भारत बंद के दौरान हुई हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंदोलन कर रहे लोग निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा गुमराह किए गए हैं. केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर 10 दिन बाद विस्तार से सुनवाई की जाएगी.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम या एससी/एसटी एक्ट के बारे में 20 मार्च का अपना फ़ैसला स्थगित रखने से मंगलवार को इनकार कर दिया. साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा है कि केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर 10 दिन बाद विस्तार से सुनवाई की जाएगी.
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय यू. ललित की पीठ ने इस फ़ैसले के विरोध में दो अप्रैल को प्रदर्शनों के दौरान देश भर में बड़े पैमाने पर हिंसा का ज़िक्र करते हुये कहा कि आंदोलन कर रहे लोगों ने निर्णय ठीक से पढ़ा ही नहीं है और वे निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा गुमराह किए गए हैं.
शीर्ष अदालत के 20 मार्च के फैसले का विरोध करने के लिए अनेक अजा-अजजा संगठनों ने दो अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया था और इस दौरान हुई हिंसक घटनाओं में कम से कम 11 व्यक्ति मारे गए.
पीठ ने कहा, ‘हमने अजा/अजजा क़ानून के किसी भी प्रावधान को कमज़ोर नहीं किया है लेकिन सिर्फ़ निर्दोष व्यक्तियों को गिरफ़्तारी से बचाने के लिए उनके हितों की रक्षा की है. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस फैसले में निर्दोष व्यक्तियों के ‘मौलिक अधिकारों की रक्षा’ के लिए अतिरिक्त उपाय किए गए हैं.’
मालूम हो कि इसी पीठ ने 20 मार्च को फैसला सुनाया था.
शीर्ष अदालत ने एक घंटे तक केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, ‘हमने कहा है कि निर्दोष व्यक्तियों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए. निर्दोष व्यक्तियों को अजा-अजजा क़ानून के प्रावधानों से आतंकित नहीं किया जा सकता है. हम किसी भी व्यक्ति को उसके जीने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहते और स्वयं हमने यह स्पष्ट किया है कि हम इस क़ानून या इस पर अमल के विरुद्ध नहीं हैं.’
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह 20 मार्च के फैसले पर पुनर्विचार के लिए केंद्र की याचिका पर मुख्य याचिका के महाराष्ट्र सरकार सहित मूल पक्षकारों के साथ ही सुनवाई करेगा.
शीर्ष अदालत ने केंद्र की पुनर्विचार याचिका 10 दिन बाद सूचीबद्ध करने का आदेश देते हुए महाराष्ट्र और दूसरे पक्षकारों से कहा कि वे दो दिन के भीतर अपनी लिखित दलीलें दाखिल करें.
शीर्ष अदालत ने केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और महाराष्ट्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता के इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया कि पुनर्विचार याचिका पर फैसला होने तक 20 मार्च का निर्णय स्थगित रखा जाए.
केंद्र सरकार ने अपनी पुनर्विचार याचिका में कहा है कि 20 मार्च के न्यायालय के निर्णय में इस क़ानून के प्रावधानों को नरम करने के दूरगामी परिणाम होंगे. इससे अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा.
पुनर्विचार याचिका में यह भी कहा गया है कि यह फ़ैसला अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में परिलक्षित संसद की विधायी नीति के भी विपरीत है.
सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा कि न्यायिक समीक्षा के दायरे में आया क़ानून शिकायत दायर करने के साथ ही अनिवार्य रूप से गिरफ़्तारी का अधिकार नहीं देता है और यह एक विस्तृत क़ानून है और फैसले में उसने दंड प्रक्रिया संहिता में प्रदत्त प्रक्रिया के अनुरूप ही इस पर अमल करने के लिए कहा है.
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस क़ानून के किसी प्रावधान या नियम को नरम नहीं किया गया है और अजा/अजजा कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज होने से पहले ही कथित अत्याचार के पीड़ितों को मुआवज़ा दिया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि इस कानून में उल्लिखित अपराध ही न्यायालय के फैसले की विषयवस्तु है और भारतीय दंड संहिता के तहत दूसरे संज्ञेय अपराधों के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले जांच की आवश्यकता नहीं है.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इस कानून के तहत दर्ज अपराधों की जांच पूरी करने के लिए उसने अधिकतम सात दिन की समय सीमा निर्धारित की है.
इससे पहले, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया था.