गोरक्षक बलिदान दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हर दिन एक लाख लीटर गोमूत्र इकट्ठा कर उनका प्रयोग ऐसी दवाइयां बनाने में किया जाता है जो त्वचा और हृदय की बीमारियों के उपचार में काम आती हैं.
हरिद्वार: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पहली बार उनकी सरकार ने गौमूत्र के औषधीय गुणों को पहचाना और उसके व्यवसायीकरण के लिए क़दम उठाए.
कटारपुर में ‘गोरक्षक बलिदान दिवस’ के अवसर पर गुरुवार को मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि हर दिन एक लाख लीटर गोमूत्र इकट्ठा कर उनका प्रयोग ऐसी दवाइयां बनाने में किया जाता है जो त्वचा और हृदय की बीमारियों के उपचार में काम आती हैं.
उन्होंने कहा, ‘उत्तराखंड में हमारी सरकार ने पहली बार गोमूत्र के औषधीय गुणों को पहचाना और उसके व्यवसायीकरण के लिए प्रभावी क़दम उठाए.’
रावत ने अपनी सरकार द्वारा गाय की देसी नस्लों के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दमों की भी जानकारी दी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कटारपुर को ‘गोतीर्थ’ की संज्ञा देते हुए कहा कि यह धार्मिक तीर्थयात्रा के किसी बड़े केंद्र के समान ही महत्वपूर्ण है.
कटारपुर में 1918 में गोवध रोकने को लेकर दो समुदायों के बीच हुए खूनी संघर्ष के बाद चार को फांसी सहित 135 लोगों को काले पानी की सज़ा दी गई थी.
ब्रिटिश शासन ने आठ फरवरी, 1920 को कनखल के उदासीन अखाड़ा के महंत ब्रह्मदास (45), चौधरी जानकी दास (60), डॉ. पूर्ण प्रसाद (32) तथा मुक्खासिंह चौहान (22) को फांसी पर लटका दिया था. इसकी याद में प्रतिवर्ष यहां ‘गोरक्षक बलिदान दिवस’ मनाया जाता है.
प्रदेश के कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक और विधायकों ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया. कार्यक्रम में शहीदों के 140 रिश्तेदारों को सम्मानित भी किया गया.