मामले में आरोपी गुजरात पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी का वंजारा का कहना है कि इस मामले में गुप्त रूप से मोदी से पूछताछ हुई थी, लेकिन इस बात को रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया.
अहमदाबाद: पूर्व आईपीएस अधिकारी और इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले के आरोपी डीजी वंजारा ने दावा करते हुए मंगलवार को कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को आरोपी बनाने की कोशिश में जांच एजेंसी ने उनसे गुप्त रूप से पूछताछ की थी.
खुद को आरोप मुक्त करने के लिए विशेष सीबीआई अदालत में दायर की गई अर्जी में वंजारा ने कहा, ‘गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आईओ ने बुलाया था और पूछताछ की थी. लेकिन इस मामले के रिकॉर्ड में ऐसी सामग्री नहीं रखी गई. यह तथ्य स्पष्ट होता है कि तब आईपीएस सतीश वर्मा सहित जांच कर रही टीम का इरादा किसी भी तरह राज्य के मुख्यमंत्री तक पहुंचने और इस मामले में आरोपी बनाने का था. और इसी उद्देश्य से मनगढ़ंत तरीके से इस मामले की चार्जशीट बनाई गई थी.’
उन्होंने आगे कहा कि रिकॉर्ड पर रखी गई पूरी सामग्री झूठी और मनगढ़ंत है और इसलिए यह आवेदक के खिलाफ मुक़दमा चलाये जाने लायक सबूत नहीं है.
वंजारा द्वारा खुद को आरोपमुक्त किए जाने के लिये दायर अर्जी पर विशेष सीबीआई जज जेके पांड्या ने सीबीआई को नोटिस जारी कर 28 मार्च तक जवाब मांगा है.
पूर्व डीआईजी ने गुजरात पुलिस के पूर्व प्रभारी महानिदेशक पीपी पांडे को मामले से आरोप मुक्त किए जाने के आधाार पर खुद को आरोप मुक्त किए जाने का अनुरोध किया.
वंजारा ने कहा कि सीबीआई द्वारा दर्ज किए गये गवाहों के बयान बहुत ही संदिग्ध हैं. प्रथमदृष्टया यह साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है कि उनके चैम्बर में रची गई साजिश के परिणामस्वरूप मुठभेड़ हुई, जैसा कि आरोपपत्र में दावा किया गया है.
वंजारा का यह भी कहना है कि चूंकि राजनीतिक मंसूबों से जांच का हस्तांतरण कर दिया गया, इसलिए सीबीआई ने समूचे बयान को तोड़-मरोड़ दिया.
ज्ञात हो कि अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने 15 जून, 2004 को शहर के बाहरी इलाके में महाराष्ट्र के मुम्ब्रा की 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा इशरत जहां, उसके दोस्त जावेद शेख उर्फ प्रणेश, जीशान जोहर और अमजद राणा को कथित फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था.
पुलिस का दावा था कि ये सभी एक आतंकवादी संगठन से ताल्लुक रखते थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश कर रहे थे.
इसके बाद हुई गुजरात हाईकोर्ट की एसआईटी जांच और फिर सीबीआई जांच में यह साबित हुआ था कि यह एक फर्जी एनकाउंटर का मामला था और पुलिस का यह दावा कि उन्होंने ‘आत्मरक्षा’ में गोली चलाई थी, झूठ है.
इस एनकाउंटर के लगभग एक दशक बाद जुलाई 2013 में पीपी पांडे सहित गुजरात पुलिस के सात अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई. फरवरी 2014 में एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट में 4 आईबी अधिकारियों का नाम भी शामिल किया गया.
मालूम हो कि वंजारा ग़ैर-न्यायिक हत्याओं के आरोपों के चलते 2007 से 2015 तक जेल में थे. गुजरात पुलिस के डीआईजी रहे वंजारा सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में भी आरोपी थे, जिससे उन्हें पिछले साल सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.