विपक्ष को गाली देने के जोश में अमित शाह को शेर रूप मोदी को उस पेड़ पर नहीं चढ़ाना चाहिए था, जहां दूसरे जानवर भी बैठे हैं. मोदी तो विकास के प्रतीक हुआ करते थे, विनाश के पर्याय कब बन गए?
‘2019 के कार्यक्रम की शुरुआत हो गई है, सारा विपक्ष आह्वान करता है कि इकट्ठा आओ. मैंने एक वार्ता सुनी थी. जब बहुत बाढ़ आती है तो सारे पेड़-पौधे पानी में बह जाते हैं. एक वटवृक्ष अकेले बच जाता है तो सांप भी उस वृक्ष पर चढ़ जाता है, नेवला भी चढ़ जाता है, बिल्ली भी चढ़ जाती है, कुत्ता भी चढ़ जाता है, चीता भी चढ़ जाता है, शेर भी चढ़ जाता है, क्योंकि नीचे पानी का डर है, इसलिए सब एक ही वृक्ष पर इकट्ठा होते हैं. यह मोदी जी की बाढ़ आई हुई है, इसके डर से सांप, नेवला, कुत्ती, कुत्ता, बिल्ली सब इकट्ठा होकर चुनाव लड़ने का काम कर रहे हैं.’
इस विनम्रता और विद्वता से अमित शाह ही विपक्ष को परिभाषित कर सकते हैं. हम नहीं जानते कि उनके मन में किस नेता को देख कर सांप का ख़्याल आता है और किस नेता को देख कर कुत्ती का. विपक्षी खेमे में कई महिला नेता भी हैं, क्या उन्हें सोच कर यह कहा गया है?
अमित शाह ने शेर के साथ शेरनी नहीं कहा मगर कुत्ता के साथ कुत्ती कहा है. इससे पहले योगी आदित्यनाथ सपा और बसपा के गठजोड़ को सांप-छछूंदर का मेल कह चुके हैं. उनके पहले लोकसभा चुनावों में शाह यूपी में कसाब का नारा लाए थे मतलब कांग्रेस, सपा और बसपा. पहले विपक्ष की तुलना आतंकवादी से की, फिर सांप छछूंदर और उसके बाद कुत्ती और कुत्ता से.
वैसे अमित शाह ने शेर और चीता किसे कहा है पता नहीं क्योंकि ये भी उसी वटवृक्ष पर हैं. 2014 में मोदी जब मंच पर आते थे तो यह नारा भी उठता था कि देखो देखो शेर आया. गुजरात चुनावों में भी नारा लगता था कि देखो देखो गुजरात का शेर आया. शेर मतलब किसी से नहीं डरने वाला.
मगर अमित शाह के इस बयान में शेर भी वटवृक्ष पर चढ़ा हुआ है. विपक्ष में कौन शेर हो सकता है? भारत की राजनीति में अमित शाह और उनके लाखों समर्थक मोदी को ही शेर समझते हैं. यहां तो शेर भी वटवृक्ष पर चढ़ा हुआ है क्योंकि नीचे पानी का डर है. क्या ये शेर मोदी है या राहुल है?
विपक्ष को गाली देने के जोश में उन्हें शेर रूप मोदी को उस पेड़ पर नहीं चढ़ाना चाहिए था, जहां दूसरे जानवर भी बैठे हैं. अगर अमित शाह के अनुसार मोदी की बाढ़ है तो मोदी शेर भी तो हैं. मोदी शेर से बाढ़ कब बन गए? वे तो विकास के प्रतीक हैं, विनाश के प्रतीक कब बन गए?
अब कहेंगे कि बाढ़ उर्वर मिट्टी लाती है मगर यहां तो वे तबाही का पक्ष उभार रहे हैं. विनाश का पक्ष उभार रहे हैं. कोई अध्यक्ष अपने नेता को विनाश का प्रतीक बना सकता है, ऐसी विद्वता उन्हीं में हो सकती है.
अमित शाह कितनी आसानी से कहानी बदल देते हैं. उन्हें पता है कि शेर भी डरता है. वरना इतिहास बदलने में ज़रा भी संकोच न करने वाले अमित शाह कह देते कि सारे जानवर वटवृक्ष पर हैं मगर एक अकेला शेर तैरता चला जा रहा है.
अमित शाह के बयान को ग़ौर से पढ़िए, आपको शेर की हालत भी कुत्ती और कुत्ते की तरह नज़र आएगी. मुझे समझ नहीं आता कि जब कुत्ते के बच्चे के गाड़ी के नीचे आने से मोदी जी को इतनी तकलीफ़ हो गई थी, तब उनके अध्यक्ष को क्यों मज़ा आ रहा है कि कुत्ता और कुत्ती बाढ़ से अपनी जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ गए हैं.
गुजरात में चुनाव से पहले बाढ़ आई थी. बहुत से लोग मर गए थे. उससे पहले हम सबने बिहार में कोसी नदी की तबाही में हज़ारों लोगों को लाश में बदलते देखा है. केदारनाथ में पानी की धार में हज़ारों तीर्थयात्रियों को मलबे में दबते देखा है.
बाढ़ की तबाही को कोई हंसते हुए बता सकता है तो इस वक्त सिर्फ अमित शाह ही बता सकते हैं. वो यह भी भूल गए कि जिस मुंबई में बाढ़ की मिसाल दे रहे थे, उस शहर में किसी साल जुलाई के महीने में बाढ़ आई थी और सैंकड़ों लोग मर गए थे.
अगर 6 अप्रैल को मुंबई में 26 जुलाई वाली बाढ़ आ जाती तो उस हॉल में जितने भी कार्यकर्ता थे सब भाग खड़े होते और मुझे पूरा भरोसा है कि दस- पांच तो ऐसे होते ही जो सबसे पहले अपने अध्यक्ष जी को उठाकर भाग रहे होते. अमित शाह को ही छत पर पहुंचाते ताकि वे सुरक्षित रहे.
26 जुलाई की बाढ़ में मारे गए सैंकड़ों मुंबईवासियों को अगर कोई वटवृक्ष मिल गया होता तो वे भी कुत्ती और कुत्ता के साथ वहां बैठकर अपनी जान बचाने से परहेज़ नहीं करते. शेर तो फिर भी आदमी को मार कर खा जाता लेकिन आदमी को पता है कि कुत्ती और कुत्ता ऐसा नहीं करेंगे.
समझ नहीं आता है कि अमित शाह को कुत्ती और कुत्ता से इतनी विरक्ति क्यों है? कुत्ते की वफ़ादारी युधिष्ठिर से ही पूछ लेते. स्वर्ग तक जाने के रास्ते में उनका आख़िरी साथी थी. सत्ता की सनक में महाभारत का पाठ भी भूल गए क्या?
अमित शाह जिन लोगों के बीच यह किस्सा सुनाकर ताली लूट रहे थे, उन्हें पता है कि जब बाढ़ आती है तब आदमी की भी हालत जानवरों की तरह हो जाती है. उसका जीवन ही नहीं, जीवन का सारा संचय तबाह हो जाता है.
भाजपा के कार्यकर्ता उस हॉल में बैठकर हंस भी पाए, ये बात मुझे हैरान करती है. कोई अपने अध्यक्ष के मुंह से अपने प्रिय नेता की तुलना विनाश से करते हुए कैसे ताली बजा सकता है. क्या उन कार्यकर्ताओं की विवेक बुद्धि इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि वे अपने नेता की तुलना विनाश से किए जाने पर खुश थे?
क्या अमित शाह यह बता रहे हैं कि मोदी अब शेर नहीं, बाढ़ हैं. क्या अमित शाह यह बता रहे हैं कि राजनीति में गठबंधन करना, एक साथ आना कुत्ती और कुत्ता का एक साथ आना है. क्या अमित शाह ने अपने एनडीए के भीतर झांक कर देखा है कि उनमें कौन कौन से दल हैं और वे दल कब-कब, किन-किन दलों के साथ गठबंधन कर चुके हैं. कई दल तो उसी विपक्ष से आए हैं जिन्हें अमित शाह कुत्ती और कुत्ता बता रहे हैं.
विपक्ष भी जनता का प्रतिनिधि होता है. कांग्रेस अगर भाजपा की विपक्ष है तो भाजपा भी कांग्रेस की विपक्ष है. कांग्रेस के लिए न तो भाजपा कुत्ती और कुत्ता है और न ही भाजपा के लिए कांग्रेस कुत्ती और कुत्ता होनी चाहिए. मगर अमित शाह अपनी जीत की सफ़लता में सब कुछ भूलते जा रहे हैं.
उनके इस बयान में डर को उभारा गया है. वे डर का उल्लास मना रहे हैं. मोदी अब डर का कारण हैं. आपको उनसे डरना चाहिए. वे उस जनता को मोदी का डर दिखा रहे हैं जो विपक्ष के साथ है. क्या अब मोदी के पास दिखाने के लिए बाढ़ और डर ही रह गया है?
इस सवाल का जवाब हॉल में नहीं मिलेगा, तभी मिलेगा जब भाजपा का कार्यकर्ता नए बने फाइवस्टार मुख्यालय में तीसरे फ्लोर से ऊपर जाकर अध्यक्ष जी का आलीशान कमरा देख सकेगा. बशर्ते आम कार्यकर्ताओं को अपने अध्यक्ष जी का कमरा देखने को मिल जाए. मोदी जी शेर थे, अब बाढ़ हैं. अमित शाह अब अभी अमित शाह हैं. वेल डन.
(यह लेख मूलतः रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर प्रकाशित हुआ है.)