आईआईएमसी में स्त्री शक्ति पर आयोजित एक संगोष्ठी में आरएसएस नेता कृष्ण गोपाल ने कहा कि जौहर-शाखा की परंपरा का हिस्सा थी जिसमें महिलाएं विदेशी आक्रमणकारियों के हरम का हिस्सा बनने की बजाय क़ुर्बान हो जाना पसंद करती थीं.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल ने कहा कि जौहर महिलाओं के ख़िलाफ़ ‘भेदभाव’ वाली प्रथा नहीं बल्कि प्रतिरोध का एक रूप था. विदेशी आक्रमणकारियों के चंगुल में आने से बचने के लिए राजपूत महिलाओं की ओर से सामूहिक आत्मदाह की प्रथा को जौहर के नाम से जाना जाता है.
नई दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) में स्त्री शक्ति पर आयोजित एक संगोष्ठी में शनिवार को गोपाल ने कहा कि यह प्रथा ‘जौहर-शाखा की परंपरा का हिस्सा थी जिसमें महिलाएं विदेशी आक्रमणकारियों के विशाल हरम का हिस्सा बनने की बजाय क़ुर्बान हो जाना पसंद करती थीं.’
उन्होंने कहा कि जौहर ‘भेदभावपूर्ण प्रथा नहीं बल्कि प्रतिरोध का रूप था.’
गोपाल ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब कुछ राजपूत संगठनों ने संजय लीला भंसाली की विवादित फिल्म पद्मावत की रिलीज़ का हिंसक विरोध किया है. यह फिल्म 13वीं सदी में मेवाड़ के महाराजा रतन सिंह और दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी की लड़ाई की कहानी पर आधारित है.
राजपूत संगठनों का आरोप है कि फिल्म में रानी पद्मावती को नकारात्मक तरीके से दिखाया गया है. कहा जाता है कि रानी पद्मावती ने 1303 में जौहर कर लिया था, क्योंकि वह नहीं चाहती थीं कि वह सुल्तान ख़िलजी के चंगुल में आएं.
बहरहाल, इतिहासकारों में रानी पद्मावती के अस्तित्व को लेकर मतभेद है और फिल्मकारों ने राजपूत संगठनों के आरोपों को नकारा है.
गोपाल ने कहा कि महिलाओं एवं पुरुषों के बीच समानता की बातें करने वाले विद्वानों को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि भारतीय विचार दो भागों में बंटे होने की दिशा में केंद्रित न होकर एक सूत्र में पिरोने वाला विचार है.
उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को आत्ममंथन करना चाहिए कि देश की करीब 40 फीसदी महिलाएं आज भी शैक्षणिक अवसर से क्यों वंचित हैं और एनीमिया जैसे रोगों से क्यों प्रभावित हैं.
गोपाल ने गिरते लिंगानुपात का भी ज़िक्र किया और कहा कि समाज में महिलाओं की दशा सुधारे बगैर महिला सशक्तिकरण नहीं हो सकता.
पहले गोपाल छुआछूत पर भी बोल चुके हैं. गोपाल ने पिछले साल सितंबर में दावा किया था कि प्राचीन भारत में छुआछूत की प्रथा नहीं थी और पिछले कुछ हज़ार सालों में यह बाहर से भारत में आई.