विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक दामोदर तुरी की गिरफ़्तारी के बाद उनकी पत्नी ने जेल में उनके साथ अमानवीय रुख़ अपनाए जाने का आरोप लगाया है.
‘विस्थापन, जमीन की सुरक्षा और आदिवासियों, मेहनतकश मजदूरों के सवाल पर लड़ने वाला मेरा पति क्या कुख्यात माओवादी है, जो उन्हें जेल में प्रताड़ित किया जा रहा है. वो तो सालों से जुल्म-दमन के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. मीलों पैदल चलकर जन आंदोलन के साथी बनते रहे हैं. पहले उनकी गिरफ्तारी गलत आरोपों में हुई फिर जेल में डाला गया. हमारे खेतों में गेंहू की फसलें पकी पड़ी है. उसे कोई देखने वाला नहीं है. दामोदर साथ होते, तो काटते-कटवाते. सच कहिए तो घर-परिवार संभालने, कोर्ट-कचेहरी, जेल का चक्कर लगाने के साथ खुद और बच्चों की पढ़ाई की जद्दोजहद से जूझ रही हूं.’
बेबी तुरी एक सांस में यह कहते हुए क्षण भर के लिए खामोश हो जाती हैं. वो विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक दामोदर तुरी की पत्नी हैं.
रांची में लोकतंत्र बचाओ मंच के बैनर तले आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल दामोदर तुरी को पिछले पंद्रह फरवरी को गिरफ्तार किया गया था. अभी वे गिरिडीह जेल में बंद हैं.
हाल ही में बेबी तुरी ने जिला विधिक सेवा प्राधिकार गिरिडीह के सचिव को एक शिकायती पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने जानकारी दी है कि 26 मार्च को वो अपने पति से मुलाकात करने जेल गई थी.
मुलाकात के दौरान दामादोर तुरी ने बताया कि उन्हें और उनके कई साथियों को जेल में अलग सेल में डाल दिया गया है. गंदी और बंद कोठरी में रहना-खाना और सोना तो है लेकिन वहां सांस लेना भी कठिन है. 24 घंटे एकांत में रहने से वे बेहद परेशान हैं.
बेबी तुरी ने पत्र के जरिए गुहार लगाई है कि उनके पति दामोदर तुरी को सामान्य बंदियों की तरह जेल में रखा जाए.
वो बताती हैं कि इससे पहले अपने बच्चों को लेकर दामोदर से मिलने गई थीं, तब उनके पति ज्यादा परेशान नहीं दिखे थे. लेकिन इस बार मानसिक तौर पर वे विचलित थे. वजह पूछने पर वे बताने लगे कि रात भर मच्छर नोंचते हैं. बंद कोठरी में हवाएं गुम हैं.
लिहाजा दामोदर तुरी की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन कर रहे देश भर के विभिन्न जन संगठनों को इस खबर ने और भी उद्वेलित कर दिया है. जगह-जगह बैठकों-विरोध का सिलसिला वैसे भी जारी है.
दामोदर तुरी धनबाद जिले में टुंडी प्रखंड के सुदूर जीतपुर पंचायत के रहने वाले हैं. उनकी पत्नी बेबी तुरी इस पंचायत में साल 2010- 2015 तक मुखिया रही हैं.
बेबी कहती हैं कि उनके पति गैर कानूनी व्यक्ति होते, तो गांव-गिराव के लोग उन्हें अपना जनप्रतिनिधि नहीं चुनते. पिछले महीने ही बेबी तुरी ने इंटरमीडिएट का इम्तिहान दिया है.
उनका कहना था कि जिन दिनों वे परीक्षा की तैयारी में जुटी थी और शामिल हो रही थी, तभी पति गिरफ्तार किए गए. अलबत्ता गिरफ्तारी की उन लोगों को जानकारी तक नहीं दी गई.
बकौल बेबी तुरी, ‘इन हालात ने झकझोक कर रख दिया. फिर भी हम लड़ेंगे दामोदर के लिए. और आखिरी कतार में शामिल उन लोगों के लिए जिनकी वे आवाज बनते रहे हैं.’
प्रतिवाद का सिलसिला
गिरफ्तार किए गए दामोदर तुरी के खिलाफ गिरिडीह जिले के मुफसिल थाना में सात नवंबर साल 2017 को एक मुकदमा दर्ज है. जबकि उनके खिलाफ गैरकानूनी संगठनों तथा कार्यक्रमों-गतिविधियों में शामिल रहने के आरोप में कठोर कानून 17 सीएलए (क्रिमिनल लॉ एमेंडमेंट एक्ट) तथा 13 यूपीए ( गैरकानूनी निवारण अधिनियम) लगाया गया है.
बेबी तुरी बताती हैं कि हमारे वकील ने जानकारी दी है कि दामोदर के खिलाफ दूसरे थानों में और दो मामले दर्ज हैं.
गौरतलब है कि 22 दिसंबर 2017 को झारखंड सरकार ने मजदूर संगठन समिति (एमएसएस) को भाकपा माओवादी का अग्रणी संगठन बताते हुए अपराध विधि संशोधन अधिनियम 1908 की धारा 16 के तहत प्रतिबंध लगाया है.
इस संगठन को लोक शांति के लिए घातक बताते हुए संगठन से जुड़ी किसी भी गतिविधि को गैरकानूनी करार दिया गया है.
तब राज्य के गृह सचिव ने मीडिया से कहा था कि मजदूर संगठन समिति के खिलाफ कई गंभीर आरोप हैं. दामोदर तुरी समेत अन्य लोग इस संगठन की गतिविधियों को बढ़ावा देते रहे हैं.
इस संगठन पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद प्रशासन-पुलिस की पैनी नजर है. संगठन के कई दफ्तरों को सील कर दिया गया है.
इधर सरकार के इस फैसले पर मजदूर और मानवाधिकार संगठनों का विरोध-प्रदर्शन भी जारी है. इसी सिलसिले में पिछले साल तीस दिसंबर को आधे दर्जन से अधिक मजदूर-मानवाधिकार संगठनों ने दिल्ली में रोषपूर्ण प्रदर्शन करते हुए आरोप लगाया था कि मजदूर संगठन समिति के दस पदाधिकारियों के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज किया गया है.
दामोदर को लेकर दावे
हालांकि विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन की केंद्रीय समिति, लोकतंत्र बचाओ मंच समेत कई जन संगठनों का दावा है कि दामोदर तुरी एमएसएस के सदस्य नहीं हैं.
हालांकि मजदूरों के हक-अधिकार को लेकर एमएसएस के कार्यक्रमों में वे जरूर शामिल होते रहे हैं.
जानकारी के मुताबिक एमएसस का गठन साल 1985 में अधिवक्ता सत्यनारायण भट्टाचार्य ने किया था. इसका पंजीकरण 1989 में हुआ था.
एसएसएस मुख्य तौर पर झारखंड के गिरिडीह, धनबाद, बोकारो और बंगाल की कुछ कोयला खदानों, ताप विद्युत संयत्रों तथा खेतिहर मजदूरों के लिए काम करता रहा है. असंगठित क्षेत्र के 20 हजार से अधिक लोग इसके सदस्य रहे हैं.
पिछले साल गिरिडीह की पारसनाथ पहाड़ी पर कथित तौर पर एनकाउंटर में मारे गए डोली मजदूर मोतीलाल बास्के को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों, आदिवासी तथा जन संगठनों ने जोरदार आंदोलन छेड़ा था. तब मजदूर संगठन समिति भी इन आंदोलनों में अग्रणी भूमिका में सामने आई थी. इसके साथ ही मोतीलाल बास्के की मौत पर दामादोर तुरी भी आवाज मुखर करते रहे हैं.
कई जगह लिखे जा रहे पत्र
जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी कहते है कि हम लोगों की चिंता है कि शोषित-वंचित और पीड़ितों के हक-अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले दामोदर तुरी के साथ जेल में अमानवीय रुख अख्तियार किया जा रहा है.
बेबी तुरी ने इस बाबत प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि दामोदर तुरी और उनके साथियों ने जेल के इस रवैए के खिलाफ भूख हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है.
पति से अगली मुलाकात के लिए बेबी तुरी शीघ्र जेल जाने वाली है. इसके बाद स्थिति स्पष्ट हो सकेगी कि हालात वही हैं या दामोदर के साथ सामान्य बंदियों की तरह व्यवहार किया जा रहा है.
स्टेन बताते हैं कि ह्यूमन राइट्स डिफेंडर, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय समेत कई मंचों को पत्र भेजकर पूरी स्थिति की जानकारी देते हुए दामोदर तुरी की रिहाई की मांग की गई है. सोशल साइट्स पर भी जनमत जुटाया जा रहा है.
उनका कहना है कि रूसी क्रांति के सौ वर्ष पूरे होने पर झारखंड में कई जगहों पर मजदूर संगठन समिति ने कार्यक्रम किए थे. तब पुलिस के साथ संगठन के कार्यकर्ताओं का टकराव भी हुआ था.
रांची में आयोजित कार्यक्रम में तेलुगु कवि वरवर राव ने शिरकत की थी. यह प्रतीत होता है कि इन कार्यक्रमों में दामोदर तुरी के शामिल होने की वजह से उन्हें निशाने पर लिया गया. जबकि यह निहायत फासीवाद कार्रवाई है.
आरोप निराधार, सवाल सुरक्षा का
इधर गिरिडीह जेल के अधीक्षक मो इसराइल ने बताया है कि जेल में दामोदर तुरी के साथ किसी किस्म का अमानवीय रुख अख्तियार किए जाने या प्रताड़ित करने का आरोप बेबुनियाद है.
जेल अधीक्षक का कहना था कि यह सही है कि उन्हें सेल में रखा गया है. और सेल में खिड़की नहीं होती. लेकिन सेल के कोरीडोर- कंपाउड में वे निकल सकते हैं. फिर 17 सीएल एक्ट में बंद दूसरे कई बंदियों को भी सेल में रखा गया है. सेल में ही उन्हें भोजन उपलब्ध कराया जाता है. जेल की सुरक्षा- शांति के साथ बंदी की सुरक्षा के मद्देनजर ये कदम उठाए जाते हैं. इस पूरे मामले में जेल मैनुअल का ख्याल रखा जाता है.
जेल अधिकारी के मुताबिक जेल में किसी भी बंदी को मच्छरदानी इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है. इसकी गुंजाइश हो सकती है कि इक्के-दुक्के मच्छर काटते होंगे.
तुरी, नियमित तौर पर नाश्ता-भोजन करते रहे हैं. वे या उनके परिवार के लोगों ने किसी परेशानी के बाबत कोई शिकायत भी नहीं की है. किसी भी बंदी ने मौखिक या लिखित तौर पर अनशन पर जाने की सूचना नहीं दी है.
इत्तेफाक नहीं
विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन से जुड़ी मध्यप्रदेश की माधुरी कहती हैं कि पहले तो दामोदर की गिरफ्तारी गलत तरीके से हुई और अंडर ट्रायल बंदी को बंद कोठरी में रखना भी अवैध है.
दामोदर पर दर्ज मुकदमों के बारे में उन्हें जो जानकारी मिली है उसमें तुरी को बोल्शेविक क्रांति से जुडे कार्यक्रमों में शामिल होने तथा मजदूर संगठन समिति की गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है. जबकि दामोदर एमएसएस के सदस्य नहीं थे.
माधुरी के सवाल भी हैं कि क्या मजदूरों के लिए काम करने वाले किसी संगठन के कार्यक्रम में शामिल होना कोई अपराध है. उनका कहना था कि झारखंड से सामाजिक कार्यकर्ताओं और जन संगठनों के खिलाफ कार्रवाईयों के बारे में जो सूचनाएं मिल रही है वह संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन करने जैसा है.
विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन, लोकतंत्र बचाओ मंच से जुड़े तथा मानवाधिकार मामलों की वकालत करते रहे रांची के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता त्रिदिव घोष इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं. वे घर से निकल नहीं पाते. लेकिन दामोदर तुरी की गिरफ्तारी और उनकी पत्नी की बेबसी की खबरें उन्हें विचलित करती रही हैं.
उनका कहना है कि इस मसले पर फादर स्टेन स्वामी की प्रतिक्रियाओं से वे सहमत हैं.
बकौल घोष ये बहुत ही गलत है कि किसी सामाजिक कार्यकर्ता को कथित तौर पर गलत आरोपों में कठोर कानून के तहत जेल मे डाल दिया जाय और फिर सेल में बंद कर दिया जाय. यह न्यायालय के आदेशों की भी अवहेलना है.
घोष कहते हैं कि वाकई इस किस्म की कार्रवाईयों की वजह से झारखंड में सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए परिस्थितियां कठिन होती जा रही है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं.)