सुप्रीम कोर्ट के जज ‘लोक सेवक’ नहीं, इसलिए लोकपाल के अधिकार क्षेत्र के अधिन नहीं: लोकपाल

पूर्व सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार, ख़ास नेताओं व राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाने के लिए पद के दुरुपयोग के आरोपों पर सुनवाई से इनकार करते हुए लोकपाल ने कहा कि शीर्ष अदालत के जज उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते.

(फोटो साभार: यूट्यूब/द वायर)

नई दिल्ली: एक महत्वपूर्ण फैसले में भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई के लिए गठित लोकपाल ने माना है कि उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीश उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को इससे छूट है क्योंकि वे ‘लोक सेवक’ नहीं हैं.

लोकपाल द्वारा यह तर्क सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के खिलाफ आरोपों पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए दिया गया है, जिसमें बताया गया कि यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है.

मालूम हो कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2024 को शिकायत दर्ज कराई गई थी. 382 पन्नों की शिकायत में पूर्व सीजेआई पर भ्रष्टाचार और खास राजनेताओं व राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाने के लिए पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था. हालांकि, लोकपाल ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर अधिकार क्षेत्र की कमी का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी.

इस संबंध में 3 जनवरी के आदेश में लोकपाल ने कहा है कि सीजेआई या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ‘लोक सेवक’ की परिभाषा के तहत नहीं आते क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की स्थापना संसद के किसी अधिनियम के तहत नहीं बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत की गई है.

इसके अलावा लोकपाल मंडल की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को न तो पूरी तरह से और न ही आंशिक रूप से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाता है और न ही उसके द्वारा नियंत्रित किया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय के खर्च का भार भारत की संचित निधि पर होता है और यह केंद्र सरकार द्वारा फंडिंग पर निर्भर नहीं है.

लोकपाल के अनुसार, ‘यह कहना पर्याप्त है कि सुप्रीम कोर्ट, भले ही जजों का एक निकाय है, लेकिन 2013 के अधिनियम की धारा 14(1)(एफ) में प्रयुक्त ‘निकाय’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है, क्योंकि यह संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित नहीं है. इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट न तो पूरी तरह या आंशिक रूप से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है और न ही उसके द्वारा नियंत्रित है. इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट के व्यय का भार भारत की संचित निधि पर पड़ता है. यह केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित होने या किसी भी तरह से उसके द्वारा नियंत्रित होने पर निर्भर नहीं है, जिसमें इसके प्रशासनिक कार्य भी शामिल हैं. यही तर्क सुप्रीम कोर्ट के जज या सीजेआई पर भी लागू होना चाहिए, अर्थात, वे पूरी तरह या आंशिक रूप से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित नहीं हैं या उसके द्वारा नियंत्रित नहीं हैं.’

हालांकि, लोकपाल ने इस फैसले को उच्च न्यायालयों सहित अन्य अदालतों के न्यायाधीशों से अलग किया, जो संसद के एक अधिनियम के तहत स्थापित हैं.

लोकपाल ने स्पष्ट किया, ‘हमें यह साफ करने की आवश्यकता है कि ये दृष्टिकोण केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीश की स्थिति पर विचार करने के लिए है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 के आधार पर स्थापित किया गया है. यह दृष्टिकोण अधिनियम के तहत स्थापित उच्च न्यायालयों सहित अन्य न्यायालयों के न्यायाधीशों पर बिल्कुल लागू नहीं हो सकता है.’

हालांकि, लेकपाल द्वारा ये भी कहा गया, ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि शिकायतकर्ता ऐसे अन्य उपायों को अपनाने के लिए स्वतंत्र है, जो कानून में स्वीकार्य हो सकते हैं. ऐसा नहीं समझा जा सकता है कि हमने आरोपों के गुण-दोष पर किसी न किसी तरह से कोई राय व्यक्त की है, जिसमें शिकायतकर्ता के उठाए जाने वाले कानूनी उपाय भी शामिल हैं.’

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