चंदौली (उत्तर प्रदेश): इस वक्त इस गांव में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है लेकिन आदिवासी ग्रामीणों का हलक अभी से सूखने लगी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लगभग 130 किमी और चंदौली जिला मुख्यालय से 80 किमी दूरी पर नौगढ़ तहसील में विंध्य के पहाड़ों और सदाबहार घने जंगलों के बीच बसा है केल्हड़िया गांव. 130-135 से अधिक नागरिकों की आबादी वाले गांव में बिजली को छोड़ अन्य कोई बुनियादी सुविधा नहीं है, न ही पेयजल की उचित व्यवस्था. साफ़ पेयजल की आस में केल्हड़िया में कई पीढ़ियां मर-खप गई.
ग्रामीणों के अनुसार, जनवरी के बाद चुआड़ (पहाड़ के पत्थरों में से रिसता पानी) से पानी मिलना भी कम हो जाएगा. फिर ग्रामीण भालू, लकड़बग्घा व अन्य जंगली जानवरों के हमले की आशंका के बीच जंगल में पत्थरों के बीच इकठ्ठा पानी को खोजने व इस्तेमाल के लिए घर लाने में जुट जाएंगे. नागरिकों को पानी लाने में रोजाना तीन से चार घंटे खर्च करने पड़ते हैं.
यह पानी स्वच्छता मानक पर पीने योग्य नहीं, लेकिन, ग्रामीणों के पास कोई और साधन है ही नहीं.
सर्दियों में पेयजल की किल्लत से जूझ रहे लोगों की परेशानी चिलचिलाती गर्मी में किस कदर भयावह हो जाती है, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.
पीने को पानी नहीं, फसल भी चली गई
भोला कोल ‘द वायर हिंदी’ को स्थानीय नागरिकों को पीड़ा बताते हैं. वह कहते हैं, ‘कई पीढ़ियों से इस केल्हड़िया गांव के बाशिंदे चुआड़ का पानी पीने को विवश हैं. जनवरी महीने तक यह पानी मिलेगा. फिर इसके बाद हम लोगों को पानी के लिए जंगल-जंगल भटकना पड़ेगा. विगत 20-25 सालों से पंचायत, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सिर्फ प्रत्याशी और उनके समर्थक वोट मांगने आते हैं.’
‘सभी पक्की सड़क, अस्पताल, ट्यूबबेल, हैंडपंप आदि लगाने का वादा करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई गांव में झांकने तक नहीं आता है. कई बार तहसील में जल किल्लत के बारे में आवेदन दिया गया, लेकिन हालात जस के तस हैं. पानी खेती के लिए भी नहीं है. पानी की कमी से खरीफ के बाद कोई फसल अच्छे से नहीं हो पाती है. इस बार तो धान की फसल भी पानी के अभाव में चली गई है,’ कोल कहते हैं.
साठ वर्षीय नौरंगी देवी को दूर से पानी लाने के चलते घुटने और कमर में दर्द है. पानी से भरी बाल्टी सिर पर रखकर एक किमी तक चलकर आने में उनकी सांस भी फूलने लगती है. वह कहती हैं, ‘रोजाना 08 से 10 बार पानी लेने के लिए चुआड़ तक जाना पड़ता है. पानी लाने में रोजाना दो घंटे से अधिक का समय नष्ट हो जाता है. होली के बाद केल्हड़िया में पानी के लिए हाहाकार मच जाता है. तब टैंकर से पानी की आपूर्ति की जाती है. यह पानी गांव को पूरा नहीं पड़ता है.’
चुआड़ घर से एक किमी दूर होने के चलते महिलाओं, बच्चियों और छोटे बच्चों को पानी लाने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. रास्ता पथरीला और जंगल से घिरा है. चुआड़ से महिलाओं को पानी लेकर पहाड़ चढ़कर आने में उन्हें सांस फूलने, कमर दर्द, घुटने के दर्द और चक्कर आने जैसी समस्याएं बनी रहती हैं. सिर पर पानी से भरे कनस्तर-बाल्टी होने से पैरों में ठोकर और चोट भी लग जाती है. इससे अन्य रोजमर्रा के कामों में रुकावट आ जाती है.
कब मिलेगी आधी आबादी को पानी ढ़ोने से मुक्ति
केल्हड़िया की महिलाओं में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी प्रतीक्षा हैं. बारहवीं तक पढ़ीं प्रतीक्षा अपने गांव की पेयजल समस्या का हल बताती हैं.
वह कहती हैं, ‘गांव में एक कुआं है, लेकिन उसका गंदला पानी पीने योग्य नहीं होता है. यह पहाड़ी क्षेत्र है. 350-400 फीट तक बोरिंग कर हैंडपंप लगाने से समय और संसाधन दोनों बेकार हो गए. एक-दो महीने हैंडपंप से पानी निकला और फिर पानी निकलना बंद हो गया.’
‘900-1000 फीट तक बोरिंग हो तो शायद पानी बारह महीने निकले. हम लोगों की सरकार व प्रशासन से मांग है कि केल्हड़िया में गहरी बोरिंग कराई जाए. पानी की उपलब्धता होते ही ग्रामीणों को आधी समस्याएं स्वत: ख़त्म हो जाएगी. इससे आधी आबादी को रोज-रोज पानी ढोने से मुक्ति तो मिल जाएगी.’
प्रभावित हो रही नई पीढ़ी
पंडी गांव के वीरेंद्र खरवार रोजाना साइकिल से पहाड़ी-पथरीले रास्ते और सुनसान घने जंगलों से होते हुए केल्हड़िया पहुंचते हैं. एक एनजीओ से जुड़े वीरेंद्र सभी छात्र-छात्रों को खुले आसमान के तले तीन से चार घंटे पढ़ाते है.
‘इस गांव में कुल 25 बच्चों पढ़ते हैं, जिसमें 11 छात्राएं हैं. पड़ोस के चार राज्यों में भी ऐसा असुविधाओं से जूझता गांव नहीं मिलेगा, जितनी परेशानी और उपेक्षा केल्हड़िया गांव के नागरिक उठाते हैं,’ ऐसा वीरेंद्र ने बताया.
वीरेंद्र आगे जोड़ते हैं, ‘केल्हड़िया के सभी लोग मवेशी पालक, किसान और मजदूरी करते हैं. जब गांव के पानी के स्रोत सूख जाते हैं, तब मवेशियों के लिए चारे और पानी का संकट पैदा हो जाता है. नागरिकों की दिनचर्या चुआड़ से लोटे-जग से पानी भरने से शुरू होती है और देर शाम को पानी भरने के साथ ख़त्म होती है.’
बहुत पिछड़ रहा केल्हड़िया: ग्राम प्रधान
केल्हड़िया, सपहर, नोनवट, पंडी, करमठचुआं और औरवाटांड गांव देवरी ग्राम सभा के अंर्तगत आते हैं. ग्राम प्रधान लाल साहब खरवार ने बताया, ‘जब मैं प्रधान नहीं था तब भी और आज भी पेयजल संसाधन के लिए तहसील, जिला मुख्यालय, विधायक और कई अधिकारियों से गुहार लगा-लगाकर थक गया हूं. पीने के पानी के लिए केल्हड़िया, पंडी और औरवाटाड़ के ग्रामीणों को कई मुसीबत उठानी पड़ रही है. कोई उपाय नहीं सूझ रहा है. नई पीढ़ी भी जल किल्लत से परेशान है और इनका जीवन बहुत पिछड़ रहा है.’
बीतती जा रही ‘हर घर जल’ योजना की मियाद
योगी सरकार ने जून 2020 में ‘हर घर जल’ योजना की शुरुआत की और वादा किया था कि जून 2022 तक नौगढ़ के हर घर तक पाइपलाइन से पानी पहुंचा दिया जाएगा. बाद में इसकी डेडलाइन बढ़ाकर 2024 कर दी गई और पेयजल का इंतजाम करने के लिए नौगढ़ के लिए 250 करोड़ की योजना को मंजूरी दी गई है. इस योजना के तहत भैसोढ़ा बांध के पानी को फ़िल्टर करने के बाद करीब छह सौ किलोमीटर पाइप लाइन से सभी घरों में पहुंचाया जाना है.
हालांकि, मियाद बीतती जा रही है, लेकिन केल्हड़िया गांव में ‘हर घर जल’ योजना का कहीं अता-पता नहीं है.
जनजाति आबादी बाहुल्य, आदिवासियों की आठ जातियां
साल 2011 की जनगणना के अनुसार चंदौली ज़िले की आबादी 19,52,756 थी. इसमें 10,17,905 पुरुष और 9,34,851 महिलाएं शामिल थीं. 2001 में चंदौली ज़िले की जनसंख्या 16 लाख से अधिक थी.
चंदौली में शहरी आबादी सिर्फ़ 12.42 फ़ीसदी है. 2,541 वर्ग किलोमीटर में फैले चंदौली ज़िले में अनुसूचित वर्ग की आबादी 22.88 फ़ीसदी और जनजाति आबादी 2.14 फ़ीसदी है.
चंदौली और सोनभद्र के जंगलों में आदिवासियों की आठ जातियां रहती हैं. इनमें मुख्यरूप से कोल, खरवार, भुइया, गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा हैं.
साल 1996 में वाराणसी से टूटकर चंदौली जनपद बना. इस दौरान कोल, खरवार, पनिका, गोंड, भुइया, धांगर, धरकार, घसिया, बैगा आदि अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध कर दिया गया.
टैंकर से जलापूर्ति का आश्वासन
केल्हड़िया गांव में नागरिकों द्वारा चुआड़ का पानी पीने की बात स्वीकारते हुए नौगढ़ उपजिलाधिकारी कुंदन राज कपूर ने ‘द वायर हिंदी’ को बताया, ‘कई प्रयास किए जा रहे हैं. शनिवार (18 जनवरी) को तहसील दिवस मुख्य विकास अधिकारी चंदौली के समक्ष उक्त समस्या को रखा गया है. उन्होंने कहा कि आगामी एक-दो महीने में पाइप लाइन बिछाकर पेयजल आपूर्ति शुरू करा दी जाएगी. वहीं, मैं जल संकट के तात्कालिक निदान के लिए टैंकर से पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था अभी से शुरू करवा रहा हूं.’
(पवन कुमार मौर्य स्वतंत्र पत्रकार हैं.)