इस देश को आग में झोंक देगा.

दुर्भाग्य से, जैसा कि मैंने कहा, भाजपा के पास कानून को निरस्त करने का साहस नहीं है क्योंकि वे जानते हैं कि संसद में उन्हें अपने ही सहयोगियों का समर्थन नहीं मिलेगा. अब, इसलिए, वे जो करना चाहते हैं- जो वे सीधे नहीं कर सकते, वे उसे अप्रत्यक्ष रूप से जारी रख रहे हैं.

करण: जैसा कि आपने कहा, जस्टिस चंद्रचूड़ ने पिटारा खोल दिया है, और जमीन तैयार कर दी है. हमें यह सुनिश्चित करने के लिए क्या करने की जरूरत है कि मामले पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर न हो जाएं?

दवे: सबसे पहले, मुझे लगता है कि देश इस बात से खुश होगा कि मुख्य न्यायाधीश खन्ना के नेतृत्व में एक नया सुप्रीम कोर्ट जन्म ले रहा है. और यह सुप्रीम कोर्ट 2014 से 2024 तक जो हुआ, उससे दूरी बना रहा है. यहां एक मुख्य न्यायाधीश हैं जो संतुलित हैं, जो गंभीर हैं, जो संविधान का सम्मान करते हैं. और यहां एक सुप्रीम कोर्ट है जहां उनके कई सहयोगी ऐसा करने को तैयार हैं.

करण: उनका कार्यकाल केवल सात महीने का है. क्या यह स्थिति बदलने के लिए पर्याप्त है…?

दवे: हमारे पास अब सुप्रीम कोर्ट में कई अच्छे जज हैं और आगे भी कई अच्छे मुख्य न्यायाधीश आ रहे हैं. मुझे कोई संदेह नहीं है कि वे मुख्य न्यायाधीश कानून की गरिमा को बनाए रखेंगे. मुझे आज याद आ रहा है… ये सरदार पटेल के शब्द हैं… सरदार पटेल संविधान निर्माण के दौरान अल्पसंख्यक समिति के प्रमुख थे. वही थे जिन्होंने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए प्रावधान दिए. और उन्होंने कहा, ‘देखिए, अगर हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करना बंद कर दें, तो अल्पसंख्यकों के पास शिकायत का कोई कारण नहीं होगा, और अल्पसंख्यक गायब हो जाएंगे. एक देश होगा, पूर्ण समानता होगी.’ और उन्होंने यह भी कहा, ‘अल्पसंख्यक समुदाय की तरह सोचकर देखो और उससे होने वाली पीड़ा को महसूस करो. तब आपको एहसास होगा कि कबो गलत है.’ तो, यहां महान लोग हैं – सरदार पटेल, आंबेडकर – जो कथित तौर पर प्रधानमंत्री श्री मोदी के आदर्श हैं, लेकिन वह इन मामलों में उनका अनुसरण नहीं करना चाहते. वह केवल मूर्तियां बनाना और उनके जन्मदिन आदि पर माला पहनाना चाहते हैं.

जस्टिस संजीव खन्ना. (बैकग्राउंड में सुप्रीम कोर्ट) (फोटो: पीआईबी/द वायर)

करण: मैं लाइव लॉ के प्रबंध संपादक मानस का हवाला देता हूं. वे कहते हैं ‘सुप्रीम कोर्ट को एक निर्णायक घोषणा करनी चाहिए कि धार्मिक चरित्र निर्धारित करने के बहाने उपासना स्थल अधिनियमको दरकिनार नहीं किया जा सकता.’ क्या आप उनसे सहमत हैं?

दवे: पूरी तरह से सहमत हूं. और मैं कहूंगा कि हालांकि जस्टिस खन्ना का हस्तक्षेप – जस्टिस खन्ना और जस्टिस संजय कुमार का – स्वागत योग्य था, मुझे लगता है कि उन्हें कुछ और करना चाहिए था. उन्हें वह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में वापस ले लेना चाहिए था और घोषित कर देना चाहिए था कि वह मुकदमा टिकने योग्य नहीं था. उन्हें एक सामान्य निर्देश देना चाहिए था. मैं आपको बताऊं, कई साल पहले शायद रिलायंस का पब्लिक इश्यू था, या मॉर्गन स्टैनली का पब्लिक इश्यू, और बड़ी संख्या में मुकदमे दायर किए जा रहे थे आने वाले पब्लिक इश्यू के खिलाफ, मुझे लगता है यह रिलायंस था, और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया और देश के हर न्यायालय को ऐसे मामले दर्ज करने से रोक दिया गया. आज यही जरूरत है. न्यायाधीशों को नए तरह से सोचने की जरूरत है.

आज दुर्भाग्य से हम एक विभाजन पैदा कर रहे हैं. आप गुजरात आइए, यह देखकर मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं कि दोनों समुदाय ध्रुवीकृत हो गए हैं. मुसलमान किसी भी क्षेत्र में हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते, और न ही हिंदू किसी भी क्षेत्र में मुसलमानों के साथ रह सकते हैं. आप दो क्षेत्र बना रहे हैं. और अहमदाबाद में, जहां अल्पसंख्यक समुदाय रहते हैं, जुहापुरा, अहमदाबाद में मेरे कई दोस्त इसे पाकिस्तान कहते हैं. क्या हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इसीलिए लड़ाई लड़ी थी? उन सभी ने अपनी जान दी – हजारों भारतीयों ने हमें आजादी दिलाने के लिए अपनी जान दी. विभाजन हो चुका है, जो मुसलमान पाकिस्तान जाना चाहते थे वे चले गए, लेकिन जिन्होंने यहां रहने का फैसला किया उन्होंने अपना भविष्य हम बहुसंख्यकों के हाथों में सौंप दिया. अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें यहां अपनेपन का एहसास कराएं. 77 साल के बाद, क्या हम अब 600-700 साल पहले क्या हुआ इसके बारे में बात करेंगे? अगर बाबर और औरंगजेब थे, तो अकबर भी था… मुझे याद है, जहां श्री भगवान की मूर्ति थी. उन्होंने गिरनार को छूट दी… उन्होंने उस भूमि का अधिकार महाप्रभुजी को दिया और फिर इसे कर से मुक्त कर दिया.

गढ़े मुर्दों को उखाड़ना, यह हमारे लिए अच्छा नहीं है. अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति न्याय करना है. उन्होंने अभी भी हम पर और संविधान पर अपना विश्वास बनाए रखा है. इस्लामिक दुनिया में पाकिस्तान सहित, हजारों आत्मघाती हमले हुए हैं. भारत में केवल एक आत्मघाती हमला हुआ है – पुलवामा. हम नहीं चाहते कि यह स्थिति इससे आगे बढ़े. हमें बहुत काम करना है. हमें 140 करोड़ लोगों की देखभाल करनी है. हमें रोजगार सृजन करना है. हमें गरीबों को गरीबी से उबारना है. हमें शिक्षा की जरूरत है. हमें अच्छे स्वास्थ्य की जरूरत है. हमें शांति की जरूरत है. हमें सद्भाव की जरूरत है. हमें समृद्धि की जरूरत है. यह सब खत्म हो जाएगा, करण.

मैं आपको एक बात बता सकता हूं – इसके बारे में सोच-सोचकर मुझे नींद नहीं आती. मेरी पत्नी मुझसे हर दिन कहती हैं, ‘आप इस हद तक क्यों सोच रहे हैं?’ लेकिन मैं अपने देश को लेकर चिंतित हूं. मैं अपने प्रिय लोगों के लिए चिंतित हूं… आप नहीं जानते कि यह मुझे कितना प्रभावित कर रहा है. कल्पना कीजिए कि अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित लोगों को यह कितना प्रभावित कर रहा होगा. जो हो रहा है वह वाकई दुखद है, और मुझे नहीं पता कि इस देश में कोई भी इसके खिलाफ खड़ा होकर लड़ना क्यों नहीं चाहता.

करण: दुष्यंत, आपका धन्यवाद. मैं  कुछ महत्वपूर्ण बातें दोहराना चाहता हूं जो आपने जस्टिस चंद्रचूड़ के बारे में कहीं. आपने कहा कि वे 2019 के अपने ही फैसले का उल्लंघन करने के दोषी हैं. आपने उन पर बौद्धिक बेईमानी का आरोप लगाया. आपने कहा कि वे किसी के हाथों में खेल रहे हैं, यह स्पष्ट करते हुए कि वह भाजपा सरकार है. और मई 2022 का उनका फैसला  इस देश को आग में झोंक सकता है. आपके लिए…

दवे: मैंने यह नहीं कहा कि भाजपा और सरकार के हाथों में खेल रहे हैं. मैंने कहा है कि वे किसी  के हाथों में खेल रहे हैं. मैं नहीं जानता किसके.

करण: आपकी भावना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.