वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ने प्रधान न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकार के बारे में स्पष्टीकरण हेतु उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दाख़िल की है.
नई दिल्ली: वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ने प्रधान न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकार के बारे में स्पष्टीकरण हेतु उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को एक जनहित याचिका दायर की.
याचिका में विभिन्न पीठों को मुक़दमों के आवंटन के लिए रोस्टर तैयार करते समय अपनाई जाने वाली प्रक्रिया प्रतिपादित करने का भी अनुरोध किया गया है.
शांति भूषण ने अपने अधिवक्ता पुत्र प्रशांत भूषण के माध्यम से यह याचिका दायर की है जिन्होंने शीर्ष अदालत के सेक्रेटरी जनरल को एक पत्र लिखकर कहा है कि यह मामला प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध नहीं होना चाहिए.
पत्र में यह भी कहा गया है कि बेहतर होगा कि याचिका सुनवाई के लिए उचित पीठ को सौंपने के लिए तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समक्ष पेश किया जाए.
इस याचिका में उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के साथ प्रधान न्यायाधीश को भी प्रतिवादी बनाया गया है.
शांति भूषण ने कहा है कि रोस्टर के मुखिया के पास अनियंत्रित अधिकार नहीं हो सकता जिसका इस्तेमाल प्रधान न्यायाधीश चुनिंदा न्यायाधीशों की पीठ के लिए मनमाने तरीके से करें.
याचिका में शांति भूषण ने उच्चतम न्यायालय के नियम, 2013 और प्रैक्टिस एंड प्रोसीज़र की हैंडबुक और आॅफिस प्रोसीज़र के विपरीत किसी भी मामले को सूचीबद्ध करने से प्रधान न्यायाधीश और रजिस्ट्रार को निषेध करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है.
याचिका में यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री द्वारा प्रधान न्यायाधीश से किसी तरह के परामर्श में उन वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ भी परामर्श करना चाहिए जिनकी संख्या न्याय के हित में न्यायालय निर्धारित करे.
शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की 12 जनवरी को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के परिप्रेक्ष में शांति भूषण की यह याचिका काफ़ी महत्वपूर्ण हो गई है.
इन न्यायाधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि शीर्ष अदालत में सब कुछ ठीक नहीं है और उन्होंने महत्वपूर्ण मामले तथा जनहित याचिकाएं चुनिंदा कनिष्ठ न्यायाधीशों को सुनवाई के लिए आवटित करने का मामला भी उठाया था.