सूचना आयोग द्वारा स्मृति ईरानी की स्कूली शिक्षा के रिकॉर्ड की जानकारी आरटीआई के तहत देने के निर्देश पर सीबीएसई ने इसे निजी जानकारी बताते हुए अदालत में चुनौती दी थी.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यदि सीबीएसई परीक्षा के अंक अब ऑनलाइन उपलब्ध हैं, तो पूर्व छात्र-छात्राओं के लिए ‘निजता का अधिकार’ का कोई दावा नहीं बन सकता.
केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के एक निर्देश को चुनौती देने वाली केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणी की.
दरअसल, सीआईसी ने अपने निर्देश में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के 10वीं और 12वीं कक्षा के रिकॉर्ड को आवेदक को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत मुआयना करने की इजाजत दी थी.
जस्टिस विभू बाखरू ने कहा कि क्या छात्रों के सीबीएसई के सारे अंक अब लोगों के लिए उपलब्ध हैं? यदि आज यह संभव है तो आप यह नहीं कह सकते कि पूर्व छात्रों का निजता का अधिकार का दावा बनता है.
अदालत ने सीबीएसई के वकील अनिल सोनी से वर्तमान तथ्यात्मक स्थिति पर जानकारी प्राप्त करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ मार्च की तारीख तय कर दी.
अदालत ने पिछले साल नवंबर में बोर्ड से कहा था कि यदि यह आरटीआई आवेदक मोहम्मद नसरूद्दीन को सूचना नहीं देता है, तो यह सीआईसी के आदेश पर स्थगन को आगे नहीं बढ़ा सकती.
अदालत से सीबीएसई ने कहा कि इसने आरटीआई आवेदक को अपनी अपील और स्थगन आदेश के बारे में जानकारी दी है.
सीबीएसई ने जनवरी 2017 के सीआईसी के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी है कि स्मृति के स्कूली रिकॉर्ड का आरटीआई अधिनियम के तहत खुलासा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह तीसरे पक्ष की सूचना है.
सीआईसी ने आवेदक को स्मृति के स्कूली रिकॉर्ड का मुआयना करने की इजाजत दी थी और सीबीएसई की यह दलील खारिज कर दी थी कि नसरूद्दीन द्वारा मांगी गई सूचना ‘निजी’ प्रकृति की है.
आयोग ने कहा था कि जब एक जन प्रतिनिधि अपनी शैक्षणिक योग्यताओं की घोषणा करता है, तब मतदाता को भी उस घोषणा की पड़ताल करने का अधिकार है.