हिंदू-मुसलमान, ऊंची जाति, नीची जाति, नॉर्थ इंडियन, साउथ इंडियन, काले-गोरे, हरे, पीले, लाल, गुलाबी, भगवा, कत्थई. सब बन लिए. अब जरा भारतीय बनकर भारत को बचा लो.
एक लड़की जमीन पर पड़ी हुई है. शायद पूरी नंगी या कुछ फटे कपड़ों से ढकी हुई. उसके जिस्म पर हर जगह चोटें हैं. उसका चेहरा सूजा हुआ है. उसकी फूली आंखें खून जैसी लाल हो चुकी हैं. भौहों पर हल्का सा कट भी है. उसके स्तनों पर दांतों के काटने निशान हैं.
उसके होंट भी कटे हुए हैं जिन पर अब खून जम चुका है. उसके एक बालों का गुच्छा उसके ही पास पड़ा है. जो इतनी जोर से खींचा गया था कि सर की खाल से टूट के अलग हो गया है. उसकी योनि में से खून रिस रहा है.
दर्द इतना ज्यादा कि उसको सांस लेने में भी मुश्किल हो रही है. उसके घुटने, कमर, कंधे, करीब-करीब हर जगह से उसकी खाल छिल चुकी है. दांतों के कुछ और निशान जिस्म के कुछ और हिस्सों पर भी हैं. गले से आवाज नहीं सिर्फ कराहटें निकल रहीं हैं.
ये तो हुई बाहर की बात, अब थोड़ी अंदर की बात करते हैं. अंदर से ये बिलकुल टूट चुकी है. ये अपनी नजरों में गिर चुकी है. इसलिए नहीं कि इसमें इसकी कोई गलती है, बल्कि इसलिए कि समाज ने इसे ऐसा सिखाया है. अब वो न अपने घर वालों को अपना मुंह दिखा सकती है न समाज को. धीरे-धीरे इसकी मौत की शुरुआत हो चुकी है.
आज से ये डर-डर कर मरना शुरू हो गई है. इसकी नींद से इसे ये भयावह मंजर अक्सर जगाएगा. लोग कुछ बनने के, कुछ करने ख्वाब देखते हैं ये अब अपने साथ, ऐसा फिर होने के ख्वाब देखेगी. कभी-कभी चाय बनाते- बनाते, यूं ही रो पड़ेगी. रिश्तों पर यकीन करना इसके लिए मुश्किल हो जाएगा.
हालांकि ये अभी साबुत दिख रही है पर ये बिखर रही है, गल रही है, घुल रही है, डूब रही है. हवा इसके लिए तेजाब है और सांसें इसके लिए घुटन. ये अक्सर ऐसा सोचेगी कि इसमें मेरी क्या गलती थी? मैंने ऐसा क्या किया था ये मेरे साथ हुआ?
इस लड़की का अभी कुछ देर पहले रेप हुआ है.
अब अपनी आखें बंद कीजिए और उस जमीन पर पड़ी हुई औरत के चेहरे को ध्यान से देखिए. पहचाना आपने. ये आपकी या मेरी मां, बहन या बेटी है.
बुरा लगा न, बहुत बुरा लगा न. अब आप उस चेहरे को अपने दिमाग से निकालने की कोशिश कर रहे हैं. पर वो चेहरा जा नहीं रहा है. मैंने आपको ऐसी चीज दिखा दी है, जिसकी वजह से शायद अभी आपको, मुझसे सबसे ज्यादा नफरत है. करिए आप मुझे नफरत. आपको पूरी इजाजत है.
पर उस रेपिस्ट का क्या जिसने ये सब किया है? क्या उससे आप नफरत करते हैं?
आइए मैं आपके लिए ये तस्वीर और भयावह कर देता हूं. सोचिए. आपकी मां या बहन या बेटी के साथ ये सब तब हुआ जब वो आठ साल की थी. ये तो बहुत ही कम उम्र हो गई. चलिए ऐसा हुआ जब वो 16 साल की थी. अब ठीक है? क्या करेंगे आप? आपका दिल चाह रहा है न आप मुझे जान से मार दें. चाहना भी चाहिए.
लेकिन मैंने तो कुछ नहीं किया है. मैंने तो आपको सिर्फ सोचने पर मजबूर किया है. पर अभी यहां बात खत्म नहीं हुई है.
आप उस आठ साल की लड़की को उठा कर हॉस्पिटल ले जाते हैं. लड़की मर चुकी है. पुलिस आती है. रेप केस तो होना चाहिए. पर नहीं तभी वहां एक भीड़ आती है.
जय श्री राम के नारे लगाती है. भारत माता की जय कहती है. भारत का झंडा उसके हाथ में है. वो भीड़ आपको देशद्रोही बुलाती है और पुलिस के साथ धक्का-मुक्की करके उसे वहां से भगा देती है. अब आप अकेले अपनी बेटी की लाश लेकर खड़े हैं.
बेटी रेप के बाद मार दी गई है. आप डर के मारे कांप रहे हैं. अब कैसा लग रहा है आपको? ये एक मोड़ है इस कहानी का. चलिए अब ठीक इसी कहानी को दूसरा मोड़ देते हैं.
वो लड़की जिसका रेप हुआ अब वो 16 साल की है. आप उसके बाप हैं. इस बार कथित रेपिस्ट का भाई आपको उठाकर ले जाता है. जम कर आपको मरता है. बेटी के रेप का न्याय मिलना तो दूर आपकी अपनी जान के लाले पड़ गए हैं. पर आप अभी मरते नहीं हैं. बस मरने जैसी हालत में हैं. फिर पुलिस आपको अरेस्ट कर लेती है. अब आप लॉकअप में मर जाते हैं.
फिर एक और भीड़ आती है, वो गुस्से में हैं. आप तो अब मर चुके हैं लेकिन बेटी अभी जिंदा है. आपकी बेटी को अब गांव छोड़कर भागना पड़ता है. रेप के बाद, बाप का मरना और अब घर से बेघर हो जाना. ये भीड़ अब उस लड़की की जान की दुश्मन बनी हुई है.
ये हो गई कहानी अब मैं आप से सीधे-सीधे बात करता हूं.
भाड़ में गए हिंदू और भाड़ में गए मुसलमान. भाड़ में गया विपक्ष और भाड़ में गई सरकार. भाड़ में गए तर्क और भाड़ में कुतर्क. भाड़ में गया आध्यात्म और भाड़ में गई आध्यात्मिकता. भाड़ में गया मैं और भाड़ में गए आप सब. अगर इन दो लड़कियों को इंसाफ नहीं मिला तो समझ लो भाड़ में गया देश. अगर इन दो लड़कियों को इंसाफ नहीं मिला तो ये देश इस शर्मिंदगी से कभी नहीं उबर पायेगा.
हिंदू-मुसलमान, ऊंची जाति, नीची जाति, नार्थ इंडियन, साऊथ इंडियन, काले-गोरे, हरे, पीले, लाल, गुलाबी, भगवा, कत्थई. सब बन लिए. अब जरा भारतीय बन के भारत को बचा लो.
क्योंकि वो जो निर्भया के लिए सड़क पर निकले थे, वो लोग मुझे कहीं नहीं दिख रहे हैं. जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कें भर दी थी, वो भी मुझे कहीं नहीं दिख रहे हैं. जिन्हें नाज था हिंद पे, वो मुझे कहीं नहीं दिख रहे हैं.
बदतमीजी की हद हो चुकी है. ये मत भूलिए, ये जो इन लड़कियों के साथ हुआ है, वो हम में से किसी के साथ भी हो सकता है. अगर आपको ये लगता है कि ये आप के साथ नहीं होगा तो यह गलतफहमी है. इसमें से एक लड़की हिंदू है और एक मुसलमान. ये सबके साथ बराबर का जुल्म कर रहे हैं. हम 99 प्रतिशत आम हैं. और अगर अब आम न उठे तो खास तो दूर खाक बनकर रह जाओगे.
मैं इसी देश में उपजा हूं. मेरी जड़ें भी यहीं हैं और मेरी कब्र भी. मैं इसी मिट्टी का बना हूं और आप सब भी. हम सबको इसी मिट्टी में मिलना है. आज इस मिट्टी की इज्जत आप सबके हाथ में है, इसकी इज्जत बचा लो, वरना ये भारत की मिट्टी तुम्हें कभी माफ नहीं करेगी.
(दाराब फ़ारूक़ी पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं.)