बांस को घास की श्रेणी में लाने के प्रावधान वाले विधेयक को राज्यसभा की मंज़ूरी

विधेयक में कटाई और एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए ग़ैर वन क्षेत्र में उगे हुए बांस को छूट प्रदान करने के लिए कानून में वृक्ष की परिभाषा से बांस शब्द हटाए जाने का प्रस्ताव किया गया है.

/
New Delhi : A view of Parliament House in New Delhi on Wednesday. PTI Photo by Atul Yadav (PTI12_19_2012_000056A)

विधेयक में कटाई और एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए ग़ैर वन क्षेत्र में उगे हुए बांस को छूट प्रदान करने के लिए कानून में वृक्ष की परिभाषा से बांस शब्द हटाए जाने का प्रस्ताव किया गया है.

New Delhi : A view of Parliament House in New Delhi on Wednesday. PTI Photo by Atul Yadav (PTI12_19_2012_000056A)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राज्यसभा ने बांस को घास की श्रेणी में लाने के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी है. उच्च सदन ने भारतीय वन संशोधन विधेयक 2017 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से मंजूरी दे दी.

कांग्रेस सदस्य टी. सुब्बारामी रेड्डी ने भारतीय वन संशोधन अध्यादेश 2017 को निरस्त करने की मांग वाले अपने संकल्प को वापस ले लिया. लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है.

विधेयक में कटाई और एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए गैर वन क्षेत्र में उगे हुए बांस को छूट प्रदान करने के लिए कानून में वृक्ष की परिभाषा से बांस शब्द हटाये जाने का प्रस्ताव किया गया है.

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने कहा कि यह किसानों के हित में है और किसी भी रूप में जन विरोधी नहीं है. देश को इस विधेयक के लिए 90 वर्ष तक इंतजार करना पड़ा और मोदी सरकार ने ऐसी किसान हितैषी पहल की है. इसके माध्यम से 1927 के मूल कानून में संशोधन किए जाने का प्रस्ताव किया गया है.

इसके पहले विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया कि नवंबर में अध्यादेश लाकर उसने जल्दबाजी की जबकि संसद का शीतकालीन सत्र निकट ही था. इस पर मंत्री ने कहा कि अध्यादेश में ही इस बात का जिक्र था कि सरकार जल्दी ही इस संबंध में एक विधेयक लाएगी.

विपक्ष द्वारा विधेयक के प्रावधानों की आलोचना किए जाने पर हर्षवर्द्धन ने कहा कि उन्हें राजनीतिक चश्मे से इसे नहीं देखना चाहिए और यह विधेयक पूरी तरह से गरीबों तथा किसानों के हित में है.

कांग्रेस सहित कई अन्य विपक्षी दलों ने मंत्री के जवाब से असहमति एवं असंतोष जताते हुए सदन से वाक आउट किया. उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक सुधार है और इस पहल के कारण देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी. यह काम पहले ही किया जाना चाहिए था लेकिन इसके लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ा.

मंत्री ने कहा कि 1927 के कानून में बांस को वृक्ष की परिभाषा में रखा गया था लेकिन वनस्पति शास्त्र के वर्गीकरण के मुताबिक बांस घास की श्रेणी में आता है. ऐसे में यह संशोधन किया गया है. बांस वर्गीकरण की दृष्टि से घास है और उक्त अधिनियम के प्रयोजन के लिए इसे वृक्ष माना गया है.

विधेयक के अनुसार किसान राज्य के भीतर एवं राज्यों के बाहर भी बांसों की कटाई और उनके परिवहन के लिए परमिट प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. गैर वन क्षेत्र में उगाए गए बांसों को छूट प्रदान करने के लिए बांस को वृक्ष की परिभाषा के दायरे से बाहर किया गया है. इससे कृषकों को बांस की खेती के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और उनकी आय में वृद्धि होगी.

उन्होंने कहा कि यह प्रावधान केवल गैर-वन्य क्षेत्र या निजी जमीन पर उगे हुए बांस के संबंध में है.

चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि वह चार कारणों से विधेयक का विरोध करते हैं. उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल करते हुए अध्यादेश की तात्कालिता स्पष्ट करने की मांग की.

उन्होंने आरोप लगाया कि यह विधेयक गरीबों और पूर्वोत्तर के हित में नहीं है बल्कि निजी उद्योग के हित में है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पुरानी व्यवस्था की ओर लौटने तथा ग्राम सभा के अधिकार में कटौती करने का प्रयास कर रही है.

रमेश ने विधेयक की चर्चा करते हुए कहा कि सरकार ने आश्वासन दिया था कि संबंधित नियम बनाते समय व्यापक विचार विमर्श किया जाएगा. लेकिन सुझावों पर गौर नहीं किया गया और न ही कोई बैठक की गई.

भाजपा के मेघराज जैन ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इससे न सिर्फ किसानों को फायदा होगा बल्कि बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलेगा. उन्होंने कहा कि बांस की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होने के कारण एक ओर रोजगार प्रभावित हो रहे हैं. वहीं प्लास्टिक को भी बढ़ावा मिल रहा है जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.

सपा के विंभर प्रसाद निषाद ने विधेयक का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि यह उद्योपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाया गया है. तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु शेखर राय ने भी विधेयक का विरोध किया और अध्यादेश जारी करने में सरकार की ओर से जल्दबाजी करने का आरोप लगाया.

अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों और किसानों को फायदा होगा. उन्होंने कहा कि बांस की खेती को बढ़ावा मिलेगा जिससे पर्यावरण को भी लाभ होगा.

चर्चा में हिस्सा लेते हुए बीजद के दिलीप टिर्की, माकपा की झारना दास वैद्य, भाकपा के डी राजा, कांग्रेस के प्रदीप टंप्टा, द्रमुक के तिरुचि शिवा, कांग्रेस के आनंद भास्कर रापोलू और विप्लव ठाकुर ने सरकार पर इस विधेयक के माध्यम से सिर्फ कारपोरेट जगत को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया.

ठाकुर और शिवा ने मोदी सरकार पर अध्यादेश के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुये कहा कि संप्रग सरकार के कार्यकाल में 25 अध्यादेश पेश किये गए थे जबकि मोदी सरकार मात्र तीन साल में 31 अध्यादेश पेश कर चुकी है. सरकार अध्यादेश का दुरुपयोग कर समवर्ती सूची के विषयों पर राज्यों को नजरंदाज कर अपनी मनमानी कर रही है.

चर्चा में हिस्सा लेते हुये जदयू के हरिवंश, भाजपा के शंकर भाई एन वसड और रामविचार नेताम ने कहा कि इस विधेयक से किसानों, खासकर बांस की खेती में लगे आदिवासी और पिछड़े समुदायों के लोगों के हित सुरक्षित होंगे.

पूर्व पर्यावरण मंत्री एवं वर्तमान मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि देश में जंगल बढ़ें और आदिवासियों की आजीविका बढ़े, यह सभी चाहते हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. इसके पीछे एक ही वजह है कि अनावश्यक कानूनी बंदिशों के चलते किसान अब पेड़ पौधे लगाने से डरने लगा है. सरकार ऐसे विधेयकों के माध्यम से इन बंदिशों को हटाने का काम कर रही है.