गुजरात में विधानसभा चुनाव के वक़्त नर्मदा के पानी को लेकर जनता को सपने दिखाए गए लेकिन अब गर्मी आने से पहले सरकार ने कह दिया है कि सिंचाई के लिए जलाशय का पानी नहीं मिलेगा.
भारत में पिछले चार साल का इतिहास चुनावी जीत के साथ चुनावी झूठ का भी इतिहास है.
इस झूठ को एक इवेंट की तरह जनता के सामने उतारा गया, मीडिया को लगाकर उसे सत्य के करीब बनाया गया और चुनाव समाप्त होते ही सब उस झूठ को वहीं छोड़ रवाना हो गए. नेता सत्ता ले गया और जनता उस झूठ के साथ वहीं की वहीं रह गई.
आपको याद होगा मतदाता को दर्शक बनाने के लिए एक तमाशा किया गया था. पानी में उतरने वाला प्लेन उतारा गया ताकि नए सपने या नए नए झांसे दिखाए जा सके.
उम्मीद है लोग रोज़ उस प्लेन से साबरमती में उतरते होंगे. दूसरा झूठ था जिसका अब पर्दाफाश हुआ है. वह झूठ है नर्मदा का पानी गुजरात पहुंचाए जाने का झूठ.
उस वक्त जनता को सपने दिखाए गए कि नर्मदा के इस पानी से क्या-क्या होगा, अब गर्मी आने से पहले गुजरात सरकार ने कह दिया है कि 15 मार्च से सिंचाई के लिए जलाशय का पानी नहीं मिलेगा. लेकिन चुनावों के दौरान लगे कि पानी आ गया है इसके लिए मध्य प्रदेश के लिए ज़रूरी पानी के भंडार को गुजरात रवाना कर दिया गया.
पानी की रफ्तार और मात्रा बढ़ा दी गई ताकि प्रधानमंत्री जब 17 सितंबर 2017 को उद्घाटन करने आएं तो जलाशय भरा रहे और भरे जलाशय को दिखा कर वह अपना भाषण लंबा खींच सकें.
ऐसा ही हुआ, भाषण ख़त्म हुआ और अब पानी भी ख़त्म हो चुका है. क्या उस दौरान 17 सितंबर तक पानी पहुंचाने के लिए जो पानी छोड़ा गया उसके लिए मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी प्राधिकरण पर सुरक्षा के मानकों से खिलवाड़ करने के लिए दबाव डाला गया?
सबसे पहले स्क्रॉल और अब इंडियन एक्स्प्रेस की सौम्या अशोक ने इस झूठ की पोल खोल दी है. सरदार सरोवर बांध का पानी अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है. तब चुनाव को देखते हुए अधिकतम स्तर पर पहुंचा दिया गया था.
रविवार के इंडियन एक्सप्रेस में अविनाश नायर और परिमल दाभी की दो पेज की लंबी रिपोर्ट छपी है. ज़मीन दरक गई है और किसान ठगा हुआ अपने सपनों को भाप बनकर उड़ता देख रहा है. आप फ्राड और झूठ की राजनीति को समझना चाहते हैं तो दोनों रिपोर्ट पढ़ने की मेहनत कर लीजिएगा.
आधिकारिक दस्तावेज़ों के आधार पर रिपोर्टर ने लिखा है कि पांच दिनों तक मध्य प्रदेश ने अप्रत्याशित रूप से पानी छोड़ा है ताकि जल्दी गुजरात पहुंच कर वह चुनावी झूठ दिखाने में काम आ सके. जलाशय की तरफ पानी छोड़े जाने की एक सीमा है. उसकी धार की रफ्तार तय है.
रिकॉर्ड बताते हैं कि उस दौरान तीन दिनों तक पानी पांच गुना ज़्यादा छोड़ा गया. मोदी जी ने उद्घाटन किया और पानी की रफ्तार रोक दी गई.
गुजरात में गर्मी आने से पहले ही सरकार ने ऐलान कर दिया है कि वह 15 मार्च से जलाशय का पानी सिंचाई के लिए नहीं देगी.
12 से 17 सितंबर के बीच पांच दिनों में पानी का स्तर 3.39 मीटर ऊंचा हो गया जबकि 1 से 28 अगस्त 2017 के बीच 15 दिनों तक पानी छोड़ने पर पानी का स्तर 2 मीटर ही बढ़ा.
मध्य प्रदेश ने 777 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी छोड़ा था. आम तौर पर किसी भी जलाशय में एक सेकेंट में 3 लाख 63 हज़ार 300 लीटर की रफ्तार से छोड़ा जाता है, उस दौरान 19 लाख, 31 हज़ार 400 लीटर की रफ्तार से पानी छोड़ा गया. छह गुना ज़्यादा.
इससे अहमदाबाद, मोरबी और सुरेंद्र नगर के लाखों किसानों की आंखें चमक गईं. उन्होंने भरा हुआ जलाशय देखा तो अपनी खेती के फिर से सोना में बदलने के सपने देख लिए. अब उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें.
पानी नहीं देने का ऐलान हो चुका है. बीच में फसल बर्बाद हो गई तो उसका कर्ज़ा कैसे उतारेंगे. नर्मदा घाटी प्राधिकरण आम तौर पर गुजरात को पानी देता था, इस साल उससे भी 45 प्रतिशत कम पानी मिला है.
पता कीजिए कहां चुनाव है, कहां पर इस तरह से सपने दिखाने के लिए झूठ की इमारत बनाई जा रही है. उस वक्त नर्मदा के कमांड इलाके में पानी आने से हरियाली आ भी गई थी. अब जब पानी उतर रहा है, खेत फिर से सूखने लगे हैं. झूठ दिखने लगा है.
गंगा भी इस झूठ के साथ जी रही है और अब नर्मदा भी. झूठ सिर्फ गुजरात के किसानों से नहीं बोला गया, नर्मदा से भी बोला गया. जब नदियों को देवी ही मानते हैं तो कम से कम भक्ति की ख़ातिर ही सही उनके नाम पर झूठ तो न बोला जाए.
क्या नेता वाकई इन नदियों को नाला समझते हैं, जब जो चाहा बोल दिया, दिखा दिया?
(यह लेख मूलत: रवीश कुमार के फेसबुक अकाउंट पर प्रकाशित हुआ है)