अभिनव मुखर्जी उच्चतम न्यायालय में राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं. उन्होंने राज्य सरकार को एक पत्र लिखकर उसके ही ख़िलाफ़ हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन सहित चुनिन्दा मामलों में पेश होने की अनुमति मांगी थी.
नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार ने सांसद अनुराग ठाकुर और हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन का बचाव करने के लिये अपने विधि अधिकारी को ‘विशेष मामले’ के रूप में अपने ही महाधिवक्ता के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में पेश होने की अनुमति दी है.
न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ के समक्ष राज्य सरकार ने कहा कि वह 17 जनवरी के मंत्रिमंडल के निर्णय को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) के खिलाफ मामलों को वापस लेना चाहती है.
मंत्रिमंडल ने पिछली सरकार द्वारा शुरू किये गये अपने नेताओं के खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित सारे मामले शासकीय हित में वापस लेने का निर्णय किया था.
हालांकि, एचपीसीए के खिलाफ मामले वापस लेने के राज्य सरकार के प्रयास में पीठ ने यह पूछकर अड़ंगा लगा दिया कि क्या मंत्रिमंडल का फैसला इन मामलों पर भी लागू होता है?
पीठ ने महाधिवक्ता को स्पष्ट निर्देश प्राप्त करके यह स्पष्ट करने के लिये कहा कि क्या मंत्रिमंडल के फैसले के दायरे में एचपीसीए के मामले भी आते हैं.
पीठ ने महाधिवक्ता अशोक शर्मा से कहा, ‘हमें इससे कोई मतलब नहीं कि आपकी नीति क्या है. आपको हमें स्पष्ट रूप से बताना होगा कि क्या मंत्रिमंडल का फैसला इन मामलों पर भी लागू होता है.’
शर्मा ने कहा कि वे इस बारे में स्पष्ट निर्देश प्राप्त करके न्यायालय को सूचित करेंगे. उन्होंने इसके लिये पीठ से कुछ समय देने का अनुरोध किया.
अनुराग ठाकुर, क्रिक्रेट एसोसिएशन और अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया और अतिरिक्त महाधिवक्ता अभिनव मुखर्जी ने कहा कि उन्हें दस्तावेजों के अवलोकन के लिये कुछ वक्त चाहिए.
पीठ ने इसके बाद इस मामले की सुनवाई17 अप्रैल के लिये स्थगित कर दी।
गौरतलब है कि अधिवक्ता अभिनव मुखर्जी को पिछले महीने ही राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में उसका प्रतिनिधित्व करने के लिये अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किया था. हालांकि, उन्होंने राज्य सरकार को एक पत्र लिखकर उससे सरकार के खिलाफ हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन सहित चुनिन्दा मामलों में पेश होने की अनुमति मांगी थी.
राज्य के गृह सचिव ने इस महीने के प्रारंभ में ही महाधिवक्ता अशोक शर्मा को राज्य सरकार द्वारा इस तरह की अनुमति प्रदान किये जाने के बारे में एक पत्र लिखा था. इसमें कहा गया था कि मुखर्जी अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त होने से पहले शीर्ष अदालत में मुकदमे देख रहे थे.