पुण्यतिथि: आधुनिक भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में आंबेडकर का योगदान

बहुत कम लोगों को मालूम है कि आंबेडकर की अर्थशास्त्र पर भी गहरी पकड़ थी. लंदन स्‍कूल ऑफ इको‍नोमिक्‍स से उनकी थीसिस भारतीय आर्थिक इतिहास और मुद्रा नीति को समझने में मदद करती है. इस पुस्‍तक ने स्‍वतंत्र भारत की वित्तीय नींव तैयार करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

(फोटो साभार: फेसबुक)

भारत रत्‍न बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वह राजनीतिज्ञ, आंदोलनकर्मी, पत्रकार, समाज सुधारक, कानूनविद् और समाजशास्त्री के साथ अर्थशास्‍त्री भी थे. आधुनिक भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में उनका महत्‍वपूर्ण योगदान है. उन्‍होंने आर्थिक विकास की महत्‍वपूर्ण नीतियों का निर्माण किया.

डॉ. आंबेडकर के आर्थिक विचार आज भी भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं. उनके सुझावों ने भारत को आर्थिक स्‍वतंत्रता और स्थिरता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद की. उनके आर्थिक सुझावों के आधार पर हमारे देश में कई आर्थिक सुधार लागू हुए जिनमें श्रम कानून, भूमि सुधार और जल परियोजनाएं प्रमुख हैं.

भीमराव आंबेडकर की शिक्षा बड़ी कठिन परिस्थितियों में हुई. उन्‍होंने बचपन से ही सामाजिक असमानता और गरीबी का दंश झेला. इन विषम परि‍स्थितियों बावजूद उन्‍होंने उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त की. उनकी शिक्षा का सफर कोलंबिया विश्‍वविद्यालय अमेरिका से लेकर लंदन स्‍कूल ऑफ इकोनॉमिक्स तक पहुंचा.

उन्‍होंने 1923 में लंदन स्‍कूल ऑफ इको‍नोमिक्‍स से अर्थशास्‍त्र में पीएचडी की और उनकी थीसिस का विषय था – The Problem of the Rupee : Its Origin and its Solution. डॉ. आंबेडकर द्वारा लिखित यह ग्रंथ भारतीय आर्थिक इतिहास और मुद्रा नीति पर केंद्रित है. इसमें उनकी अर्थशास्‍त्र के प्रति गहरी समझ दिखाई देती है. इस पुस्‍तक ने स्‍वतंत्र भारत की वित्तीय नींव तैयार करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह पुस्‍तक आंबेडकर की दूरदर्शी सोच और आर्थिक कौशल को दर्शाती है. उन्‍होंने भारत के आर्थिक इतिहास को एक नई दृष्टि से देखा. यही कारण है कि यह पुस्‍तक आज भी आर्थिक नीतियों के सुधार में एक मार्गदर्शक का काम करती है.

गौरतलब है कि जब यह पुस्‍तक लिखी गई थी तब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था और भारतीय मुद्रा प्रणाली पर ब्रि‍टिश शासन में गहन बहस चल रही थी. शासन ने इसे ‘सिल्‍वर स्‍टैंडर्ड’ से ‘गोल्‍डन स्‍टैंडर्ड’ में बदला था. यह बदलाव ब्रिटिश शासन के तो हित में था पर भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लिए नुकसानदायक था. आंबेडकर ने अपनी इस पुस्‍तक में इसकी विस्‍तृत व्‍याख्‍या की और भारत के आर्थिक मुद्दों का समाधान प्रस्‍तुत किया.

19वीं शताब्‍दी में भारत की मुद्रा प्रणाली सिल्‍वर पर आधारित थी, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी की कीमत गिरने से भारतीय मुद्रा का अवमूल्‍यन हुआ था. ब्रिटिश सरकार ने इसका समाधान गोल्‍ड एक्‍सचेंज स्‍टैंडर्ड में किया था जिसका भारतीय अर्थव्‍यवस्‍‍था पर बुरा असर पड़ा था. आंबेडकर ने इसका विरोध करते हुए भारत के लिए इसे हानिकारक बताया था. उन्‍होंने सुझाव दिया था कि भारत को अपनी मुद्रा नीति स्‍वतंत्र रूप से निर्धारित करनी चाहिए. उन्‍होंने यह समझाने का प्रयास किया कि मुद्रा की स्थिरता और कीमतों का आपसी संबंध आर्थिक विकास के लिए जरूरी है.

वह सामाजिक न्‍याय, समानता और वंचित वर्ग का उत्‍थान चाहते थे. उनका आर्थिक द‍ृष्टिकोण इसी पर आधारित था. उन्‍होंने दलितों और पिछड़ों के लिए आर्थिक अवसर बढ़ाने पर जोर दिया. उन्‍होंने ब्रिटिश भारत की मुद्रा प्रणाली का गहन अध्‍ययन किया और अपनी थीसिस में उन्‍होंने भारतीय मुद्रा तथा इसके प्रबंधन में सुधार के उपाय सुझाए.

उन्‍होंने ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) का सुझाव दिया, जो 1935 में अस्तित्‍व में आई.

उन्‍होंने मजदूरों तथा औद्योगिक श्रमिकों की भलाई के लिए कई महत्‍वपूर्ण कदमों पर विचार किया, जैसे 8 घंटे का कार्यदिवस, न्‍यूनतम वेतन और श्रम कल्‍याण निधि की अवधारणा. उन्‍होंने भारतीय श्रम संगठनों को संगठित करने और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून प्रस्‍तावित किए.

उन्‍होंने कृषि में सुधार तथा किसानों की समस्‍याओं पर भी फोकस किया. जमींदारी प्रथा को समाप्‍त करने की वकालत की साथ ही कृषि को वैज्ञानिक ढंग से करने पर जोर दिया. सभी को खेती करने का समान अवसर मिले इसके लिए उन्‍होंने भूमि के राष्‍ट्रीयकरण का समर्थन किया.

वे आर्थिक विकास के लिए उद्योग और कृषि दोनों के संतुलित विकास को जरूरी मानते थे.

उन्‍होंने बजट प्रक्रिया में भी सुधार का सुझाव दिया. सरकार के व्‍यय की पारदर्शिता को आवश्‍यक बताया. टैक्‍स के विषय में उनका मानना था कि सरकार गरीबों से न्‍यूनतम टैक्‍स ले तथा अमीरों से टैक्‍स के रूप में अधिक योगदान प्राप्‍त करे.

बाबा साहेब लैंगिक असमानता के विरोधी थे. वे स्‍त्री पुरुष दोनो को बराबर मानते थे और दोनों को बराबर अधिकारों के समर्थक थे. यही कारण है कि उन्‍होंने महिला श्रमिकों के अधिकारों और रोजगार में समानता तथा समान वेतन की वकालत की. उनके प्रयासों के कारण ही महिलाओं को रोजगार के बेहतर अवसर मिले और कार्यस्‍थलों पर सुविधाएं प्राप्‍त हुईं. वे समाज की प्रगति का पैमाना महिलाओं की प्रगति को मानते थे. उनका साफ मानना था कि किसी समाज की प्रगति देखनी हो तो यह देखो कि उस समाज की महिलाओं ने कितनी प्रगति की है.

बहुत कम लोगों को पता होगा कि बाबा साहेब जल संसाधन प्रबंधन को बहुत महत्‍व देते थे. उन्‍होंने सिंचाई की कई परियोजनाओं में अपना गहरा योगदान दिया, उनमें दामोदर घाटी परियोजना और सोन नदी परियोजना प्रमुख हैं.

हमारे देश में आज भी सामाजिक और आर्थिक असमानता है. इसका कारण यह है हमारी आर्थिक न‍ीतियां. डॉ. आंबेडकर के आर्थिक सुझावों का उनका पालन नहीं किया गया. आंबेडकर ने संविधान के बारे में भी यह बात कही थी कि संविधान कितना भी अच्‍छा हो पर उसका कार्यान्‍वयन करने वाले लोग अच्‍छे नहीं हैं तो वह उपयोगी सिद्ध नहीं होगा. आज आर्थिक नीतियों का पालन कराने वाले अपने राजनीतिक लाभ को ध्‍यान में रखते हुए उनका कार्यान्‍वयन करते हैं. यही वजह है कि आज के समय में अमीर तो और अमीर हाेता जा रहा है और गरीब व्‍यक्ति गरीब ही बना रहता है. हमारी सरकारें अंबानी ओर अडानी के आर्थिक लाभ का ध्‍यान रखती हैं पर गरीब जनता के आर्थिक विकास पर फोकस नहीं करतीं. परिणाम यह है कि देश के नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता की खाई और चौड़ी होती जा रही है. ऐसे में आधुनिक भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में आंबेडकर के योगदान को याद करना जरूरी है.

आंबेडकर का मत था कि आर्थिक प्रगति तभी सार्थक है जब वह सब को लाभान्वित करे. उनका मानना था कि जब तक समाज के सभी वर्गों को समान अवसर और संसाधन नहीं मिलते तब तक समग्र विकास संभव नहीं है. उनके आर्थिक विचार आज भी दलित और वंचित वर्ग को मुख्‍यधारा में लाने के लिए उपयोगी हैं.

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं.)