दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़ाकिर नाइक की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) पर प्रतिबंध लगाने को चुनौती देने वाली याचिका ख़ारिज कर दी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि ज़ाकिर नाइक की इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) को प्रतिबंधित करने का केंद्र का फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफाजत करने के लिए किया गया था.
केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली नाइक की संस्था की याचिका में दम नहीं होने की बात कहते हुए अदालत ने कहा कि सरकार का आदेश मनमाना और अवैध नहीं था. न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने कहा, केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय भारत की संप्रभुता, अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफाजत के लिए लिया गया था.
अदालत ने सरकार के इस दावे पर भी सहमति जताई कि यह आदेश अच्छी तरह विचार करने के बाद दिया गया था क्योंकि यह डर भी था कि युवा लोग आतंकी समूहों से जुड़ने के लिए चरमपंथ की चपेट में आ सकते हैं. अदालत ने कहा कि सरकार ने नाइक के संगठन पर प्रतिबंध को तत्काल लागू करने के अपने फैसले के समर्थन में अदालत के समक्ष साक्ष्य पेश किए हैं.
सरकार ने अदालत से कहा था कि संस्था के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जरूरी साक्ष्य उसके पास पर्याप्त संख्या में हैं. अदालत ने संगठन पर तत्काल प्रतिबंध के आदेश के खिलाफ आईआरएफ की याचिका पर एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
केंद्र ने अदालत के समक्ष वे फाइलें और सामग्रियां भी पेश की थीं, जिनके आधार पर फैसला लिया गया था. आईआरएफ ने अपनी याचिका में गृह मंत्रालय की 17 नवंबर, 2016 की याचिका को चुनौती दी थी. मंत्रालय ने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत संगठन पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया था.
केंद्र की अधिसूचना को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति सचदेवा ने कहा कि सरकार ने इस कदम के लिए कारण बता दिए हैं और यह कहना गलत होगा कि प्रतिबंध से पहले उन्हें विस्तृत कारण नहीं बताए गए.
इसी बीच, हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यूएपीए के तहत गठित न्यायाधिकरण को इस फैसले के निष्कर्षों से प्रभावित नहीं होना चाहिए और अपने समक्ष आए मुद्दे पर उसके गुण-दोष के आधार पर फैसला करना चाहिए.
आईआरएफ ने कहा था कि गृह मंत्रालय की अधिसूचना ऐसा कोई कारण या सामग्री नहीं पेश करती, जो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए नियम के तहत ऐसा कदम उठाने के लिए जरूरी होती हैं. आईआरएफ ने यह भी कहा कि कारण बताओ नोटिस दिए बिना ही तत्काल प्रतिबंध लगा दिया गया.
हालांकि ने केंद्र ने इसके जवाब में कहा कि आईआरएफ, उसके अध्यक्ष नाइक और उसके सदस्यों द्वारा जारी किए गए कथित बयानों और भाषणों से भारतीय युवाओं के आईएसआईएस जैसे आतंकी समूहों से जुड़ने के लिए चरमपंथ की चपेट में आ जाने या उकसावे का शिकार बनने का डर था. इसलिए ऐसे तात्कालिक कदम उठाने की ज़रूरत महसूस की गई. युवाओं के चरमपंथ की चपेट में आने का डर वैश्विक चिंता का विषय है.
केंद्र के रुख से नाराज़ आईआरएफ के वकील ने यह भी कहा था कि किसी व्यक्ति द्वारा निजी तौर यदि कुछ किया जाता है तो उसके लिए किसी संगठन को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता.
वकील ने कहा था, आईआरएफ मामले में आरोपी नहीं है और नाइक के ख़िलाफ़ दर्ज़ अपराध रिपोर्ट वर्ष 2012-2013 की है. यह कार्रवाई इतने लंबे समय बाद क्यों की गई? क्या सरकार इस तरह से अपना दिमाग लगाती है?
केंद्र ने पहले हाईकोर्ट से कहा था कि अधिसूचना के अनुसार, नाइक ऐसे बयान देने का भी आरोपी हैं, जो दूसरे धर्मों के लिए अपमानजनक थे और इस तरह से सांप्रदायिक बैरभाव फैलाते थे.
केंद्र ने कहा था कि मुंबई पुलिस आईएसआईएस से जुड़ने वाले केरल के एक युवक के पिता की शिकायत के आधार पर पहले ही आईआरएफ के छह अन्य लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर चुकी है. केंद्र ने कहा कि अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किए गए कुछ आतंकियों और आईएसआईएस के समर्थकों ने दावा किया था कि वे आईआरएफ के बयानों से प्रेरित थे.
आईआरएफ ने दावा किया था कि इन कथित भाषणों और बयानों की तिथियां और सामग्री का जिक्र अधिसूचना में नहीं किया गया. संस्था ने कहा था कि वह अपनी याचिका को तत्काल प्रतिबंध तक ही सीमित कर रही है और विदेशी चंदा नियमन कानून के तहत कुर्क किए गए अपने खातों का मुद्दा नहीं उठा रही.