अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने न्यायाधीशों के चयन में केंद्र सरकार की ओर से अपनाए गए तौर-तरीकों पर सवाल उठाए.
![Prashant Bhushan, a senior lawyer, speaks with the media after a verdict on right to privacy outside the Supreme Court in New Delhi, India August 24, 2017. REUTERS/Adnan Abidi](https://hindi.thewire.in/wp-content/uploads/2018/01/Prashant-Bhushan-Reuters.jpg)
नई दिल्ली: जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह न्यायपालिका की आज़ादी छीनने की कोशिश कर रही है. उन्होंने मेडिकल कॉलेज रिश्वतखोरी कांड के मुद्दे पर बीते शुक्रवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा पर एक बार फिर निशाना साधा. इस मामले में उच्चतम न्यायालय पहले ही दो अर्ज़ियां ख़ारिज कर चुका है.
कैंपेन फॉर जूडीशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) के बैनर तले इस मुद्दे को उठाते रहे भूषण ने एक नागरिक अधिकार संगठन ‘जनहस्तक्षेप’ और मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) के तहत इसी मुद्दे को उठाया.
भूषण ‘जनहस्तक्षेप’ और पीयूसीएल की ओर से आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे. परिचर्चा का विषय ‘आख़िरी किले का ढहना: क्या भारतीय लोकतंत्र ख़तरे में है’ रखा गया था.
उन्होंने न्यायाधीशों के चयन में सरकार की ओर से अपनाए गए तौर-तरीकों पर सवाल उठाए.
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने न्यायपालिका के ख़िलाफ़ आरोप लगाने पर भूषण की आलोचना की है.
चार असंतुष्ट न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसेफ- को लिखे गए पत्र में विकास सिंह ने सीजेआई पर आरोप लगाने वाली शिकायत दाख़िल करने पर सीजेएआर की निंदा की.
शिकायत में प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट से जुड़े मेडिकल कॉलेज रिश्वतखोरी मामले में सीजेआई पर कथित कदाचार के आरोप लगाए गए थे.
बीते 12 जनवरी को चारों न्यायाधीशों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीजेआई पर कई गंभीर आरोप लगाए थे.