जातिगत राजनीति इसलिए होती है, क्योंकि लोग जाति के नाम पर वोट देते हैं: भागवत

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि नेता एक निश्चित सीमा तक चीज़ों में सुधार कर सकते हैं और चीज़ों में सुधार के लिए अपने हितों के त्याग करने की ज़रूरत होती है.

Darbhanga: RSS Chief Mohan Bhagwat attends Nagar Ekatrikaran Conference in Darbhanga district on Wednesday. PTI Photo(PTI1_24_2018_000064B)

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि नेता एक निश्चित सीमा तक चीज़ों में सुधार कर सकते हैं और चीज़ों में सुधार के लिए अपने हितों के त्याग करने की ज़रूरत होती है.

Darbhanga: RSS Chief Mohan Bhagwat attends Nagar Ekatrikaran Conference in Darbhanga district on Wednesday. PTI Photo(PTI1_24_2018_000064B)
संघ प्रमुख मोहन भागवत. (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जातिगत राजनीति इसलिए है क्योंकि लोग जाति के नाम पर वोट देते हैं. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस परंपरा को ख़त्म करने के लिए सामाजिक बदलाव ज़रूरी है.

भागवत ने कहा, ‘जीवन के किसी भी क्षेत्र में, चाहे वह व्यापार हो या राजनीति, सामाजिक रूप से अपनाई गई नैतिक परंपराएं राजनीति में दिखती हैं. परिवर्तन लाने की ज़रूरत है.’

भागवत मुंबई में गुरुवार को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के एक कॉन्फ्रेंस में ‘व्यापार में राष्ट्रवाद और नैतिक आचरण’ के मुद्दे पर बोल रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘राजनीति ख़ुद ऐसा तरीका नहीं है जिसके ज़रिये बदलाव लाया जा सके क्योंकि (राजनीति के) रास्ते पर आगे बढते हुए, अगर वे चलते रहना चाहते हैं तो उन्हें वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए ऐसा करना होता है.’

भागवत ने राष्ट्रवाद और कारोबार में नैतिक परंपराओं के विषय पर बात करते हुए कहा कि नेता एक निश्चित सीमा तक चीज़ों में सुधार कर सकते हैं और चीज़ों में सुधार के लिए अपने हितों के त्याग करने की ज़रूरत होती है.

उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए, आज कोई यह फैसला कर सकता है कि जातिगत राजनीति नहीं होनी चाहिए. हालांकि, जातिगत राजनीति होती है क्योंकि लोग जाति के नाम पर वोट देते हैं. अगर किसी को बने रहना है तो यह करना पड़ता है.’

भागवत ने कहा कि अगर समाज में परिवर्तन आता है तो नेता खुलकर कह सकते हैं कि राजनीति जाति के नाम पर नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि समाज की मानसिकता में बदलाव से राजनीति के तरीके में बदलाव आएगा. भागवत ने कहा कि ‘ऐशोआराम और प्रतिष्ठा’ अस्थायी हैं और लोगों को इससे प्रभावित हुए बिना इससे दूर रहना चाहिए.