आज पच्चीस दिसंबर, महान फिल्मकार-अभिनेता चार्ली चैप्लिन का पुण्य तिथि है. इस अवसर पर पढ़िए उनकी पुस्तक ‘मेरी आत्मकथा’ का एक अंश. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का अनुवाद सूरज प्रकाश ने किया है.
मैं किशोरावस्था के मुश्किल और अनाकर्षक दौर में आ पहुंचा था और उम्र के संवेदनशील उतार-चढ़ावों से जूझ रहा था. मैं बुद्धूपने और अति नाटकीयता का पुजारी था, साथ ही स्वप्नजीवी और सुस्त. मैं ज़िन्दगी से ख़फ़ा भी रहता था और उसे प्यार भी करता था. मेरा दिमाग अविकसित कोष की तरह था जिसमें अचानक परिपक्वता के सोते से फूट रहे थे. विकृत मानसिकता की इस भूल-भुलैया में मैं इधर-उधर डोलता रहता और मेरी महत्त्वाकांक्षाएं रह-रहकर फूट पड़ती थीं. कला शब्द कभी भी मेरे दिमाग में या मेरी शब्द-संपदा में नहीं घुसा. थियेटर मेरे लिए रोजी-रोटी का साधन था, इससे ज़्यादा कुछ नहीं.
इस मानसिक व्यग्रता और भ्रम के आलम में मैं अकेला ही रहता आया था. इस अवधि के दौरान मेरी जिंदगी में वेश्याओं, फूहड़ औरतों और बीच-बीच में एकाध बार शराबख़ोरी के मौके आते-जाते रहे. लेकिन सुरा, सुंदरी और गाना-बजाना देर तक मेरे भीतर दिलचस्पी न जगाए रख पाए. मैं सचमुच रोमांस और रोमांच चाहता था.
मैं एडवर्डकालीन कपड़ों में ढके गदबदे बच्चे के मनोवैज्ञानिक नजरिए को अच्छी तरह से समझ सकता हूं. हम सबकी तरह वह भी ध्यान चाहता है, अपनी जिंदगी में रोमांस और ड्रामा चाहता है. फिर क्यों न प्रदर्शन और खरमस्ती की कामना उसके मन में आए, जिस तरह से पब्लिक स्कूल का लड़का अपनी आवारागर्दी और उद्दंडता के साथ इस कामना का प्रदर्शन करता है. क्या यह प्राकृतिक और स्वाभाविक नहीं है कि जब वह अपने वर्ग और तथाकथित बेहतर वर्गों को अपनी अकड़ फूँ दिखाते हुए देखे तो उसके मन में भी यही कुछ करने की ललक जागे.
अंतत: मुझे एक रंगारंग तमाशे, ‘केसै’ज़ सर्कस’ में काम मिल ही गया. मुझे डिक टर्पिन, हाईवे मैन और डॉक्टर फोर्ड बोडी पर प्रहसन करना था. मुझे सफलता का पूरा इलहाम था क्योंकि यह सिर्फ निचले दर्जे की कॉमेडी के अलावा भी बहुत कुछ था. यह एक प्रोफ़ेसरनुमा विद्वान व्यक्ति का चरित्र-चित्रण था और मैंने मन-ही-मन तय कर लिया था कि मैं उसे जस-का-तस पेश करूंगा. मैं कंपनी में सबकी आंखों का तारा था और हफ़्ते में तीन पाउंड कमाता था.
इसमें बच्चों का एक ट्रूप भी शामिल था जो एक सड़क दृश्य में बड़ों की नकल उतारता था. मुझे लगा यह बहुत ही वाहियात क़िस्म का शो था लेकिन इसने मुझे एक कॉमेडियन के रूप में ख़ुद को विकसित करने का मौका दिया.
जब ‘केसै’ज़ सर्कस’ ने लंदन में प्रदर्शन किए तो हम छह लोग मिसेज़ फ़ील्ड्स के साथ केनिंगटन रोड पर रहे. वे पैंसठ बरस की एक बूढ़ी विधवा महिला थीं जिनकी तीन बेटियां थीं. फ्रेडरिका, थेल्मा और फोबे. फ्रेडेरिका की एक रूसी कैबिनेट मेकर के साथ शादी हो रखी थी जो वैसे तो शरीफ़ आदमी था लेकिन निहायत ही बदसूरत था. उसका चौड़ा-सा तातार चेहरा था, लाल बाल थे, लाल ही मूंछें और आंख में भेंगापन था. हम सभी छह लोग रसोई में खाना खाया करते इसलिए परिवार को बहुत अच्छी तरह से जानने लग गए थे. सिडनी जब भी लंदन में काम कर रहा होता, वहीं ठहरता.
अंतत: जब मैंने ‘केसै’ज़ सर्कस’ छोड़ा तो मैं केनिंगटन रोड लौटा और फ़ील्ड्स परिवार के पास ही रहता रहा. बूढ़ी महिला भली, धैर्यवान और मेहनतकश थीं और उनकी कमाई का जरिया कमरों से आने वाला किराया ही था. फ्रेडरिका, यानी शादीशुदा लड़की का खर्चा-पानी उसका पति देता था. थेल्मा और फोबे घर के काम-काज में हाथ बंटातीं. फोबे की उम्र पन्द्रह बरस थी और वह ख़ूबसूरत थी. उसका कद लंबा तथा शरीर झुका हुआ था. वह शारीरिक तथा भावनात्मक रूप से मुझ पर बुरी तरह से आसक्त थी. जबकि मैं दूसरी वाली के प्रति अपनी भावनाओं को रोकता क्योंकि मैं अभी सत्रह बरस का भी नहीं हुआ था और लड़कियों के मामले में मेरी नीयत डाँवाँडोल थी. लेकिन वह तो जैसे साध्वी प्रकृति की थी इसलिए हमारे बीच कुछ भी नहीं हुआ. अलबत्ता, वह मुझे पसंद करने लगी और आगे चलकर हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए.
फ़ील्ड्स परिवार बहुत ही संवेदनशील था और कई बार वे लोग आपस में ही एक-दूसरे से झड़पों में उलझ जाते. इस तू-तू, मैं-मैं का कारण अक्सर यही होता कि घर का काम करने की बारी किसकी है. थेल्मा, जो लगभग बीस बरस की थी, घर की मालकिन होने का दम भरती थी. वह आलसी थी और हमेशा यही दावा करती थी कि काम करने की बारी फ्रेडरिका या फोबे की है. बस यह मामूली-सी बात तू-तू, मैं-मैं से बढ़कर हाथापाई तक जा पहुंचती तथा परिवार के गड़े मुर्दे उखाड़े जाते और पूरे परिवार की बखिया उधेड़ी जाती.
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मुझे लगभग तीन महीने होने को आए थे लेकिन मेरे पास कोई काम नहीं था और सिडनी ही मेरा खर्चा उठा रहा था. वही मेरे रहने-खाने के लिए मिसेज फ़ील्ड्स को हर हफ़्ते के चौदह शिलिंग दे रहा था. अब वह फ्रेड कार्नो की कंपनी के साथ मुख्य हास्य कलाकार की भूमिका निभा रहा था और अक्सर फ्रेड से अपने हुनरमन्द छोटे भाई की बात छेड़ देता था. लेकिन कार्नो उसकी बातों पर कान ही नहीं धरते थे. उनका मानना था कि अभी मैं बहुत छोटा हूं.
उस समय लंदन में यहूदी हास्य कलाकारों की धूम थी. मैंने सोचा कि मैं भी मूँछें लगाकर अपनी कम उम्र छुपा लूंगा. सिडनी ने मुझे दो पाउंड दिए जिनसे मैं गाने-बजाने का साज़ो-सामान ख़रीद लाया और लतीफ़ों की एक अमरीकी किताब ‘मैडिसंस बजट’ में से ढेर-सारे मज़ाक़िया संवाद याद कर लिए. मैं हफ़्तों तक प्रैक्टिस करता रहा और फ़ील्ड्स परिवार के सामने प्रदर्शन करता रहा. वे ध्यान से मेरा काम देखते और मेरा उत्साह भी बढ़ाते लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं.
मैंने फ़ोरेस्टर म्यूज़िक हॉल में बिना एक भी धेला दिए एक हफ़्ते ट्रायल का जुगाड़ कर लिया था. यह एक छोटा-सा थियेटर था जो माइल एंड रोड से पीछे की तरफ़ यहूदी चौक पर बीचोबीच बना हुआ था. मैं ‘कैसे’ज़ सर्कस’ के साथ वहां पहले भी अभिनय कर चुका था, अत: मैनेजमेंट ने सोचा कि मैं इस लायक़ तो होऊंगा ही कि मुझे एक मौक़ा दिया जाए. मेरी सारी उम्मीदें और सपने इसी ट्रायल पर टिके हुए थे.
फ़ोरेस्टर में प्रदर्शन करने के बाद मैं इंग्लैंड के सभी प्रमुख सर्किटों में प्रदर्शन करता. कौन जाने कि मैं एक बरस के भीतर ही रंगारंग कार्यक्रमों के शो का सबसे बड़ा और अख़बारों की हैडलाइनों पर छा जानेवाला कलाकार बन जाऊं मैंने पूरे फ़ील्ड्स परिवार से वादा किया कि मैं उन्हें हफ़्ते के आख़िरी दिनों के टिकट दिलवा दूंगा. तब तक मैं अपनी भूमिका के साथ भी अच्छी तरह से न्याय कर पाऊंगा.
‘मेरा ख्याल है कि आप अपनी सफलता के बाद हम लोगों के साथ नहीं रहना चाहेंगे?’ फोबे ने पूछा था.
‘बेशक, मैं यहीं रहूंगा.’
सोमवार की सुबह बारह बजे बैंड रिहर्सल और संवाद अदायगी आदि की रिहर्सल थी जिसे मैंने व्यावसायिक तरीक़े से निपटाया. लेकिन अब तक मैंने अपने मेकअप की तरफ़ पर्याप्त ध्यान नहीं दिया था. रात के शो से पहले मैं घंटों तक ड्रेसिंग रूम में बैठा माथापच्ची करता रहा, नए-नए प्रयोग करता रहा, लेकिन मैं भले ही कितने भी लम्बे रेशमी बाल क्यों न लगा लूं, मैं अपनी उम्र नहीं छुपा पा रहा था. हालांकि, मैं इस बात से अनजान था कि मेरी कॉमेडी बहुत अधिक यहूदी विरोधी थी और मेरे लतीफ़े पिटे-पिटाए और वाहियात थे. यहां तक कि मेरा यहूदी उच्चारण भी घटिया था, उस पर तुर्रा यह कि मैं बिलकुल भी मज़ाक़िया नहीं लग रहा था.
पहले दो-एक लतीफ़ों के बाद ही जनता ने सिक्के और संतरे के छिलके फेंकने और पैर से जमीन थपथपाना शुरू कर दिया था. पहले तो मैं समझ ही नहीं पाया कि आख़िर यह हो क्या रहा है! लेकिन फिर इसका आतंक मेरे सिर पर चढ़ गया. मैंने फटाफट रेल की गति से बोलना शुरू कर दिया. हुल्लड़बाजी और संतरों तथा सिक्कों की बरसात बढ़ती जा रही थी. जब मैं स्टेज से नीचे उतरा तो मैं मैनेजमेंट का फ़ैसला सुनने के लिए भी नहीं रुका, सीधे ड्रेसिंग रूम में गया, अपना मेकअप उतारा, थियेटर से बाहर निकला और फिर कभी वहां वापस नहीं गया. यहां तक कि अपनी संगीत की किताबें उठाने भी नहीं गया.
काफ़ी रात हो चुकी थी जब मैं वापस केनिंगटन रोड पहुंचा. फ़ील्ड्स परिवार सोने जा चुका था और इसके लिए मैं उनका एहसानमंद ही था कि वे सो चुके थे. सुबह नाश्ते के वक़्त मिसेज फ़ील्ड्स इस बारे में जानने को चिंतित थीं कि शो कैसा रहा? मैंने उदासीनता दिखाई और कहा, ‘वैसे तो ठीक रहा लेकिन उसमें कुछ हेर-फेर करने की जरूरत पड़ेगी.’
उन्होंने बताया कि फोबे नाटक देखने गई थी लेकिन उसने वापस आकर कुछ बताया नहीं क्योंकि वह बहुत थकी हुई थी और सीधे ही सोने चली गई. जब मैंने बाद में फोबे को देखा तो उसने इसका कोई ज़िक्र नहीं किया. मैंने भी कोई ज़िक्र नहीं किया और न ही मिसेज़ फ़ील्ड्स ने या किसी और ने कभी इसका कोई ज़िक्र किया और न ही इस बात पर हैरानी ही व्यक्त की कि मैं उसे पूरे सप्ताह जारी क्यों नहीं रख रहा हूं?
भगवान का शुक्र है कि उन दिनों सिडनी दूसरे प्रदेशों की तरफ गया हुआ था और मैं उसे बताने की जहमत से बच गया कि आख़िर हुआ क्या था? लेकिन उसने अंदाजा जरूर लगा लिया या हो सकता है फ़ील्ड्स परिवार ने उसे बता दिया हो क्योंकि उसने मुझसे कभी भी इस बारे में कोई पूछताछ नहीं की. मैंने उस रात के दु:स्वप्न को अपनी स्मृति से धो डालने की पूरी कोशिश की लेकिन उसने मेरे आत्मविश्वास पर एक न मिटने वाला धब्बा छोड़ दिया था. उस भयावह अनुभव ने मुझे यह पाठ पढ़ाया कि मैं ख़ुद को सच्ची रोशनी में देखूं.
मैंने महसूस कर लिया था कि मैं रंगारंग हास्य कलाकार नहीं हूं. मेरे भीतर आत्मीय और नज़दीक आने की वह कला नहीं थी जो आपको दर्शकों के निकट ले जाती है. अत: मैंने अपने आपको तसल्ली दी कि मैं चरित्र प्रधान हास्य कलाकार हूं. अलबत्ता, व्यावसायिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने से पहले मुझे दो-एक और निराशाओं का सामना करना पड़ा.
सत्रह बरस की उम्र में मैंने ‘द मेरी मेजर’ नाम के एक नाटक में किशोर युवक के रूप में मुख्य पात्र का अभिनय किया. यह एक बेकार, हतोत्साहित करने वाला नाटक था जो सिर्फ़ एक हफ़्ते चला. मुख्य नायिका, जो मेरी बीवी बनी थी, पचास बरस की औरत थी. हर रात जब वह मंच पर आती तो उसके मुंह से जिन की बू आ रही होती और मुझे उसके पति की भूमिका में, उत्साह से लबरेज़ होकर उसे अपनी बांहों में लेना पड़ता और उसे चूमना पड़ता. इस अनुभव ने मेरा इस बात से मन ही खट्टा कर दिया कि मैं कभी मुख्य कलाकार बनूं.
इसके बाद मैंने लेखन में हाथ आजमाए. मैंने एक कॉमेडी नाटक लिखा जिसका नाम था -‘ट्वैल्व जस्ट मैन’. यह एक हल्का-फुल्का हास्य नाटक था जिसमें यह दिखाया गया था कि किस तरह जूरी वचनभंग के एक मामले में बहस करती है. जूरी के सदस्यों में से एक गूँगा-बहरा था, एक शराबी था और एक अन्य नीम-हक़ीम था.
मैंने यह आइडिया चारकोट को बेच दिया, जो रंगारंग मंच का एक हिप्नोटिस्ट था और अपने किसी सहायक को हिप्नोटाइज़ करता तथा उसे आँखों पर पट्टी बांधकर शहर की गलियों में गाड़ी चलाने के लिए प्रेरित करता जबकि वह ख़ुद पीछे बैठकर उस पर चुंबकीय प्रभाव छोड़ता रहता. उसने मुझे मेरी स्क्रिप्ट के लिए तीन पाउंड दिए लेकिन यह शर्त भी जोड़ दी कि मैं ही उसका निर्देशन भी करूंगा. हमने अभिनेताओं आदि का चयन किया और केनिंगटन रोड पर हॉर्न्स पब्लिक हाउस क्लब रूम में रिहर्सल शुरू कर दी. तभी एक बूढ़े खार खाए एक्टर ने कह दिया कि यह नाटक न केवल अनपढ़ों वाला है बल्कि मूर्खतापूर्ण भी है.
तीसरे दिन जब रिहर्सल चल रही थी तो मुझे चारकोट का एक नोट मिला कि उसने इस नाटक का निर्माण न करने का फ़ैसला कर लिया है.
अब चूंकि मैं जांबाज टाइप का नहीं था, मैंने नोट अपनी जेब के हवाले किया और रिहर्सल जारी रखी. मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि उन्हें रिहर्सल करने से रोक सकूं. इसलिए लंच के समय मैं सबको अपने कमरे पर ले आया और उनसे कहा कि मेरा भाई उनसे बात करना चाहता है. मैं सिडनी को बेडरूम में ले गया और उसे नोट दिखाया. नोट पढ़ने के बाद सिडनी ने कहा, ‘ठीक है, तुमने उन्हें इस बारे में बता दिया है ना!’
‘नहीं,’ मैं फुसफुसाया.
‘तो जाकर बता दो.’
‘मैं नहीं बता सकता. बिलकुल भी नहीं. वे लोग तीन दिन तक फ़ालतू में रिहर्सल करते रहे हैं.’
‘लेकिन इसमें तुम्हारा क्या दोष?’ सिडनी ने कहा.
‘जाओ और उन्हें बता दो.’ वह चिल्लाया.
मैं हिम्मत हार बैठा और रोने लगा, ‘क्या कहूं मैं उनसे?’
‘मूर्ख मत बनो,’ वह उठा और साथ वाले कमरे में आया और उन सबको चारकोट का नोट दिखाया और समझाया कि क्या हुआ है. उसके बाद वह सबको नुक्कड़ के पब तक ले गया और सबको सैंडविच और एक-एक ड्रिंक दिलवाया.
अभिनेता एकदम मनमौजी होते हैं. कब क्या कर बैठें, कहा नहीं जा सकता. वह बूढ़ा आदमी जो पहले इतना ज़्यादा भुनभुना रहा था, एकदम दार्शनिक हो गया और जब सिडनी ने उसे बताया कि मैं किस बुरी हालत में था तो वह हंसा और मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए बोला, ‘इसमें तेरा कोई दोष नहीं है पुत्तर, यह सब तो उस हरामी चारकोट का किया-धरा है.’
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फोरेस्टर्स में अपनी असफलता के बाद मैंने जिस काम में भी हाथ डाला, उसी में धराशायी हुआ और मुझे एक बार फिर असफलता का मुंह देखना पड़ा. अलबत्ता, आशावादी बने रहना जवानी का सबसे बड़ा गुण होता है, क्योंकि इस उम्र में आदमी स्वभावत: यह मानकर चलता है कि प्रतिकूल परिस्थितियां अल्पकालिक होती हैं और लगातार बदक़िस्मती का दौर भी सही होने के सीधे और सँकरे रास्ते की तरह संदिग्ध होता है. निश्चित तौर पर दोनों ही समय के साथ-साथ बदलते हैं.
मेरी क़िस्मत ने भी पलटा खाया. एक दिन सिडनी ने बताया कि मि. कार्नो मुझसे मिलना चाहते हैं. ऐसा लगा कि वे अपने किसी हास्य कलाकार से नाख़ुश थे जो ‘द फुटबॉल मैच’ नाटक में मि. हैरी वेल्डन के साथ भूमिका कर रहा था. यह कार्नो साहब का अत्यन्त सफल नाटक था. वेल्डन अत्यन्त लोकप्रिय हास्य कलाकार थे, जो तीसरे दशक में अपनी मृत्यु तक लगातार लोकप्रिय बने रहे.
मि. कार्नो थोड़े मोटे, तांबई रंग के आदमी थे. उनकी आंखों में चमक और हमेशा नापने-जोखने के भाव होते. अपना कॅरियर उन्होंने बांस के डंडों पर करतब दिखाने वाले एक्रोबैट के रूप में शुरू किया था और इसके बाद उन्होंने अपने साथ तीन धमाकेदार हास्य कलाकारों की चौकड़ी बनाई. ये चौकड़ी मूकाभिनीत नाटकों में मािहर थी. वे ख़ुद भी बहुत उत्कृष्ट हास्य अभिनेता थे और उन्होंने कई हास्य भूमिकाएं की थीं. वे उस वक़्त तक भी हास्य भूमिकाएं करते रहे जब उनकी पांच-पांच कंपनियां एक साथ चल रही थीं.
उनकी चौकड़ी के मूल सदस्यों में से एक उनकी सेवानिवृत्ति का मज़ेदार क़िस्सा यूं बताया करता था: एक रात मैनचेस्टर में प्रदर्शन के बाद मंडली ने शिकायत की कि कार्नो की टाइमिंग गड़बड़ा गई थी और उन्होंने सारे लतीफ़ों के मज़े पर पानी फेर दिया. कार्नो, जिन्होंने तब तक अपने पांच प्रदर्शनों से 50,000 पाउंड जुटा लिए थे, कहा, ‘ठीक है मेरे दोस्तों, अगर आप लोगों को ऐसा लगता है तो यही सही. मैं छोड़ देता हूं.’ फिर अपनी विग उतारते हुए उन्होंने उसे ड्रेसिंग टेबल पर पटका और हंसते हुए बोले, ‘इसे आप लोग मेरा इस्तीफ़ा समझ लें.’
मि. कार्नो का घर कोल्ड हार्बर लेन, कैम्बरवेल में था जिससे सटा हुआ एक गोदाम था, उसमें वे अपनी बीस प्रदर्शन कंपनियों के लिए मंच सज्जा का सामान रखा करते थे. उनका ऑफ़िस भी वहीं था. जब मैं वहां पहुंचा तो वे बहुत प्यार से मिले. उन्होंने कहा, ‘सिडनी मुझे बताता रहा है कि तुम कितने अच्छे हो,’ उन्होंने पूछा, ‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम ‘द फुटबॉल मैच’ में हैरी वेल्डन के सामने अभिनय कर पाओगे?’
हेरी वेल्डन को ख़ास तौर पर बहुत ऊंची पगार पर रखा गया था. उनकी पगार चौंतीस पाउंड प्रति सप्ताह थी.
‘मुझे सिर्फ़ एक मौक़ा चाहिए,’ मैंने आत्मविश्वासपूर्वक कहा.
वे मुस्कराए, ‘सत्रह बरस की उम्र बहुत कम होती है और तुम तो और भी छोटे लगते हो!’
इस पर मैंने कन्धे उचकाए, ‘यह सब तो मेकअप से किया जा सकता है.’
कार्नो हंसे. बाद में सिडनी ने मुझे बताया था कि इस कंधे उचकाने ने ही मुझे काम दिलवाया था.
‘ठीक है, ठीक है, हम देख लेंगे कि तुम क्या कर सकते हो.’
यह काम मुझे तीन सप्ताह तक ट्रायल के रूप में करना था जिसके एवज़ में मुझे प्रति सप्ताह तीन पाउंड और दस शिलिंग मिलते और अगर मैं सन्तोषजनक पाया जाता तो मुझे एक बरस के लिए क़रार पर रख लिया जाता.
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लंदन कोलेज़ियम में प्रदर्शन शुरू होने से पहले मेरे पास अपनी भूमिका का अध्ययन करने के लिए एक सप्ताह का समय था. कार्नो साहब ने मुझे बताया कि मैं जाकर शेफ़र्ड बुश एम्पायर में ‘द फुटबॉल मैच’ देखूं और उस आदमी का अध्ययन करूं जिसकी भूमिका मुझे करनी है. मुझे यह मानने में कोई शक नहीं है कि वह उदासीन और संकोची व्यक्ति था और यह भी कोई झूठी शेखी नहीं है कि मैं जानता था कि मैं उससे आगे निकल जाऊंगा. भूमिका में थोड़े और स्वांग की ज़रूरत थी. मैं अपना मन बना चुका था कि मैं उसे ठीक वैसे ही पेश करूंगा.