राज्यसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ज़्यादातर एनपीए वे ऋण हैं, जो अप्रैल 2014 से पहले दिए गए.
नई दिल्ली: राज्यसभा में मंगलवार को विपक्षी दलों के कई सदस्यों द्वारा विभिन्न सार्वजनिक बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) लगातार बढ़ने पर चिंता जताने और बड़े क़र्ज़दारों के नाम सार्वजनिक किए जाने का सुझाव देने के बीच सरकार ने कहा कि अधिकतर बड़े एनपीए वे ऋण हैं जो अप्रैल 2014 से पहले दिए गए.
राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सपा के सदस्य नीरज शेखर के एक पूरक प्रश्न के उत्तर में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, ‘जहां तक संख्या बढ़ने का प्रश्न है, मैं उसे स्पष्ट कर दूं कि बैंकों का कुल एनपीए, जो 2014 में था, उसके पीछे पाया गया कि कई बैंक क़र्ज़ों को बार-बार एवरग्रीन करते थे यानी उसी क़र्ज़ को दोबारा आगे बढ़ाते जाते थे, जिसकी वजह से पुस्तकों के अंदर तो वह क़र्ज़ होता था, लेकिन क़र्ज़ वास्तविकता में एक प्रकार से नॉन-परफॉर्मिंग फंसा हुआ हो चुका था.’
जेटली ने कहा, ‘लिहाजा, 2015 में आरबीआई ने हर बैंक की क़र्ज़ समीक्षा ऐसेट रीव्यू किया और पाया कि बही खातों में जो परफॉर्मिंग क़र्ज़ चुकाते हुए दिखते हैं वो वास्तविकता में परफॉर्मिंग नहीं हैं, ब्याज भी नहीं दे पा रहे. इनका केवल मानकीकरण किया जा रहा है और इनको एनपीए में गिनना चाहिए. तो उन्हें छुपाने की बजाय स्पष्टता से सामने दिखा दिया गया. ये एनपीए बढ़ने का पहला कारण था.’
उन्होंने कहा, ‘इसके पीछे दूसरा कारण था कि समय बीतता है तो ब्याज भी बढ़ता जाता है और ब्याज बढ़ने से क़र्ज़ की संख्या भी बढ़ती जाती है. बैंकों ने काफी क़र्ज़ दिए, जोख़िम का आकलन ठीक से नहीं किया. कहीं जान-बूझकर क़र्ज़ नहीं चुकाया गया. क़ानून के मुताबिक जो भी कार्रवाई की जा सकती थी, वह की जा रही है.’
वित्त मंत्री ने कहा, ‘जहां पर आपराधिक जवाबदेही तय की जा सकती थी, वह हो रही है. जहां व्यापारिक नुकसान वगैरह जैसे कारण हैं, वहां रिकवरी वसूली की जो प्रक्रिया है या उसे दिवालिया घोषित करना है या उस खाते के संबंध में जो प्रक्रिया करनी है वो कार्रवाई भी आगे चल रही है.’
नीरज शेखर ने दूसरे पूरक प्रश्न में पूछा कि बैंकों ने कॉरपोरेट क्षेत्र का 55,000 करोड़ रुपये का क़र्ज़ माफ़ किया, लेकिन किसानों का क़र्ज़ क्यों माफ नहीं किया जा रहा.
इसके जवाब में जेटली ने कहा, ‘मैं स्पष्ट कर दूं कि न तो सरकार और न कोई बैंक कॉरपोरेट का क़र्ज़ माफ़ करती है. कुछ समय के बाद, चार साल के बाद, जब क़र्ज़ नहीं चुकाने की स्थिति होती है और उसकी वसूली की संभावना कम रहती है तो उसकी श्रेणी को वे बदल देते हैं. जिससे क़र्ज़ लेना होता है, उस पर वसूली की जवाबदेही रहती है. उसकी ज़िम्मेदारी नहीं जाती. बैंक अपना प्रावधान कर देता है कि आयकर के अंदर उसे उस खाते के संबंध में रियायत मिल जाए. बैंक अपने खाते के अंदर प्रविष्टी बदल देता है और बैंक को आयकर कार्यवाही में लाभ मिल जाता है. केवल इतना अंतर है. इसलिए अपने मन से निकाल दें कि सरकार ने या बैंक ने किसी का 55,000 करोड़ रुपये माफ किया है.
भाकपा के सदस्य डी. राजा के एक पूरक प्रश्न के जवाब में जेटली ने कहा, ‘जान-बूझकर क़र्ज़ नहीं चुकाने वालों विलफुल डिफॉल्टरों के नाम बैंकों की ओर से जारी किए जाते हैं. बैंकों के कामकाज में थोड़ी गोपनीयता होती है. बैंक आपके या मेरे खाते के बारे में किसी और को जानकारी नहीं दे सकती. जहां तक जान-बूझकर क़र्ज़ नहीं चुकाने वालों का सवाल है तो उनकी एक अलग श्रेणी है और उस बारे में कोई गोपनीयता नहीं बरती जाती.’
राजा ने सवाल किया था कि सरकार जान-बूझकर क़र्ज़ नहीं चुकाने वालों की सूची क्यों नहीं जारी करती और इसे आपराधिक कृत्य मानकर कार्रवाई क्यों नहीं करती.
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य पी. चिदंबरम ने सवाल किया कि क्या सरकार के पास आंकड़े हैं कि बैंकों की ओर से एक अप्रैल 2014 के बाद दिए गए क़र्ज़ में से कितने एनपीए हो गए.
इसके जवाब में जेटली ने कहा कि यह सवाल किसी खास तारीख के बाद दिए गए क़र्ज़ का नहीं है. उन्होंने कहा कि ज़्यादातर एनपीए उन क़र्ज़ों से पैदा हुए हैं जो एक अप्रैल 2014 से पहले दिए गए.