ज़मानत मिलने के बावजूद बड़ी संख्या में आरोपी जेलों में ही हैं. आधार या ज़मानत के दस्तावेज़ के पुलिस सत्यापन में देरी से वे रिहा नहीं हो पा रहे हैं.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय से कहा कि ज़मानत पर अभियुक्त की रिहाई के लिए आधार की प्रति अनिवार्य रूप से लेने के बारे में राज्य की निचली अदालतों को दिए गए निर्देश में दस दिन के भीतर सुधार किया जाए.
नक्सल प्रभावित इस राज्य में उच्च न्यायालय के पांच जनवरी के आदेश ने जबर्दस्त आक्रोश पैदा कर दिया क्योंकि ज़मानत मिलने के बावजूद बड़ी संख्या में आरोपी जेलों में ही हैं और आधार तथा राजस्व रिकॉर्ड या ज़मानती के दस्तावेज़ के पुलिस द्वारा सत्यापन में विलंब की वजह से वे रिहा नहीं हो पा रहे हैं.
स्थिति बिगड़ते देख बिलासपुर ज़िले के ज़िला न्यायाधीश ने 10 जनवरी को उच्च न्यायालय को एक पत्र लिखकर उसके पांच जनवरी के अदेश से पेश आ रही दिक्कतों से उसे अवगत कराया. इसमे छोटे-मोटे अपराधों के आरोपियों को ज़मानत मिलने में हो रही दिक्कत भी शामिल थीं.
उच्च न्यायालय ने ज़िला न्यायाधीश के पत्र को रिकॉर्ड पर लेकर इस स्थिति से निपटने के लिए एक अन्य मामला दर्ज कर लिया. इस पर 29 जनवरी को उच्च न्यायालय में सुनवाई होगी.
इस बीच, प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने बृहस्पतिवार को उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली वकील पीयूष भाटिया की याचिका का निस्तारण कर दिया. पीठ ने अदालत के आदेश को शीर्ष अदालत के आदेशों और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के ख़िलाफ़ बताया.
पीठ ने कहा, ‘हमें छत्तीसगढ़ बार काउंसिल की ओर से पेश वकील ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया है कि उसने उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों में सुधार के लिए एक आवेदन दायर किया है. हम उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि इस आवेदन का दस दिन के भीतर कानून के अनुरूप निपटारा किया जाए.
भाटिया की ओर से पेश वकील मनोहर प्रताप ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश से नागरिकों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन हुआ है.
प्रताप ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि यह जनता के लिए बहुत अधिक परेशानियां उत्पन्न कर रहा है.
इस बीच, राज्य बार काउंसिल की ओर से वकील राजेश पांडे ने कहा कि उच्च न्यायालय पांच जनवरी के आदेश में सुधार के लिए राज़ी हो गया है. इसलिए मामला उसके पास वापस भेज देना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने इस पर कहा कि उच्च न्यायालय को 10 दिन के भीतर अपने आदेश में सुधार करना चाहिए और उसने याचिका का निस्तारण कर दिया.