इन दिनों बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर और संविधान पर चर्चा संसद से सड़क तक हो रही है. सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आक्रामक हैं. ऐसे ही समय में देश के गृहमंत्री अमित शाह तैश और तेवर के साथ कहते हैं कि ‘आंबेडकर का नाम लेना अब फैशन हो गया है. आंबेडकर- आंबेडकर… इतना अगर भगवान का नाम लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता….’
यह बयान अमित शाह की दलित विरोधी मानसिकता को दर्शाता है.
विपक्ष को तो यह मुद्दा मिल ही गया है. उसका विरोध करना स्वाभाविक है. पर बाबा साहेब आंबेडकर को मानने वालों के लिए भी यह बयान नाकाबिले-बर्दाश्त है. क्योंकि उनके लिए बाबा साहेब फैशन नहीं बल्कि पैशन हैं, मोटिवेशन हैं, प्रेरणा हैं.
अमित शाह जिस तेवर के साथ बाबा साहेब आंबेडकर का नाम छह बार लेकर टिप्पणी करते हैं वह बाबा साहेब का अपमान तो है ही साथ ही उनकी झुंझलाहट को भी दर्शाता है.
राहुल गांधी ठीक ही कहते हैं कि मनुस्मृति मानने वालों को बाबा साहेब से तकलीफ तो होगी ही. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कहना भी उचित ही है कि जो स्वर्ग और नर्क की बात करते हैं वे मनुस्मृति को मानते हैं. स्वर्ग और नर्क की बातें मनुस्मृति में लिखी हैं.
खैर, भगवान का नाम लेने से स्वर्ग मिलने की बात तो अमित शाह जी जानें, पर बाबा साहेब आंबेडकर ने दबे-कुचले लोगों के मानवाधिकारों के लिए, उनकी बराबरी के लिए और गरिमा तथा स्वाभिमान से जीने के लिए जो किया, संविधान में उन्हें जो अधिकार दिए, प्रतिनिधित्व दिया, उससे वे दलितों के भगवान या मसीहा से कम नहीं हैं.
सांसद चंद्रशेखर आजाद का यह कहना सही है कि बाबा साहेब का नाम लेना कोई फैशन नहीं है बल्कि समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक परितर्वन के लिए क्रांति का प्रतीक है जिसने करोड़ों दबे कुचले लोगों को न्याय और अधिकारा दिलाए.
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भले ही एक्स पर छह ट्वीट करें, पर एक भी ट्वीट में वे अमित शाह के बयान की आलोचना नहीं करते. दरअसल भाजपा सरकार की बाबा साहेब और संविधान के प्रति असली मंशा क्या है, यह उजागर हो गया है, सब जान गए हैं.
अगर भाजपा सरकार बाबा साहेब के विचारों का मानने वाली होती तो दलितों पर होने वाले अत्याचारों पर लगाम लगाती. उन्हें उच्च प्रशासनिक पदों पर प्रतिनिधित्व के आधार पर बैठाती. पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बल्कि हो इसके उल्टा रहा है.
हाल ही में बुलंदशहर में एक दलित दूल्हे सिपाही रोबिन सिंह की बारात पर सवर्णों ने हमला कर दिया. दूल्हे को घोड़ी से गिरा दिया. बारातियों को घायल कर दिया. उनकी गाड़ियों पर पत्थर मारे. इसी प्रकार मध्य प्रदेश के दमोह जिले में एक दलित दूल्हा बग्घी में बैठ गया तो सवर्णों ने बग्घी वाले और घोड़ी पर हमला कर दिया. दलितों का घोड़ी पर चढ़ना, मूंछे रखना, उनका शानो-शौकत से शादी करना भी जातिवादी मानसिकता वाले सवर्णों को बर्दाश्त नहीं होता. ऐसा भी देखने में आता है कि सवर्ण टेंट वाले दलितों को शादी के लिए टेंट भी किराए पर नहीं देते. दलितों के साथ छुआछूत आज भी बरकरार है भले ही संविधान के आर्टिकल 17 में इसका उन्मूलन कर दिया गया हो.
दलित महिलाओं और लड़कियों पर कथित उच्च जाति के सवर्णों द्वारा होने वाले बलात्कारों, यौन हिंसा में कमी नहीं आई है. चार साल पहले हुए हाथरस की एक दलित बेटी की बलात्कार के बाद हत्या को लोग भूले नहीं होंगे. आज की तारीख में दलित बेटी के परिवार वाले ही दबंगों के आतंक के साए में जीने को मजबूर हैं. वे एक अपराधी जैसा जीवन जीने को विवश हैं जबकि दलित बेटी के आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं और पीड़िता के परिवार वालों को धमकाते रहते हैं.
प्राय: देखा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संविधान के आगे मत्था टेकते हैं और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की तस्वीर के सामने नमन करते हैं और उनकी प्रशंसा करते हैं. पर सब जानते हैं कि दलित वोट पाने के लिए यह उनका दिखावा है. भाजपा सरकार बाबा साहेब के स्मारक बनवा सकती है. उनकी मूर्तियां लगवा सकती है. बाबा साहेब के जन्मदिन 14 अप्रैल को राष्ट्रीय समरसता दिवस तथा 26 नवबंर को संविधान दिवस घोषित करती है. पर उनकी विचारधारा को नहीं अपनाती.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो अपने ठाकुर होने पर गर्व करते हैं. जातिवाद के समर्थक हैं जबकि बाबा साहेब ने जाति के विनाश की बात कही थी.
बाबा साहेब द्वारा निर्मित संविधान देश के हर नागरिक को बिना किसी जाति, संप्रदाय, लिंग, भाषा, क्षेत्र के आधार समान अधिकार प्रदान करता है. पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिस प्रकार के बयान देते हैं लगता है योगी जी देश को संविधान के आधार पर नहीं बल्कि मनुविधान के आधार पर चलाना चाहते हैं. वे कहते हैं यह देश राम और कृष्ण की परंपराओं से चलेगा बाबर और औरंगजेब की परंपरा से नहीं. यानी वे हिंदू मुसलमान के बीच नफरत फैलाने का काम करते हैं. जबकि हमारे संवैधानिक मूल्य सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देते हैं.
दूसरी ओर भाजपा सरकारें मस्जिदों के नीचे मंदिर खोजो अभियान में लगी हैं जो कि पूजास्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 का उल्लंघन है.
इसी प्रकार सरकार ‘एक देश एक चुनाव’ (One Nation One Election) जैसा आदेश लाकर संविधान के मूल संघीय ढांचे को खत्म करना चाहती है. इस तरह भाजपा सरकार सरेआम संविधान की धज्जियां उड़ा रही है.
आरएसएस और भाजपा देश को हिंदू राष्ट्र बनाने में लगे हैं जबकि संविधान के अनुसार हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है. बताते चलें कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा संविधान और बाबा साहेब के विचारों के खिलाफ है. एक तरफ भाजपा बाबा साहेब के भक्त होने का ढोंग करती है तो दूसरी तरफ उनके विचारों के विपरीत काम करती है. हिंदू राष्ट्र के बारे में बाबा साहेब 1945 में अपनी एक किताब पाकिस्तान या भारत का विभाजन में कहते हैं कि अगर हिंदू राष्ट्र एक सच्चाई बन जाता है तो यह देश के लिए सबसे बड़ी विपदा होगी. हिंदू राष्ट्र को हर हाल में रोका जाना चाहिए.
क्या आज भाजपा का कोई नेता कहेगा कि बाबा साहेब हिंदू राष्ट्र के खिलाफ थे इसलिए हम हिंदू राष्ट्र की अवधारणा का विरोध करते हैं.
आंबेडकर एक ऐसे भारत का सपना देखते थे जहां समता हो, समानता हो, स्वतंत्रता हो, भ्रातृत्व हो और सबको न्याय मिले. वे सामाजिक असमानता और आर्थिक असमानता के विरोधी थे. वे चाहते थे कि जाति और धर्म के नाम पर किसी के साथ भेदभाव न हो. सामाजिक सद्भाव हो, लोगों का आपस में मेलजोल हो. देश के नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता या अमीरी गरीबी की खाई न हो. देश के सभी नागरिक आर्थिक रूप से समृद्ध हों. पर आज देश की स्थिति इन उद्देश्यों के विपरीत है.
अगर भाजपा सरकारें सचमुच आंबेडकर के विचारों का आदर करती हैं तो वे उनके सपनों के भारत यानी समता, स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व और सभी के लिए न्याय वाले भारत के निर्माण की पहल क्यों नहीं करतीं? स्पष्ट है कि बाबा साहेब की विचारधारा को न अपनाना और दलित वोट बैंक के लिए बाबा साहेब के प्रति प्रेम दर्शाना उनका राजनीतिक एजेंडा मात्र है.
(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं.)