हेमंत का परचम: कल्याणकारी योजनाओं और आदिवासी समर्थन ने भाजपा को किया परास्त

2014 से झारखंड में भाजपा की आदिवासी आरक्षित सीटों पर स्थिति लगातार कमजोर होती गई है. 2014 में उसने 28 एसटी आरक्षित सीटों में से 11 सीटें जीती थीं, लेकिन 2019 में यह संख्या घटकर 2 हुई, और अब 2024 में यह और गिरकर मात्र 1 सीट पर आ गई.

/
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हेमंत सोरेन (फोटो साभार: फेसबुक/हेमंत सोरेन)

23 नवंबर को संपन्न हुए 2024 झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व वाले ‘इंडिया’ गठबंधन ने 81 में से 56 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की. यह परिणाम विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि अधिकांश विश्लेषकों और सर्वेक्षणकर्ताओं ने करीबी मुकाबले की भविष्यवाणी की थी. हालांकि, चुनाव परिणामों ने झामुमो की प्रभावशाली स्थिति को उजागर किया, विशेष रूप से आदिवासी मतदाताओं और महिलाओं के बीच.

झारखंड विधानसभा चुनाव में, ‘इंडिया’ गठबंधन ने 56 सीटें जीतीं, जो किसी भी गठबंधन और झामुमो के चुनावी इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी जीत है. इस गठबंधन में, झामुमो ने 43 में से 34 सीटें जीतीं, जिसमें जीत की दर 79% थी; कांग्रेस, गठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी, ने 30 में से 16 सीटें जीतीं. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 6 में से 4 सीटें जीतीं, जिसकी जीत दर 66.6% थी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने 4 में से 2 सीटों पे जीत दर्ज किया.

दूसरी ओर, भाजपा ने इस बार गठबंधन के बावजूद खराब प्रदर्शन किया. उसने 68 में से केवल 21 सीटें जीतीं, और आजसू पार्टी ने 10 में से केवल 1 सीट पर जीत दर्ज की, जिसकी जीत दर मात्र 10% थी. यह आजसू के राजनीतिक जीवन की सबसे ख़राब प्रदर्शन है. जनता दल (यूनाइटेड) ने 2 में से 1, और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने 1 सीट पर जीत दर्ज की.

इस विधानसभा चुनाव में झारखंड ने पहली बार एक युवा नेता का उदय और उसकी बढ़ती लोकप्रियता देखी. जयराम महतो, जो एक पीएचडी छात्र हैं, झारखंड की राजनीति में छात्रों के बीच परीक्षा और राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के कारण राजनीतिक पटल पर उभरे. मात्र 2 वर्षों में, उन्होंने युवाओं और झारखंड कि जनता के बीच व्यापक समर्थन प्राप्त किया. उनकी पार्टी, झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम), का अपने पहले ही चुनाव में अच्छा प्रदर्शन रहा.

2024 के लोकसभा चुनाव में, जयराम ने अपने लोकसभा क्षेत्र से 3 लाख से अधिक वोट प्राप्त किए. इसी तरह, विधानसभा चुनाव में भी जेएलकेएम पार्टी ने काफी वोट जुटाए, लेकिन सिर्फ एक सीट, डुमरी (जिसे खुद जयराम ने जीता), पर जीत दर्ज की.

कुल मिलाकर, जेएलकेएम ने राज्य में लगभग 6% लोकप्रिय वोट प्राप्त किए, जो 10 लाख से अधिक होती हैं. यह भी अनुमान लगाया गया कि उन्होंने कम से कम 10 से 12 सीटों पर भाजपा गठबंधन को सिधा नुकसान पहुंचाया, जहां उन्होंने विजयी उम्मीदवारों के अंतर से अधिक वोट प्राप्त किए. उदाहरण के लिए, सिल्ली विधानसभा क्षेत्र में आजसू प्रमुख सुदेश महतो को झामुमो उम्मीदवार से लगभग 23 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा, जो कि जेएलकेएम उम्मीदवार को मिले वोट का लगभग आधा हिस्सा होगा. इसी तरह, चंदनकियारी में, जहां विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी चुनाव लड़ रहे थे, वे तीसरे स्थान पर रहे, जबकि झामुमो ने सीट जीती और जेएलकेएम उम्मीदवार को 56 हजार से अधिक वोट मिले और वह दूसरे स्थान पर रहा.

जेएलकेएम का उदय भाजपा गठबंधन (एनडीए) को अधिक नुकसान पहुंचाया, क्योंकि उनका अधिकतर वोट आजसू के समान कुर्मी-महतो समुदाय से आता है. जयराम भी आजसू प्रमुख सुदेश महतो की तरह कुर्मी-महतो समुदाय से आते हैं. इसके अलावा, जयराम युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं, जो आमतौर पर आजसू और भाजपा को वोट देते थे.

2014 से, झारखंड में भाजपा की आदिवासी आरक्षित सीटों पर स्थिति लगातार कमजोर होती गई है. 2014 में, उसने 28 एसटी आरक्षित सीटों में से 11 सीटें जीती थीं, लेकिन 2019 में यह संख्या घटकर केवल 2 रह गई, और अब 2024 में यह और गिरकर मात्र 1 सीट पर आ गई. यहां तक कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी, भाजपा झारखंड की 5 एसटी आरक्षित सीटों में से कोई भी सीट जीतने में असफल रही.

हाल के वर्षों में, भाजपा ने देशभर में आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए बड़े प्रयास किए हैं (जैसे जनजातीय गौरव दिवस, भारत की राष्ट्रपति पद पर आदिवासी महिला, ओडिशा के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री आदि). हालांकि, इन सभी प्रयासों के बावजूद, वे आदिवासी समुदायों को भाजपा के पाले में लाने में असफल रहे हैं.

इस झारखंड विधानसभा चुनाव में, भाजपा ने ‘घुसपैठ’ के कथानक को उभारा, जो उसके ‘बेटी, रोटी, माटी’ के नारे से जुड़ा हुआ था. दोनों ही कथानक विशेष रूप से संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्रों के आदिवासी मतदाताओं को लक्षित करने के उद्देश्य से थे. ‘बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों’ के मुद्दे को उठाते हुए, जो उनकी जमीन और बेटियों को हड़प रहे हैं, भाजपा कम से कम तीन मुख्य उद्देश्यों को पूरा करना चाहती थी. पहला, आदिवासी मतदाताओं को झामुमो से दूर कर अपने पक्ष में करना; दूसरा, अपने हिंदुत्व समर्थक, विशेष रूप से गैर-आदिवासी मतदाताओं को मजबूत करना; और तीसरा, आरएसएस को यह संदेश देना कि वह हिंदुत्व विचारधारा में विश्वास करती है और आदिवासियों (आरएसएस के लिए ‘वनवासी’) को बड़े हिंदू समाज में शामिल करना चाहती है.

संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्र भाजपा के लिए हमेशा से एक चुनौती रहे हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में, भाजपा इन दोनों क्षेत्रों की 16 एसटी आरक्षित सीटों में से एक भी सीट जीतने में विफल रही थी. इसी तरह, 2024 में भी वह केवल एक सीट जीत पाई, जो झामुमो के पूर्व नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने जीती हैं.

इसके अतिरिक्त, भाजपा दक्षिण छोटानागपुर की 11 एसटी सीटों में से किसी पर भी अपनी पकड़ नहीं बना पाई, जहां उसने 2019 में 2 सीटें जीती थीं.

महिलाएं अब देशभर में राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण कल्याणकारी वोट बैंक बन गई हैं. झारखंड में कुल 2.59 करोड़ मतदाताओं में से महिलाएं 1.28 करोड़ हैं. कम से कम 32 विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है, जिनमें से 26 एसटी आरक्षित सीटें हैं. झामुमो ने रणनीतिक रूप से ‘मईया सम्मान योजना’ (18-50 वर्ष की महिलाओं को 1000 रुपये की नकद सहायता) चुनाव से 2-3 महीने पहले शुरू की और सुनिश्चित किया कि चुनाव से पहले कई किस्तें वितरित की जाएं. इस योजना के अतिरिक्त, हेमंत सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन, परित्यक्ता महिलाओं, दिव्यांगों और पीवीटीजी के लिए विभिन्न योजनाएं चलाईं, जिनके लाभार्थियों की संख्या 40 लाख के आसपास है. जो कि राज्य के लगभग 10% जनसंख्या के बराबर है.

यह अक्सर देखा गया है कि महिलाओं को नकद सहायता देने से वे अपनी तात्कालिक पहचान (जाति और धर्म) से ऊपर उठकर आर्थिक हितों के आधार पर मतदान करती हैं. इससे वे एक संगठित लाभार्थी वर्ग बन गईं, और हेमंत ने सफलतापूर्वक इन्हें अपने पक्ष में लामबंद किया.

हेमंत सोरेन की सफलता और झामुमो की ऐतिहासिक जीत, आदिवासी मतदाताओं, महिलाओं और लाभार्थियों के समर्थन से ही संभव हो सका. विरोध लहर के बावजूद, हेमंत ने अपनी गिरफ्तारी को पृष्ठ के रूप में प्रयोग कर खूब सहानुभूति बटोरी जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट, बरहेट, को रिकॉर्ड 39 हजार वोटों से जीता.

झामुमो की राजनीतिक यात्रा को देखते हुए यह स्पष्ट है कि हेमंत सोरेन एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं, और उनके नेतृत्व में झामुमो का प्रदर्शन लगातार बेहतर हुआ है. 34 सीटें जीतकर झारखंड में झामुमो ने अपने चुनावी इतिहास में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. और यह कहना सुरक्षित है कि हेमंत सोरेन अपने पिता, शिबू सोरेन की तरह झारखंड के सच्चे उत्तराधिकारी और प्रमुख नेता बनकर उभरे हैं.

(लेखक दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पीएचडी शोधार्थी हैं.)