सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने योगी सरकार को 17वीं सदी के इस स्मारक के संरक्षण के बारे में चार सप्ताह के भीतर दृष्टिपत्र पेश करने का निर्देश दिया.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को निर्देश दिया कि विश्व धरोहर ताजमहल की सुरक्षा और संरक्षण के बारे में दृष्टिपत्र पेश करे. न्यायालय ने साथ ही यह भी जानना चाहा कि अचानक ताज ट्रापेजियम क्षेत्र में तमाम गतिविधियां तेज कैसे हो गई हैं?
गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि ताज ट्रापेजियम क्षेत्र में चमड़ा उद्योग और होटल क्यों बन रहे हैं, जबकि पहले इस क्षेत्र में इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी.
पीठ ने सवाल किया, ‘अचानक इस क्षेत्र में इस तरह की गतिविधियां तेज होने की क्या कोई खास वजह है? क्यों? यह बंद ही रहनी चाहिए. इस क्षेत्र में ये गतिविधियां क्यों चल रही हैं?’
ताज ट्रापेजियम क्षेत्र 10,400 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है जिसके दायरे में उत्तर प्रदेश के आगरा, फ़िरोज़ाबाद, मथुरा, हाथरस और एटा जिले तथा राजस्थान का भरतपुर जिला आता है. यह क्षेत्र इसलिए बनाया गया है ताकि ताजमहल को प्रदूषण मुक्त रखा जा सके.
सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार, इस क्षेत्र में उद्योगों में कोल/कोक के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करता है. इसके अनुसार, इन उद्योगों को ईंधन के लिए कोयला जलाने की जगह प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल करना होता है. इसके अलावा इस उद्योगों को इस क्षेत्र से हटाने या फिर उन्हें बंद करने का नियम है.
मेहता ने कहा कि वह इस बारे में आवश्यक निर्देश प्राप्त करके न्यायालय को इससे अवगत कराएंगे. पीठ ने राज्य सरकार को 17वीं सदी के इस स्मारक के संरक्षण के बारे में चार सप्ताह के भीतर दृष्टिपत्र पेश करने का निर्देश दिया.
न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में राज्य सरकार से कहा था कि प्रसिद्ध ताजमहल की सुरक्षा और संरक्षण, इसके पर्यावरण और ताज ट्रापेजियम क्षेत्र के बारे में भावी योजना और विस्तृत दृष्टिपत्र पेश किया जाए.
इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने एक अर्जी दायर कर आगरा में जलापूर्ति हेतु पाइपलाइन बिछाने की खातिर 234 वृक्षों को काटने की अनुमति मांगी. सरकार के वकील ने कहा कि 130 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन में से 122 किलोमीटर बिछाई जा चुकी है और आठ किलोमीटर लाइन के लिए 234 वृक्ष काटने होंगे.
इस पर पीठ ने कहा कि वृक्षों की कटाई की दर करीब 80 प्रतिशत है जबकि नए पौधे लगाने के लिये भूमि ही नहीं है. पीठ ने राज्य सरकार को यह जानकारी भी देने का निर्देश दिया कि पौधे लगाने के लिये इस क्षेत्र में जमीन कहां उपलब्ध है. न्यायालय ने वहां लगाए गए पौधों की संख्या का विवरण भी मांगा है.
इस सारे प्रकरण को लेकर जनहित याचिका दायर करने वाले पर्यावरणविद अधिवक्ता महेश चंद्र मेहता ने पीठ से कहा कि वह पिछले महीने इस स्मारक के संरक्षण के बारे में चर्चा के लिये संबंधित प्राधिकारियों की एक बैठक में शामिल हुए थे. उन्होंने कहा कि उनकी राय में कोई संतोषजनक विचार-विमर्श नहीं हुआ था.
इस पर अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि बैठक की कार्यवाही संकलित की गई है और न्यायालय के निर्देशानुसार इस विचार विमर्श में सिविल सोसायटी के सदस्यों ने भी हिस्सा लिया था.